JP Nadda को भाजपा अध्यक्ष के बतौर 5 चुनौतियों का सामना करना ही होगा
लंबे इंतेजार के बाद JP Nadda को BJP का अध्यक्ष बनाया गया है. चूंकि ये भाजपा के लिए एक निर्याणक समय है और आगे कई राज्यों में चुनाव भी होने हैं इसलिए नड्डा को एकसाथ कई मोर्चों पर जंग लड़कर PM Modi और देश के गृहमंत्री Amit Shah को Khush करना होगा.
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प्रतीक्षा और कयासों को विराम देते हुए भाजपा ने जेपी नड्डा को अपना नया अध्यक्ष (JP Nadda new BJP president) चुना है. संघ से सामंजस्य बैठाने और चुनाव जीतने को मौजूदा अध्यक्ष की दो बड़ी चुनौतियों (JP Nadda challanges as BJP president) के रूप में देखा जा रहा है. इससे पहले भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah ex president of BJP) थे और अपने पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने ये दोनों ही काम बखूबी करे. तब की बातें और थीं अब की बातें अलग हैं. जेपी नड्डा ने बिलकुल समय में पदभार संभाला है इसलिए चुनाव जितवाना उनके लिए एक मुश्किलों भरा टास्क हो सकता है लेकिन नड्डा खुद आरएसएस (JP Nadda close aide of RSS) से आते हैं इसलिए उसे संभालने में उन्हें ज्यादा दुश्वारियों का सामना नहीं करना होगा. लंबे इंतजार के बाद नड्डा को पद तो मिल गया है मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उम्मीदों (PM Modi and Amit Shah) पर उनका खरा उतरना भी एक बड़े चैलेंज की तरह देखा जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ पार्टी मुख्यालय में जेपी नड्डा
अगर नड्डा के ट्रैक रिकॉर्ड पर गौर करें तो वो एक लो प्रोफाइल व्यक्ति हैं जिन्होंने उन मौकों पर पार्टी की मदद की है जब पार्टी को उनकी जरूरत थी. माना जा रहा है कि यही वो एक बड़ी वजह है जिसके चलते उनका सिलेक्शन पीएम मोदी और अमित शाह ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए किया.
14 राज्यों के चुनाव, 18 राज्यों में तैयारियां
नड्डा का शुमार पीएम मोदी और अमित शाह के विश्वासपात्रों में है जो पार्टी के अध्यक्ष की कुर्सी पर जनवरी 2023 तक बैठेंगे. इस समय तक देश के 14 राज्यों में चुनाव होंगे. बात वर्तमान की हो तो फ़िलहाल इन 14 में से 7 राज्यों में या तो भाजपा की सरकार है या फिर यहां भाजपा गठबंधन में है.
नड्डा का मौजूदा चैलेंज 1998 की ही तरह दिल्ली में भाजपा की सरकार बनवाना है. बात वर्तमान की हो तो वर्तमान सत्ता धरी दल आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को खासी परेशानियों में डाल रखा है. केजरीवाल सरकार को इस बात का विश्वास है कि वो अपनी नीतियों और किये गए काम के कारण सत्ता में धमाकेदार वापसी करेगी और दिलचस्प बात ये है कि मौजूदा वक़्त में केजरीवाल के इन दावों का कोई ठोस जवाब भारतीय जनता पार्टी के पास नहीं है.
वहीं बात अगर बिहार की हो तो बिहार में भी चुनाव है और इस चुनाव को खुद नड्डा की एक बड़ी परीक्षा की तरह देखा जा रहा है. बता दें कि बिहार ही वो जगह है जहां से नड्डा ने बतौर छात्र नेता पटना यूनिवर्सिटी से अपनी राजनीति की शुरुआत की जहां खुद उनके पिता वाइस चांसलर थे.
बिहार चुनाव इसलिए भी नड्डा की एक बड़ी परीक्षा के रूप में देखे जा रहे हैं क्योंकि यहां उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे राजनीति के पुरोधा से तो डील करना ही है साथ ही उनके सामने चुनौती राम विलास पासवान भी हैं जिन्होंने पार्टी को पुत्र चिराग पासवान को सौंप दिया है. बात अगर चिराग की हो तो पिता के मुकाबले उनका रवैया भाजपा के लिए सख्त है. बता दें कि जेडीयू नेताओं की एक बड़ी आबादी नीतीश कुमार के पक्ष में है तो वहीं यहां भाजपा की आक्रामकता भी देखने वाली है.
