हरसिमरत कौर बादल के मोदी कैबिनेट से इस्तीफे से किसे क्या हासिल होने वाला है, जानिए...
कृषि विधेयकों के विरोध में हरसिमरत कौर बादल (Harsimarat Kaur Badal) के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने खुद सरकार के फैसले का बचाव किया है. इस बीच राहुल गांधी (Rahul Gandhi) विपक्ष को विरोध के लिए एकजुट कर रहे हैं, लेकिन हरसिमरत कौर से दूरी बनाते हुए - नतीजा क्या निकलेगा?
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हरसिमरत कौर बादल (Harsimarat Kaur Badal) मोदी कैबिनेट 2.0 से इस्तीफा देने वाली दूसरी मंत्री हैं. इससे पहले अकाली दल की ही तरह एनडीए पार्टनर शिवसेना कोटे से मंत्री बने अरविंद सावंत ने बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने से पहले इस्तीफा दिया था. हरसिमरत कौर ने कृषि विधेयकों के विरोध में इस्तीफा दिया है और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उसे मंजूर भी कर लिया है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने खुद आगे आकर बिलों का बचाव किया है.
एनडीए के हिसाब से देखें तो हरसिमरत कौर का इस्तीफा ऐसे वक्त हुआ है जब बीजेपी बिहार चुनाव के मैदान में उतरने जा रही है. बिहार में बीजेपी ने नीतीश कुमार को एनडीए का नेता घोषित किया है, लेकिन एनडीए के ही एक पार्टनर एलजेपी के नेता चिराग पासवान बिहार की मौजूदा गठबंधन सरकार के खिलाफ हद से ज्यादा हमलावर हैं. जाहिर है हरसिमरत कौर के इस्तीफे से चुनावों के ठीक पहले एनडीए के अंदर आपसी रिश्तों पर कुछ न कुछ असर तो पड़ ही सकता है.
हरसिमरत कौर ने मोदी सरकार के तीन कृषि विधेयकों के विरोध में इस्तीफा दिया है, लेकिन वो खुद सवालों के घेरे से उबर नहीं पा रही हैं - मुश्किल तो ये है कि बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस (Rahul Gandhi) भी हरसिमरत कौर के इस्तीफे को नौटंकी बता रही है. अब अगर विपक्ष का साथ नहीं मिल रहा है और चुनाव भी नजदीक नहीं है, फिर हरसिमरत कौर के इस्तीफे देने से किसे क्या फायदा हो सकता है?
हरसिमरत की कुर्बानी का अकाली दल को फायदा क्यों नहीं मिल रहा
कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन और अनलॉक की अवधि के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने किसानों के लिए तीन अध्यादेश लाये थे - कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020, मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश 2020 - अब इन्हीं अध्यादेशों की जगह ये विधेयक लेने जा रहे हैं.
ये तीन विधेयक हैं - कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020, मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता, कृषि सेवा विधेयक 2020.
शिरोमणि अकाली दल के सांसद सुखबीर सिंह बादल का कहना है कि इन विधेयकों की वजह से पंजाब के 20 लाख किसान प्रभावित होने जा रहे हैं. 30 हजार आढ़तिये, तीन लाख मंडी मजदूर, और 20 लाख खेतिहर मजदूरों पर भी इसका सीधा असर पड़ने वाला है.
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने भी विधेयकों के प्रति विरोध जताया है. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसे संघीय व्यवस्था के खिलाफ बताया है क्योंकि इस मसले पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है. तृणमूल कांग्रेस नेता सौगत रॉय ने भी विधेयकों का विरोध किया है - और पूरे विपक्ष का मानना है कि राज्यों में किसानों का मंडी बाजार इन विधेयकों के कारण खत्म हो जाएगा. आम आदमी पार्टी और बीएसपी नेता मायावती ने भी इन विधेयकों को किसानों के खिलाफ बताते हुए विरोध जताया है. सीएए के बाद दूसरा जिसका विरोध हो रहा है
मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देकर हरसिमरत कौर अकेले पड़ गयी हैं
अकाली दल की मुश्किल ये है कि जिस मुद्दे को लेकर पूरा विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ है, ऐसे मसले पर भी सुखबीर सिंह बादल विपक्षी दलों के बीच अलग थलग दिखाई दे रहे हैं. अब इससे अजीब बात क्या होगी कि जिस मुद्दे के विरोध में सुखबीर सिंह बादल ने पत्नी हरसिमरत कौर बादल से इस्तीफे जैसी कुर्बानी दिलवायी - उसे बीजेपी तो बीजेपी विपक्षी दल ही नौटंकी करार दिये हैं.
