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Updated: 17 नवम्बर, 2021 12:57 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का नाराज रहना कोई नया नहीं है. लेकिन इस बार उन्होंने अपने स्वभाव के विपरीत काम किया है. जैसे हालात वर्तमान परिदृश्य में देश के हैं फारूक अब्दुल्ला आहत हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर ने डर को मुद्दा बनाते हुए केंद्र सरकार पर बड़ा हमला किया है. फारूक अब्दुल्ला का मानना है कि सरकार को उस डर को दूर करना चाहिए जो मौजूदा वक़्त में देश के मुसलमानों के बीच व्याप्त है.

ये बातें यूं ही नहीं है. अपनी बातों को वजन देने के लिए फारूक अब्दुल्ला ने देश के कुछ स्थानों पर मस्जिदों पर हो रहे हमलों और उस हिंसा को मुद्दा बनाया है जिनका सामना मौजूदा वक़्त में मुसलमानों को करना पड़ रहा है. फ़ारूक़ अब्दुल्ला कोई छोटी मोटी शख्सियत में नहीं है वो एक वरिष्ठ नेता तो हैं ही साथ ही देश के जिम्मेदार नागरिक हैं. इसलिए भले ही फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने इतनी बड़ी बात कहकर अपने को किनारे कर लिया हो लेकिन एक सवाल हम उनसे जरूर पूछना चाहेंगे कि वो उन मस्जिदों के बारे में देश और देश की जनता को जरूर बताएं जिन्हें विस्फोटकों के जरिये नष्ट किया गया है. हमारे इस सवाल का फारूक अब्दुल्ला क्या जवाब देंगे इससे हम भली प्रकार परिचित हैं.

Jammu Kashmir Ex CM Farooq Abdullah Lie on Muslim being targeted and mosque being blown up shows hatred towards Modi Government मस्जिदों और मुसलमानों के प्रति रहमदिली दिखाने वाले फारूक अब्दुल्ला ने झूठ की हदों को पार कर दिया है

बात बीते दिन की है. तमाम इंटिलेक्चुअल्स की तरह फारूक अब्दुल्ला ने भी मुसलमानों और मस्जिदों पर अपनी चिंता जाहिर की है और ऐसा बहुत कुछ बोल दिया है जिसे मोदी विरोध में व्यर्थ का प्रोपोगेंडा कहना कहीं से भी गलत न होगा. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने सरकार से अनुरोध किया है कि वो मुसलमानों के डर को दूर करने के लिए आगे आए. वहीं उन्होंने बड़ा आरोप लगाते हुए ये भी कहा है कि समुदाय के लोगों पर हमले हो रहे हैं तथा उनकी मस्जिदें 'नष्ट' की जा रही हैं.

मामले में दिलचस्प ये कि फारूक ने मस्जिदों को नष्ट किये जाने की बात तो कह दी लेकिन ऐसा कहां हुआ इसकी ठीक ठीक जानकारी उनके पास नहीं थी. तमाम दूसरे लोगों की तरह देश के मुसलमानों के विषय पर अपना पक्ष रखने के लिए फारूक अब्दुल्ला ने भी मीडिया का सहारा लिया है और बातचीत की है. मीडिया से बात करते हुए फारूक ने कहा है कि भारत के साथ खड़े मुसलमानों की 'हत्या' हो रही है इसलिए अब वो वक़्त आ गया है जब सरकार को उचित एक्शन लेना ही होगा.

किसी महफ़िल में फारूक अब्दुल्ला हों.मीडिया हो और पाकिस्तान का जिक्र न हो तो सारी बातें अधूरी रह जाती हैं. फारूक अब्दुल्ला का मानना है कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान की समस्याएं तब ही ख़त्म हो सकती हैं जब दोनों देश बैठकर बात करें. फारूक के अनुसार, 'जब हम देश में देखते हैं, तब नजर आता है कि मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं, उन्हें पीटा जा रहा है और मस्जिदें विस्फोट कर उड़ाई जा रही हैं.'

हिंदुस्तान और पाकिस्तान की रंजिश पर विक्टिम कार्ड खेलते हुए फारूक अब्दुल्ला ने ये तक कह दिया कि, 'इसके शिकार हम होंगे, जो भारत के साथ खड़े हैं. हम मारे जाएंगे क्योंकि भारत के सिवा हमारे पास रहने के लिए कोई और जगह नहीं है. हम समान हैं लेकिन जो स्थिति बन रही है वह डर पैदा करती है और सरकार को इसका हल निकालना होगा.'

अब्दुल्ला ने कहा कि भारत-पाक के बीच संबंधों में तनाव के चलते हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंध प्रभावित हो रहे हैं. मीडिया से हुई बातचीत में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान के अलावा चीन का भी जिक्र किया है और केंद्र सरकार पर बड़ा हमला करते हुए कहा है कि भारत सरकार चीन के साथ वार्ता कर सकते हैं, जबकि वह भारत के भू-भाग में है तथा प्रतिदिन और आगे बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा, 'हम चीन के साथ वार्ता कर सकते हैं तो पाकिस्तान के साथ क्यों नहीं. चीन हमारे क्षेत्र में है और प्रतिदिन आगे बढ़ रहा है. करने को तो फारूक अब्दुल्ला ने मीडिया से चीन पाकिस्तान समेत तमाम बातें की हैं. हमारा फोकस उस बात पर नहीं है. हम जिस बात का अवलोकन कर रहे हैं वो है उनका ये कहना कि मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं.

जैसा कि हम पहले ही इस बात से अवगत करा चुके हैं कि इस विषय में फारूक के पास कोई तथ्य नहीं है. यानी मुसलमानों और मस्जिदों पर हमले को लेकर जो कुछ भी फारूक ने कहा है वो हवा हवाई है और उन्होंने अपने मोदी / केंद्र विरोध के चलते अंधेरे में तीर चलाया है. 

हम फिर इस बात को कह रहे हैं कि एक पूर्व मुख्यमंत्री से पहले फारूक अब्दुल्ला देश के एक जिम्मेदार नागरिक हैं. देश की राजनीति में जैसा उनका कद है इस तरह का झूठ उन्हें हरगिज भी शोभा नहीं देता. फारूक को समझना चाहिए कि विरोध का और अपनी बात रखने का एक दायरा होता है और जो भी उस दायरे को पार करता है वो हंसी का पात्र तो बनता ही है फिर कोई उसके द्वारा कहे गए सच को भी गंभीरता से नहीं लेता. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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