राजदीप सरदेसाई के 6 निष्कर्ष, क्यों मध्यप्रदेश चुनाव नतीजे गुजरात जैसे होंगे
मध्यप्रदेश का मालवा-निमाड़ हमेशा से भाजपा का गढ़ रहा है, लेकिन क्या इस बार भी ऐसा होगा, इस इलाके से जायजा लेकर लौटे राजदीप सरदेसाई का विश्लेषण...
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मध्यप्रदेश का मालवा-निमाड़ क्षेत्र वो इलाका है, जहां 2003 से बीजेपी को सरकार बनाने के लिए सबसे विधायक मिलते आए हैं. क्या इस बार भी ऐसा होगा, इस इलाके से जायजा लेकर लौटे राजदीप सरदेसाई का विश्लेषण...
1. जिस भाजपा ने मालवा-निमाड़ में 66 सीटों में से 56 सीटें जीती थीं, अब उसकी गिनती कम हो सकती है. लेकिन फिर भी वह इस क्षेत्र में कांग्रेस से आगे ही रहेगी, जो परंपरागत रूप से आरएसएस-भाजपा का गढ़ रहा है. इसका कारण ये है कि यहां उनका संगठन जमीनी स्तर पर काफी मजबूती है, और उनकी चुनावी मशीन भी ताकत के साथ काम करती है. चुनावों पर नजर रखने वाले एक शख्स ने मुझे बताया, 'भाजपा में संगठन चुनाव लड़ता है, कांग्रेस में नेता.' दिलचस्प बात ये है कि इस पूरे क्षेत्र में पहली बार कांग्रेस में टिकट का बंटवारा भाजपा की तुलना में बेहतर रहा है.
2. यहां पर भाजपा के खिलाफ एक लहर सी है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे ये विरोध विधायकों और लोकल ब्यूरोक्रेसी के खिलाफ अधिक है, बजाय शिवराज चौहान के, जो 13 सालों से सत्ता में होने के बावजूद लोगों की नजर में अच्छे हैं. उनका लो प्रोफाइल स्वभाव ही उनकी पहचान है. जिन लोगों से हमने बात की उनमें से अधिकतर लोग शिवराज सिंह चौहान को अन्य सभी से बेहतर मुख्यमंत्री मानते हैं. लोग दिग्विजय सिंह के 10 साल के समय के दौरान सड़क और बिजली की समस्याओं से तुलना करते हुए शिवराज को अपनी पसंद मान रहे हैं.
शहरी मालवा में भाजपा मजबूत है, जबकि ग्रामीण मालवा में कांग्रेस.
3. मालवा-निमाड़ क्षेत्र ग्रामीण और शहरी तौर पर बंटा हुआ सा है. शहरों में भाजपा मजबूत है, जबकि गांवों में भाजपा की हालत कमजोर है. पिछले साल मंदसौर में ग्रामीणों पर चली गोलियों के बाद अब ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का झुकाव कांग्रेस की ओर दिख रहा है. किसानों के गुस्से को सरकार ने एक के बाद एक कई तरीकों से निपटने की कोशिश की, लेकिन वो गुस्सा अभी तक खत्म नहीं हुआ है. लोगों में कितना अधिक गुस्सा है, यही ग्रामीण मालवा-निमाड़ के मतदाताओं की पसंद निर्धारित करेगा.
4. मुझे मिले एक व्यक्ति के शब्दों में कहूं तो 'कांग्रेस वो पार्टी है, जिसमें कोई दूल्हा नहीं है'. कमलनाथ ने जरूर मालवा क्षेत्र के पार्टी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने का काम किया है, लेकिन यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा चेहरे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते तो ज्यादा फायदा होता. हालांकि, ऐसा करने से पार्टी में फूट का भी खतरा बढ़ जाता. मैंने देखा कि युवा वोटर बीजेपी के साथ मजबूती के साथ जुड़ा हुआ है.
5. राम मंदिर जैसे मुद्दे इस इलाके में बमुश्किल ही सुनाई दिए. न ही ये चुनाव 'मोदी बनाम राहुल' माना जा रहा है. मोदी भले ही नेता नंबर वन बने हुए हैं, लेकिन वे विधानसभा चुनाव नतीजों के लिए निर्णायक नहीं हैं. इन सबके बजाए स्थानीय बातें, जैसे इंदौर में दुकानें बंद होना, उज्जैन की मिलों का बंद होना, ज्यादा मायने रख रहा है. चुनाव के स्थानीय होने का मतलब ये है कि वोटर अपने विधायक के कामकाज का मूल्यांकन अपनी पसंदीदा पार्टी की निष्ठा से ऊपर उठकर कर सकता है.
6. सबको यह लग रहा है कि मध्यप्रदेश का चुनाव 'कांटे की टक्कर' है. इस इलाके में यह एहसास है कि बीजेपी का पाला कमजोर है, लेकिन वह हारी हुई नहीं है. कांग्रेस आगे है, लेकिन वहां नहीं पहुंची है जहां उसे पहुंचना चाहिए. यदि ये ट्रेंड कायम रहता है तो मध्यप्रदेश में भी गुजरात जैसे नतीजे देखने को मिल सकते हैं. जहां बीजेपी की संख्या नीचे तो आएगी, लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े से ज्यादा ही रहेगी. हालांकि, ये सिर्फ मालवा-निमाड़ की ही बात है. मध्यप्रदेश के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग वोटिंग पैटर्न दिखाई दे सकता है. एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि 'इस बार चुनाव बूथ दर बूथ लड़ा जाएगा'. मध्यप्रदेश में 60 हजार बूथ हैं, ऐसे में हर कोने की जंग अहमियत रखेगी.
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