कम्युनिस्टों को पहले ही बेरोजगार कर चुके हैं मोदी! जंग बाद में, पहले रोजगार पाएं वृंदा
अगर एक नारे के दम पर सीपीएम 2019 के चुनाव में पीएम मोदी - भाजपा से लड़ने का सोच रही है तो उसे जान लेना चाहिए कि राजनीतिक परिपक्वता के मामले में वो अन्य दलों से बहुत पीछे है.लड़ाई बाद में, बेहतर है कि वो पहले अपनी इस कमी पर काम करे.
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2019 का आम चुनाव नजदीक है. जैसे तेवर विपक्ष के हैं, साफ है कि मोदी सरकार की चूल ढीली करने के लिए सबने अपने स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है. चूंकि विपक्ष का उद्देश्य मोदी सरकार को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकना है. अतः जनता के बीच जिसका जैसा जनाधिकार है वो उस स्तर पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहा है. कांग्रेस, आप, आरजेडी, आरएलडी,सपा बसपा के बाद अब सीपीएम भी अपनी नीतियां लेकर सामने आ गई है. मोदी सरकार को देश से खारिज करने के लिए सीपीएम ने लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियान के केंद्र में ‘इस बार, मोदी बेरोजगार’ नारे को प्रचार का मूलमंत्र बनाया है. बताया जा रहा है कि सीपीएम की तरफ से ये फैसला प्रचार अभियान रणनीति को अंतिम रूप देने के बाद पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी की अगुवाई में लिया गया है.
पार्टी की तरफ से पेश हुए इस नए नारे पर बात करते हुए सीपीएम पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने कहा कि, पार्टी इस चुनाव में देश के मतदाताओं के समक्ष तीन अपीलें करेगी. पहली अपील है ‘देश बचाओ मोदी सरकार हटाओ.' दूसरी अपील है, ‘वैकल्पिक नीति के लिए सीपीएम और वामदलों की संख्या बढ़ाओ’ और तीसरी अपील है ‘देश में धर्मनिरपेक्ष सरकार बनाओ.’
करात के अनुसार इस नारे के बल पर जनता को पिछले पांच सालों में सांप्रदायिक कट्टरता, किसान संकट और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से अवगत कराया जाएगा. माना जा रहा है कि ‘इस बार मोदी बेरोजगार’ नारा जहां एक तरफ आम जनता के सामने मोदी सरकार के पांच सालों की वास्तविकता को लाएगा तो वहीं दूसरी तरफ इससे कार्यकर्ताओं में भी नई ऊर्जा का संचार करेगा.
ये अपने आप में एक बचकानी बात है कि सीपीएम एक नारे की बदौलत मोदी से मोर्चा लेगी
गौरतलब है कि सीपीएम ने बीजेपी के ‘मैं भी चौकीदार’ मुहिम के जवाब में यह नारा गढ़ा है. करात के अनुसार, सीपीएम के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी यह नारा बेहद लोकप्रिय हुआ और अब इसे जनता के बीच ले जाएंगे. बात अगर आगामी आम चुनावों के मद्देनजर सीपीएम की रणनीति पर हो तो इसपर वृंदा का कहना है कि ‘हमारी पार्टी मानती है कि जनता ने मोदी सरकार को हराने में सक्षम उम्मीदवारों को मत देने का मन बना लिया है. इसलिए सभी प्रांतों की अलग जमीनी हकीकत को देखते हुए हम ऐसी रणनीति के तहत आगे बढ़ रहे हैं कि बीजेपी के खिलाफ वोट का बंटवारा कम से कम हो.’
विपक्ष की एकजुटता पर उठते सवालों पर उन्होंने कहा, ‘एनडीए में घटकदलों के टकराव को छुपाने के लिए विपक्षी दलों में विखंडन का दुष्प्रचार किया जा रहा है. सच्चाई यह है कि सभी विपक्षी दलों का लक्ष्य, संविधान बचाने के लिए देश को मोदी सरकार से मुक्त कराना है.’
एक ऐसे वक़्त में जब भारतीय राजनीति में सीपीएम मृत्यु शैया पर हो पार्टी की तरफ से आया ये नारा कहीं न कहीं पूरे देश के सामने उसकी राजनीतिक परिपक्वता दर्शाता नजर आ रहा है. ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल में सीपीएम समाप्ति की कगार पर है. वहीं बात अगर केरल की हो तो यूडीएफ ने पहले ही पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. माना जा रहा है कि आने वाले वक़्त में केरल एक बहुत बड़े सत्ता परिवर्तन का साक्षी बनेगा और राज्य की जनता उसे सत्ता सुख से वंचित करेगी.
इन बातों के इतर यदि हम त्रिपुरा का रुख करें तो हकीकत खुद ब खुद हमारे सामने आ जाती है. त्रिपुरा का शुमार सीपीएम के मजबूत किले में था. पार्टी कार्यकर्ताओं को इस बात का पूरा यकीन था कि यहां सीपीएम के अलावा और कोई सत्ता सुख भोग ही नहीं सकता. मगर 18 फरवरी 2018 में हुए चुनाव के बाद जिस तरह एक लम्बे समय तक राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कुंडली जमाए बैठे माणिक सरकार को जनता ने नकारा उससे साफ पता चल गया कि अब इस देश में शायद ही सीपीएम / वामदलों का कोई राजनीतिक भविष्य है.
त्रिपुरा में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत पर यदि नजर डालें और उसका अवलोकन करें तो मिलता है कि सीपीएम को सत्ता से भगाने और बेरोजगार करने में मोदी लहर का अहम योगदान रहा है.
इन सारी बातों के बाद यदि सीपीएम अब भी एक नारे के बल पर भाजपा और पीएम मोदी से जंग लड़ने का सोच रही है. तो उसे जान लेना चाहिए कि वो सत्ता की भूखी है, साथ ही उसे ये भी जान लेना चाहिए कि भूखे पेट भजन नहीं होता. बाक़ी व्यक्ति भूख में बड़बड़ाता है. बुदबुदाता है और सीपीएम भी कुछ ऐसा ही कर रही है.
कह सकते हैं कि बेरोजगार के मुंह से रोजगार की बातें शोभा नहीं देतीं. वृंदा को चाहिए कि पहले वो अपने लिए रोजगार जुटाएं कहीं ऐसा न हो कारवां गुजर जाए और फिर उनके पास देखने के लिए सिर्फ गुबार बचे.
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