Kargil Vijay Diwas: पाकिस्तान में क्या होता है ये भी जान लीजिए !
कारगिल युद्ध में पाक अधिकृत कश्मीर के गई गांव उजड़ गए. पाकिस्तानी सेना ने जो दुस्साहस दिखाया, उसका खामियाजा बेगुनाह लोगों को भुगतना पड़ा. और आज भी भुगत रहे हैं. इन उजड़े हुए लोगों को घर तो नहीं मिले. मिले तो झूठे वादे मिले, जो आज तक पूरे नहीं हुए.
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कारगिल का युद्ध जैनब बीबी की शादी के बाद 1999 में बसंत ऋतु में शुरू हुआ. वह बताती हैं- 'हम घर में थे. रात के करीब 8 बजे होंगे. हमने देखा कि पहाड़ियों पर शेल्स दागे जा रहे हैं. इसलिए हम बंकर वाली गुफाओं में चले गए.' जैनब का गांव गानोख सीमा रेखआ के उस पार पाकिस्तान में है और भारत-पाकिस्तान के उस बॉर्डर पर है जहां अक्सर दोनों देशों के बीच गोलीबारी होती है. 20 साल पहले पाकिस्तानी सेना के जनरल्स ने एक सीक्रेट ऑपरेशन की शुरुआत की, जिसका नतीजा हुआ कारगिल युद्ध. इसकी वजह से पाकिस्तान को काफी शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ी. इस लड़ाई में जैनब के और आस-पास के गांव के बहुत से लोगों ने अपने घर खो दिए. ऐसा ही सीमा के इस पार भारत में भी हुआ, लेकिन वह लोग लड़ाई खत्म होने के बाद वापस अपने घर जा सके.
वहीं दूसरी ओर सीमा के पार पाकिस्तान में अधिकारियों ने गांव वालों की मदद का वादा तो किया, लेकिन कभी उसे पूरा नहीं किया. बहुत से लोग इस वजह से पाकिस्तान में शरणार्थी कैंपों में रहने को मजबूर हैं. जैनब बताती हैं कि उस पहली रात के बाद गोलीबारी काफी बढ़ गई. जल्द ही जैनब के जानने वालों की मौत होना भी शुरू हो गई. एक शेल उनके दादाजी पर गिरा, जो उस वक्त खेत में फसल को पानी दे रहे थे. उसकी वजह से मौके पर ही उनकी मौत हो गई. एक अन्य शेल ने गांव के अंदर छप पर धूप में बैठे दो किशोरों की जान ले ली. ये डर बढ़ता गया और इसी बीच सेना ने गांव में अपना डेरा जमा लिया और लोगों को गांव छोड़ के जाने के लिए मजबूर कर दिया.
जैनब बीबी को युद्ध की वजह से अपना गांव छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था. (साभार- बीबीसी)
बीबीसी से बात करते हुए स्लामाबाद में रह रहीं 33 साल की हो चुकी जैनब बताती हैं कि सेना ने उन्हें ये नहीं बताया कि कहां जाएं और कैसे जाएं, बस गांव से चले जाने का फरमान सुना दिया. उन्होंने बताया कि गांव के लोगों ने अपने कुछ जरूरी सामान उठाए और ट्रक आदि में जैसे-तैसे लदकर कहीं दूर चले गए. उन्होंने अपने याक, गाय और बकरियां भगवान के भरोसे गांव में ही छोड़ दिए. वहां से सभी उत्तर की ओर करीब 150 किलोमीटर दूर सकार्डु में चले गए. वहां स्थानीय लोगों की मदद से मिले आशियाने में वह लोग करीब 2 महीने तक रहे, जब तक पाकिस्तान ने सीजफायर की घोषणा करते हुए सीमा पार से अपनी सेनाओं को वापस नहीं बुला लिया, जिन पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था.
जैनब बताती हैं- जब युद्ध खत्म हुआ तो बहुत से लोग इस कश्मकश में थे कि क्या करें. हमारे एक पड़ोसी गांव होकर आए थे, जिन्होंने बताया कि अधिकतर घर बर्बाद हो गए हैं. खेत बर्बाद हो गए हैं. और मवेशी या तो मारे गए हैं या फिर कहीं भाग गए हैं. तो मेरे पति ने फैसला किया कि हम इस्लामाबाद चले जाएंगे, जहां उनके एक दोस्त ने काम मिलने की बात कही.
जैनब की घाटी के ही रहने वाले एक शख्स गुलाम मोहम्मद ने भी गांव से भागने का फैसला किया था. वह बताती हैं- 'जब ये सब हुआ उस समय वह भी एक किशोर था. उसे भी अपना घर, मवेशी सब कुछ छोड़कर भागना पड़ा. उसके माता-पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी. उसने और अन्य गांव वालों ने भी गांव छोड़ दिया और सकार्डु में आकर पनाह ले ली. कुछ लोगों ने गांव के बार टेंट लगा लिए, जबकि बहुत से ऐसे भी थे, जिनके पास रहने का कोई आसरा नहीं था. वो बहुत ही बुरा वक्त था.' आपको बता दें कि जैनब और गुलाम मोहम्मद दोनों ही गिलगिट-बाल्टिस्तान वाले एरिया से आते हैं, जिसकी सीमा कारगिल से लगती है.
