कन्हैया कुमार BJP की नजर में 'एंटी-नेशनल' हैं, और राहुल को ये पसंद है!
कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को भी कांग्रेस में लाने का फैसला राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए वैसा ही जोखिमभरा है जैसा नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का मामला है, लेकिन मोदी विरोधी अपने मुहिम में राहुल गांधी ये सब ही अच्छा लगता है.
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कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को कांग्रेस में दाखिला दिलाने के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) केरल चले गये. जाना भी पहले से ही तय रहा, वैसे भी पंजाब को लेकर दिल्ली में काफी तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है, जबकि चंडीगढ़ में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) नियंत्रण से बाहर जा चुके हैं - और छत्तीसगढ़ से भी दर्जन भर विधायक सिद्धू जैसी ही मुख्यमंत्री बदलने की डिमांड लिए धावा बोल चुके हैं.
सिद्धू तो चंड़ीगढ़ में कांग्रेस का बेड़ा गर्क करने में जुटे हुए हैं ही, दिल्ली में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह आये तो थे कपूरथला हाउस से अपने सामान ले जाने, लेकिन मौका देख कर अमित शाह से मिल भी लिये. पहले ही कह चुके थे कि वो सिर्फ दोस्तों से मिलेंगे कोई राजनीतिक मुलाकात नहीं होगी, लेकिन तब ये नहीं मालूम था कि अमित शाह से उनकी राजनीतिक जान पहचान ही नहीं बल्कि पक्की दोस्ती भी है.
कन्हैया कुमार को लेकर खबरें तो पहले से ही आ रही थीं, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी की मौजूदगी में कांग्रेस ज्वाइन पर कर लिये. जिग्नेश मेवाणी तकनीकी कारणों से कांग्रेस की सदस्यता नहीं ले पाये हैं, लेकिन प्रॉमिस किया है कि अगला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर ही लड़ेंगे. फिलहाल वो गुजरात में निर्दलीय विधायक हैं और चुनाव के दौरान कांग्रेस के सपोर्ट से जीतने में कामयाब रहे.
गुजरात में 2017 में कांग्रेस और कांग्रेस में राहुल गांधी के उभार में जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल सहित तीन युवा नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही, लेकिन तीसरे नेता अल्पेश ठाकोर को ही राहुल गांधी सबसे पहले कांग्रेस में लाने में सफल हो पाये थे - लेकिन सफलता को वो बहुत दिन तक समेट नहीं पाये क्योंकि अल्पेश ठाकोर बीजेपी में चले गये. अब तो बीजेपी में भी अपनी उपेक्षा से वो नाराज चल रहे हैं और अपने स्तर पर राजनीति में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के साथ ही अब कन्हैया कुमार भी कांग्रेस का हिस्सा बन गये हैं, लेकिन इसके साथ ही राहुल गांधी सहित पूरा गांधी परिवार पार्टी के G-23 नेताओं के निशाने पर आ गया है - कांग्रेस के भीतर से ही सवाल उठाया जा रहा है कि जब कांग्रेस के पास कोई अध्यक्ष है ही नहीं तो फैसले कौन ले रहा है? साथ ही, सोनिया गांधी को नये सिरे से पत्र लिख कर CWC की अर्जेंट मीटिंग बुलाने की मांग की गयी है.
कन्हैया कुमार से पहले ही जब प्रशांत किशोर को कांग्रेस में लाने की चर्चा शुरू हुई थी तब भी कपिल सिब्बल जैसे G-23 नेताओं ने बहाने से विरोध शुरू किया था, लेकिन कन्हैया कुमार के विरोध के लिए नया बहाना ढूंढ निकाला गया है - कांग्रेस छोड़ कर जा रहे नेताओं के बहाने से.
कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने पर बीजेपी की तरफ से कई रिएक्शन आये हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने अपने तरीके से सहानुभूति प्रकट की है, "मैं समझता हूं कि कोई अगर गटर से निकले - और नाले में जाकर गिरे तो उसके प्रति सहानुभूति हो सकती है... बस."
बीजेपी कन्हैया कुमार को टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य बताती रही है और लगता है, राहुल गांधी की नजर में कन्हैया कुमार का सबसे मजबूत पक्ष यही है. सीपीआई से कांग्रेस नेता बन चुके कन्हैया कुमार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति विरोधी तेवर काफी आक्रामक होते हैं - और राहुल गांधी को यही सबसे ज्यादा पसंद है.
वे कौन थे जो चले गये?
राहुल गांधी को G-23 नेता कपिल सिब्बल अक्सर ही कठघरे में खड़ा करते रहे हैं, लेकिन इस बार ज्यादा पर्सनल लगता है. पहले कपिल सिब्बल कांग्रेस नेतृत्व की बात किया करते थे - कांग्रेस नेतृत्व मतलब पूरा गांधी परिवार.
