क्या जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया जाने की पृष्ठभूमि तैयार है ?
आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है.
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घाटी में चल रही हिंसा के मद्देनजर लगातार केंद्र में चली बैठकों के दौर के बाद भी अब तक कश्मीर में कुछ भी सकारात्मक सुधार दिखाई नहीं दे रहे हैं. अप्रैल में उपचुनाव में जीत के बाद फारुख अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की मांग की थी, और अब फिर फारुख अब्दुल्ला ने अपनी इस मांग को दुहराया है.
वैसे गौरतलब है की सचमुच घाटी में हालात बेकाबू हैं. बेतहाशा पत्थरबाजी की बढ़ती घटनएं, आतंकवादी घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी, और सीमापार से लगातार गोलीबारी, स्कूल कॉलेज में आगजनी की घटनाएं, बैंकों की लूट, अलगावादियों का घाटी बंद का एलान और राष्ट्र विरोधी तत्वों का घाटी में निरंतर उपद्रव, कही न कहीं से ये कहने और सोचने पर विवश कराता है कि अब सचमुच स्थिति नियंत्रण से बेकाबू हो रही है, और कानून व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक बनी हुयी है.
हालांकि प्रदेश की इस स्थिति के लिए सीमा पर से हो रही प्रत्यक्ष और परोक्ष मदद से बिल्कुल भी इंकार नहीं किया जा सकता है, फिर भी इस स्थिति की वजह से राज्य की गठबंधन सरकार की छवि जम्मू-कश्मीर में खराब हो रही है.
पत्थरबाजी, आतंकवादी घटनाओं, और अलगावादी संगठनों की चेतावनी से लगता है जैसे सरकार अपनी मर्जी से नहीं बल्कि उनकी कृपा से चल रही है. अभी हाल ही में हुए श्रीनगर चुनाव में मतदाताओं की हिस्सेदारी में रिकॉर्ड कमी भी कुछ और ही कहानी बयां करती है.
फिर कभी ऐसा भी लगता है कि सरकार का कोई अस्तित्व ही नहीं है. आज तक के स्टिंग ऑपरेशन में भी ये साफ हो गया है कि सिर्फ विदेशों से ही नहीं बल्कि देश के अनादर से भी राष्ट्र विरोधी तत्वों को प्रयाप्त फंड की व्यवस्था बड़ी सुगमता से हो रही है, और सरकार इसपर नकेल कसने में विफल रही है. फिर फौजियों को पीटे जाने का वीडियो, आर्मी पर हमला, बुरहान वानी के खात्मे के बाद भी बेलगाम आतंकियों का उपद्रव और जारी वीडियो के साथ भय और आशंका के बीच की जिंदगी, ने पूरी घाटी को बहुत बुरी स्थिति में धकेल दिया है.
राष्ट्रपति शासन लगाने की शर्तों के मुताबिक राष्ट्रपति शासन लगाए जाने से जुड़े प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 356 और 365 में हैं.
आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है. ऐसा करने या होने के लिए जरूरी नहीं है कि वे राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही करें. अनुच्छेद 365 के मुताबिक यदि राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा दिये गये संवैधानिक निर्देशों का पालन नहीं करती है तो उस हालत में भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.
वैसे कई बार पूर्व में भी जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लग चुका है, पर राज्य का अपना अलग संविधान है. राज्य के संविधान के अनुच्छेद 92 के मुताबिक यहां संवैधानिक संकट की सूरत में छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लगाया जा सकता है. इसकी घोषणा राष्ट्रपति की रजामंदी से राज्यपाल करते हैं.
राज्यपाल शासन के दौरान विधानसभा को या तो भंग किया जा सकता है या फिर स्थगित करने का प्रावधान है. अगर छह महीने में संवैधानिक व्यवस्था स्थापित नहीं होती है तो भारतीय संविधान की धारा-356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है. वैसे किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने हेतु कुछ अहर्ताएं हैं, जैसे चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत न मिलना, केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों का पालन न किया जाना, राज्य सरकार जान-बूझकर आंतरिक अशांति को जन्म देना, या कानून व्यवस्था का बुरा हाल जिसे राज्य सरकार संभल पाने में विफल हो.
तो क्या माना जाये कि निर्वाचित और कानून सम्मत जम्मू और कश्मीर की सरकार कानून व्यवस्था और राज्य में बढ़ते आतंकवाद, अलगाववादियों और पत्थरबाजों के सामने समर्पण कर चुकी है, और राजयपाल शासन के लिए एक फिट केस बन गयी है. कठिनाई सिर्फ ये है कि पीडीपी की सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार के बीच तालमेल है, और किंचित ये एक कारण सिद्ध होगा राज्य सरकार के बच जाने का. लोगों का गुस्सा, सरकार के अंदर और बाहर की तरफ से प्रेशर, विपक्षी पार्टियों के दबाव के साथ-साथ फौज के लिए भी वहां माहौल माकूल नहीं है. ये तमाम चीजें राज्य सरकार के लिए मुसीबत बन हुई हैं.
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