संविधान दिवस के दिन इसकी खूबियों के बारे में जरूर सोचिये...
26 नवम्बर ये दिन भारत के संविधान दिवस (Indian Constitution Day) के रूप में घोषित किया गया है और आज इसने 70 वर्ष पूरे कर लिए हैं. कह सकते हैं कि अब यह अपनी शैशव अवस्था को पार करके परिपक्वता की तरफ अग्रसर हो चुका है.
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भारत का संविधान (Indian Constitution), संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ था तथा 26 जनवरी 1950 से यह लागू हुआ. यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस (Constitution Day) के रूप में घोषित किया गया है और आज इसने 70 वर्ष पूरे कर लिए हैं. हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अब यह अपनी शैशव अवस्था को पार करके परिपक्वता की तरफ अग्रसर हो चुका है. भारत रत्न डॉ भीमराव आम्बेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar) को भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है क्योंकि यह उनके और संविधान सभा के अथक मेहनत का ही फल है कि हमारे देश का अपना एक लिखित संविधान है. एक तथ्य और भी है कि भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है. यह भी एक रोचक तथ्य है कि शुरुआत में जब संविधान सभा चुनी गयी थी तो उसे अविभाजित भारत का संविधान लिखना था लेकिन जब देश का विभाजन हो गया तो दो अलग अलग संविधान सभा बन गयी और उन्होंने भारत का और पकिस्तान का संविधान लिखा. 299 सदस्यों वाली संविधान सभा ने डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) के अध्यक्षता में संविधान को मूर्त रूप दिया और यह 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ.
ये वाक़ई ख़ुशी की बात है कि भारत के संविधान ने 70 साल पूरे कर लिए हैं
संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है और केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है. हमारा संविधान 22 भागों में विभजित है तथा इसमे 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं. संविधान के अनुसार हमें विभिन्न अधिकार मिले हैं तो हमारे कर्तव्य भी निर्धारित किये गए हैं.
ये दीगर बात है कि आज हम लोग कर्तव्य को भूलकर सिर्फ अधिकारों के बारे में ही बात करते रहते हैं. भारतीय संविधान के प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्प्रुभतासम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य है. भारत सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार कानून बनाकर लोगों पर शासन करती है. यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है.
जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है. भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है, यह ना तो किसी धर्म को बढावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है. यह सभी धर्मों का सम्मान करता है व एक समान व्यवहार करता है. हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी धर्म का उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है.
भारत एक स्वतंत्र देश है, किसी भी जगह से वोट देने की आजादी, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई है. राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों में विभाजित होती हैं. दोनों सत्ताएं एक-दूसरे के अधीन नहीं होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं. संविधान के उपबंध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते हैं. विधि द्वारा स्थापित न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियो के विभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे.
न्यायालय संविधान के अंतिम व्याख्याकर्ता होंगे और भारत में यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है. राज्य अपना पृथक संविधान नहीं रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है. भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है, केवल भारतीय नागरिकता है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. प्रस्तावना के नाम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएं, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है.
प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह 'हम भारत के लोग' - इस वाक्य से प्रारम्भ होती है. मूल कर्तव्य, मूल संविधान में नहीं थे, 42 वें संविधान संशोधन में मूल कर्तव्य (10) जोड़े गये है, ये रूस से प्रेरित होकर जोड़े गये हैं. मूल कर्तव्य को संविधान में जोड़ने के बाद कुछ चीजें हमें करनी थी, यथा 'भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है'.
लेकिन शायद हम यहां पर बुरी तरह से असफल साबित हुए हैं, न तो समाज में बराबरी आयी है, न जात पात और धर्म के आधार पर भेदभाव बंद हुआ है और न ही महिलाओं के सम्मान को अक्षुण्ण रखने में हम सफल हो पाए हैं.
आज संविधान दिवस के दिन हम ये संकल्प जरूर ले सकते हैं कि कम से कम हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक ऐसा समाज दे कर जाएँ जो किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त हो, जहाँ लोग जाती और धर्म के नाम पर एक दूसरे से नफरत नहीं करें और जहाँ महिलाएं भी पुरुषों के बराबर मानी जाएं और उन्हें समाज में यथोचित सम्मान और जगह प्राप्त हो.
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