'नीच' नतीजा: जानिए, मंदिर-मंदिर घूमकर कांग्रेस ने क्या पाया और क्या खोया
छठी बार चुनाव जीतना बेहद कठिन काम था, लेकिन भाजपा जीत गई. कांग्रेस कहां गच्चा खा गई, इसकी चर्चा सबसे पहले करना जरूरी है.
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नीच, तू चाय बेच, गब्बर सिंह टैक्स, विकास गांडो थयो छे, कांग्रेस आवे छे, गुजरात का दूसरा बेटा आ गया है, देश के पिताजी-पता नहीं क्या-क्या कहा गया, लेकिन गुजरात में सरकार बनाने जा रही भारतीय जनता पार्टी की विधानसभा चुनाव जीत के बाद कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपने दम पर चुनाव जीतने की क्षमता जस की तस बरकरार है. छठी बार चुनाव जीतना बेहद कठिन काम था, क्योंकि एक साल के भीतर नोटबंदी और जीएसटी जैसे सख्त फैसलों के अलावा सत्ता विरोधी लहर की चुनौती थी. लेकिन विपक्षी कांग्रेस पार्टी इस मौके का उस तरह फायदा नहीं उठा पाई.
कांग्रेस कहां गच्चा खा गई, इसकी चर्चा सबसे पहले करना जरूरी है. कांग्रेस और राहुल गांधी ने राज्य की भाजपा सरकार पर हमले करने के बजाय केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को निशाने पर लिया. सवाल भी पूछे तो मोदी से पूछे. गब्बर सिंह टैक्स जैसे तीखे ट्वीट से राहुल की परिपक्व नेता की छवि बनाने की कोशिश की गई. गुजरात के विकास को हास्य का विषय बनाया. जबकि राहुल गांधी को भी ये पता है कि किसी अन्य राज्य के मुकाबले गुजरात में विकास की क्या स्थिति है. कांग्रेस ने जाति की राजनीति को हवा दी. हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश को साथ लेकर पटेलों को आरक्षण का वायदा किया- ये जानते हुए कि ऐसा करना संभव नहीं है. इस बीच कांग्रेस ने कुछ लोक लुभावन घोषणाएं जैसे कपास का समथर्न मूल्य चार हजार करना, मुफ्त लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा किया. हालांकि, बाद में ये महसूस करते हुए कि गुजरात, यूपी नहीं है- मुफ्त की घोषणाओं का प्रचार नहीं किया. राहुल गांधी ने 22 दिन तक गुजरात में घनघोर प्रचार किया, जनता से वोट मांगे और मंदिरों में जाकर भगवान से आशीर्वाद. मुस्लिम तुष्टिकरण की जनक मानी जाने वाली पार्टी के नेता राहुल गांधी ने मंदिर जाकर इस छाप से मुक्त होने का भरसक प्रयास किया.
लेकिन भाजपा ने सधे हुए हमलों से और कोई भी अवसर न गंवाने की अपनी चिर परिचित शैली से हवा का रुख बदल दिया. भाजपा को एंटी इनकंबैंसी के अलावा नोटबंदी व जीएसटी से जनता को हुई दुश्वारियों के चलते पार्टी के खिलाफ जन असंतोष का एहसास था. कांग्रेस ने मोदी को निशाना बनाया था, इसलिए भाजपा ने उन्हीं नियमों से चुनाव प्रचार किया, जिनसे कांग्रेस ने किया. भाजपा राम मंदिर या मुस्लिम विरोधी किसी मौके की तलाश में थी और उसे इत्तेफाक से संजीवनी मिल गई अयोध्या मुद्दे के रूप में. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में अय़ोध्या मसले की सुनवाई 2019 चुनाव के बाद करने की गुजारिश कर ये मौका भाजपा को दे दिया. कांग्रेस से जवाब देते नहीं बना. मंदिर-मंदिर जा रहे राहुल गांधी बैकफुट पर आ गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी देर से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उन्होंने खालिस गुजराती में लोगों को ये बताया कि गुजरात के विकास का मखौल कांग्रेस उड़ा रही है. गुजराती गौरव और गुजरात का बेटा होने का वास्ता देकर लोगों से उनकी भाषा में समर्थन मांगकर भाजपा राहुल गांधी एंड कंपनी पर भारी पड़ने लगी.
पटेलों के आरक्षण पर अरुण जेटली ने दो टूक कहा, ये मुमकिन नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में टिकेगा नहीं. कांग्रेस को शायद इसका एहसास नहीं था कि सूरत में जीएसटी को लेकर व्यापारियों में कितना असंतोष है. जीएसटी काउंसिल की नवंबर में हुई बैठक से ठीक पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सूरत के व्यापारियों से लंबी मुलाकात कर उनकी परेशानियां दूर करने की बात कही. नोटबंदी का मुद्दा कांग्रेस ने उठा तो लिया था पर एक साल बाद इसमें दम बचा नहीं था. जीएसटी पर सख्ती सरकार कर नहीं रही है और परेशानियां दूर कर उसने व्यापारियों की नाराजगी को काफी हद तक कम कर दिया, जिसका नतीजा सूरत की सीटों पर भाजपा की दमदार स्थिति है. इसके बाद कांग्रेस नेता मणिशंकर अय़्यर के बयान के बाद नरेंद्र मोदी के आगे कांग्रेस को घुटने टेकने पड़े जिसका संदेश नकारात्मक था. गुजरात की अस्मिता से जुड़े मुद्दे पर गुजरातियों ने कोई समझौता नहीं किया. रही सही कसर कांग्रेस के जाति दांव के जवाब में भाजपा ने धर्म, पाकिस्तान और आतंकवाद जैसे मसले लाकर अपना पलड़ा भारी कर लिया.
नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया कि जनता की नब्ज पकड़ने, जनता से संवाद करने और उसे अपने पक्ष में करने में उनका कोई सानी नहीं है. आखिरी दौर के पीएम के हमलों को कांग्रेस झेल नहीं सकी और नतीजा सामने है. कांग्रेस के पास कार्यकर्ता नहीं हैं और गुजरात में नेताओं का भी अकाल है. भाजपा बेहतरीन संगठन शक्ति के दम पर जीती है. गुजरात चुनाव कांग्रेस को ऊर्जा तो दे गए, लेकिन सत्ता नहीं. राहुल गांधी ने चुनाव नतीजों से एक दिन पहले पार्टी अध्य़क्ष बनने की खुशी में नेताओं को डिनर दे दिया था. शायद उन्हें भी गुजरात में कांग्रेस की जीत का भरोसा नहीं था. अब कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि वो जीतने के लिए नहीं लड़ते, लेकिन ये भूल जाते हैं कि राजनीतिक दलों की सफलता उनके सत्ता में होने या न होने से ही आंकी जाती है. जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "लोकतंत्र में चुनाव सरकार के कामों का लेखा-जोखा होती हैं. लोगों की अपेक्षाएं बढ़ी हुई हैं." जाहिर है गुजरात के लोगों ने सबक कांग्रेस और भाजपा दोनों की उम्मीदों को सिखाया है. नीच जैसी उपमाएं अगर सामने आएंगी तो नतीजे भी वैसे ही भोगने पड़ेंगे.
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