पूरे गांधी परिवार को तो कपिल सिब्बल ने एक बार फिर निशाना बनाया है लेकिन राहुल गांधी पर तो ऐसे कटाक्ष किया है जैसा कोई भी कांग्रेस नेता अब तक शायद ही किया हो या करने के बारे में सोचा भी हो.
कपिल सिब्बल का सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब कांग्रेस के पास कोई अध्यक्ष ही नहीं है तो फैसले कौन ले रहा है? ये सवाल पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को कमान सौंपने से लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह का इस्तीफा मांग लेने और चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाये जाने तक को लेकर भी लगता है - और कन्हैया कुमार को कांग्रेस की सदस्यता दिलाने तक.
कन्हैया कुमार और राहुल गांधी दोनों का एक-दूसरे से हाथ मिलाना भी काफी जोखिमभरा है!
सवाल से तो यही लगता है जैसे कपिल सिब्बल पूछना चाहते हों कि राहुल गांधी जब महज एक सांसद और कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य हैं तो ये सब फैसले कैसे ले सकते हैं? जहां तक प्रियंका गांधी वाड्रा का सवाल है, वो भी महज कांग्रेस महासचिव हैं, लेकिन उनकी क्या भूमिका होती है? और सोनिया गांधी तो अब भी अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष हैं - अंतरिम जैसे कार्यवाहक या कामचलाऊ और ऐसी सूरत में फैसले लेने के अधिकार तो कांग्रेस कार्यकारिणी के पास ही हैं.
और यही वजह है कि कपिल सिब्बल के एक्शन में आते ही, G-23 की अगुवाई कर रहे गुलाम नबी आजाद ने ऐसे मामलों पर चर्चा के लिए सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कांग्रेस कार्यकारिणी की अर्जेंट मीटिंग बुलाने की मांग की है.
कपिल सिब्बल का गुस्सा तो कन्हैया कुमार को लेकर लगता है, लेकिन वो कांग्रेस छोड़ कर चलने जाने वाले नेताओं के बहाने राहुल गांधी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. सिब्बल का सवाल है, 'हम वो लोग नहीं हैं जो पार्टी छोड़कर कहीं और चले गए हों... ये विडंबना है कि जो उनके करीब थे, वे उन्हें छोड़कर चले गये - और जिनको वो अपने करीब नहीं मानते... वे आज भी साथ खड़े हैं.'
कपिल सिब्बल, दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और यूपी से कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे कमलापति त्रिपाठी के परिवार के ललितेशपति त्रिपाठी के बहाने राहुल गांधी से सवाल पूछ रहे हैं.
हालांकि, लगता यही है कि राहुल गांधी सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे युवा नेताओं की कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के जरिये भरपाई करने का प्रयास कर रहे हैं.
देखा जाये तो राहुल गांधी ऐसे सवालों के जवाब पहले ही दे चुके हैं - कांग्रेस के डरपोक नेता चले जायें और निडर नेताओं को बाहर से कांग्रेस में लाया जाये. जुलाई, 2021 में ही राहुल गांधी ने कांग्रेस की सोशल मीडिया सेल के स्वयंसेवकों के साथ मीटिंग में निडर नेताओं की जरूरत और अहमियत समझाने की कोशिश की थी.
राहुल गांधी का कहना रहा, 'कांग्रेस को निडर लोगों की जरूरत है, डरपोक नेताओं की नहीं... जो डरपोक हैं वे आरएसएस के आदमी हैं - वे कांग्रेस छोड़ कर चले जायें, ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है.'
असल में कन्हैया कुमार भी राहुल गांधी के फेवरेट नेताओं की लिस्ट में वैसे ही शुमार हो जाते हैं जैसे हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के अलावा तेलंगाना में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी और महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले. नवजोत सिंह सिद्धू को भी पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाये जाने के पीछे वही वजह रही जो बाकी नेताओं की खासियत है.
ये सारे नेता बड़े ही आक्रामक तरीके से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करते रहे हैं - और राहुल गांधी की नजर में ये सबसे बड़ी बात है. ऐसे नेताओं को ही राहुल गांधी निडर मानते हैं और संघ-बीजेपी की शरण में चले गये कांग्रेस नेताओं को भी डरपोक करार देते हैं.
तभी तो देशद्रोह के केस में अदालती ट्रायल का सामना कर रहे कन्हैया कुमार और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को दोस्त बताने के साथ ही पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से गले मिलने को लेकर बीजेपी के निशाने पर रहे नवजोत सिंह सिद्धू भी राहुल गांधी को पसंद आते हैं.
