Jyotiraditya Scindia ने तो शिवराज सिंह को सिर्फ नाम का मुख्यमंत्री बना कर रखा दिया!
मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार (MP Cabinet Expansion) के बाद ऐसा लग रहा है जैसे शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) नाममात्र मुख्यमंत्री हों. दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के समर्थकों का दबदबा इतना हो गया है जितना कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में भी नहीं था.
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"आज... खुश तो बहुत होगे तुम!" - ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के बारे में सोच कर फिल्म दीवार में अमिताभ बच्चन का ये डायलॉग कमलनाथ तो याद कर ही रहे होंगे, राहुल गांधी भी ऐसा ही सोच रहे होंगे - और तो और शिवराज सिंह चौहान के मन में भी कुछ कुछ ऐसे ही विचार शोर मचा रहे होंगे.
और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी खुशी का इजहार सरेआम किया. मन की भड़ास निकाल कर. दरअसल, कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को गद्दार साबित करने पर तुले हुए हैं और उपचुनावों में भी लोगों के बीच इसे मुद्दा बनाने की तैयारी है.
राजभवन से बाहर निकलने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मीडिया से बात की और बीजेपी ज्वाइन करने के बाद से पहली बार पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का नाम लेकर बोले - मैं तीन महीने तक शांत रहा हूं, लेकिन कांग्रेस के लोग मेरी छवि धूमिल करते रहे हैं.
सिंधिया ने कह दिया कि मुझे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है. देश की जनता के सामने तथ्य है कि इन लोगों ने किस तरह से प्रदेश का भंडार लूटा है. वादाखिलाफी का लोगों ने इतिहास देखा है. समय आएगा तो मैं जवाब दूंगा. दोनों को मैं यहीं कहना चाहता हूं - 'टाइगर अभी जिंदा है.'
सही बात है. अभी तो ये कहा ही जा सकता है. कांग्रेस में रहते डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए तरस गये ज्योतिरादित्य सिंधिया के कमलनाथ सरकार में सिर्फ 6 विधायक मंत्री बन पाये थे, शिवराज सरकार (Shivraj Singh Chauhan) में सिंधिया खेमे के 11 नेता मंत्री (MP Cabinet Expansion) बन चुके हैं.
शिवराज सरकार में सिंधिया का दबदबा
अगर किसी राज्य सरकार की कैबिनेट में मुख्यमंत्री के करीबी विधायकों से ज्यादा किसी अन्य नेता के खेमे के विधायकों का नंबर हो तो क्या समझा जाना चाहिये - जो भी समझा जाये फिलहाल मध्य प्रदेश में यही हाल है. शिवराज सिंह की कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री पर भारी पड़ रहे हैं.
मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में भूपेंद्र सिंह, जगदीष देवड़ा, विश्वास सारंग और विजय शाह - सिर्फ ये चार विधायक हैं जो शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं. चाह कर भी शिवराज सिंह चौहान अपनी पसंद के किसी पांचवे विधायक को मंत्री बनाने की मंजूरी बीजेपी आलाकमान से नहीं ले पाये.
असल में मध्य प्रदेश बीजेपी के नेताओं ने अपनी तरफ से संभावित मंत्रियों की जो सूची बनायी थी उसमें अलग अलग गुटों और क्षत्रपों का पूरा ख्याल रखा था, लेकिन दिल्ली दरबार में उसे खारिज कर दिया गया. फिर नये सिरे से लिस्ट तैयार की गयी और उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को पूरी तरजीह दी गयी.
समर्थकों को सिंधिया ने मंत्री तो बनवा दिया - अब विधायक भी बनवाना होगा!
असल में बीजेपी के लिए अब भी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात उपचुनाव में जीत हासिल करना है. जीत की जिम्मेदारी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ही है. लिहाजा दिल्ली में मध्य प्रदेश बीजेपी के नेताओं से साफ साफ बोल दिया गया कि सिंधिया के समर्थक विधायकों को जो भरोसा दिया गया है उससे समझौते का सवाल ही पैदा नहीं होता.
ऐसे में शिवराज सिंह के पसंदीदा चार विधायकों के मुकाबले सिंधिया के 11 समर्थकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया - इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राज्यवर्धन सिंह, बृजेंद्र सिंह यादव, ओपीएस भदौरिया, गिरिराज दंडोतिया और सुरेश धाकड़. तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत तो पहले ही कैबिनेट में शामिल हो चुके थे.
उपचुनाव में सबसे ज्यादा सीटें ग्वालियर-चंबल की होंगी, जिन्हें सिंधिया परिवार का गढ़ माना जाता है. यहां की 16 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. यही वजह है कि इलाके से आने वाले 8 नेताओं को मंत्री बनाया गया है.
क्या शिवराज सिंह साजिश के शिकार है
देखा जाये तो ये ज्योतिरादित्य सिंधिया ही हैं जिनकी बदौलत मध्य प्रदेश में बीजेपी करीब सवा साल बाद ही सत्ता में वापसी करने में कामयाब हो पायी है. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि शिवराज सिंह चौहान भी सिंधिया के चलते ही फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में सफल हो पाये हैं.
