370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में सब कुछ बढ़िया हो गया - सिर्फ आतंकवाद रुकने के!
जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों (JK Terror Incidents) को 90 के दशक से जोड़ कर देखा जाने लगा है - अमित शाह (Amit Shah) सर्जिकल स्ट्राइक की बात कर रहे हैं और LG मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) कह रहे हैं आतंकियों के मंसूबे कामयाब नहीं होंगे - ऐसे कब तक चलेगा?
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जम्मू-कश्मीर में अचानक बढ़ गये आतंकवादी हमलों (JK Terror Incidents) के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के तीन दिन के दौरे का कार्यक्रम बना है - हालांकि, अमित शाह की ये यात्रा केंद्र की मोदी सरकार के महासंपर्क कार्यक्रम का हिस्सा है. महासंपर्क कार्यक्रम के तहत 70 केंद्रीय मंत्री केंद्र शासित प्रदेश का दौरा कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार अमित शाह 23 से 25 अक्टूबर तक तीन दिन के जम्मू-कश्मीर के दौरे पर रहेंगे.
कश्मीर घाटी और जम्मू क्षेत्र के रिमोट इलाकों के दौरे पर जा रहे अमित शाह विकास योजनाओं का जायजा भी लेंगे. हाल की आतंकवादी गतिविधियों को लेकर अपने दौरे से पहले ही अमित शाह ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि अगर वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तो भारत फिर से सर्जिकल स्ट्राइक करेगा, 'हमें पाकिस्तान को सबक सिखाना अच्छी तरह से आता है.'
5 अगस्त, 2019 को संसद में एक प्रस्ताव लाकर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले धारा 370 को खत्म कर दिया गया था और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का कहना रहा कि घाटी में शांति के लिए ये बेहद जरूरी कदम रहा - और फिर प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी कहा कि घाटी के लोगों को भी पूरे देश की तरह सभी सुविधाएं मिलेंगी.
देश भर के लोगों को ये भी समझाया गया कि कोई भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकता है और वहां बसने के बारे में भी विचार कर सकता है, लेकिन ये सब होने के दो साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी - आलम ये है कि आतंकवादी बाहर के लोगों को खोज खोज कर गोली मार रहे हैं, जिसे टारगेट-किलिंग के तौर पर समझा और समझाया जा रहा है.
ऐसा भी नहीं कि आम लोग ही मारे जा रहे हैं, सुरक्षा बलों को भी शहादत देनी पड़ रही है और बीजेपी के नेताओ और कार्यकर्ताओं की भी हत्या हो रही है. कहने को तो वहां बीडीसी और डीडीसी के चुनाव भी कराये जा चुके हैं.
धारा 370 खत्म किये जाने के साल भार बाद केंद्र ने बीजेपी नेता मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाया जिसका मकसद घाटी के नेताओं से राजनीतिक संवाद स्थापित कर आम लोगों में विश्वास की भावना बढ़ाई जा सकेगी. मनोज सिन्हा के कार्यकाल के भी साल भर से ज्यादा वक्त हो चुके हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी दिनों तक नजरबंद रखे गये कश्मीरी नेताओं की रिहाई के बाद दिल्ली में मिल भी चुके हैं.
प्रधानमंत्री मोदी और कश्मीरी नेताओं की मुलाकात के बाद ही उम्मीद जतायी जाने लगी थी कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव कराये जा सकते हैं. हालांकि, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद सहित सारे कश्मीरी नेताओं की मांग रही कि पहले जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाये, फिर चुनाव कराया जाये.
अचानक से बढ़ी आतंकी गतिविधियों को 90 के दशक की हिंसा और हमलों के वारदात से जोड़ कर देखा जाने लगा है - LG मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) कह रहे हैं आतंकियों के मंसूबे कामयाब नहीं होंगे और अमित शाह पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के लिए चेता रहे हैं. दो साल कम भी तो नहीं होते - आखिर ऐसी क्या वजह है कि धारा 370 खत्म किये जाने का कोई खास फायदा व्याहवहारिक तौर पर नजर नहीं आ रहा है?
हत्याओं पर काबू क्यों नहीं पाया जा सकता है
हाल ही में एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के दीनदयाल स्मृति वर्चुअल व्याख्यान में जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का कहना रहा, 'जम्मू-कश्मीर का इतिहास जानबूझ कर की गयी दुर्घटना का शिकार है. मनोज सिन्हा ने बताया कि कुछ लोगों ने ऐसी व्यवस्था बनायी जो उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक फायदे के लिए थी, ताकि अवाम की तरक्की न हो. बोले, '1954 में संसद को जानकारी दिये बिना ही आर्टिकल 35 को जोड़ दिया गया - ये परिवर्तन अकस्मात नहीं हुआ, इसकी पटकथा कई वर्षों से लिखी जा रही थी.'
