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Updated: 27 जनवरी, 2018 06:16 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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राष्ट्रीय जलसे के दिन राजधानी दिल्ली से सटे कासगंज में भयंकर सांप्रदायिक घटना का घट जाना कई तरह के सवाल खड़े करती है. सबसे बड़ा सवाल घटना की टाइमिंग को लेकर, राष्ट्रीय पर्व के दिन ही घटना क्यों घटी? क्या घटना पूर्व की प्रायोजित थी? ऐसे कई सवाल मन में कौंध रहे हैं. उत्तर प्रदेश के कासगंज से गणतंत्र दिवस के दिन हिंदु-मुस्लिम अखंड़ता को खंड़ित करने की एक खबर पूरे हिंदुस्तान में आग की तरह फैली. हिंदु समुदाय के लोगों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर एक तिरंगा यात्रा का आयोजन किया.

यात्रा जब मुस्लिम कालोनी की तरफ गई तो वहां के लोगों ने तिरंगा यात्रा का विरोध करना शुरू कर दिया. देखते ही देखते उनका विरोध पथराव और भयंकर उपद्रव में तब्दील हो गया. छोटी सी घटना ने पलभर में पूरे इलाके को सांप्रदायिक आग से लपेट लिया. इसके बाद दोनों समुदायों में फायरिंग होने लगी. कई वाहन आग के हवाले कर दिए. उपद्रवियों के इस तांड़व में एक हिंदु लड़के की मौत हो गई. जबकि दर्जनों घायल हो गए. वोटबैंक की राजनीति का ख्याल रखते हुए किसी राजनीतिक पार्टी ने इस मुद्दे खुलकर हस्तक्षेप नहीं किया. सभी ने सिर्फ निंदा की है.

कासगंज, उत्तर प्रदेश, सोशल मीडिया, दंगा

कासगंज जैसी हिंसा न हो, इसकी रोकथाम के लिए करीब सात साल पहले कांग्रेस सरकार ने साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक का एक बेहतीन मसौदा तैयार किया था. पर, उस समक्ष विपक्ष में बैठी सभी पार्टियों ने यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे अल्पसंख्यकों का वोटबैंक मजबूत करने का लक्ष्य लेकर, हिन्दू समाज, हिन्दू संगठनों और हिन्दू नेताओं को कुचलने के लिए तैयार किया गया है. विपक्षी पार्टियों का यह भी मत था कि साम्प्रदायिक हिंसा रोकने की आड़ में इस विधेयक के माध्यम से न सिर्फ साम्प्रदायिक हिंसा करने वालों को संरक्षण मिलेगा बल्कि उनके हौसले भी बुलंद होंगे?

पार्टियों का मानना था इससे सिर्फ एक वर्ग मजबूत होगा. सियासी दल यह भी मानते थे कि इसके लागू होने पर भारतीय समाज में परस्पर अविश्वास और विद्वेष की खाई इतनी बड़ी और गहरी हो जाएगी जिसको पाटना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा. ऐसी तमाम तरह की उस समय दलीलें दी गई थीं. लेकिन काश उस वक्त यह विधेयक पास होकर कानून में तब्दील हो जाता तो निश्चित रूप ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगने में सहयोग मिलता. लेकिन सियासी दल अपने नफे-नुकसान के हिसाब से ही सोचते थे. जो उनके हित में होता है उसे करते हैं.

कासगंज, उत्तर प्रदेश, सोशल मीडिया, दंगा

सवाल उठता है कि देश की जनता को भारत जिंदाबाद के नारे लगाने का अधिकार होना चाहिए या फिर दुश्मन देश पाकिस्तान की जयघोष करने का? इसपर हर कोई मानुष हिंदुस्तान की ही वकालत करेगा. फिर ऐसी कौन सी ताकत है जो लोगों को ऐसी नापाक हिमाकत करने की इजाजत दे रही है. भारत में ऐसे मुसलमानों की संख्या कम नहीं है जो पाकिस्तान से नफरत करते हैं. अपने मुल्क की खैरियत और हिफाजत चाहते हैं. भारत के पढ़े-लिखे मुसलमान अपने मुल्क के प्रति फ्रिकमंद हैं. फिर कौन है जो मुसलमान के एक तबके को भड़काने का काम कर रहा है. उन्हें हिंसक रास्ते पर ला रहा है. कासगंज की घटना को हल्के में नहीं लेना चाहिए. कासगंज और दिल्ली के बीच की दूरी ज्यादा नहीं है. दिल्ली में बैठे सियासी धुरंधर मुद्दे को सुलझाने के जगह दुबके नजर आ रहे हैं. उनकी चुप्पी बहुत कुछ बयां करती है. मुल्क जिस दिशा में पथिक है जो बहुत ही चिंतनीय है. ऐसे हालात में सभी को सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एकजुट होकर समस्या से निपटने का प्रयास करना चाहिए.

केंद्र सरकार अपने स्तर से घटना की सच्चाई जानने के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन कट्टर हिंदुवादी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूबे में इस तरह की घटना का होना कई तरह के सवाल खड़े करती है... कहीं ये घटना प्रायोजित तो नहीं थी? प्लानिंग पहले से की गई हो? तरह-तरह की बातें चर्चाओं में हैं. कोई नहीं चाहता है कि भाईचारे वाले देश में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे गूंजे.

घटना जिस किसी के इशारे पर घटित हुई हो, उसपर कड़ी कार्रवाई की दरकार है. तिरंगा यात्रा निकालना, वंदे मातरम व भारत माता के जयकारे लगाना गलत नहीं है. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना गलत है. कासगंज के मुस्लिम मुहल्ला हुक्को में जिन-जिन लोगों ने ये हिमाकत की है उनसे कड़ी पूछताछ कर यह जानने की जरूरत है कि वह शब्द उनके थे या फिर पटकथा किसी और की लिखी हुई थी. गहनता से जांच करनी जरूरत है. अगले साल आम चुनाव होने हैं इसलिए 2019 जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है. वैसे-वैसे माहौल बिगड़ता दिखाई देने लगा है.

ऐसी सांप्रदायिक घटना आगे भी होने की संभावनाएं हैं? कासगंज की घटना सामान्य नहीं है. बहुत कुछ कहती है. एक बात सच है कि हिन्दूओं ने कभी भी गैर-हिन्दुओं को सताया नहीं, बल्कि उनको संरक्षण ही दिया है. क्या भगवा चोले की केंद्र व यूपी की यह सरकार हिन्दू समाज को अपनी रक्षा का अधिकार भी नहीं देना चाहती? क्या हिन्दू की नियति सेक्युलर बिरादरी के संरक्षण में चलने वाली साम्प्रदायिक हिंसा से कुचले जाने की ही है? अपने सियासी मकसद के लिए मजहबी सांप्रदायिक हिंसाओं को अंजाम देना किसी भी सभ्य समाज में उचित नहीं माना जाता. देश के हिंदु विधर्मियों के निशाने पर रहें इसपर ध्यान देने की जरूरत है. मौजूदा वर्ष केंद्र सरकार की परीक्षा लेगा. पास होगी या फेल अगला रिजल्ट बताएगा.

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