'Nobel' को अब तक गांधी जी न मिल पाए, दुर्भाग्य!
देश के राष्ट्रपिता को देश-विदेश में खूब सम्मान मिला है, राष्ट्रपिता, बापु, महात्मा और मिस्टर गांधी का खिताब हासिल करने वाले महात्मा गांधी को शांति का देवता कहा जाता है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े शांति के पुरस्कार से गांधी को न नवाजा जाना निराश करता है. लेकिन ये भी अटल हकीकत है कि गांधी का व्यक्तित्व किसी पुरस्कार का मोहताज नहीं हो सकता है.
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और आम नागरिक तक हर कोई महात्मा गांधी को याद करके उन्हें नमन किया. महात्मा गांधी को अंहिसावादी के तौर पर भी जाना जाता है. देश में एक से बढ़कर एक आंदोलन हुए जिसमें महात्मा गांधी महज एक लाठी लेकर उस आंदोलन का नेतृव्य करते थे और उसी लाठी की दम पर अंग्रेज हुकूमत को अपने आगे झुकने पर मजबूर कर दिया. आज जब हम इतिहास पढ़ते हैं तो हमें सबकुछ बहुत आसान सा लगता है लेकिन ये अटल हकीकत है कि हमारे देश ने बहुत सारे ज़ख्म खाए हैं और बहुत ही कड़ी मेहनत के बाद हमारा देश आज़ाद हो पाया है. आज़ादी की लड़ाई लड़ना कोई आसान काम नहीं होता है. हज़ारों लाखों लोगों ने भारत की आज़ादी की लड़ाई लड़ी है. अगर भारत की आज़ादी की लड़ाई की बात होगी तो सबसे पहला नाम जो सामने आएगा वो नाम होगा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का. एक इंसान को महात्मा का खिताब दिया जाना अपने आप में एक बहुत बड़ा संकेत है कि वह इंसान आम इंसान तो कतई नहीं हो सकता है, और उससे भी बढ़कर किसी इंसान को राष्ट्रपिता कह देना उस इंसान के व्यक्तित्व को आसमान की बुलंदी तक पहुंचा देता है.
जब जब बात भारत की आजादी की होगी तब तब महात्मा गांधी के योगदान का जिक्र होगा
वर्ष 1869 में 2 अक्टूबर को गुजरात के पोरबंदर में जन्म लेने वाले इस इंसान ने अपनी पहचान इस कद्र बनाई कि आज पूरा विश्व उसके नाम से वाकिफ है. आज वह व्यक्तित्व तो हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके नाम की सड़कें, चौराहे या अन्य सामूहिक स्थल भारत समेत दुनिया की कई बड़े देशों में हैं. आज भी गांधी का ज़िक्र दुनिया के किसी भी हिस्से में होता है तो इस नाम को अंहिसा के महात्मा के रूप में पहचाना जाता है. महात्मा गांधी का नाम यूं तो मोहनदास करमचंद्र गांधी था लेकिन उनको लोग गांधी या फिर मोहन के नाम से पुकारा करते थे.
महज 13 साल की उम्र में ही उनकी शादी कस्तूरबा गांधी से हो गई थी और 16 साल की आयु होते होते उनके पिताजी का देहांत हो गया था. वह पढ़ने के बहुत शौकीन थे और विदेश जाकर आगे की पढ़ाई करना चाहते थे. कोशिश करके परिवार में सभी को मना लेने के बाद 19 वर्ष की आयु में गांधीजी इंग्लैड पहुंचे और कानून की पढ़ाई करके बैरिस्टर बने. वर्ष 1891 में वह पढ़ाई खत्म करके भारत लौटे तो यहां मुंबई में काम किया. भारत में महात्मा गांधी का मन नहीं लगा तो वो दक्षिण अफ्रीका चले गए. वहां पर उन्हें मिस्टर गांधी के नाम पुकारा जाता था. गांधीजी अफ्रीका में रहते हुए भारत की फिक्र किया करते थे, वह भारत लौटे और किसानों के हित में सबसे पहला आंदोलन शुरू किया.
