मंदिर-मस्जिद का शोर थमे, तभी बुनियादी समस्याएं सुनाई देंगी...
योगी आदित्यनाथ ने मुनादी करवा दी है- न मस्जिद पर लाउडस्पीकर बजेगा, न मंदिर पर. वो कहीं नहीं बजेगा. बजेगा भी तो आवाज चारदीवारी बाहर न जाने पाए. अब इसी बात पर शोर है कि इस मुनादी का टारगेट क्या वाकई लाउडस्पीकर है, या कुछ खास तरह के लाउड लोग?
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1925 में एडवर्ड डब्ल्यू केलॉग और चेस्टर डब्ल्यू राइस ने लाउडस्पीकर का अविष्कार करते हुए शायद ही इसके राजनीतिकरण के विषय में सोचा हो. मुश्किल ही है कि दोनों ही वैज्ञानिकों के ख्वाब, ख्याल में ये बात रही हो कि 2022 में एक वक़्त वो भी आएगा जब लाउडस्पीकर ही हिंदुस्तान जैसे देश की राजनीति का आधार होगा और महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक और उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक अलग अलग सूबों में जबरदस्त सियासत होगी. लाउडस्पीकर, पॉलिटिक्स को किस हद तक प्रभावित कर रहा है इसका अंदाजा लाउडस्पीकर विवाद में ताजे ताजे कूदे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस फरमान से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि अपनी धार्मिक विचारधारा के अनुसार उपासना पद्धति अपनाने की आजादी सबको है. वहीं उन्होंने ये भी कहा था कि धार्मिक आयोजन में लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जा सकता है लेकिन यह सुनिश्चित किया जाए कि इसकी आवाज परिसर से बाहर न जाए. योगी आदित्यनाथ का मानना है कि लाउड स्पीकर से अन्य लोगों को असुविधा नहीं होनी चाहिए. योगी आदित्यनाथ का इस बात को कहना भर था. मुख्यमंत्री से प्राप्त आदेशों का पालन करते हुए गौतम बुद्ध नगर में पुलिस ने मंदिरों और मस्जिदों सहित लगभग 900 धार्मिक स्थलों को नोटिस जारी किया है.
भले ही लाउडस्पीकर पर बयान आ गया हो लेकिन यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ खुद नहीं चाहते कि विवाद की आग ठंडी हो
बीते दिन गौतम बुद्ध नगर पुलिस ने धार्मिक स्थलों/विवाह भवनों आदि स्थानों पर बजने वाले लाउडस्पीकर/डीजे के सम्बन्ध में नोटिस देकर यह सुनिश्चित करने को कहा है कि उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए निर्देशों का अक्षरशः पालन हो. लाउडस्पीकर को लेकर जो निर्देश जारी किये गए हैं वाक़ई उनका पालन होता है? या फिर वो महज सियासत के लिए हैं. इसका जवाब तो वक़्त देगा लेकिन जो सूरत ए हाल हमें यूपी में दिखाई दे रही है वहां आदेश के मद्देनजर मंदिर तो बस बहाना हैं.
इस निर्देश को देने की एक बड़ी वजह मस्जिदें हैं. तर्क लोगों की असुविधा का हुआ है तो मुख्यमंत्री का मकसद साफ़ है इबादत जमकर करो लेकिन उसे बस अपने तक सीमित रखो. यानी योगी आदित्यनाथ खुद चाह रहे हैं कि पांच वक़्त अजान होती रहे. हां लेकिन उससे लोगों को परेशानी न हो. दौर चूंकि लाइन से बड़ी लाइन खींचने का है. तो वो लोग जो मुसलमानों के लाउड स्पीकर और उससे निकली अजान के विरोध में थे. उन्होंने मुसलमानों को रोकने का अपनी तरह का अलग रास्ता अपनाया है.
सूबे के अलग अलग स्थानों पर अजान के ही समय यानी 5 वक़्त हनुमान चालीसा बजाई जा रही है. कहीं ये हुनमान चालीसा मंदिरों से बज रही है तो कहीं किसी अन्य स्थान से. बाकी मुख्यमंत्री के इरादे क्लियर हैं उनका हिन्दुओं से भी कहना यही है कि, 'किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए' चाहे मंदिर हो या मस्जिद मुख्यमंत्री खुद चाहते हैं कि लाउड स्पीकर बजे और तबियत से बजे. और जैसे हालत हैं ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि एक राजनेता के रूप में यही उनकी राजनीति है. लाउड स्पीकर पर मुख्यमंत्री के निर्देशों की अब क्या ही आलोचना करना.
लेकिन हां इतना जरूर है कि आइडियल कंडीशन तो यही थी कि बतौर सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को मंदिर और मस्जिद से लाउड स्पीकर को पूर्णतः ख़त्म कर देना चाहिए था. मगर अब जबकि लाउड स्पीकर पर उन्होंने हदें बना दी हैं साफ़ है कि योगी आदित्यनाथ खुद चाहते हैं कि ये बवाल यूं ही चलता रहे. ध्यान रहे ये ऐसे बवाल ही होते हैं जो सरकार को 'बचाते' हैं.
उपरोक्त बातों यूं ही नहीं हैं. न ही इनको लेकर विचलित होने की बहुत ज्यादा जरूरत है. चाहे वो लाउड स्पीकर हो या इस तरह का कोई अन्य मुद्दा अगर ये ख़त्म हो गए तो सरकार को वो करना पड़ेगा जिसके लिए उसे जनता ने वोट दिया है. यानी फिर उस स्थिति में सरकार को बदहाल चिकित्सा की भी सुध लेनी होगी. उसे बेरोजगारों को रोजगार भी देना होगा. स्कूल कॉलेज और विश्व विद्यालयों में क्वालिटी एजुकेशन देनी होगी. महिला और बाल सुरक्षा पर काम करना होगा.
खुद बताइये क्या ये योगी आदित्यनाथ या किसी अन्य नेता के लिए आसान हैं. बहुत सीधा और स्पष्ट जवाब है नहीं. ध्यान रहे देश की राजनीति से हमें वही चीजें प्राप्त हो रही हैं जो आज के इस नफरत भरे माहौल में हमारे अंतर्मन में कहीं छुपी हैं. स्पष्ट कहें तो भले ही निर्णय के चलते कोई यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की आलोचना में महाकाव्य या कोई गद्य लिख ले लेकिन चाहे सामाजिक हो या फिर राजनितिक परिदृश्य हम वही काट रहे हैं जो हमने बोया है.
लाउड स्पीकर के सन्दर्भ में अपनी सुचिता और सुविधा के हिसाब से जो फैसला यूपी सरकार को लेना है वो ले लिया गया है. लेकिन जाते जाते हम इतना जरूर कहेंगे कि जिस दिन मंदिर-मस्जिद का शोर थमेगा उसी दिन हमें बुनियादी समस्याएं सुनाई देंगी और शायद यही वो वक़्त हो जब हमारे वोट के जरिये सदन पहुंचे जनप्रतिनिधि उस समस्याओं को अमली जामा पहनाएं.
बहरहाल शुरुआत में ही जिक्र नोटिस का हुआ है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि अधिकारियों ने 602 मंदिरों, 265 मस्जिदों, 16 अन्य धार्मिक स्थलों को नोटिस देने के साथ साथ 217 बारात घरों, 175 डीजे संचालकों को भी नोटिस दिया. उन्होंने कहा कि यदि कोई भी धार्मिक स्थल/डीजे संचालक उच्च न्यायालय के ध्वनि सम्बन्धी निर्देशों का पालन नहीं करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
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