अफगानिस्तान में भारतीयों काे अगवा करने वाले को पैसा किसने दिया !
बीते कई दिनों से आतंकियों द्वारा भारतीयों का अपहरण एक आम बात बन गई है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इन आतंकियों और इनके संगठनों को फंड कहां से मिलता है.
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7 भारतीय इंजीनियर छात्रों का तालिबान ने अपहरण कर लिया. आतंकवादियों की इतनी जुर्रत हो गई कि साल दर साल अपने अपहरण का आंकड़ा बढ़ा रहे हैं और भारत के हुक्मरान कुछ नहीं कर पा रहे. जिस तरह आतंकी गुट अपहरण की घटनाओं का आंकड़ा बढ़ा रहे हैं, ये चिंताजनक है. जिससे ये सवाल उठने लगे हैं कि कौन है जो इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए फंड दे रहा है. क्योंकि बिना किसी फंड मुहाया कराए आतंकी गुटों के पास इतनी शक्ति आना नमुमकिन है. ऐसे सवाल इसलिए भी उठाने लाजमी हैं क्योंकि ये कोई नया मामला नहीं है. 7 भारतीयों से पहले कई मामलों में भारतीय अगवा हुए हैं. फिर चाहे काफी मशक्कत कर उन्हें छुड़ाया गया हो या फिर नहीं, ये दो अलग बातें हैं.
वर्ष 2014 में इराक के मौसुल में 40 भारतीय लोगों का अपहरण आईएसआईएस ने कर लिया था. इनमें से 39 भारतीयों की हत्या कर दी गई थी. ऐसा नहीं है कि विदेश मंत्रालय की ओर से इन अगवा किए गए लोगों को छुड़ाने का प्रयास नहीं किया गया था. विदेश मंत्रालय की लाख कोशिशों के बाद भी कोई सुराग नहीं मिला था और न ही कोई फिरौती जैसा कुछ मांगा गया था. बाद में इनकी हत्या की खबर आई थी.
इस बीच हमारे सामने कई ऐसी ख़बरें आई हैं जिनमें विदेश में रह रहे भारतीयों का आतंकियों द्वारा अपहरण किया गया है
इसके अतिरिक्त, इराक के तिकरित शहर में स्थिति एक अस्पताल पर हमला कर आईएसआईएस आतंकी गुट ने 46 भारतीय नर्सों का अपहरण कर लिया था. इन भारतीय नर्सों को भारत ने सकुशल छुड़ा तो लिया लेकिन चार साल में इनकी जिंदगी नर्क हो चुकी थी. दैनिक अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि मौत के करीब गुजरीं इन नर्सों में से 22 नर्सें अपनी जिंदगी फिर से शुरू कर चुकी हैं.
वर्ष 2015 में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया ने लीबिया के त्रिपोली से 4 शिक्षकों का अपहरण कर लिया था. इन चार में से दो लक्ष्मीकांत और विजय कुमार को रिहा कराने में भारतीय विदेश मंत्रालय सफल रहा था. हैरानी तो तब हुई थी जब भारतीय नेवी ऑफिसर कुलभूषण जाधव को तालीबान द्वारा अगवा कर लिए जाने की खबरें सुर्खियां बनीं थीं. अटकलें ये भी लगाई गईं थीं कि जाधव को तालीबान ने अगवा कर पाकिस्तान को बेच दिया.
इन अटकलों में कितनी सच्चाई है ये पुष्टि न भारत की तरफ से हुई थी न पाकिस्तान, लेकिन जब जाधव को पाकिस्तानी जेल में बंद रखा और उनकी पत्नी और मां से उन्हें नहीं मिलने दिया तो एक सवाल इन भारतीय सुरक्षा प्रयासों पर सवाल खड़े हो गए थे. इसके साथ ही भारतीय विदेश मंत्रालय पर ये सवाल उठे थे कि पाकिस्तान से चली आ रही दोस्ती और मजबूत रिश्ते क्या यही हैं.
बात जब नागरिकों की सुरक्षा की आती है तो सरकार भी इस मामले में सख्त दिखाई देती है
ये सर्वविदित है कि पाकिस्तान एक छलावे की तरह भारत के सामने हमेशा खड़ा रहा है. इसका ये एक ही उदाहरण नहीं है. इसका एक ये भी उदाहरण है कि 26 नवंबर 2008 में हुए मंबई ताज अटैक के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को पाकिस्तान ने 22 नवंबर को रिहा कर दिया था और 26 नवंबर को मुंबई ताज हमले की 9वीं बरसी थी. ये ऐसा था जैसे भारत के जले पर नमक छिड़ दिया हो.
तालिबान या आईएसआईएस जैसे बड़े आतंकी गुटों में इतनी हिम्मत कहां से आई. इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा. ज्ञात हो कि अमेरिका ने खुलेतौर पर विश्व मंच पर कहा था कि पाकिस्तान आतंकियों को फंड कर रहा है. 19 जुलाई 2017 को अमेरिका ने एक रिपोर्ट जारी कर ये सार्वजनिक कर दिया था कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का पनाहगाह है.
इस आतंकवाद पर तैयार रिपोर्ट में अमेरिका ने पाकिस्तान को उन देशों में शामिल किया था जहां आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह दी जाती है. 'टेररिज्म' नाम से जारी इस रिपोर्ट में पाकिस्तान की ओर से आतंकी गुटों को फंड करने का दावा भी किया गया था. सुरक्षा के लिहाज से विश्व में सबसे बड़ा हथियार सप्लायर अगर दुनिया के सामने ये बात रख रहा है तो इस तथ्य के पुष्ट होने में कोई दो राय नहीं होनी चाहिए.
लेकिन फिर भी ऐसी गंभीर रिपोर्ट्स पर भारत ने मंथन उस गंभीरता से नहीं किया जिस गंभीरता से ये रिपोर्ट आतंकियों के खिलाफ साबित हुई थी. जिसका नतीजा आतंकी गुटों के अपहरण के आंकड़ों का लगातार बढ़ने के रूप में सामने आ रहा है.
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