संविधान में क्या कर रहे हैं राम, कृष्ण और नटराज?
नंदलाल बोस और शांति निकेतन के उनके छात्रों ने धर्म विशेष नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की विकास यात्रा को दर्शाने वाले चित्र बनाए. पहला चित्र भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ की लाट का है, जिसे संविधान के पहले पन्ने पर लगाया गया.
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काल की छाती पर पैर रखकर नृत्य करते नटराज, कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण और स्वर्ग से देवनदी गंगा का धरती पर अवतरण, ये सब निर्विदाद रूप से हिंदू धर्म के प्रतीक चिह्न हैं. सदियों से हिंदुओं ने इन पर आस्था रखी है. धर्मग्रंथों ने इनका बखान किया है और कलाकारों ने भित्तिचित्रों, मूर्तियों और कैलेंडर में छप सकने वाली तस्वीरें बनाकर इन्हें अमर कर दिया है. ये सारी तस्वीरें संविधान में भी हैं. स्वाधीन भारत के संविधान की मूल प्रति पर इन तस्वीरों को उकेरा गया है.
धर्मनिरपेक्ष संविधान में राम और कृष्ण
26 जनवरी 1950 को जिस संविधान को लागू किया गया और जिसने भारत को गणतंत्र घोषित किया, उसी संविधान की मूल प्रति पर नटराज भी हैं और श्रीकृष्ण भी. वहां शांति का उपदेश देते भगवान बुद्ध भी हैं और वैदिक यज्ञ संपन्न कराते ऋषि की यज्ञशाला भी. हिंदू धर्म के एक और अहम प्रतीक शतदल कमल भी संविधान की मूल प्रति पर मौजूद है. हालांकि ये तस्वीरें संविधान का हिस्सा नहीं हैं, फिर भी ये संविधान की मूल प्रति के अभिन्न अंग हैं.
नटराज की फोटो संविधान में
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि संविधान की मूल प्रति पर छपी राम, कृष्ण और नटराज की तस्वीरें यदि आज लगाई गई होतीं तो इस कदम को सांप्रदायिक कहकर उसका विरोध शुरू हो गया होता. हाल की घटनाओं को देखते हुए कानून मंत्री की इस आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता.
The original copy of the Constitution of India had sketches representing Indian heritage like Vedic life of India, Lord Ram, Lord Krishna, Lord Nataraj to depict various chapters. If same sketches were to be used today, there would be an outcry that India is becoming communal! pic.twitter.com/8QyGGLFCbv
— BJP (@BJP4India) December 30, 2017
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने जो संविधान तैयार किया, वह इस बात की गारंटी देता है कि धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं होगा. तो फिर संविधान में धार्मिक प्रतीकों को जगह क्यों?
धर्म नहीं, संस्कृति के प्रतीक
संविधान सभा जब भारतीय संविधान को अंतिम रूप दे रही थी, उसके मसौदे पर बहस कर रही थी, उस दौरान संविधान बनाने वालों को इस बात की भी चिंता थी कि भारतीय संविधान ऐसा हो जो भारतीय सभ्यता-संस्कृति से जुड़ा हुआ दिखे. जिस तरह जड़ के बिना कोई विशाल दरख़्त नहीं टिक सकता, उसी तरह संस्कृति से जुड़े बिना भारतीय संविधान भी स्थायी नहीं रह सकता, ऐसी सोच संविधान निर्माताओं की थी.
भगवान बुद्ध की फोटो
लक्ष्मीबाई और टीपू सुल्तान की फोटो
कृष्ण और अर्जुन भी है
गंगा मैया और भागीरथ भी
उसी दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू शांति निकेतन गए तो वहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस से हुई. गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के सान्निध्य में बड़े हुए नंदलाल को संविधान की मूल पुस्तक को अपनी चित्रकारी से सजाने का निमंत्रण दिया गया. नंदलाल बोस ने नेहरू के न्योते को स्वीकार किया. उन्होंने इस काम में अपने छात्रों का भी सहयोग लिया. चार साल में नंदलाल बोस और उनके छात्रों ने कुल 22 चित्र बनाए और इतनी ही किनारियां बनाईं. संविधान के सभी 22 अध्यायों को इन चित्रों और किनारियों से सजाया गया.
संविधान में अकबर और टीपू भी
नंदलाल बोस और शांति निकेतन के उनके छात्रों ने धर्म विशेष नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की विकास यात्रा को दर्शाने वाले चित्र बनाए. पहला चित्र भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ की लाट का है, जिसे संविधान के पहले पन्ने पर लगाया गया. हड़प्पा की खुदाई से मले मिले घोड़े, शेर, हाथी और सांड़ की चित्रों को लेकर सुनहरी किनारी बनाई गई है, जिससे भारतीय संविधान की प्रस्तावना को सजाया गया. नंदलाल बोस ने सिंधु घाटी सभ्यता की सील का चित्र भी बनाया.
संविधान की मूल पुस्तक में मुगल बादशाह अकबर भी अपने दरबार में बड़े शान से बैठे हुए दिख रहे हैं. सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह भी वहां मौजूद हैं. मैसूर के सुल्तान टीपू और 1857 की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के चित्र भी संविधान की मूल प्रति पर उकेरे गए हैं. संविधान की मूल प्रति संसद के पुस्तकालय में सुरक्षित है.
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