तीन तलाक का विरोध एक भ्रम है
तीन तलाक कानून का विरोध करने वाले नासमझी में किसी राजनैतिक विचारधारा का व्यक्तिगत विरोध करने के कारण उन लोगों को भाग निकलने का भरपूर मौका दे रहे हैं. उनके पक्ष में दलील देकर उन्हें सही ठहरा रहे हैं जो उनकी बेटी और बहन की इज़्ज़त के साथ तीन तलाक के बहाने खेलते हैं.
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तीन तलाक के मसले को समझने के लिए मैंने कुरान के सूरा 65 अत्-तलाक का अध्ययन किया और पाया कि कुरान में वर्णित किया गया तरीका पूरी तरह से तार्किक, व्यवाहरिक और सामाजिक जीवन पर आधारित है. संक्षेप में अगर इस सूरे को मैं स्पष्ट करना चाहूं तों यह इस प्रकार है कि
1. एक आदमी अपनी पत्नी को अधिक से अधिक तीन बार तलाक दे सकता है.
2. एक या दो तलाक देने की स्थिति में पत्नी को इद्दत की अवधि गुजारनी पड़ती है. इद्दत से तात्पर्य वह समय अवधि है जिसके भीतर पति को रुजू अर्थात् बिना निकाह के पुनः दांपत्य जीवन यथावत बहाल करने का अधिकार होता है. इसका मतलब साफ है कि झगड़ा-झंझट छोड़कर पति-पत्नी एकबार फिर से नॉर्मल मैरिड लाइफ में आ सकते हैं. और अगर ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं कि एक या दो तलाक देने के बाद इद्दत की अवधि भी खत्म हो जाती है और रुजू भी नहीं हो पाया है. तो पति और पत्नी फिर से बिना किसी अड़चन के पुनः शरीयत के मुताबिक शादी कर सकते हैं और दांपत्य जीवन में वापस आ सकते हैं.
3. एक या दो तलाक के मामले में इद्दत की अवधि के समाप्त होने के पहले कभी भी पति-पत्नी दांपत्य जीवन में वापस आ सकते हैं. ये इद्दत की अवधि उस पत्नी के लिए जिसका पति से शारीरिक संबंध स्थापित हो चुका हो वह अगले तीन बार के मासिक धर्म तक होगी या तलाक कहने से तीन महीने तक होगी.
उस पत्नी के लिए जो गर्भवती हो उसके लिए बच्चा पैदा होने तक इद्दत की अवधि है. जिस स्त्री का उसके पति से शारीरिक संबंध नहीं बना है वह चाहे तो पति के तलाक कहने के बाद तुंरत दूसरा निकाह कर सकती है और इसके लिए उसे कोई इद्दत की अवधि नहीं गुजारनी पड़ेगी.
4. लेकिन पेंच ये है कि यदि कोई पति गुस्से में आकर या जानबूझकर प्रताड़ित करने के उद्देश्य से अपनी पत्नी को तीन तलाक दे देता है तो फिर रुजू का अधिकार खो देता नहीं आ सकता जब तक कि हलाला न करना पड़े. हलाला से तात्पर्य है कि पत्नी को अब दूसरे पुरुष से विवाह करने के पश्चात् उससे विधिवत तलाक लेकर फिर अपहै. अर्थात अपनी पत्नी के साथ दांपत्य जीवन में तब तक ने पुराने पति से विवाह करना पड़ेगा.
कुरान में यह व्यवस्था बहुत ही सामाजिक और व्यवाहरिक व्याख्या वाली है. इसका कारण यह बताया गया है कि ऐसी व्यवस्था इसलिए है कि अपनी पत्नी और दांपत्य जीवन को खोने का डर हर आदमी को रहता है. इसलिए तीन तलाक कहने से पहले वो डरेगा और तलाक देने को खेल नहीं समझ बैठेगा.
तीन तलाक का नियम बनाया गया था विवाह टूटने से बचाने के लिए लेकिन...
दूसरी बात यदि कोई पति और पत्नी बिल्कुल सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं और उनका जीवन एक दूसरे के साथ से नरकीय हो गया है, तो वह तीन तलाक के जरिए एक दूसरे से अलग होकर अपना नया निकाह कर सकेंगे और अपने जीवन में नयी दिशा तय करेंगे. एक तलाक या दो तलाक वो चेतावनी मानक हैं जो पति और पत्नी को अपने बिगड़ते दांपत्य को सुधार लेने की चेतावनी देंगे कि बेटा सुधर जाओ, नौबत तीन तलाक तक पहुंची तो बिखर जाओगे.
5. चूंकि आदमी जात अपने कर्मो से जानवर से कम नहीं है इसलिए वो धोखाधड़ी करने, प्रताड़ित करने और ब्लैकमेल करने के लिए तीन तलाक को हथियार की तरह प्रयोग करना सीख गया है. मजबूरन अपनी बेटी और बहन का टूटता घर बचाने के लिए पत्नी के घर वाले किसी भी तरह से तीन तलाक देने वाले पति से मनचाहा समझौता करने को राजी हो जाते हैं. चूंकि तीन तलाक के बाद हलाला करने के बाद ही पुनः वैवाहिक जीवन में वापस आया जा सकता है इसलिए कई बिचौलिये और धर्म की गलत व्याख्या करने वाले आर्थिक फायदे के चक्कर में कुरान के नियमों की अवहेलना करते हुए हलाला को अंजाम देते हैं और इसे रुपया कमाने के लिए व्यापार बना देते हैं.
6. ऐसे बदमाश पतियों और बिचौलियों की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए कानूनी बंदिश का होना अनिवार्य है और केन्द्र सरकार द्वारा तीन तलाक के मसले पर लाये गये कानून का स्वागत किया जाना चाहिए. साथ ही इस कानून में तीन तलाक के बाद अकेली हुई महिलाओं एंव बच्चों के खर्च का भी निष्पक्ष रूप से उचित प्रावधान किया जाय और ध्यान रखा जाए कि खर्च पाने के लिए दहेज कानून की तरह इसका गलत प्रयोग न किया जाए.
सबसे बड़ी विडंबना ये है कि तीन तलाक कानून का विरोध करने वाले नासमझी में किसी राजनैतिक विचारधारा का व्यक्तिगत विरोध करने के कारण उन लोगों को भाग निकलने का भरपूर मौका दे रहे हैं. उनके पक्ष में दलील देकर उन्हें सही ठहरा रहे हैं जो उनकी बेटी और बहन की इज़्ज़त के साथ तीन तलाक के बहाने खेलते हैं. धर्म की गलत व्याख्या करते हैं. इस्लाम की गलत छवि प्रस्तुत करते हैं. कुरान मे कही गयी खुदा की नसीहत को गलत ठहराते हैं.
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