क्या राहुल गांधी के पास किसानों की भलाई के लिए कोई योजना है ?
किसानों का मसला राहुल गांधी का शुरू से ही फेवरेट शगल रहा है. संसद में राहुल की कोई और बात किसी को याद भले न हो कलावती नाम नहीं भूला होगा. मंदसौर जा रहे राहुल गांधी को कर्जमाफी से आगे भी कुछ बताना होगा.
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किसानों का 10 दिन का आंदोलन देशव्यापी है और एपिसेंटर मध्य प्रदेश का मंदसौर बना हुआ है. वही जगह जहां साल भर पहले पुलिस फायरिंग में छह किसानों की मौत हो गयी थी. 6 जून को उसी की बरसी पर राहुल गांधी मंदसौर जा रहे हैं.
कांग्रेस ने राहुल गांधी की रैली के बड़े पैमाने पर तैयारी की है. वैसे भी कमलनाथ ने मध्य प्रदेश की कमान संभाली है तो बदलाव तो दिखाना ही है - और बगैर बवाल के कुछ नजर भी आएगा तो कैसे?
कैराना में जिन्ना के ऊपर गन्ना को मिली जीत के बाद कांग्रेस को भी किसानों का मसला ज्यादा कारगर लग रहा होगा. कांग्रेस को लग रहा है कि 2019 से पहले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए मंदसौर से अच्छा लांच पैड भला क्या हो सकता है.
ये 'किसान अवकाश' है
देशभर में किसान हड़ताल पर हैं - 1 जून से 10 जून तक. हड़ताल को किसान अवकाश नाम दिया गया है. कई सारे किसान संगठन मिल कर ‘गांव बंद आंदोलन’ चला रहे हैं - और इसका ज्यादा असर मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में देखा जा रहा है.
'मंदसौर... आ रहा हूं मैं...'
ये किसान कर्जमाफी और फसलों के दाम के अलाव स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात कर रहे हैं. किसानों की नाराजगी की बड़ी वजह ये भी है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट एक दशक से ज्यादा समय से धूल फांक रही है.
एक तरफ किसानों का आंदोलन भी चल रहा है और इस बीच किसानों की मौत का सिलसिला भी जारी है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस पर किसानों को भड़काने का आरोप लगा रहे हैं तो मोदी सरकार के मंत्री किसानों के आंदोलन को मीडिया में आने का बहाना बता रहे हैं.
किसानों के हक में कांग्रेस अगर खड़ी है तो कहां?
आंदोलन कर रहे किसान जिस रिपोर्ट की मांग कर रहे हैं उसे तैयार कराने और डंप करने दोनों का क्रेडिट भी उसी के हिस्से में जाता है. सुनने अजीब तब लगता है जब कांग्रेस के ही कुछ नेता जगह जगह किसानों के सुर में सुर मिलाते हुए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के लिए मोदी सरकार को कोसते हैं और कहते हैं कि चार साल में बीजेपी सरकार ने कुछ नहीं किया.
नवंबर, 2004 में मनमोहन सरकार ने जाने माने कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग बनाया. किसानों की तरक्की के लिए आयोग की सिफारिशों को ही स्वामीनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है. कमीशन ने दिसंबर 2004 से 2006 के बीच पांच रिपोर्टें सौंपी. उसके बाद से तेज और सम्मिलित विकास पर जोर देने वाली ये रिपोर्ट सिर्फ किसान आंदोलनों के दौरान चर्चा में आती है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर किसानों के हक में खड़े होने की घोषणा की है - और बताया है कि 6 जून को वो खुद मंदसौर पहुंच रहे हैं. राहुल गांधी ने पिछले साल किसानों की मौत के बाद भी मंदसौर पहुंचने की कोशिश की थी, लेकिन पुलिस ने उन्हें घटनास्थल तक जाने की इजाजत नहीं दी इसलिए लौटना पड़ा.
हमारे देश में हर रोज़ 35 किसान आत्महत्या करते हैं। कृषि क्षेत्र पर छाए संकट की तरफ़ केंद्र सरकार का ध्यान ले जाने के लिए किसान भाई 10 दिनों का आंदोलन करने पर मजबूर हैं। हमारे अन्नदाताओं की हक की लड़ाई में उनके साथ खड़े होने के लिए 6 जून को मंदसौर में किसान रैली को संबोधित करूंगा। pic.twitter.com/Bv4Hv72jE8
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 2, 2018
जैसे ही मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार को राहुल गांधी के कार्यक्रम की भनक लगी, खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंदसौर दौड़ पड़े. शिवराज ने किसानों को अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिशें की, जो कुछ भी कहते बना कहा भी, "मैंने किसानों की योजनाओं पर अब तक ₹ 20 हजार करोड़ खर्च किए हैं. आगे नुकसान हो तो चिंता न करना, मामा अभी जिंदा है."