जब मई 1999 की शुरुआत में भारतीय सेना को ये पता चला कि पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की जा रही है, तो पाकिस्तान ने कहा कि वो कश्मीरी हैं जो भारतीय सेना से लड़ रहे हैं. धीरे-धीरे ये बात सामने आई कि पाकिस्तान का मकसद सियाचिन तक भारत से होने वाली सप्लाई को बाधित करना है, ताकि भारतीय सेना को जरूरी चीजों की कमी हो जाए और नुकसान हो. जून के दौरान पहाड़ों पर पाकिस्तान की स्थिति कमजोर होना शुरू हो गई और पाकिस्तान पर पीछे हटने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बन गया. 4 जुलाई को पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा. इस युद्ध में भारत के करीब 500 जवान शहीद हुए, जबकि पाकिस्तानी सेना के करीब 400-4000 सैनिक मारे गए.
इस युद्ध की वजह से जो लोग बेघर हुए थे, उनमें से हजारों लोग आज भी वापस नहीं आए हैं. करीब 20 हजार लोगों ने अपना घर छोड़ा था. उनमें से 70 फीसदी अभी तक नहीं लौटे हैं. इसकी वजह ये है कि सरकार ने लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की. सीमा के करीब के 3 गांव गंगानी, ब्रोल्मो और बदिगाम पूरी तरह से नष्ट हो गए. 2003-2004 में गांव वालों ने विरोध प्रदर्शन किया तो मजबूर होकर सरकार और सेना ने एक सर्वे किया और ये पता लगाने की कोशिश की कि कितना नुकसान हुआ है. 2010 में 3 गांवों के लिए करीब 11 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का फैसला किया गया, लेकिन आज तक किसी को भी एक भी पैसे नहीं मिले हैं.
कारगिल युद्ध में भारत के करीब 500 जवान शहीद हुए, जबकि पाकिस्तानी सेना के करीब 400-4000 सैनिक मारे गए.
ब्रोल्मो गांव के रहने वाले एक शख्स बु-अली रिजवानी ने बताया- 'हमने इस मामले में आर्मी के कमांडर से सकार्डु में बैठक की. मुख्यमंत्री भी वहां मौजूद थे. वहां से हम इस मामले पर और अधिक बात करने के लिए इस्लामाबाद चले गए. सेना ने बताया कि सरकार पैसे देगी. कश्मीर मंत्रालय ने कहा कि गिलगिट-बाल्टिस्तान सरकार पैसे देगी. उन्होंने कहा कि सेना पैसे देगी. हमने इस मामले को 2012 तक देखा, लेकिन आखिरकार हार मानकर छोड़ दिया.'
जब इस मामले में बीबीसी ने पाकिस्तानी सेना से बात की उन्होंने तुरंत कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया और कहा कि वह मामले की जांच करेंगे. करीब आधा दर्जन परिवार हरगोसेल गांव में वापस लौटे, लेकिन उनमें गुलाम मोहम्मद नहीं थे. गुलाम मोहम्मद ने कहा- 'मेरे पास घर बनाने के लिए पैसे नहीं थे, जो युद्ध में बर्बाद हो गया था. जमीन भई बंजर हो चुकी थी, जिसकी वजह से उनके बहुत सारे पड़ोसी भी वापस नहीं लौटे. इसके अलावा हरगोसेल गांव में जगह-जगह लैंड माइन्स बिछाई गई थीं, जिनमें से कई एक्टिव हैं. पिछले ही साल इस वजह से कुछ लोग घायल हो गए थे.'
जैनब बीबी और भी कई वजहों से वापस गांव नहीं लौटीं, जबकि उनके माता-पिता और कुछ ससुराल के लोग वापस लौट चुके हैं. सालों तक जैनब और उनके पति ने काम कर के कुछ पैसे जमा किए और इस्लामाबाद के स्लम में एक छोटी सी झोपड़ी खरीद ली. उनके चार बच्चे इस समय इस्लामाबाद के ही एक स्कूल में पढ़ते हैं. वह कहते हैं- 'हमने जीवन का बेहद कठिन दौर देखा है, लेकिन सब कुछ अच्छे के लिए होता है. मैं अपने गांव गानोख को बहुत याद करती हूं, लेकिन मेरे बच्चे इस्लामाबाद के हैं और यहीं हम रहते हैं.' इन्हीं सब वजहों से जैनब वापस नहीं गईं.
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