गांधीजी किसानों के हक की लड़ाई खूब बड़े बड़े जमीदारों के खिलाफ जीत गए, लोग उत्साहित हो गए और गांधीजी का बापू के नाम से जयजयकार करने लगे. समय बीतता गया और गांधीजी आंदोलन पर आंदोलन करते रहे. वर्ष 1919 में महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने गांधी जी को महात्मा के नाम से खिताब किया. कुछ इतिहासकारों का मत ये भी है कि वर्ष 1915 में ही राजवैध जीवराम शास्त्री गांधी जी को महात्मा कहकर संबोधित कर चुके थे.
किसी इंसान के लिए महात्मा का शब्द इतिहास में कम ही दफा दर्ज हुआ था जोकि अबतक किसी के नाम के आगे नहीं इस्तेमाल किया जाता है. वर्ष 1944 में महात्मा गांधी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था यह निकनेम नेताजी ने दिया था जिसको बाद में देश के पहले प्रधानमंत्री पं0 नेहरू ने उनके देहांत की खबर देते हुए इस्तेमाल किया था कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे.
महात्मा गांधी की सारी कोशिश रंग लायी वर्ष 1947 में, जब हमारा भारत एक नया इतिहास लिख रहा था. पूरा देश आज़ादी के जश्न में डूबा था. गुलामी से मुक्ति मिली थी, भारत के लिए इससे बड़ा दिन नहीं हो सकता था. और इस जीत के हीरो महात्मा गांधी इस जश्न से कोसों दूर कोलकाता में बैठे हुए थे. वह भारत के एक टुकड़े के रूप में पाकिस्तान के बनने से निराश थे, हिंदू और मुस्लिमों के बीच छिड़े महासंग्राम में शांति और सौहार्द बनाने की कोशिश में जुटे हुए थे.
बंगाल में खून की नदियां बह रही थी दोनों समुदायों के बीच कत्लेआम था लेकिन गांधी ने शांति का मार्ग अपनाकर वहां हिंदू मुस्लिमों के बीच छिड़ी जंग को अपने व्यवहार के बल पर रोक दिया. सुन लेना बेहद आसान है कि एक दूसरे के खून की नदी बहा रहे लोग एक दूसरे से प्रेम करने लगे और यह सब हो अहिंसात्मक तरीके से, ये सिर्फ गांधी का व्यक्तित्व था जिसके लिए लोग आज भी गांधी को पूजते हैं.
अब सबसे हैरतअंगेज़ बात करते हैं, खून की नदियों को अपने शांति के पैगाम के साथ प्रेम का सागर बना देने वाले महात्मा गांधी को शांति का सबसे बड़ा पुरस्कार नोबल पुरस्कार अब तक नहीं मिल सका है. महात्मा गांधी का नाम इस पुरस्कार की दौड़ में पांच बार शामिल हुआ लेकिन उन्हें कभी भी विजेता नहीं घोषित किया गया. साल 1937, 1938 और 1939 में लगातार महात्मा गांधी का नाम इस पुरस्कार के लिए नामिनेट किया गया लेकिन उन्हें पुरस्कार का विजेता नहीं घोषित किया गया.
कुछ सालों बाद वर्ष 1947 और वर्ष 1048 में फिर महात्मा गांधी का नाम पुरस्कार के लिए नामंकित किया गया लेकिन फिर से उनको पुरस्कार नहीं दिया गया. वर्ष 1948 में शांति नोबल पुरस्कार के लिए महात्मा गांधी के नाम को जब नामिनेट किया गया तो उसके महज 4 दिन बाद ही उनकी हत्या कर दी गई. महात्मा गांधी का व्यक्तित्व किसी पुरस्कार का मोहताज नहीं है लेकिन यह हैरत की बात है कि अहिंसा के मसीहा और शांति के दूत महात्मा गांधी को विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार से अबतक सम्मानित नहीं किया गया है.
महात्मा गांधी के व्यक्तित्व का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि महात्मा गांधी ने जिस देश को भारत से खदेड़ कर भारत को आज़ादी दिलाई थी उसी देश यानी ब्रिटेन ने महात्मा गांधी को 21 साल बाद सम्मान दिया था और महात्मा गांधी के सम्मान में डाक टिकट को जारी किया था.
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