कन्हैया कुमार ने कांग्रेस ज्वाइन कर सोनिया को लालू की जरूरत खत्म कर दी है
सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और लालू यादव (Lalu Yadav) के बीच राजनीतिक रिश्ता काफी लंबा और मजबूत रहा है. अगर बीच में कन्हैया कुमार (Kanhiya Kumar) नहीं आये होते तो सब कुछ यूं ही चलता रहता - उपचुनाव में उम्मीदवार उतारने जैसी बातें तो बस बहाना भर हैं.
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बिहार की दो सीटों पर होने जा रहा उपचुनाव कांग्रेस और आरजेडी के बीच दंगल का रूप ले चुका है - और वो भी वोटिंग से पहले ही. बिहार में सत्ता पक्ष तो ऐसे खुश है जैसे पहले ही वॉक ओवर मिल गया हो.
कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास ने अपनी पार्टी के महागठबंधन से अलग होने की घोषणा कर डाली है. साथ में, ये भी साफ कर दिया है कि 2024 का लोक सभा चुनाव भी कांग्रेस अकेले दम पर लड़ेगी.
कांग्रेस की तरफ से महागठबंधन छोड़ने की वजह उपचुनावों को लेकर लालू यादव की पार्टी आरजेडी का स्टैंड बताया गया है - लेकिन लगता नहीं कि असल वजह वास्तव में भी यही है, बल्कि कांग्रेस और आरजेडी दोनों के अलग अलग राह पकड़ने का कारण कन्हैया फैक्टर है.
तेजस्वी यादव के लिए राजनीतिक प्रतियोगी समझते हुए लालू यादव (Lalu Yadav) अब तक हर कदम पर कन्हैया कुमार के विरोध में खड़े दिखायी पड़े हैं - और वो कतई नहीं चाहते थे कि कन्हैया कुमार को सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस में लें, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने परवाह न करते हुए ऐसा ही किया.
गुजरात के दो युवा नेताओं हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के साथ पटना पहुंचे कन्हैया कुमार (Kanhiya Kumar) का भाषण सुनने के बाद बहुत सारी बातें अपनेआप साफ हो जाती हैं - और ये भी समझ आता है कि सोनिया गांधी और लालू यादव की राजनीतिक राह तो तभी जुदा हो गयी थी जिस दिन कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने पर अंतिम मुहर लगी थी - औपचारिकताएं तो बाद की बात है. और अब जो दिखायी पड़ रहा है वो तो उसी का असर है.
भले ही दोनों दलों के बड़े नेताओं की तरफ से कुछ नहीं कहा गया हो, लेकिन लालू यादव और सोनिया गांधी का राजनीतिक रिश्ता टूट चुका है, ये साफ तौर पर समझ में आने लगा है - और इसकी एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि कन्हैया कुमार को कांग्रेस में लेने के बाद सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) समझने लगी हैं कि अब कांग्रेस को लालू यादव की जरूरत नहीं रही.
क्रिकेट में रिकॉर्ड की तरह राजनीति में रिश्ते टूटने के लिए ही बनते हैं
ये लालू यादव ही हैं जो सोनिया गांधी के पीछे मजबूत खंभे की तरह डटे रहे जब बीजेपी नेता उनके विदेशी मूल को लेकर हमलावर रहे - भले ही हाथ में पूरा मौका होते हुए भी बीजेपी के विरोध और कुछ अन्य खास वजहों से सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन पायीं, लेकिन उनको लालू यादव का एहसान हमेशा ढोते देखा गया. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाये जाने के बाद यूपीए की सरकार ने दागी नेताओं के बचाव के लिए एक ऑर्डिनेंस लाया था, जिसे फाड़ने को लेकर आज भी बीजेपी नेतृत्व हमलावर रहता है. दरअसल, वो ऑर्डिनेंस खास तौर पर लालू यादव के लीगल प्रोटेक्शन के लिए ही था. लालू यादव को चारा घोटाले में सजा काटने जेल जरूर जाना पड़ा लेकिन वो सोनिया गांधी के साथ खड़े रहे.
बिहार में कन्हैया कुमार के भरोसे बढ़ रही कांग्रेस को सिद्धू जैसे झटकों के लिए पहले से तैयार रहना होगा!
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व चाहता था कि राहुल गांधी के साथ लालू यादव मंच शेयर करें, लेकिन लालू यादव ने मना कर दिया, ये बोल कर कि तेजस्वी यादव और बाकी आरजेडी नेता लोग जाएंगे. लालू यादव को मनाने के लिए हरियाणा कांग्रेस के एक नेता को भी मिशन पर भेजा गया क्योंकि वो आरजेडी नेता के रिश्तेदार थे, लेकिन लालू यादव टस से मस नहीं हुए.
कन्हैया कुमार को कांग्रेस में न लेने की अपनी इच्छी की परवाह न किये जाने पर लालू यादव ने कांग्रेस को कम भाव देने का फैसला कर लिया था, लेकिन बात बहुत आगे बढ़ाने का मकसद नहीं रहा होगा. ऐसा इसलिए भी क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में बने रहने के लिए लालू परिवार को कांग्रेस की शिद्दत से जरूरत रही है, खास तौर पर बीजेपी के के केंद्र की सत्ता और बिहार में नीतीश कुमार के साथ सरकार बना लेने के बाद.
