तो लिंगायत के बाद 'वैष्णव' और 'शैव' भी नहीं रहेंगे हिन्दू !
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अब आग से खेलने लगे हैं. कर्नाटक के लिए अलग झंडे की मांग और लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देना कर्नाटक को नष्ट करना है.
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अब सीधे आग से खेल रहे हैं. वे एक के बाद एक इस तरह के फैसले लेते जा रहे हैं, जो देश को तोड़ने वाले हैं. वे कर्नाटक के लिए अलग से झंडे की मांग करते रहे हैं. कश्मीर के अलग झंडे का परिणाम हम देख ही चुके हैं. वे कर्नाटक जैसे हिन्दी के प्रति प्रेम रखने वाले राज्य में हिन्दी के खिलाफ माहौल बनाने में लगे हैं. अब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने से ठीक पहले उन्होंने कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को अलग अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को राज्य सरकार की अधिसूचना जारी कर मान लिया है. अब इस पर अंतिम फैसला तो केंद्र सरकार को ही करना है. हालांकि, केन्द्र सरकार इस सिफाऱिश को मानने वाली नहीं है. कर्नाटक राज्य कांग्रेस ने भी लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने का समर्थन किया है. वहीं, भाजपा अब तक लिंगायतों को हिन्दू धर्म का अभिन्न हिस्सा ही मानती रही है.
लिंगायत समाज का ही एक छोटा सा हिस्सा बीच-बीच में अपने को अलग धर्म के रूप में मान्यता देने की मांग करता रहा है. सिद्धारमैया को कहीं न कहीं लगता है कि इस मास्टार स्ट्रोक से आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को लाभ मिलेगा. यानी लिंगायतों के सारे वोट कांग्रेस के पाले में चले जाएंगे. दरअसल सिद्धारमैया अपने राजनीतिक स्वार्थ की सिद्धि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. किसे नहीं पता कि हिन्दू धर्म ईसाई और इस्लाम से भिन्न हैं. यहां पर एक ही खुदा, एक ही पैगंबर या एक पूजा पद्धति, या एक ही धार्मिक पुस्तक नहीं है. हिन्दू तो कण-कण की पूजा करता है. हिन्दुओं की कोई एक धार्मिक पुस्तक नहीं बल्कि हजारों हैं. चार वेद, 18 उपनिषद्, अनेकों पुराण, महाभारत, रामायण, गीता कितनों का जिक्र किया जाए.
हिन्दू गीता, वेद, रामायण समेत अनेक धार्मिक पुस्तकों को अपने लिए विशेष मानता है. किसी के लिए हनुमान चालीसा तो किसी के लिए दुर्गा सप्तशती तो किसी को शिवस्त्रोत. किस किस को भूल जायें या किस-किस ग्रन्थ को याद करें. इसलिए दुनियाभर में फैले लगभग एक अरब हिन्दुओं के तमाम आराध्य हैं और पूजा पद्धति भी थोड़ी बहुत अलग-अलग ही हैं. हिन्दू धर्म प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का संगम है. एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये. वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि इसमें आदिम ग्राम देवताओं, वृक्षों स्थानों, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी प्रकार की आस्थायें बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है. सभी सनातन धर्मावलम्बी हर प्रकार की आस्थाओं का सम्मान करते हैं. देखा जाय, तो हिन्दू धर्म सर्वथा विरोधी सिद्धान्तों का एक अद्भुत, उत्तम एवं सहज समन्वय है.
यह हिन्दू धर्मावलम्बियों की उदारता, सर्वधर्मसमभाव, समन्वयशीलता तथा धार्मिक सहिष्णुता की श्रेष्ठ भावना का ही परिणाम है. सनातन धर्म का ही अटूट अंग लिंगायत संप्रदाय. अब उन्हें अपने को गैर-हिन्दू कहलवाने की क्यों जिद पैदा हो गई? यह जिद किसने पैदा की और उसको हवा किसने दी. कर्नाटक में आज लिंगायत संप्रदाय के मुठ्ठी भर लोग ही कांग्रेसी कुचक्र के चंगुल में फंस कर अपने को हिन्दू धर्म से अलग होने की मांग कर रहे हैं, इस बात की क्या गारंटी है कि आगे लिंगायत, कबीरपंथी, वैष्णव, शैव, वल्लभ पंथ, चैतन्य मार्गी, स्वामीनारायण मतावलंबी, रामकृष्ण किशन, सत्संग, गौणीय संप्रदाय, आनंद मार्ग, इस्कॉन आदि-आदि भी किसी स्वार्थ के अपने को हिन्दू कहने से बचें.
इन्हें हिन्दू धर्म से काटकर और बांटकर खंडित अल्पसंख्यक हिन्दू संप्रदाय की सियासी कल्पना में हिन्दुस्तान का सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न करने की खतरनाक साजिश करने वाले विदेशी खुफिया एजेंसियों से प्रेरित षडयंत्रकारियों को अभी नहीं समझा गया तो देश टूट जाएगा. लिगांयत के कुछ सिरफिरे आंदोलनकारियों के रहनुमा बन रहे सिद्धरमैया यह याद रखें कि जब तक भारत में हिन्दू बहुमत में हैं, तभी तक ये देश सेक्युलर भी है. जिस दिन हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए उस दिन भारत का धर्मनिरपेक्ष चरित्र तत्काल खत्म हो जाएगा. यह देश और हिन्दू धर्म के लिए चुनौती की घड़ी है. हिन्दू धर्म में फूट डालने वालों को बेनकाब किया जाना चाहिए.