अभी तो एक ही सवाल बनता है - आखिर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर कब तक काबू पाया जा सकेगा?
अगर ऐसी बातें वर्चुअल चर्चाओं तक ही सीमित हैं तो कोई बात नहीं है, लेकिन अगर व्यवस्था का नेतृत्व और निगरानी कर रहे लोगों के मन में भी ऐसी धारणा बनी हुई है, तो हैरानी की बात है. वैसे भी ऐसी वर्चुअल चर्चाओं में भी सॉल्यूशन पर बात क्यों नहीं होती? असली वजहों को समझने की कोशिश क्यों नहीं होती कि आखिर क्यों उन लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल हो रहा है जिनकी शुरू में उम्मीद की गयी थी.
जब लंबे अरसे तक कश्मीरी नेताओं को नजरबंद रखने, इंटरनेट सेवायें बंद रखने और सुरक्षा बंदोबस्त के साथ साथ ऑपरेशन जारी रखने के बाद भी यथास्थिति नजर आये तो चिंता तो होगी ही - आखिर किस स्तर पर कौन सी चूक हो रही है कि हालात पर पूरी तरह काबू पाना मुश्किल हो रहा है.
आतंक के सरपरस्तों को भी मैं कहना चाहता हूँ, जम्मू कश्मीर में शांति, विकास और समृद्धि की यात्रा को अस्थिर करने के उनके मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे।
— Manoj Sinha (@manojsinha_) October 7, 2021
मीडिया रिपोर्ट ही बताती हैं कि आम लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने की केंद्र की मोदी सरकार की कोशिश के तहत विकास योजनाओं पर फोकस बढ़ा है. कश्मीरी पंडितों को उनकी संपत्ति दिलाने और रोजगार के संसाधन उपलब्ध कराये जाने के प्रयास भी हो रहे हैं - और आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले ऐसी ही बातों से गुस्से में हैं.
आतंकी हमले बढ़ने के बाद सुरक्षा बलों ने घाटी में ऑपरेशन ऑल आउट को तेज किया तो नतीजे भी देखने को मिले - महज 24 घंटे के भीतर ही आधा दर्जन आतंकियों को मार गिराया गया. मारे जाने वालों में वे भी शामिल बताये जाते हैं जो आम लोगों की हाल की हत्याओं में शामिल थे - फिर भी हाल के आतंकी हमले काफी परेशान करने वाले हैं -
1. श्रीनगर में 16 अक्टूबर को बिहार के बांका निवासी अरविंद कुमार साह और उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के रहने वाले सगीर अहमद की गोली मार कर आतंकवादियों ने हत्या कर दी. बिहार से रोजगार की तलाश में अरविंद जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे और श्रीनगर में गोलगप्पे बेचा करते थे. करीब छह महीने पहले अरविंद के भाई की कोरोना के चलते मौत हो गयी थी. अब घर चलाना मुश्किल हो रहा है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, उनके इलाके के करीब तीन सौ लोग जम्मू-कश्मीर में रहते हैं और ऐसे छोटे मोटे काम कर परिवार का गुजारा करते हैं.
2. महीने की शुरुआत में ही 7 अक्टूबर को श्रीनगर के ईदगाह इलाके में स्कूल की प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और टीचर दीपक चंद की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. उससे पहले शहर के जाने माने फार्मासिस्ट माखन लाल बिंद्रू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. बिंद्रू 90 के दशक में जब ऐसे हमले चरम पर थे तब भी डटे रहे.
3. जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में एक जूनियर कमीशंड अफसर सहित पांच जवानों को शहादत देनी पड़ी थी.
4. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय बीजेपी नेताओं का कहना है कि बीते दो साल में घाटी में पार्टी के 23 नेता और कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं. मारे जाने वालों में सरपंच भी रहे हैं.
बड़ी बात ये है कि एक पैटर्न देखा और महसूस किया जा रहा है - ऐसे टारगेट किलिंग में गैर-मुस्लिम और बाहरी लोगों को शिकार बनाया जा रहा है. साफ है कि डर का माहौल पैदा किये जाने की कोशिश हो रही है, लेकिन अब तक ये बचे कैसे हैं. काफी पहले एक बार आर्मी चीफ ने कहा था कि घाटी में आतंकवादियों की शेल्फ लाइफ बहुत कम हो गयी है. हथियार उठाने के कुछ ही दिनों बाद ही उनका मुठभेड़ में मार गिराया जाना तय है - लेकिन ये कुकुरमुत्ते की तरह उग क्यों आ रहे हैं? सबसे बड़ा सवाल यही है.
