जोकीहाट नतीजे के आगे तेजस्वी का जश्न सिर्फ भ्रम है
जोकीहाट में आरजेडी की विजय अररिया के बाद लगातार दूसरी जीत है. ये दोनों चुनाव पार्टी ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में जीते हैं. एक चुनाव तब जबकि तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद जेल में थे - और दूसरी जब वो अस्पताल में हैं.
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जोकीहाट उपचुनाव का नतीजा बिहार की मौजूदा राजनीतिक स्थिति का बेहतरीन आकलन पेश करता है. चुनाव जीत कर तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीतिक हैसियत दिखा दी है. अररिया के बाद जोकीहाट तेजस्वी की लगातार दूसरी जीत है. खास बात ये है कि अररिया में तेजस्वी ने उस वक्त जीत हासिल की जब उनके पिता लालू प्रसाद जेल में थे - और जोकीहाट तब जीते हैं जब वो अस्पताल में हैं.
जोकीहाट का नतीजा तेजस्वी के लिए जितनी बड़ी जीत है, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए उतनी ही बड़ी हार है.
जोकीहाट में जीत का फासला
जोकीहाट विधानसभा सीट अररिया से आरजेडी सांसद सरफराज आलम के इस्तीफे से खाली हुई थी. सरफराज जोकीहाट से जेडीयू के विधायक थे.
उपचुनाव में तेजस्वी यादव ने सरफराज के भाई शाहनवाज आलम को आरजेडी का टिकट दिया था - और वो महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े. शाहनवाज के मुकाबले नीतीश कुमार ने मोहम्मद मुर्शीद आलम को जेडीयू का टिकट दिया था और वो एनडीए प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे. आरजेडी उम्मीदवार शाहनवाज को 81, 240 वोट मिले जबकि जेडीयू उम्मीदवार मुर्शिद आलम को 40,015 वोट से संतोष करना पड़ा. इस तरह दोनों की जीत में 40 हजार से ज्यादा का फासला रहा - और इसी बात पर तेजस्वी यादव को नीतीश पर हमले का मौका मिल गया.
जोकीहाट की जीत जोश बढ़ानेवाली है
जीत के बाद तेजस्वी यादव ने कहा - 'जेडीयू को जितने वोट मिले हैं, वो हमारी जीत के अंतर से भी कम हैं.' तेजस्वी ने इसे नीतीश के यू टर्न लेने पर बिहार के लोगों का बदला बताया.
नीतीश की हार क्यों?
जोकीहाट के नतीजे से बड़ा सवाल खड़ा हो गया है और इसका जवाब नीतीश कुमार को ही ढूंढना होगा. जो सीट नीतीश कुमार तसलीमुद्दीन जैसे कद्दावर नेता और लालू प्रसाद के खिलाफ जीतते आ रहे थे उसे तेजस्वी के हाथों कैसे गवां दिया?
लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी सहित आरजेडी के सारे नेता नीतीश कुमार पर धोखेबाजी का आरोप लगाते रहे हैं. यहां तक कि जिस दिन नीतीश कुमार ने महागठबंधन से पाला बदल कर बीजेपी से हाथ मिला लिया, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की भी टिप्पणी कुछ ऐसी ही रही.
अलर्ट है अररिया के बाद जोकीहाट का नतीजा
जोकीहाट सीट पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू लगातार चार बार चुनाव जीती है. 2005 से ये सीट जेडीयू के पास रही है. यही वो सीट है जहां से सरफराज जेडीयू उम्मीदवार से दो बार हारे और जीते तभी जब नीतीश कुमार ने जेडीयू का टिकट दिया.
सवाल ये है कि क्या मुस्लिम समुदाय को नीतीश का बीजेपी से हाथ मिलाना रास नहीं आ रहा? क्या तेजस्वी यादवा और उनके साथी लोगों को ये समझाने में कामयाब हो रहे हैं कि नीतीश ने सत्ता के लिए उसी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने घुटने टेक दिये जिसका विरोध करने वो 2015 का बिहार चुनाव जीता था?
