बेतुके बयान: कंगना रनौत को टक्कर दे रही हैं सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह की बातें!
सही और सटीक बयानों के मुकाबले वो बयान हाथों हाथ लिए जाते हैं जो विवादित हों. ऐसे में चुनाव पूर्व विवादित बयानों की शुरुआत हो गयी है और अपने बेतुके बयानों के लिए मशहूर कंगना रनौत को सीधी टक्कर देने के लिए सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह मैदान में आ गए हैं.
-
Total Shares
सोशल मीडिया वाले इस दौर में व्यक्ति के लिए दिखना जरूरी है. दिखने की सबसे बड़ी शर्त है कुछ ऐसा कहना जिसके चलते इंसान सुर्खियों में आ सके. देश के कई राज्यों में चुनाव है और जब माहौल चुनावमय हो तो बयानों का आना लाजमी है. बयान अच्छे हों ये जरूरी नहीं. यूं भी सही और सटीक बयानों के मुकाबले वो बयान हाथों हाथ लिए जाते हैं जो विवादित हों. ऐसे में चुनाव पूर्व विवादित बयानों की शुरुआत हो गयी है और अपने बेतुके बयानों के लिए मशहूर कंगना रनौत को सीधी टक्कर देने के लिए सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह मैदान में आ गए हैं. शुरुआत कंगना से. एक कार्यक्रम के दौरान आजादी पर बयान देते हुए कंगना की जुबान फिसल गई है और उन्होंने ऐसा बहुत कह दिया है जिसने विवादों का श्रीगणेश कर दिया है? दरअसल, कंगना ने बयान दिया था कि 1947 में मिली आजादी भीख थी, देश को असली आजादी तो साल 2014 में मिली.
एक प्रोग्राम के दौरान अपने मन की बात करते हुए कंगना ने कहा है कि सावरकर, रानी लक्ष्मीबाई, नेता सुभाषचंद्र बोस इन लोगों की बात करूं तो ये लोग जानते थे कि खून बहेगा लेकिन ये भी याद रहे कि हिंदुस्तानी-हिंदुस्तानी का खून न बहाए. उन्होंने आजादी की कीमत चुकाई, यकीनन. पर वो आजादी नहीं थी वो भीख थी. जो आजादी मिली है वो 2014 में मिली है.
चाहे कंगना रनौत हों या फिर दिग्विजय और खुर्शीद बेतुके बयानों के मामले में सब एक जैसे हैं
ध्यान रहे कंगना के इस बयान के बाद आलोचना का दौर शुरू हो गया है. कंगना के इस बयान ने तमाम लोगों की तरह अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा की भी भावना को आहत कर दिया है. उन्होंने भी कंगना का वीडियो ट्वीट करते हुए साथ में लिखा, 'मणिकर्णिका का रोल निभाने वाली आर्टिस्ट आज़ादी को भीख कैसे कह सकती है!!! लाखों शहादतों के बाद मिली आज़ादी को भीख कहना कंगना रनौत का मानसिक दीवालियापन है.
By calling freedom of 1947 as BHEEKH, Kangana Ranaut has insulted not just the whole nation but also martyrdom of countless IndiansThese words from an artist who played Manikarnika are shocking!I wonder if there is any cure/medicine for her stupid blabbering@ANI @TimesNow pic.twitter.com/W5L7ihzz3m
— Manjinder Singh Sirsa (@mssirsa) November 11, 2021
जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं अपने बयान से कंगना ने कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद के बयानों को टफ कम्पटीशन दिया है तो हमारे लिए भी ये जरूरी हो जाता है कि हम जानें कि आखिर माजरा है क्या?
दरअसल पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक किताब लिखी है. किताब का बैकड्रॉप अयोध्या है. एक ऐसे वक़्त में जब अयोध्या और राम मंदिर भाजपा के लिए एक बहुत जरूरी मुद्दा हो कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने क्या सोचकर किताब लिखी होगी इस बात से पूरी दुनिया वाकिफ है. इसी किताब के विमोचन में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
पुस्तक विमोचन के दौरान दिग्विजय ने ऐसा बहुत कुछ कह दिया जो शायद ही किसी को पचे. दिग्विजय ने सावरकर को मुद्दा बनाया और दावा किया है कि सावरकर, गाय को माता कहने के खिलाफ थे. प्रोग्राम में दिग्विजय सिंह ने ये भी कहा कि ‘हिंदुत्व’ शब्द का हिंदू धर्म और सनातनी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है.
वहीं उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि, 'आज कहा जाता है कि हिंदू धर्म खतरे में हैं. 500 साल के मुगल और मुसलमानों के शासन में हिंदू धर्म का कुछ नहीं बिगड़ा. ईसाइयों के 150 साल के राज में हमारा कुछ नहीं बिगड़ा, तो अब हिंदू धर्म को खतरा किस बात का है'. कोई विवाद न हो और बात वजनदार लगे इसलिए दिग्विजय सिंह ने ये भी कहा कि खतरा केवल उस मानसिकता और कुंठित सोची समझी विचारधारा को है जो देश में ब्रिटिश हुकूमत की ‘फूट डालो और राज करो’ की विचारधारा थी.