असल में कांग्रेस पंजाब में अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी में कोई दखल नहीं चाहती. हरसिमरत कौर के इस्तीफे को पंजाब के प्रसंग में कांग्रेस नाटक भले बता रही हो, लेकिन कांग्रेस महासचिव और प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला इसी बहाने हरियाणा सरकार में साझीदार जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला को निशाना भी बना रहे हैं. रणदीप सुरजेवाला ने हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को भी इस्तीफे की सलाह दी है.
दुष्यंत जी,
हरसिमरत के इस्तीफ़े के नाटक को ही दोहरा कर छोटे सीएम के पद से इस्तीफ़ा दे देते।
पद प्यारा है, किसान प्यारे क्यों नहीं ?
कुछ तो राज है, किसान माफ नहीं करेंगे।
जजपा सरकार की पिछलग्गु बन किसान की खेती-रोटी छिनने के जुर्म की भागीदार है।
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) September 17, 2020
अकाली दल को विपक्ष का साथ न मिलने की सबसे बड़ी वजह ये है कि महीने भर पहले ही सुखबीर बादल ने अध्यादेशों का बचाव किया था. दरअसल, बिल का विरोध इस आशंका से किया जा रहा है कि नये कानून के बाद एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदारी नहीं होगी. MSP किसी फसल की वो कीमत होती है जो सरकार बुवाई के वक्त ही तय कर देती है. किसानों को फायदा ये होता है कि अगर बाजार में फसल के दाम कम भी हो गये तो सरकारी एजेंसियों से उनको पैसा एमएसपी के हिसाब से ही मिलेगा. अध्यादेशों के बचाव में सुखबीर सिंह बादल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पत्र का हवाला देते हुए कहा था कि MSP में किसी तरह का बदलाव नहीं होने जा रहा है. तब तो अकाली दल नेता ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर किसानों के बीच भ्रम फैलाने का आरोप लगा डाला था, लेकिन अब पति-पत्नी दोनों ही उन्हीं अध्यादेशों के विधेयक के रूप लेते ही विरोध पर उतर आये हैं.
अब सुखबीर सिंह बादल कह रहे हैं कि उनकी पार्टी से इन अध्यादेशों को लेकर संपर्क नहीं किया गया. सुखबीर बादल तो यहां तक दावा करने लगे हैं कि हरसिमरत कौर ने ये कहते हुए आपत्ति जतायी थी कि इससे पंजाब और हरियाणा के किसान नाखुश हैं, लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया.
अपने इस्तीफे की ट्विटर पर जानकारी देते हुए हरसिमरत कौर बादल ने लिखा है - 'मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के विरोध में इस्तीफा दे दिया है. किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर मुझे गर्व है.'
I have resigned from Union Cabinet in protest against anti-farmer ordinances and legislation. Proud to stand with farmers as their daughter & sister.
— Harsimrat Kaur Badal (@HarsimratBadal_) September 17, 2020
कृषि विधेयकों के बचाव में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामने आये हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार की इस पहल को किसानों के लिए नयी आजादी बताया - और कहा कि विधेयक का विरोध करने वाले MSP और सरकारी खरीद की व्यवस्था खत्म किए जाने की अफवाह फैला रहे हैं, जो किसानों के साथ धोखा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बिल से किसान और ग्राहक के बीच से बिचौलिए खत्म होंगे और उसका सीधा फायदा किसानों को मिलेगा - लेकिन कुछ लोग बस विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं और नये-नये तरीके अपना रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने हरसिमरत कौर को नसीहत देने के साथ ही राहुल गांधी पर भी निशाना साधा है.
