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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 13 फरवरी, 2022 04:19 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बंगाल में चुनाव बाद वो 'खेला' क्यों होने लगा जो यूपी में 2017 में चुनाव से पहले हुआ था - और वो भी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के लखनऊ दौरे के बाद. अखिलेश यादव के साथ प्रेस कांफ्रेंस करने के बाद.

सुनने में आ रहा है कि ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के बीच तो तकरार हुई ही है, अभिषेक बनर्जी भी काफी तैश में बताये जा रहे है - स्थिति की गंभीरता ऐसे समझी जा सकती है कि ममता बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की इमरजेंसी मीटिंग बुलानी पड़ी है.

और मीटिंग का बुलावा भी महज छह सबसे सीनियर नेताओं को भेजा गया था, जिनमें दोनों के नाम मीडिया की सुर्खियों में आये और सोशल मीडिया पर भी छाये रहे - टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) और ममता सरकार में मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य. बाकी चार नेताओं के नाम हैं - पार्थ चटर्जी (महासचिव), सुब्रत बख्शी (प्रदेश अध्यक्ष), फिरहाद हकीम और अरूप विश्वास (दोनों तृणमूल सरकार में मंत्री हैं).

तो क्या तृणमूल कांग्रेस के अंदर आये ताजा तूफान का कोई यूपी कनेक्शन भी हो सकता है?

जरूरी तो नहीं, लेकिन ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि ये सब ममता बनर्जी के यूपी चुनाव में अखिलेश यादव के लिए वोट मांगने के बाद ही शुरू हुआ है.

देखा जाये तो तृणमूल कांग्रेस का हाल भी अब समाजवादी पार्टी जैसा ही हो गया है, जिसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार हमला बोल रहे हैं - पारिवारिक पार्टी. मुलायम सिंह यादव के परिवार में तो ये पुरानी परंपरा रही है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस में ये अभिषेक बनर्जी के बढ़ते दखल के बाद से शुरू माना जा रहा है.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि प्रशांत किशोर इसमें पार्टी कैसे बन गये?

पीके के नाम से पुकारे जाने वाले प्रशांत किशोर के लिए तो ममता बनर्जी महज एक क्लाइंट हैं - और अगर पीके थोड़ा पीछे भी हट जायें तो ममता बनर्जी को अपने राष्ट्रीय मिशन के लिए ज्यादा ही जरूरत है.

समाजवादी पार्टी में जब बवाल मचा था तो अखिलेश यादव ने बाहरी ताकतों की तरफ इशारा किया था - क्या ममता बनर्जी के मामले में भी ऐसी कोई संभावना हो सकती है?

झगड़े के पीछे क्या है?

पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले तो तृणमूल कांग्रेस में खूब उठापटक हुई, जो स्वाभाविक भी थी. चुनाव बाद तो मुकुल रॉय और कई नेताओं की घर वापसी के बाद तो लग रहा था जैसे गिले शिकवे सबके खत्म हो चुके हैं.

abhishek banerjee, mamata banerjee, prashant kishorक्या ममता बनर्जी के परिवार और पार्टी में मुलायम सिंह की तरह बाहरी घुसपैठ का कोई असर आशंका है?

और तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि शुभेंदु अधिकारी भी मुकुल रॉय वाली राह ही पकड़ना चाहते हैं. शुभेंदु अधिकारी के ही चैलेंज करने पर ममता बनर्जी नंदीग्राम से चुनाव लड़ी थीं और हार भी गयीं - लेकिन अब तो सब भूल-चूक लेनी देनी का दौर बीत चुका है और हर कोई अपने अपने धंधे में व्यस्त भी हो गया है.

