क्या राहुल गांधी और कमल नाथ के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा?
कमल नाथ का कहना था, "मैंने बहुत सारे अविश्वास प्रस्ताव देखे हैं पिछले अड़तीस साल में, मुझे इसका पूरा अनुभव है. यदि अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस का वरिष्ठतम सांसद नहीं है तो नहीं है".
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कुछ दिन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की कार्य समिति का पुनर्गठन किया. इस समिति में युवा और अनुभवी, दोनों को सम्मलित करने का प्रयास किया गया. फिर भी कुछ दिग्गज़ नेता, जिनकी पार्टी में तूती बोलती थी, उन्हें कांग्रेस कार्य समिति में जगह नहीं मिल सकी. ऐसे ही एक नेता मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ हैं.
इस फेरबदल से शायद कमल नाथ खुश नहीं हैं, तभी उन्होंने शुक्रवार को पार्टी की ओर से व्हिप जारी होने के बावजूद लोक सभा में चल रहे अविश्वास प्रस्ताव में भाग लेना उचित नहीं समझा. कमल नाथ ने मध्य प्रदेश को अपनी प्राथमिकता बताते हुए, अविश्वास प्रस्ताव में भाग लेने से साफ-साफ मना कर दिया. कमल नाथ का कहना था, "मैंने बहुत सारे अविश्वास प्रस्ताव देखे हैं पिछले अड़तीस साल में, मुझे इसका पूरा अनुभव है. यदि अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस का वरिष्ठतम सांसद नहीं है तो नहीं है".
संसद में एक तरफ जहां राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो दो हाथ-हाथ करने का प्रयास कर रहे थे, तो दूसरी ओर कांग्रेस के मध्य प्रदेश अध्यक्ष अपने बयान से विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के महत्व को ही कम कर रहे थे. अभी कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए आमने सामने आ गए थे.
राहुल गांधी ने अभी तक अपनी पार्टी की ओर से मध्य प्रदेश के आगामी चुनावों के लिए मुख्यमंत्री के पद का कोई दावेदार घोषित नहीं किया है. दूसरी ओर कमल नाथ की कांग्रेस कार्य समिति से छुट्टी भी कर दी गई है. अविश्वास प्रस्ताव में कमल नाथ की अनुपस्थिति के पीछे यही दोनों कारण नज़र आते हैं.
कमल नाथ यदि इसी प्रकार कांग्रेस के केंद्रीय नेतृव के आदेशों की अवमावना करते रहेंगे तो अवश्य ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर इसका बुरा असर पड़ेगा. यह बात जग ज़ाहिर है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस के तीन गुटों में वर्चस्व की दोस्ताना लड़ाई चलती रहती है. कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के समर्थक अपने अपने नेताओं को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं. ऐसे में यदि कमल नाथ जैसे बड़े नेता राहुल गांधी के निर्णयों का खुलेआम असमर्थन करेंगे तो पार्टी किस प्रकार आगामी चुनावों में भाजपा का सामना करेगी? राहुल को इस बात का एहसास होगा कि यह छोटी सी घटना, एक बड़े विवाद को जन्म दे सकती है.
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