ध्यान रहे, जोकीहाट जैसा पूरा बिहार नहीं है
ऊपरी तौर पर देखें तो जोकीहाट के चुनाव मैदान में दोनों ही मुस्लिम उम्मीदवार थे. वैसे भी जिस इलाके की आबादी में 70 फीसदी मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी हो वहां कोई भी पार्टी मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारेगी. फिर भी जेडीयू का उम्मीदवार चुनाव क्यों हार गया, यही समझने और नीतीश कुमार के लिए सोचने की बात है.
जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र का 1969 में बना था. 1969 से अब तक जोकीहाट में 14 बार चुनाव हो चुके हैं और उनमें नौ बार तसलीमुद्दीन परिवार ही जीतता आ रहा है. पांच बार तो खुद तसलीमुद्दीन ही जोकीहाट से विधायक रहे.
लालू से दो कदम आगे चल रहे हैं तेजस्वी
एक बात ये जरूर है कि नीतीश कुमार के उम्मीदवार चयन से लोग हैरान थे. नीतीश ने जेडीयू का टिकट एक ऐसे व्यक्ति को दिया जिसके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. ऐसा शख्स जो बलात्कार, हत्या का प्रयास और मूर्ति चोरी तक आरोपी रहा है. ये तो मानना ही होगा कि इससे निश्चित रूप से नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि को नुकसान पहुंचा होगा. वोट देते वक्त भी लोगों के सामने एक फैक्टर ये जरूर रहा होगा.
सबसे बड़ी बात जो समझ में आती है कि चुनाव में लड़ाई तेजस्वी का मुस्लिम उम्मीदवार बनाम नीतीश का मुस्लिम उम्मीदवार हो गयी. तेजस्वी लोगों को ये बात समझाने में कामयाब हो गये कि बीजेपी से हाथ मिलाकर नीतीश भला मुसलमानों के हित की बात कैसे सोच सकते हैं. दूसरी तरफ, नीतीश जोकीहाट के मुस्लिम समुदाय को अपना नया फंडा नहीं समझा पाये. नीतीश लोगों को इस बात के लिए कंवींस करने में नाकाम रहे कि बीजेपी ही असली धर्मनिरपेक्ष पार्टी है. बीजेपी की ही तरह नीतीश भी नहीं समझा पाये कि वो सबका साथ और सबका विकास के पक्के हिमायती हैं. निश्चित तौर बीजेपी के सत्ता में साझीदार बनते ही गौरक्षकों के उत्पात की घटना जरूर लोगों के मन में आयी होगी.
जाहिर है जोकीहाट का नतीजा तेजस्वी का जोश बढ़ाने वाला और उनके साथियों की हौसलाअफजाई के काबिल है, लेकिन ये आखिरी सच नहीं है. हर सीट के समीकरण अलग अलग होते हैं. जोकीहाट में जो निर्णायक वोट हैं जरूरी नहीं कि उसे पूरे बिहार का स्टैंडर्ड पैमाना समझा जाये.
तेजस्वी यादव को समझना होगा कि बिहार में बहुत कम सीटें जोकीहाट जैसी हैं. हर जीत मायने रखती है लेकिन अररिया से लेकर जोकीहाट तक आरजेडी को जो जीत मिली है उसमें विशेष परिस्थितियों की अहम भूमिका है. जीत के जोश में मशगूल तेजस्वी अगर आने वाले हर चुनाव के लिए अररिया और जोकीहाट को मिसाल समझ लेते हैं तो ये उनकी भूल होगी.
तेजस्वी यादव जोकीहाट में जीत के अंतर का जो अहसास नीतीश कुमार को करा रहे हैं वो आधा सच है. तेजस्वी यादव ये भूल रहे हैं कि जेडीयू ने जोकीहाट में लोक सभा उपचुनाव के मुकाबले जीत का अंतर आधा कर लिया है. जोकीहाट में दो महीने पहले आरजेडी और जेडीयू उम्मीदवार के बीच फासला 80 हजार के करीब रहा जो अब 40 हजार पहुंच चुका है - ये बात तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार दोनों के लिए महत्वपूर्ण है और आगे की रणनीति तैयार करने का आधार भी.
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