बिहार में उपचुनाव भले दो सीटों पर होने जा रहे हों, लेकिन टकराव कुशेश्वर स्थान सीट को लेकर ही हुआ है. कांग्रेस इसे अपनी परंपरागत सीट बताते हुए दावेदारी पेश कर रही थी, लेकिन लालू यादव के मन में तो गुस्सा भर चुका था. जब तारापुर के साथ साथ कुशेश्वर स्थान सीट पर भी आरजेडी के प्रत्याशी घोषित कर दिये गये तो सोनिया गांधी ने भी बिहार कांग्रेस के नेताओं को मनमानी करने की मंजूरी दे दी - ये होते ही स्थानीय स्तर पर दोनों तरफ के नेताओं की तरफ से बयानबाजी चालू हो चुकी थी और आखिर में भक्तचरण दास ने कांग्रेस के महागठबंधन के अलग होने की घोषणा ही कर डाली.
देखा जाये तो 2020 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत कुशेश्वर स्थान की सीट कांग्रेस के हिस्से में आयी थी, जबकि तारापुर विधानसभा सीट पर आरजेडी ने उम्मीदवार खड़े किये थे - लेकिन दोनों ही चुनाव हार गये. जीते जेडीयू विधायकों की कोरोना से मौत हो जाने के बाद दोनों सीटों पर 30 अक्टूबर को उपचुनाव हो रहे हैं. नतीजे 3 नवंबर को आएंगे.
अगला आम चुनाव भी बिहार की सभी 40 सीटों पर कांग्रेस के अकेले लड़ने की घोषणा करते हुए बिहार प्रभारी भक्तचरण दास कह रहे हैं कि बिहार में हम अब अपनी ताकत पर खड़े होंगे - और सिर्फ खड़े ही नहीं होंगे बल्कि आरजेडी से जमकर लड़ेंगे भी.
भक्तचरण दास तो कांग्रेस के महागठबंधन छोड़ने के फैसले के लिए भी आरजेडी को ही जिम्मेदार बताते हैं, 'हमने गठबंधन नहीं तोड़ा... लेकिन आरजेडी ने महागठबंधन धर्म का पालन नहीं किया... उपचुनाव में हम ताकत से लड़ रहे हैं... हमारे सभी नेता बिहार पहुंच चुके हैं - और जमकर चुनाव प्रचार करेंगे.'
भक्तचरण दास के ऐलान के बाद कांग्रेस और आरजेडी दोनों तरफ से नेता एक दूसरे के खिलाफ बोले चले जा रहे हैं - और मुख्यमंत्री दूर बैठे मजे ले रहे हैं. पूछे जान पर कहते हैं, 'ऊ जाने अपना जो करना हो, उसमें न हम लोगों को रुचि है ना दिलचस्पी है.'
बात उतने पर ही नहीं खत्म नहीं हो पाती और उपचुनाव के लिए कैंपेन के तहत लालू यादव के बिहार दौरे की तरफ नीतीश कुमार का ध्यान दिलाया जाता है तो जवाब होता है - ये सब... सवाल क्या है?
कांग्रेस नेतृत्व के भरोसे की वजह कन्हैया की भाषा बता रही है
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी अपने तमाम राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर आ गये थे - और उनके खिलाफ खुल कर कपिल सिब्बल और आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी दोनों ही अपनी अपनी स्टाइल में एक जैसी ही बातें करते हुए हमले बोल रहे थे. जाहिर है राहुल गांधी के साथ साथ सोनिया गांधी को भी बहुत बुरा लगा होगा, जबकि कांग्रेस के लिए ये एक छोटी सी चुनावी हार ही रही. 2014 के बाद का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो ऐसा ही लगता है.
तभी से कांग्रेस नेतृत्व को ऐसे नेताओं का मुंह बंद करने के लिए एक मुकम्मल जवाब की तलाश रही होगी - और ये पूरी हुई है कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन कर लेने के बाद. गुजरात के युवा नेताओं हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के साथ उपचुनावों में प्रचार के लिए पहुंचे कांग्रेस के स्टार कैंपेनर कन्हैया ने जिस तरीके से बगैर किसी का नाम लिए बिहार में आरजेडी की पॉलिटिक्स पर हमला बोला है, वो ये समझने के लिए काफी है कि क्यों राहुल गांधी और सोनिया गांधी को लगने लगा है कि अब कांग्रेस को लालू यादव की जरूरत नहीं रही.
कन्हैया कुमार ने एक ही झटके में कांग्रेस के सभी राजनीतिक विरोधियों से तीन दशक का हिसाब मांग लिया है, जाहिर में हमले का मेन फोकस तो लालू यादव ही हैं. बिहार में तीन दशक से कांग्रेस के हाथ में सत्ता का नेतृत्व नहीं है जिसमें 15 साल तो लालू-राबड़ी शासन ही है जिसे बीजेपी और नीतीश कुमार जंगलराज कहते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज करार दे चुके हैं.
पटना में कन्हैया कुमार लंबा चौड़ा भाषण देते हैं और कई मुद्दों की फेहरिस्त पेश करते हुए कहते हैं, '...30 साल में उन लोगों ने कांग्रेसी वोटर के लिए क्या किया... वो जवाब दें!'
उपचुनावों में कांग्रेस के खिलाफ आरजेडी के मैदान में उतरने को लेकर कन्हैया कुमार की दलील है, 'भाजपा के खिलाफ जो लड़ना चाहते हैं, वो कांग्रेस के साथ होंगे... जो ऐसा नहीं चाहते हैं, वो केवल गुणा-गणित करते रहेंगे - एक पढ़ा लिखा इंसान लठैत वाली भाषा बोलता है, ये दुख की बात है.'
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