शिवराज सिंह ने इल्जाम लगाया कि कांग्रेस खून खराबा कर माहौल बिगाड़ना चाहती है. मध्य प्रदेश को शांति का टापू बताते हुए शिवराज सिंह ने बड़ी ही मार्मिक अपील की लोग कांग्रेस के इरादे को पहचानें और बहकावे में हरगिज न आयें.
उसी दौरान खबर आयी कि मंदसौर पुलिस लोगों से 25 हजार के बांड भरवा रही है जिनकी वजह से शांति भंग होने की आशंका है. खबर के मुताबिक पुलिस ने 1200 लोगों को ऐसे नोटिस जारी किये थे. हालांकि, बाद में प्रदेश के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ने ऐसी खबरों का खंडन कर दिया.
राहुल गांधी द्वारा किसानों का मुद्दा उठाये जाने को काउंटर करने के लिए बीजेपी की ओर से भी ट्वीट कर दावा किया गया है कि उसके शासन में किसानों के लिए क्या क्या काम हुए. साथ ही, विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए एक लिंक भी ट्वीट में दिया गया है.
किसानों के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने वालों ने 48 साल में कृषि केंद्रित राष्ट्रीय बाजार बनाने की दिशा में कोई काम नहीं किया जबकि मोदी सरकार ने 48 महीने में ही ई-नाम की स्थापना की और 585 मंडियों को ऑनलाइन जोड़ दिया। अधिक जानकारी https://t.co/m09RfJlPhJ से प्राप्त करें #BJP4Farmers pic.twitter.com/aMFjYRRl0H
— BJP (@BJP4India) June 2, 2018
वैसे सूबे और केंद्र की बीजेपी सरकारों के लिए किसानों के आंदोलन की कितनी अहमियत है, खुद कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने ही साफ कर दिया - 'देश में करीब 14 करोड़ किसान हैं. किसी भी संगठन में एक से दो हजार किसानों का होना स्वाभाविक है. मीडिया में आने के लिए कुछ न कुछ तो अनोखा करना ही पड़ता है.
अब सिर्फ जबानी जमा-खर्च नहीं चलेगा
किसानों को ये सुन कर तो अच्छा ही लगता होगा कि राहुल गांधी कह रहे हैं कि वो उनके साथ खड़े हैं. अजीब तो तब लगता है जब कांग्रेस के कुछ नेता स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू न करने को लेकर मौजूदा मोदी सरकार को कोसते हैं. स्वामीनाथन ने अपनी फाइनल रिपोर्ट 2006 में दे दी थी और उसके तीन साल बाद मनमोहन सरकार चुनाव जीत कर दोबारा सत्ता में आयी और पूरे पांच साल कांग्रेस का शासन रहा.
कृपया ध्यान दें, किसान अवकाश पर हैं...
ये ठीक है कि मोदी सरकार भी आधार और मनरेगा जैसी कांग्रेस की योजनाओं को धीरे धीरे अपनाती जा रही है, हो सकता है चुनाव आते आते स्वामीनाथन आयोग को लेकर भी कोई तैयारी हो. मगर, कांग्रेस भला किस हक से मोदी सरकार को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लेकर कठघरे में खड़ कर सकती है?
अगर बीती बातें किसान भुलाने को राजी भी हो जायें तो कांग्रेस के पास उनके लिए कार्यक्रम क्या है? क्या राहुल गांधी इस मामले में भी मंदसौर पहुंच कर वैसे ही गलती स्वीकार करेंगे जैसे यूपीए शासन में लोगों को रोजगार न देने के लिए कबूल कर चुके हैं. मुद्दे की बात ये नहीं है कि राहुल गांधी किसानों के हक में खड़े रहेंगे और लड़ाई लड़ेंगे, किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कर्जमाफी के अलावा अभी तक कोई और वादा सुनने को तो नहीं ही मिला है. जब भी वो पंजाब की अमरिंदर सरकार की बात करते हैं, या कर्नाटक की पिछली सिद्धारमैया सरकार की बात करते रहे, बात कर्जमाफी से शुरू होकर उसी पर खत्म भी हो जाती है - अरे, कर्जमाफी से आगे भी कुछ है या नहीं? क्या मंदसौर में स्वामीनाथन रिपोर्ट को लेकर राहुल गांधी कांग्रेस की ओर से कोई भरोसा दिलाएंगे?
ये तो साफ है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों के इस कदर फिक्रमंद होने की वजह न तो किसान हैं और न ही उनका आंदोलन, बल्कि - 2019 से पहले राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं - मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम. कांग्रेस को सबसे ज्यादा फिक्र मध्य प्रदेश और राजस्थान की है जो अभी से किसान आंदोलन की चपेट में आ गये हैं.
जनता की अदालत में जिन्ना और गन्ना की बहस में कैराना का फैसला नयी राह दिखा रहा है - जाहिर है ऐसे किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस और बीजेपी में छीनाझपटी तो होगी ही - किसानों को इससे भी बच कर निकलना होगा तभी उन्हें अपना हक मिल सकता है.
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