'हिन्दू पाकिस्तान' का जिक्र करके थरूर ने कांग्रेस की ही मुश्किल बढ़ाई है
थरूर राजनीतिक इतिहास पर बहुत गहरी पकड़ रखते हैं. उन्हें जानकारी होगी कि किस तरह पाकिस्तान की नींव रखी गई और इसके लिए कौन लोग ज़िम्मेदार थे.
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कांग्रेस के तेज़तर्रार नेता शशि थरूर ने एक ऐसा बयान दिया है जिसने राजनीतिक हलकों में तूफान मचा दिया है. 2019 के चुनाव में भाजपा की अगर जीत हुई तो भारत का हिन्दू पाकिस्तान बनना तय है. ऐसे तो थरूर अपनी विद्वता और अंग्रेजी के अथाह शब्दकोष के लिए प्रसिद्ध हैं लेकिन बीच -बीच में ऐसे बयान देते रहते हैं जिससे मीडिया और देश में चर्चा का केंद्र बन जाते हैं. दरअसल लाख विद्वता होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व के स्तर पर हमेशा से हाशिये पर ही रहे हैं. खैर देश की राजनीति चुनावी साल में प्रवेश कर चुकी है इसलिए इस बयान पर आरोप और प्रत्यारोपों की एक नयी सीरीज लांच तो होनी ही थी.
भाजपा पर हिंदुत्व का आरोप लगाने से पहले एक बार थरूर को खुद कांग्रेस के दामन में झांकना चाहिए
शशि थरूर को बीते दिन ही ये आभास हुआ कि नरेंद्र मोदी अगर फिर से सत्ता में चुन के आये तो देश हिन्दू पाकिस्तान बन जायेगा. इसका सीधा -सीधा मतलब है कि मुसलमानो की हालत ठीक उसी तरह हो जाएगी जिस तरह की दुर्दशा पाकिस्तान में हिन्दुओं की है. थरूर राजनीतिक इतिहास पर बहुत गहरी पकड़ रखते हैं. उन्हें जानकारी होगी कि किस तरह पाकिस्तान की नींव रखी गई और इसके लिए कौन लोग ज़िम्मेदार थे. जहां तक मुझे इतिहास की जानकारी है उस दौर में भारतीय जनता पार्टी नाम की कोई पार्टी अस्तित्व में नहीं थी. देश की जनता कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग की राजनीति के बीच पिस रही थी.
Congress that has made false charges of Hindu and Saffron terror is now raising the false cry of India becoming Hindu Pakistan. Tries to turn Hindus into terrorists and separatists while excusing the real terrorism and separatism of Jihadis and Naxalites. #HinduPakistanComment
— Dr David Frawley (@davidfrawleyved) July 11, 2018
देश में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की शुरुआत दरअसल 1916 में हुई. कांग्रेस पार्टी ने लखनऊ अधिवेशन में मुस्लिम लीग के पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग को स्वीकार कर लिया. उसके बाद मोहम्मद अली जिन्ना और उनके कट्टरपंथी साथियों ने पूरे देश में एक अलग पृथक मुस्लिम राष्ट्र की मांग को प्रचारित किया. प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की करारी शिकस्त के बाद जब तुर्की के खलीफा के साम्राज्य को उखाड़ के फेक दिया गया तो भारत में मुस्लिम लीग के लोगों ने कोहराम मचा दिया. उस नाज़ुक स्थिति में भी कांग्रेस और महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन को पूर्ण सहयोग दिया. उसके बाद पूरे देश में हिन्दू विरोधी भावनाओं ने देश के माहौल में ज़हर घोलने का काम किया. अकेले केरल के मोपला दंगे (moplah riot में 30 हज़ार हिन्दुओं की जान चली गई.
नेहरू की कमजोर नीतियों के कारण ही कश्मीर समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया. जब भारतीय सेना पाकिस्तान के द्वारा भेजे गए कबाइलियों को खदेड़ने के अपने ऑपरेशन के अंतिम चरम पर थी तभी पंडित नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा खटखटाया जिसका नतीजा हमारे सामने पाक अधिकृत कश्मीर के रूप में आज भी ज़िन्दा है. धारा 370 ने कश्मीर के भारत में होने के एहसास को ही खत्म कर दिया. हाल ही में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज ने कश्मीर को आजाद करने वाला दुस्साहसी बयान दिया. थरूर इन ऐतिहासिक कारनामों से भली -भाति परिचित होंगे.
देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है. मनमोहन सिंह का ये बयान मोहम्मद अली जिन्ना की मांग से बहुत मेल खाता है. बटला हाउस में आतंकवादियों के मुठभेड़ के बाद सोनिया गांधी भावुक हो गयीं, दिग्विजय सिंह का ये बयान अलकायदा और तालिबान को खुश करने के लिए काफी था. अफ़ज़ल गुरु की फांसी को सालों तक लटका कर रखने का फैसला कश्मीर में भारत विरोधी गुटों के आत्मबल को मज़बूत करने के लिए काफी था. देश में हिन्दू आतंकवाद के जुमले को गढ़ना इंडियन मुजाहिदीन को फील गुड करवाने का एक अच्छा प्रयास किया था चिदंबरम ने. जेएनयू में भारत की बर्बादी के नारों के बीच राहुल गांधी के आत्मिक समर्थन ने हाफ़िज़ सईद के कलेजो को ठीक ठाक ठंडक पहुंचाई थी.
मोहम्मद अली जिन्ना के मुस्लिम लीग से कोई सबक नहीं लेने की कसम खाई थी इनके नेताओं ने. इसीलिए तो मुस्लिम लीग पार्ट -2 के साथ गठबंधन करने से पहले भी इन्होंने इनकी राजनीतिक विरासत की समीक्षा करना भी उचित नहीं समझा. केरल से लेकर असम तक साझी विरासत को भरपूर साझा किया. ये वही पार्टियां है जिनकी आत्मा और संस्कार वहीं बसते हैं जिसके लिए इनके पूर्वजों ने हज़ारों साल पुरानी अपनी मातृभूमि को अपने धार्मिक उन्माद के लाल रंग में सराबोर कर दिया था.
शशि थरूर एक वैचारिक नेता हैं. उन्हें आत्मचिंतन की जरुरत है. इतिहास के पन्नों को फिर से पलटने की जरूरत है. चुनावी साल में फ़िज़ूल के तर्क देने से बचने की जरूरत है. भारतीय जनता पार्टी 2014 से देश में राज कर रही है. देश में अभी भी लोकतंत्र का ही राज है. पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम को याद करने की भी जरूरत है क्योंकि उस दौर में सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता मोदी के नाम पर मुसलमानों को डराने का असफल प्रयास कर चुके हैं. सूपड़ा साफ़ के परिणाम से भयभीत होने की भी जरूरत है. सोनिया गांधी के 'मौत का सौदागर' वाले बयान के परिणाम को याद कर नरेंद्र मोदी को फ्री हिट देने की गलती शशि थरूर को नहीं करनी चाहिए.
कंटेंट - विकास कुमार (इंटर्न, आईचौक)
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