जम्मू कश्मीर के सत्यपाल मलिक ने 'गवर्नर-पॉलिटिक्स' की नई इबारत लिखी है
विधानसभा भंग करने को लेकर जम्मू कश्मीर के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने जो बात कही थी उसी को आगे बढ़ाया है. लेकिन अब जो कुछ कहा है उसमें राजनीतिक की एक खास किस्म की खूशबू भी आ रही है.
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जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग किये जाने से बहुत पहले ही सूबे के राजनीतिक हालात और जोड़तोड़ पर एक अहम बयान आया था. तब गवर्नर सत्यपाल मलिक ने कहा था - 'मैं किसी भी धांधली का हिस्सा नहीं बनूंगा...' मोदी सरकार की मंशा को लेकर सत्यपाल मलिका का ताजा बयान गवर्नर के पुराने बयान को ही आगे बढ़ाता हुआ लगता है - मगर, वाकई जैसे ऊपरी तौर पर लग रहा है, वैसा ही है भी क्या?
जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग करते वक्त भी सत्यपाल मलिक ने एक दलील पेश की थी, लेकिन अब जो कहा है उसमें राजनीति की भी खासी खूशबू आ रही है. सत्यपाल मलिक का ये बयान कोई यू-टर्न नहीं, बल्कि पहले बयान पर ही तर्क के साथ एक बार और नये सिरे से सफाई है - और उसी में केंद्र की मोदी सरकार का खास संदेश भी छिपा हुआ है.
क्या सत्यपाल मलिक ने सबको कठघरे में खड़ा कर दिया है?
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान पर एक बार फिर विवाद हो रहा है. लेटेस्ट विवाद की वजह उनका वो बयान है जिसमें उनका कहना है कि अगर वो केंद्र की मोदी सरकार की बात मानते तो वो विधानसभा भंग नहीं करते, बल्कि महबूबा मुफ्ती की जगह सज्जाद लोन को चुन चुके होते.
सत्यपाल मलिक की बातों से तो ऐसा लगता है जैसे वो हालिया दौर के राज्यपालों में वो अकेली शख्सियत हैं जो गवर्नर पद की गरिमा को बरकरार रखे हुए हैं. सरकारें बदलती गयीं, लेकिन ऐसा कम ही हुआ है जब गवर्नर के फैसले पर सवाल न उठा हो - और दिल्ली के इशारे पर काम करने का इल्जाम न लगा हो.
सत्यपाल मलिक ने यू-टर्न नहीं लिया, गाड़ी का गियर बदला है!
ताजातरीन मामला तो कर्नाटक में ही देखने को मिला जब गवर्नर ने बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दे दिया - और सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलते ही वो मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ ही देर बाद भाग खड़े हुए. ऐसी ही बातें गोवा, मणिपुर और बिहार में भी नजर आयीं जब महामहिम नीतीश कुमार का इस्तीफा स्वीकार करने और उनके दोबारा दावा पेश करने के बीच बुरी तरह बीमार रहे - और नये सिरे से शपथग्रहण तक ठीक हो गये. तेजस्वी यादव अपने विधायकों के साथ इंतजार ही करते रहे.
सत्यपाल मलिक के बयान को ऐसे भी लिया जा रहा है जैसे वो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आंच न आये इसलिए सारा इल्जाम खुद के सिर पर ले ले रहे हैं. थोड़ा गौर से सत्यपाल मलिक के बयान को समझा जाये तो ऐसा कुछ भी नहीं लगता.
ये मलिक की सफाई है या फिर मोदी सरकार का कोई संदेश?
विधानसभा भंग होने के पहले एक इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने जम्मू कश्मीर में जल्द से जल्द चुनाव कराये जाने की अपनी इच्छा जाहिर की थी. राज्यपाल मलिक ने यहां तक कहा था कि उन्हें नहीं लगता मौजूदा सदन में कोई लोकप्रिय सरकार बन सकती है. राज्यपाल मलिक का ये कहना जता रहा था कि पर्दे के पीछे चल रही सरकार बनाने की सारी कवायद फेल हो चुकी है. ये तब की बात है जब महबूबा मुफ्ती पीडीपी को तोड़ने की साजिशों की बात कर रही थीं - और सज्जाद लोन के नाम पर विधायकों के मन की बात जानने की कोशिश चल रही थी.
इंटरव्यू में सरकार बनाने की कोशिशों से जुड़े सवाल पर सत्यपाल मलिक ने कहा था, ‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता... कम से कम, मैं किसी भी धांधली का हिस्सा नहीं बनूंगा...’’
सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग करने के फैसले को सही ठहराते हुए पहले भी मीडिया के सवालों का जवाब दिया था - उन्होंने वे तर्क भी पेश किये कि किन परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करनी पड़ी.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग किये जाने को लेकर नये सिरे से विवाद की शुरुआत मध्य प्रदेश में हुई. विवाद की वजह विधानसभा चुनाव नहीं बल्कि ग्वालियर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के कॉन्वोकेशन में पहुंचे पत्रकार रवीश कुमार का तंज रहा जिसके निशाने पर कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राज्यपाल सत्यपाल मलिक रहे. रवीश कुमार ने इंजीनियरिंग के छात्रों सलाह दी कि उन्हें ऐसी फैक्स मशीन बनानी चाहिए जो शाम के 7 बजे के बाद भी काम करे. माइक संभालते ही सत्यपाल मलिक जरूरी औपचारिकताओं के बाद सीधे मुद्दे पर आ गये. रवीश के ताने के जवाब में सत्यपाल मलिक ने एक चीनी कहावत भी सुनाई - 'किसी को चांद दिखाओ, तो नासमझ आदमी उंगली की तरफ देखता है - चांद की तरफ नहीं देखता है.'