हाल ही में बीजेपी के एक पूर्व विधायक ने ये आरोप लगा कर सनसनी फैला दी थी कि कैलाश विजयवर्गीय, शिवराज सिंह सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं. एमपी राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष रह चुके भंवर सिंह शेखावत का आरोप है कि कैलाश विजयवर्गीय ने बागियों की मदद से 2018 में बीजेपी को हरवाने की कोशिश की थी. कैलाश विजयवर्गीय मध्य प्रदेश बीजेपी के कद्दावर नेता हैं और फिलहाल पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रभारी हैं. अब प्रदेश बीजेपी नेतृत्व ने शेखावत को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
शेखावत 2018 में धार जिले की बदनवार सीट से चुनाव हार गये थे - और अब उसी सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है.
क्या वाकई शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ किसी तरह की साजिश चल रही है?
मंत्रिमंडल विस्तार के ऐन पहले शिवराज सिंह ने विष पीने की बात की थी और उनके ट्वीट भी छिपे हुए गहरे अर्थ वाले लगते हैं. शिवराज सिंह ने कहा कि समुद्र मंथन से जो विष निकलता है उसे भगवान शंकर पी जाते हैं और अमृत सभी में बंटता है - और फिर ट्विटर पर भी शिवराज सिंह चौहान ने कुछ ऐसी ही पीड़ा शेयर की.
आये थे आप हमदर्द बनकर,रह गये केवल राहज़न बनकर।
पल-पल राहज़नी की इस कदर आपने, कि आपकी यादें रह गईं दिलों में जख्म बनकर।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) June 30, 2020
किसी गुमनाम शख्स को टारगेट करते इस ट्वीट से करीब तीन घंटे पहले शिवराज सिंह चौहान ने एक और ट्वीट किया जिसमें वैसी ही भावनाओं का प्रवाह लगता है और दोहरे अर्थ भी छिपे हुए लगते हैं - हालांकि, ये ट्वीट शिवराज सिंह ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ट्वीट पर टिप्पणी के साथ किया है.
यूं ही दिल खोलकर आप बात करें, कभी अपनों से भी सवाल करें।
आपको रहज़नों से गिला है तो, 'अपने यार रहज़नों' से आप कुछ तो सवाल करें। https://t.co/qeZojOkRhS
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) June 30, 2020
शिवराज सिंह के बयान और ट्वीट से ये तो साफ है कि उनके मन में किसी बात को लेकर काफी मलाल है - और मंत्रिमंडल विस्तार के बाद तो इस दर्द के दायरे में ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा भी थोड़ा थोड़ा नजर आ रहा है.
सच तो यही है कि शिवराज सिंह चौहान कोई कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की तरह कुर्सी नहीं हासिल किये हैं, बल्कि हालात ही कुछ ऐसे थे कि बीजेपी नेतृत्व किसी दूसरे नेता के नाम पर जोखिम उठाने का फैसला नहीं ले पाया. 2014 में केंद्र की सत्ता में पहुंचने के बाद से ही बीजेपी के नये नेतृत्व को जो नेता खटकते रहे, उनमें शिवराज सिंह चौहान भी शामिल रहे, लेकिन रिस्क फैक्टर कोई भी कदम बढ़ाने से रोक देता रहा. 2018 में जब शिवराज सिंह चुनाव हार गये तो अमित शाह को मौका मिल गया और तत्काल प्रभाव से शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी का उपाध्यक्ष बनाकर दिल्ली अटैच कर दिया गया. शिवराज सिंह ने काफी कोशिश की कि उनको मध्य प्रदेश में ही रहने दिया जाये लेकिन कौन सुने.
जहां तक सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने का सवाल है तो शिवराज सिंह चौहान से एक मुलाकात तो जरूरी समझी ही गयी होगी क्योंकि सारी डील तो किसी और कनेक्शन से हुई थी - और कमलनाथ सरकार गिराने के वादे के साथ ही इस बातचीत की शुरुआत भी हुई होगी. अब जब तक उपचुनाव नहीं हो जाता, सिंधिया के मन माफिक ही चीजें चलेंगी, शिवराज सिंह चौहान की बातें अभी तो खास मायने नहीं ही रखतीं.
ऐसा भी नहीं कि सिर्फ शिवराज सिंह चौहान ही मंत्रिमंडल विस्तार से दुखी हैं, करीब करीब सारे क्षत्रपों का हाल एक जैसा ही है. नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा तक को शिवराज सिंह की ही तरह मन मसोस कर रह जाना पड़ा है. बाकी लोग तो चुप ही रहे, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती तो खुद को रोक भी नहीं पायीं.
उमा भारती ने मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन मंत्री सुहास भगत और राज्य प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे को पत्र लिख कर अपनी नाराजगी जाहिर की है. उमा भारती ने साफ-साफ लिखा है - 'मुझे पीड़ा हुई क्योंकि कैबिनेट विस्तार के बारे में मेरे सभी सुझावों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया.'
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