उसको प्रतिवादित कर अपने आप को कुर्सी पर बैठाने का जो संकल्प है, खतरा केवल उन्हें है. समाज और हिंदू धर्म को खतरा नहीं है. चूंकि दिग्विजय शुरू हो गए थे इसलिए उन्होंने बीफ खाने को लेकर भी अपने विचार साझा किये. दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि सावरकर बीफ खाने को गलत नहीं मानते थे. सावरकर के हवाले से दिग्विजय ने कहा कि, सावरकर धार्मिक नहीं थे. उन्होंने यहां तक कहा था कि गाय को माता क्यों मानते हो. बीफ खाने में कोई दिक्कत नहीं है. वह हिंदू पहचान स्थापित करने के लिए ‘हिंदुत्व’ शब्द लाए, जिससे लोगों में भ्रम फैल गया.
दिग्विजय के अनुसार हिन्दुत्व मूल सनातनी परंपराओं और विचारधाराओं के विपरीत है. प्रोग्राम सलमान खुर्शीद का था और अयोध्या से जुड़ा था इसलिए दिग्विजय सिंह को भी आरएसएस को आड़े हाथों लेने का स्कोप दिखा और उन्होंने ये तक कह दिया कि,'प्रचारतंत्र में संघ से जीतना बहुत मुश्किल है. क्योंकि अफवाह फैलाना और अफवाह को आखिरी दम तक ले जाना उनसे बेहतर कोई नहीं जानता है. आज के युग में जहां सोशल मीडिया और इंटरनेट है, ये उनके हाथ में ऐसा हथियार आ गया है, जोकि अकाट्य साबित होता चला रहा है”.
इसके अलावा भी दिग्विजय ने ऐसी तमाम बातें की हैं जो इस बात की तस्दीख कर देती हैं कि जो कुछ भी उन्होंने कहा है वो सिर्फ और सिर्फ पब्लिसिटी पाने के लिए कहा है. व्यर्थ की पब्लिसिटी कैसी होती हैं और इसकी चुनौतियां क्या होती हैं इसे कंगना और दिग्विजय समझें न समझें अयोध्या पर लिखी पुस्तक का विमोचन कराने वाले सलमान खुर्शीद जरूर समझ गए होंगे जिन्होंने हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हरम जैसे आतंकी संगठनों से कर एक नयी डिबेट का शुभारम्भ कर दिया है.
गौरतलब है कि सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर लिखी है. खुर्शीद ने अपनी किताब में एक तरफ अयोध्या पर फैसले को सही ठहराते हुए इस मुद्दे से आगे बढ़ने की सलाह दी है तो दूसरी तरफ उन्होंने इसमें हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हरम जैसे आतंकी संगठनों से कर दी है. मामले का तूल पकड़ना ही था बुक लांच के बाद 24 घंटे से भी कम समय में खुर्शीद के खिलाफ दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज हो गई है. खुर्शीद पर हिंदुत्व को बदनाम करने का आरोप लगाया गया है.
किताब में सलमान खुर्शीद ने कहा है कि 'हिंदुत्व का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए होता है, चुनाव प्रचार के दौरान इसका ज्यादा जिक्र किया जाता है.' किताब में उन्होंने कहा कि 'सनातन धर्म या क्लासिकल हिंदुइज्म को किनारे करके हिंदुत्व को आगे बढ़ाया जा रहा है.' किताब में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हरम जैसे आतंकी संगठनों से करते हुए खुर्शीद ने इस बात पर बल दिया है कि हिंदुत्व साधु-सन्तों के सनातन और प्राचीन हिंदू धर्म को किनारे लगा रहा है, जो कि हर तरीके से आईएसआईएस और बोको हरम जैसे जिहादी इस्लामी संगठनों जैसा है.
अपने द्वारा लिखी किताब में हिंदुत्ववादी राजनीति के प्रभाव की चर्चा भी सलमान खुर्शीद ने की है. किताब में सलमान ने लिखा है कि, 'मेरी अपनी पार्टी, कांग्रेस में, चर्चा अक्सर इस मुद्दे की तरफ मुड़ जाती है. कांग्रेस में एक ऐसा तबका है, जिन्हें इस बात पर पछतावा है कि हमारी छवि अल्पसंख्यक समर्थक पार्टी की है. यह तबका हमारी लीडरशीप की जनेऊधारी पहचान की वकालत करता है.
बहरहाल एक ऐसे समय में जब हिंदू मुस्लिम की राजनीति और इस राजनीति के चलते उपजी नफरत हमारे सामने हो चाहे वो कंगना हों या फिर दिग्विजय और खुर्शीद साफ़ है कि इन तीनों ही लोगों की बातें आग बुझाने वाली न होकर आग लगाने वाली हैं और इन्हें किसी भी कीमत पर जस्टिफाई नहीं किया जा सकता.
खैर एक ऐसे समय में जब मूर्खता अपने जोरों पर हो और मौके बेमौके उसे सम्मानित किया जा रहा हो. हमें किसी भी व्यक्ति विशेष के बयान पर हैरत इसलिए भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये दौर सोशल मीडिया का है. दिखकर बिकने का है. यूं भी कहा गया है कि बदनाम होंगे तो क्या हुआ क्या नाम नहीं होगा.
ये भी पढ़ें -
...तो कंगना रनौत जी, भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी भी गुलाम भारत के ही प्रधानमंत्री हुए ना!
सलमान खान के बहनोई की 'अंतिम' कितनी ही महान क्यों ना हो, अब तक जॉन अब्राहम के हाथ में ही है!
सिर्फ एक ट्वीट से फडणवीस ने साबित किया कि यदि नवाब मलिक सेर हैं तो वो सवा सेर!
आपकी राय