बिहार के बाद 2021 भी नड्डा के लिए सुखद नहीं है. बंगाल में चुनाव होने हैं. जैसा रुख बंगाल के प्रति वर्तमान में भाजपा का है साफ़ है कि पार्टी बंगाल के लिए खासी गंभीर है. इसलिए इस दुर्ग में भाजपा के परचम को लहराना नड्डा के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी के रूप में देखा जा रहा है. इसके अलावा असम में चुनाव होने हैं वहां भी भाजपा की राहें सुगम नहीं हैं. यहां नड्डा को एंटी इंकम्बेंसी को तोड़ना है. असम में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर प्रदर्शन गत दिसंबर से चल रहा है तो कहा यही जा रहा है कि असम में भाजपा के लिए चुनाव जीतना एक टेढ़ी खीर है.
ध्यान रहे कि चाहे मुख्यमंत्री सर्बनंदा सोनोवाल हों या फिर हिमन्त विश्व शर्मा दोनों ही नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जनता की तीखी आलोचना का सामना कर रहे हैं.बता दें कि नए कानून को लेकर असम के लोगों में खूब रोष है और यही वो कारण है कि खेलो इंडिया इवेंट के दौरान पीएम मोदी को अपना असम दौरा तक स्थगित करना पड़ा.
माना जा रहा है कि पार्टी अध्यक्ष का पद नड्डा के लिए कहीं ससे भी आसान नहीं है तमाम मोर्चे हैं जिनपर उन्हें जंग लड़नी है
इसके अलावा केरल, तमिलनाडु और पुदुच्चेरी वो राज्य हैं जहां 2021 में चुनाव होने हैं. 2022 में 7 राज्यों जिनमें 6 यानी गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है, चुनाव होने हैं. बात अगर राहत की हो तो शिरोमणि अकाली दल के कारण नड्डा को राहत केवल पंजाब विधानसभा चुनाव में मिलने वाली है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां शिरोमणि अकाली दल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच सीधा मुकाबला देखा जा रहा है.
नड्डा के पहले टर्म के ख़त्म होने के साथ ही 4 राज्यों मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड और कर्नाटक में चुनाव है. त्रिपुरा और कर्नाटक में चाहे सफलता हाथ लगे या फेl हों जो कुछ भी होता है उसके लिए नड्डा जिम्मेदार होंगे.
कई मोर्चों पर जंग लड़ रही है भाजपा
हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को बहुत सारे उलटफेर का सामना करना पड़ा है. हिंदी पट्टी के प्रमुख गढ़ में शुमार राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अजेय चली आ रही भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है. वहीं बात अगर पीएम मोदी और अमित शाह की भूमि गुजरात कि हो तो यहां भाजपा हारते हारते बची है. वहीं हरियाणा में भी जैसा प्रदर्शन भाजपा का रहा और जिस तरह इन्हें दुष्यंत चौटाला का समर्थन लेना पड़ा.
महाराष्ट्र में जैसे शिव सेना के साथ गठबंधन टूटा और जिस तरह का ड्रामा चला, गोवा में जो कुछ हुआ वो सब हमारे सामने हैं. जब स्थितियां ऐसी हों नड्डा का क्या हाल होगा किस तरह उन्हें काडर का रिव्यू करना होगा ये भी किसी से छुपा नहीं है. नड्डा के सामने चुनौती चुनाव जीतना है कैसे भी करके उन्हें हारी बाजियां जीतनी होंगी.
घटक दलों के साथ मधुर संबंध बनाना
बात बीते दिनों की है. महाराष्ट्र चुनाव में जिस तरफ का ड्रामा चला और जैसे भाजपा शिवसेना का 30 साल का गठबंधन टूटा उसने इस बात के साफ़ संकेत दे दिए हैं कि अभी भाजपा के लिए परिस्थितियां विषम चल रही हैं. महाराष्ट्र में भाजपा की भूमिका बड़े भाई की थी. माना जा रहा है महाराष्ट्र में बार बार की रोक टोक और भाजपा का खुद को सुप्रीम बताना शिव सेना को पसंद नहीं आया और यही वो कारण था जिसके चलते उसने गठबंधन तोड़ा.