कौन हैं लिंगायत?
लिंगायत समाज कर्नाटक की एक अति प्रभावशाली अगड़ी जाति है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. ये महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी काफी संख्या में हैं. लिंगायत समुदाय का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ. इस आंदोलन के जनक समाज सुधारक बसवन्ना थे. बसवन्ना का जन्म एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे. लिंगायतों का मानना है कि एक ही जीवन है और कोई भी अपने कर्मों से अपने जीवन को स्वर्ग और नरक बना सकता है. सच्चाई यह है कि बसवन्ना का आंदोलन भक्ति आंदोलन की ही तरह था. उसका मकसद हिंदू धर्म की राह से अलग होना नहीं था. लिंगायत महान शिव भक्त हैं और शिव-शक्ति की साधना में रत रहते हैं.
एक और झंडा क्यों?
सिद्धारमैया तो ऐसा लगता है कि कर्नाटक को नष्ट करने का मन बना चुके हैं. लिंगायत वाले मुद्दे से पहले कर्नाटक के लिए अलग झंडे की मांग तक कर रहे हैं. साल 2012 में भी कर्नाटक का लाल और पीले रंग का अलग झंडा रखने की मांग उठी थी. उस समय कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी. लेकिन झंडे की मांग का भाजपा सरकार ने विरोध किया था. अब सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार तो इस मांग को उठा रही है. कर्नाटक कांग्रेस के नेता बेहद लचर तर्क दे रहे हैं कि "क्षेत्रीय झंडा होने का मतलब यह नहीं कि राष्ट्रीय झंडे का अपमान होगा. कर्नाटक का झंडा तिरंगे के नीचे ही उड़ेगा.” वे भूल रहे हैं कि उनके कदम देश को तोड़ने वाले हैं. यह देश कभी भी स्वीकार नहीं करेगा. भारतीय जनमानस देश की एकता और अखंडता के सवाल पर एक राय है. क्या ऐसा कोई सपने में भी सोच सकता है कि ऐसी देश-तोड़क मांगें सिद्धारमैया बिना सोनिया और राहुल की स्वीकृति के उठा रहे हैं?
बर्बाद होता बेहतरीन राज्य
यह निश्चित रूप से खेद का विषय है कि कर्नाटक जैसे देश के आईटी के महाकेंद्र को टुच्ची सियासत के लिए बर्बाद किया जा रहा है. बेंगलुरू भारत के सूचना प्रौद्योगिकी का गढ़ का. इसे 'भारत का सिलिकॉन वैली' तक कहा जाता है. भारत के प्रमुख तकनीकी संगठन इसरो, इंफ़ोसिस और विप्रो का मुख्यालय यहीं है. यहां पर हजारों आईटी पेशेवर काम करते हैं. यहां बहुत से शिक्षण और अनुसंधान संस्थान स्थित हैं, जैसे भारतीय विज्ञान संस्थान, भारतीय प्रबन्ध संस्थान, राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान तथा नेशनल लॉ स्कूल ऑफ़ इण्डिया यूनिवर्सिटी. इसके अलावा अनेक सरकारी वायु तकनीकी और रक्षा संगठन भी यहां स्थापित हैं, जैसे भारत इलेक्ट्रानिक्स, हिन्दुस्तान एयरोनौटिक्स लिमिटेड और नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज़. बैंगलुरू कन्नड़ फिल्म उद्योग का केंद्र है. इतने खासमखास शहर को विभिन्न मुद्दों की आड़ में नष्ट किया जा रहा है.
यदि कर्णाटक में अशांति का वातावरण स्थापित हो गया तो कौन करेगा कर्णाटक में निवेश. बड़ी कम्पनियां गोवा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु क्यों भाग रही हैं? आखिर जिस बात से मुझे कष्ट हो रहा है, वह है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की हरकतों को सहन कर रहा कांग्रेस का नेतृत्व. क्यों राहुल गांधी सवाल नहीं करते सिद्धारमैया से कि वो हिन्दू धर्म में फूट क्यों डाल रहे हैं? सिद्धारमैया से ये क्यों नहीं पूछा जाता कि उन्हें तिरंगे से इतर एक और झंडा क्यों चाहिए? और एक सवाल ये भी कि वे हिन्दी विरोधी आंदोलन को क्यों गति देते हैं?
अभी हाल ही में राहुल गाँधी ने कर्णाटक के दौरे पर लिंगायतों की तरफदारी करते हुए बड़े गर्व से कहा कि मैं भी महान शिव भक्त हूँ. कहीं राहुल गाँधी भी लिंगायत बनकर अलाप्संख्यक दर्जा प्राप्त करने की योजना तो नहीं बना रहे?
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