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी तस्वीर साफ करने की कोशिश की है. कृषि मंत्री का कहना है कि मंडील के साथ सरकारी खरीद की व्यवस्था भी बनी रहेगी - और किसानों को उपज की बेहतर कीमत भी मिलेगी.
किसानों के पास दोनों विकल्प चुनने का अधिकार है...#AatnaNirbharKrishi #JaiKisan pic.twitter.com/BHK8OSrG9M
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 17, 2020
बिल का विरोध करने वालों में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत भी हैं, लेकिन उनके पास एक कारगर सुझाव भी है. दरअसल, विधेयक में ये साफ नहीं है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वो एमएसपी से नीचे के भाव पर नहीं होगी, राकेश टिकैत किसानों के इसी डर को खत्म करने के लिए एक और विधेयक लाने की सलाह दे रहे हैं.
किसान नेता राकेश टिकैत कहते हैं - जैसे ये तीन अध्यादेश लाये गये हैं उसी तरह एक और कानून ले आयें कि एमएसपी के नीचे किसानों के फसल की खरीद नहीं होगी - और अगर ऐसा होता है तो उसे अपराध माना जाएगा. राकेश टिकैत ऐसी व्यवस्था चाहते हैं कि किसान की उपज कहीं भी बिके, लेकिन कोई भी उससे MSP से नीचे न खरीद पाये.
आज तक के खास कार्यक्रम किसान पंचायत में राकेश टिकैत की सलाह पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि MSP के बारे में कोई शंका नहीं होनी चाहिए, ये कानून का हिस्सा कभी नहीं रहा है. तोमर ने बताया कि स्टॉक लिमिट हटाने से नये निवेश होंगे, नये गोदाम होंगे, अनाज बर्बाद नहीं होंगे और जब माल भारी मात्रा में है तो कालाबाजारी का सवाल नहीं है.
बंटा विपक्ष और बेअसर विरोध
CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून के बाद ये दूसरा मौका है जब मोदी सरकार को इस तरह विरोध का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन ये विरोध भी बेअसर लग रहा है. सीएए के विरोध में भी जिस तरह विपक्ष बंटा हुआ था, एक बार फिर वैसा ही नजारा देखने को मिल रहा है.
सुनने में आया है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी कृषि विधेयकों को लेकर व्यापक विरोध की योजना बना रहे हैं. खबर है कि कांग्रेस मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस ने उन सभी दलों से एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की अपील की है जो कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं.
कृषि विधेयकों का विरोध तो तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ साथ बीएसपी भी कर रही है, लेकिन सवाल है कि क्या ये कांग्रेस के साथ मिल कर भी विरोध जताना चाहेंगे? आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का हमेशा से ही 36 का आंकड़ा रहा है, मायावती किसी बात का विरोध भी करती हैं तो अकेले ही खड़ा होना पसंद करती हैं.
तृणमूल कांग्रेस ने भी विरोध बिल का विरोध किया है, लेकिन कांग्रेस के प्रति उसका नजरिया वही है जो मायावती की है. जैसे मायावती कांग्रेस से यूपी में उसके पांव पसारने की कोशिश के साथ साथ राजस्थान में अपने 6 विधायकों के हथिया लेने से नाराज हैं, वैसे ही तृणमूल कांग्रेस अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल कांग्रेस की कमान सौंपने से.
ऐसे में जब हरसिमरत कौर विरोध में इस्तीफा दे चुकीं हैं तब भी कांग्रेस उसे नाटक बता रही है - फिर किस आधार पर राहुल गांधी उम्मीद करते हैं कि समान विचार वाले राजनीतिक दल मोदी सरकार के विरोध में उनका साथ देंगे?
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