नड्डा को जहां एक तरह चुनाव जितवाकर पार्टी को फायदा पहुंचाना है तो वहीं उनके लिए एक बड़ा टास्क मोदी लहर को बरक़रार रखना भी है
इसी तरह बात अगर झारखंड की हो तो वहां भी एजेएसयू ने गठबंधन तोड़ दिया और अपने को अलग कर लिया. बिहार में भी एनआरसी और सीएए को लेकर गतिरोध बना हुआ है. यानी कहा यही जा सकता है कि यदि भविष्य में भाजपा को बड़ी कामयाबी हासिल करनी है तो उसे अपने घटक दलों का भी ख्याल रखना होगा. अब चूंकि नड्डा पार्टी के नए मुखिया हैं तो देखना दिलचस्प रहेगा कि वो इसे कितना गम्भीरता से लेते हैं और इस दिशा में क्या करते हैं.
भाजपा को लेकर लोगों की धारणा बदलना
बात तक की है जब 2014 में पहली बार पीएम मोदी ने सत्ता की कमान अपने हाथों में ली थीं. पूर्व यूनियन मिनिस्टर अरुण शौरी ने भाजपा के बारे में बड़ा बयान दिया था और इसे गाय और कांग्रेस कहा था. शौरी का दावा था कि भाजपा और पीएम मोदी विकास के दावों को भूलकर केवल गायों की बातें कर रहे हैं. इसी तरह तमाम नेता और थे जिन्होंने तब भाजपा को लेकर बड़ा हमला किया था.
तब जो आरोप भाजपा पर लगे थे अगर उनका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि विपक्ष का यही कहना था कि भाजपा विकास को पीछे करके हिंदुत्व का एजेंडा चला रही है. यही वो एजेंडा है जिससे भाजपा अपना पीछा कभी नहीं छुड़ा पाई. पूर्व में तमाम मौके ऐसे आए हैं जब भाजपा ने देश को बताया कि वो एक हिंदूवादी पार्टी है. इस समस्या को भी नड्डा के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा सकता है.
बड़ा सवाल ये है कि आने वाले वक़्त में या ये कहें कि अपने पांच साल के कार्यकाल में क्या नड्डा इस धारणा को बदल पाएंगे ? क्या नड्डा लोगों को ये बता पाएंगे की भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो हर मायनों में सबका साथ सबका विकास पर अपना ध्यान केंद्रित किये हुए है? नड्डा इस धारणा को बदलने में कितना कामयाब होते हैं इसका फैसला वक़्त करेगा मगर इस दिशा में काम उन्हें अभी से शुरू कर देना चाहिए.
मोदी लहर को बरक़रार रखना
2014 ससे लेकर अब तक चाहे वो विधानसभा चुनाव रहे हों या फिर लोकसभा चुनाव इस बात में कोई शक नहीं है कि भाजपा के प्रचंड बहुमत की एक बहुत बड़ी वजह पीएम मोदी हैं. पूर्व में तमाम मौके ऐसे आए हैं जब पीएम मोदी की इस अदा ने बड़े से बड़े पॉलिटिकल पंडितों के माथे पर चिंता के बल दिए हैं.
बात अगर 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की ही हो तो भाजपा का 303 सीटें जीतना खुद इस बात की तस्दीख का देता है कि ये मोदी लहर का ही असर है जिसके कारण आज भाजपा इस मुकाम पर है.नड्डा को इस धारणा को या ये कहें की इस मोदी लहर को बरक़रार रखना होगा.
हमें इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं है कि नड्डा को बड़ी जिम्मेदारियां दी गई हैं और जैसा उनका ट्रैक रिकॉर्ड है. हमें इस बात की भी उम्मीद है कि वो पीएम मोदी और अमित शाह की उन उम्मीदों को कायम रखेंगे. जिनका उद्देश्य भाजपा को नंबर 1 के पायदान पर बरक़रार रखना है.
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