तभी तो ममता बनर्जी जरूरी इंतजाम और बंदोबस्त कर दिल्ली में पांव जमाने की तैयारी में जुट गयी हैं. पूरे देश में पार्टी का विस्तार कर रही हैं और तोड़ तोड़ कर नेताओं को साथ ले रही हैं - फिलहाल सारा फोकस गोवा विधानसभा चुनाव पर है, लेकिन तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में ताजा किचकिच के कई कारण बताये गये हैं -

1. अभिषेक से अनबन का तो कोई मतलब नहीं बनता: एक कारण तो ये माना जा रहा है कि ममता बनर्जी के लखनऊ दौरे से अभिषेक बनर्जी नाखुश हैं - और उसी बात को लेकर बुआ और भतीजे में अनबन के संकेत समझे जा रहे हैं.

भला ऐसा क्यों हो सकता है? अखिलेश यादव को कोई मायावती तो हैं नहीं जो बुलाने पर भी कभी ममता बनर्जी की बैठकों में नहीं शामिल हुईं. अखिलेश यादव तो ममता बनर्जी की कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड आयोजित यूनाइटेड इंडिया रैली में भी पहुंचे थे.

ऐसा भी नहीं कि अखिलेश यादव का कांग्रेस के साथ पहले की तरह कोई गठबंधन हुआ हो - क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व तरह तरह से ममता बनर्जी के बढ़ते कदम में राजनीतिक बेड़ियां डालने की बार बार कोशिशें कर रहा है.

और ऐसा भी नहीं लगता कि ममता बनर्जी की ये यात्रा रणनीतिक तौर पर प्रशांत किशोर को नागवार गुजरी हो - और उनके समझाने बुझाने पर अभिषेक बनर्जी को लगने लगा हो कि बुआ आखिर ऐसी गलती क्यों कर रही हैं?

2. ममता और पीके में तकरार क्यों होगी: बंगाली अखबार आनंद बाजार पत्रिका की एक रिपोर्ट के बाद ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर के बीच मतभेद के कयास लगाये जाने लगे हैं - और यहां तक कहा जाने लगा है कि ममता बनर्जी ने पीके को थैंक-यू तक बोल दिया है.

दरअसल, रिपोर्ट में ममता बनर्जी और पीके के बीच हुए संदेशों के आदान-प्रदान का जिक्र है. रिपोर्ट के अनुसार, प्रशांत किशोर ने अपनी सेवाओं को लेकर एक खास मैसेज भेजा था और ममता बनर्जी ने आव न देखा ताव जवाब में थैंक-यू लिख कर भेज दिया.

बताते हैं कि प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी को जो मैसेज भेजा था उसमें लिखा था कि वो मेघालय और ओडिशा के साथ साथ पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस के साथ काम नहीं करना चाहते - और ममता बनर्जी ने उसी के जवाब में थैंक-यू लिख कर सेंड कर दिया.

लेकिन इतने भर से ये कैसे साबित हो गया कि प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी ने अलग अलग राह अख्तियार कर ली है - पश्चिम बंगाल को लेकर टीएमसी और प्रशांत किशोर के i-PAC के बीच 2026 तक का करार हुआ है, लेकिन साथ में तो वो और भी काम कर ही रहे हैं.

पश्चिम बंगाल चुनावों के ठीक बाद प्रशांत किशोर की टीम त्रिपुरा में ड्यूटी पर लग गयी थी - और अभी अभी गोवा से खबर आयी है कि पीके की टीम के एक सदस्य को एनडीपीएस एक्ट के तहत गिरफ्तार भी किया जा चुका है. ये वही एक्ट है जो महाराष्ट्र में रिया चक्रवर्ती से लेकर शाहरुख खान के बेटे आर्यन तक को चपेट में ले चुका है - और उसे अपराध से ज्यादा राजनीतिक ऐंगल से ही देखा गया है.

3. कुछ मामूली कारण और भी हैं: बंगाल की सत्ताधारी पार्टी के कामकाज के मौजूदा स्वरूप में सामने आ रहे तकरार की एक वजह नगर पालिका चुनाव को लेकर उम्मीदवारों की सूची को भी एक कारण समझा जा रहा है. बताते हैं कि उम्मीदवारों की दो-दो सूची जारी कर दी गयी थी और प्रशांत किशोर की टीम को इसी बात से ऐतराज था. संबंधों में दरार की एक वजह ये भी मानी जा रही है.