फिर सत्यपाल मलिक ने इस दौरान तत्कालीन परिस्थितियों का विस्तार से जिक्र करते हुए ये भी साबित करने की कोशिश की कि महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ली से लेकर गुलाम नबी आजाद तक कोई भी सरकार बनाने को लेकर जरा भी संजीदा नहीं नजर आया.
तमाम आरोपों और उठते सवालों के जवाब के साथ ही फैसले को कानूनी चुनौती देने वालों को भी चैलेंज किया - कोई कोर्ट जाना चाहे तो बेशक जाना चाहिये. वैसे भी राज्यपाल के फैसले को चैलेंज तो किया जा सकता है, लेकिन विवेकाधिकार को तो कतई नहीं. विवेकाधिकार तो यही कहता है कि मौजूदा परिस्थियों में जो भी संविधान सम्मत को कदम उठाये जाने चाहिये.
बहरहाल, राज्यपाल सत्यपाल मलिक के नये बयान के बाद जम्मू कश्मीर में बीजेपी के विरोधियों को भी शुक्रिया कहना पड़ रहा है. गवर्नर की तारीफ करने में महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला दो कदम आगे नजर आते हैं.
Leaving aside the fax machine fiasco , good to see that governor Sb refused to take dictation from Delhi , rather opted for dissolution of assembly. This could be unprecedented, given the story of democracy in the state.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) November 27, 2018
My compliments to Governor Malik for not looking to Delhi & for not taking their instructions thereby stopping the installation of a government of the BJP & it’s proxies formed by horse trading, defections & use of money.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 27, 2018
अब सवाल ये उठता है कि आखिर पीपल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन को क्या वास्तव में बीजेपी या केंद्र की मोदी सरकार जम्मू और कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी? अगर ऐसे प्रयास हो रहे थे तो क्यों?
मोदी सरकार आखिर सज्जाद लोन पर इतनी मेहबान क्यों है?
राजनीति में कोई भी कोशिश बगैर किसी बड़े फायदे के नहीं उठाये जाते. अगर तात्कालिक नुकसान भी दिखे तो भी दूरगामी फायदे के हिसाब से फैसले लिये जाते ही हैं.
सज्जाद लोन को लेकर सवाल उठने की पहली वजह तो यही है कि पीपल्स कांफ्रेंस के महज दो एमएलए हैं - और बीजेपी के पास 25. फौरी तौर पर भले ही ये मूर्खतापूर्ण लगे लेकिन भविष्य की राजनीति को देखते हुए ये सही फैसला भी हो सकता है. वैसे केंद्र में इंदिरा गांधी ने चरण सिंह और राजीव गांधी ने चंद्रशेखर की सरकार का बनना भी तो ऐसी ही राजनीति की मिसाल है.
जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार के शपथग्रहण के मौके पर सज्जाद लोन को ये तवज्जो मिली थी
सज्जाद गनी लोन अब भले ही मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन शुरू से ऐसा नहीं है. सज्जाद लोन अलगाववादी नेता अब्दुल गनी लोन के बेटे हैं जिनकी 2002 में हत्या कर दी गयी थी. पिता की मौत के बाद सज्जाद लोन ने भी सज्जाद लोन ने भी अलगाववाद की राजनीतिक राह ही पकड़ी, लेकिन बुजुर्ग नेताओं की जमात में मिसफिट रहे.
बीजेपी को सज्जाद लोन में कुछ राजनीतिक तत्व की बात नजर आयी और 2014 से ही दोनों एक दूसरे के करीब आ गये. सज्जाद लोन पहले बीजेपी और पीडीपी के साथ गठबंधन और फिर सरकार में भी शामिल हुए. बीजेपी ने अपने ही कोटे से सज्जाद लोन को मंत्रिमंडल में भी शामिल कराया. ये बात न कभी मुफ्ती मोहम्मद सईद को पसंद आयी न उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को. सज्जाद लोन भी कैबिनेट में कम महत्व का विभाग मिलने से नाराज रहे, लेकिन बीजेपी कदम कदम पर उनके साथ और मजबूती से पीछे खड़ी रही.
महबूबा मुफ्ती की सरकार गिराने के बाद नये सिरे से सरकार बनाने की सूरत में बीजेपी के लिए सज्जाद लोन बेहतरीन मोहरा था. जम्मू में तो बीजेपी को कोई दिक्कत नहीं, लेकिन कश्मीर वाली तरफ पूरा सन्नाटा है. बीजेपी को उम्मीद रही होगी कि सज्जाद के नाम पर कश्मीर घाटी के विधायक बगावत कर सरकार में शामिल हो सकते हैं.
सत्यपाल मलिक ने अपने ताजा भाषण में भी इस बात का जिक्र किया है कि महबूबा ने उनसे शिकायत की थी कि पीडीपी विधायकों को तोड़ने की कोशिश हो रही है, उनका कहना रहा कि सूबे के नेताओं के पास खूब पैसा है - और वे ऐसा कभी भी कर सकते हैं.
सज्जाद लोन आगे भी बीजेपी के साथी के रूप में काम करते ही रहेंगे, सारी बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है. महबूबा की जगह बीजेपी अब सज्जाद लोन के सहारे घाटी की राजनीति में आगे बढ़ेगी - यही संदेश वो घाटी के लोगों को देने की कोशिश कर रही है. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान में भी यही संदेश छिपा हुआ लगता है.
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