370 हटाये जाने के फर्क को कैसे समझें?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में एक किताब के विमोचन के मौके पर माना कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को रद्द किये जाने के बावजूद घाटी की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.
अपनी हाल की यात्रा का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा, 'मैं कुछ समय पहले ही जम्मू-कश्मीर गया था... मैंने वहां के हालात देखे... आर्टिकल 370 हटने के बाद विकास का रास्ता सभी के लिए खुल गया है... पहले जम्मू और लद्दाख के लोगों को भेदभाव झेलना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है.'
विजयादशमी के मौके पर भी अपने भाषण में मोहन भागवत ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में आम लोगों को फायदा तो हुआ है, लेकिन घाटी में हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा है. मोहन भागवत ने सरकार को सलाह दी कि काबू पाने के लिए चुस्त-दुरूस्त बंदोबस्त करना पड़ेगा.
न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में जम्मू-कश्मीर में मारे गये 203 आतंकियों में से 166 स्थानीय नौजवान थे. ऐसे ही 2019 में एनकाउंटर में मारे गये 152 आतंकियों में भी 120 लोकल कश्मीरी शामिल थे.
राजनीति के बाद सरकारी सेवा में लौट चुके जम्मू-कश्मीर के आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने भी एक पुलवामा हमले के बाद आतंकी गतिविधियों में स्थानीय युवकों के शामिल होने और उनको इलाके के लोगों से मिलने वाले सपोर्ट को नये ट्रेंड के रूप में देखा था. हाल फिलहाल कई बार ये चर्चा भी रही है कि शाह फैसल को मनोज सिन्हा का सलाहकार बनाया जा सकता है.
राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि 2019 के मुकाबले 2020 में आतंकी हमलों में जहां 59 फीसदी की कमी आई, वहीं जून, 2021 तक जून, 2020 के उसी पीरियड में ऐसे हमलों में 32 फीसदी की कमी दर्ज की गयी. ये भी बताया गया कि धारा 370 खत्म किये जाने के बाद अगस्त, 2021 तक आतंकी हमलों में कुल 59 नागरिक मारे गये, जबकि 168 लोग जख्मी हुए हैं.
आंकड़े अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन क्या दो साल की कड़ी निगरानी में ये सब खत्म नहीं हो जाना चाहिये था? बेशक बताया जाये कि हाल की हत्याओं में कोई अत्याधुनिक हथियार नहीं बल्कि पिस्टल का इस्तेमाल देखा गया है - मतलब नौसीखियों से ये सब कराया जा रहा है. ये वे आतंकवादी नहीं हैं जिनको कोई खास ट्रेनिंग दी गयी हो.
रिपोर्ट के अनुसार, आतंकी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का भी रोल सामने आया है और इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच उच्चस्तरीय मीटिंग भी हुई है. गृह मंत्रालय में भी ऐसी ही महत्वपूर्ण बैठक हुई है - और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पाकिस्तान को हरकतों से बाज नहीं आने पर 2016 की तरफ फिर से सर्जिकल स्ट्राइक की चेतावनी दे चुके हैं. 2019 के शुरू में भी सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक हुआ था.
कांग्रेस के G-23 नेता कपिल सिब्बल ने कटाक्ष के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जम्मू-कश्मीर के ताजा हाल पर सवाल किया है - 'मोदी जी क्या आप अपने किये हुए वादों को भूल गये हैं या वो भी जुमले थे, जैसा कि गृह मंत्री बता सकते हैं?'
Militancy continues in J&KNo end in sight
Our brave soldiers , Officers martyred Innocent gutsy citizens ( a chemist ,a teacher ) being targeted and killed
Modi ji Have you forgotten the promises you made Or were those too ‘ jumlas ‘ as the Home Minister might say !
— Kapil Sibal (@KapilSibal) October 11, 2021
कपिल सिब्बल अंग्रेजी के कवि भी हैं और अक्सर बिंबों के सहारे, खासकर कांग्रेस के मामलों में, अपनी बात कहते रहते हैं. मशहूर शायर राहत इंदौरी ने भी ऐसे हालात को लेकर अपने अंदाज में सवाल किया है - और जिसमें वो ऐसी घटनाओं को चुनाव से जोड़कर देखते हैं.
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या,कुछ पता तो करो चुनाव है क्या... https://t.co/fuHGvgtnBV
— Dr. Rahat Indori - forever (@rahatindori) August 23, 2018
क्या घाटी के आतंकी भी हाइलाइट होने के लिए चुनावी माहौल को फेवरेबल पाने लगे हैं? क्या ये सब राजनीतिक तौर पर भी फायदेमंद साबित हो सकता है?
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