कन्हैया कुमार और नवजोत सिंह सिद्धू में कुछ बातें कॉमन होने के बावजूद कई चीजें काफी अलग हैं, लेकिन ये तो तय है कि सिद्धू के मामले में फजीहत झेल रहे राहुल गांधी को कन्हैया कुमार को लेकर भी बीजेपी के हमलों की बौछार झेलने के लिए तैयार हो जाना चाहिये.
कन्हैया कितने काम के हैं?
अब सवाल ये उठता है कि कन्हैया कुमार आखिर राहुल गांधी के कितने काम के साबित हो सकते हैं?
और सवाल ये भी उठता है कि कन्हैया कुमार के लिए भी कांग्रेस ज्वाइन करना कितना फायदेमंद हो सकता है?
हार्दिक पटेल से कांग्रेस को कितना फायदा हुआ और कांग्रेस को हार्दिक पटेल से सबके सामने है. अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में आये और चले भी गये, दोनों ही पक्षों को एक दूसरे से शायद ही कोई खास फायदा हुआ हो - और करीब करीब वैसे ही भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद का भी मामला लगता है जिनके प्रति अक्सर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की सहानुभूति नजर आती है, लेकिन ताजा हाल ये है कि वो शिवपाल यादव और असदुद्दीन ओवैसी के साथ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन के लिए जूझ रहे हैं.
ऐसे में जब कन्हैया कुमार कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं, कभी अपनी विचारधारा को लेकर तो कभी अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर अपनी पुरानी पार्टी सीपीआई नेताओं के निशाने पर हैं. कोई कह रहा है कि उनका लेफ्ट विचारधारा से कोई लगाव नहीं रहा तो कोई कह रहा है कि वो संसद पहुंचने की जल्दी में थे - लेकिन अगर कन्हैया कुमार की कोई महत्वाकांक्षा है तो उससे किसी को दिक्कत क्यों होनी चाहिये?
कन्हैया कुमार के बचपन की एक तस्वीर जब तक सामने आती रही है जिसमें वो दिग्गज लेफ्ट नेता एबी वर्धन के साथ मंच पर नजर आते हैं. कन्हैया कुमार बिहार के बेगूसराय से आते हैं और सीपीआई ने 2019 के आम चुनाव में उनको अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन अब उसी पार्टी के नेता उनकी हार के फासले को उछाल कर पार्टी को डूबो देने के आरोप लगा रहे हैं. बेशक सीपीआई नेताओं का ये दावा सही है कि पार्टी ने कन्हैया कुमार को सब कुछ दिया, लेकिन क्या कन्हैया कुमार से सीपीआई को कुछ भी नहीं मिला. अगर सीपीआई इतनी ही मजबूत है तो बिहार से लेकर बंगाल चुनाव तक उसका रिकॉर्ड खराब क्यों होता जा रहा है - और हां, अगर केरल की जीत का क्रेडिट लेने की कोई कोशिश है तो वो सिर्फ और सिर्फ पिनराई विजयन के नाम दर्ज हो चुकी है.
कांग्रेस के हिसाब से देखें तो कन्हैया और सिद्धू, मेवाणी, नाना पटोले या रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं में पहला फर्क तो ये है कि कन्हैया कुमार की राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान है और बाकियों की क्षेत्रीय स्तर पर. कांग्रेस में फिलहाल गांधी परिवार के तीन सदस्यों के अलावा कोई भी चौथा नेता नजर नहीं आता जो चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने की क्षमता रखता हो. क्षेत्रीय स्तर पर भले ही मध्य प्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में अशोक गहलोत या अपने अपने इलाके में सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार, दिग्विजय सिंह जैसे नेता जरूर हैं.
राहुल गांधी चाहें तो कन्हैया कुमार का राष्ट्रीय स्तर पर फायदा उठा सकते हैं और चुनावी रैलियों में साथ मंच शेयर कर सकते हैं, फायदा ही होगा. बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव के साथ या पांच साल पहले यूपी चुनाव में अखिलेश यादव के साथ भी राहुल गांधी का ऐसा ही अनुभव रहा है. हालांकि, दोनों के लिए एक दूसरे से हाथ मिलाने का फैसला भी जोखिमभरा ही लगता है.
बिहार के हिसाब से देखें तो कन्हैया कुमार के जरिये राहुल गांधी चाहें तो सवाल उठाने वाले तेजस्वी यादव के साथी नेताओं को मुंहतोड़ जवाब भी दे सकते हैं, लेकिन अगर लालू यादव से कांग्रेस को रिश्ता कायम रखना है तो तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार के बीच टकराव की नौबत आने से रोकना होगा क्योंकि लालू यादव को ये कभी बर्दाश्त नहीं होगा - और सोनिया गांधी के लिए लालू यादव अरसे से राहुल गांधी को बर्दाश्त करते आये हैं.
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