टकराव का एक कारण 'एक व्यक्ति, एक पद' मुहिम भी बतायी जा रही है. ये आइडिया तो अभिषेक बनर्जी का बताया जा रहा है, लेकिन ममता बनर्जी की भी मंजूरी मिली हुई बतायी जा रही है - और ये शुरू हुए भी करीब साल भर होने वाले हैं. चुनावों के बाद जून, 2021 में ये अभियान शुरू किया गया था.

मालूम हुआ है कि टीएमसी के युवा नेता तो बढ़ चढ़ कर इस मुहिम का सपोर्ट कर रहे हैं लेकिन सीनियर नेताओं को ये फूटी आंख भी नहीं सुहा रहा है - लेकिन फर्क क्या पड़ता है?

पसंद तो कोई अभिषेक बनर्जी को भी नहीं कर रहा था. पसंद तो कोई प्रशांत किशोर को भी नहीं कर रहा था - अगर चुनावों को दौरान ऐसी तकरार हुई होती तो बीजेपी की बड़े आराम से बाजी मार ले गयी होती.

अरे अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर से शुभेंदु अधिकारी को दिक्कत थी तो वो छोड़ कर बीजेपी में चले गये. दिक्कत तो वैसी ही मुकुल रॉय को भी हुई थी, लेकिन वो तो बीजेपी होकर भी लौट आये. साफ है जो शिकायतें रही होंगी, मजबूरी में ही सही, अब तो किसी कोने में बची भी नहीं होंगी.

एक वजह थोड़ी गंभीर जरूर लगती है. ममता बनर्जी की एक कैबिनेट साथी चंद्रिमा भट्टाचार्य ने अपने ट्विटर अकाउंट के मिसयूज का प्रशांत किशोर की टीम पर इल्जाम लगाया है. चंद्रिमा भट्टाचार्य का कहना है कि चुनाव के वक्त उनका ट्विटर हैंडल प्रशांत किशोर की टीम कर रही थी और कुछ ट्वीट ऐसे पोस्ट किये गये हैं जिनके बारे में न तो उनको पता है, न ही परमिशन ली गयी है.

ममता बनर्जी की मंत्री के इस दावे का प्रशांत किशोर की टीम की तरफ से काउंटर किया गया है, 'आईपैक तृणमूल कांग्रेस या इसके किसी नेता की डिजिटल प्रापर्टी को हैंडल नहीं करता - और ऐसा दावा करने वाले व्‍यक्ति को या तो जानकारी नहीं है या फिर वो झूठ बोल रहा है.'

तृणमूल कांग्रेस में त्रिकोणीय तकरार के कुछ संभावित कारण

ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ही प्रशांत किशोर को लाये थे. कहते हैं प्रशांत किशोर को तृणमूल कांग्रेस का चुनाव कैंपेन संभालने के लिए अभिषेक बनर्जी ने ही राजी भी किया था और डील भी फाइनल की थी - और अभिषेक बनर्जी को टीएमसी का महासचिव बनाने में भी प्रशांत किशोर की अहम भूमिका मानी जाती है.

ये तो मान कर चलना चाहिये कि चुनावों के दौरान जीत का मकसद हासिल करने के लिए ममता बनर्जी बहुत कुछ बर्दाश्त भी कर रही होंगी, लेकिन ठीक वैसा ही लंबे समय तक हो पाये, मुमकिन नहीं लगता - और पार्टी जिस मिशन पर काम कर रही है तीनों ही की बराबर अहमियत है, भूमिका अलग जरूर कही जा सकती है.

1. तकरार की एक बड़ी वजह तो ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर की वर्किंग स्टाइल भी हो सकती है. दोनों ही एक-दूसरे को कैसे टॉलरेट करते होंगे, सोच कर ही हैरानी होती है.

ममता बनर्जी के साथ वही काम कर सकता है जो उनको हर कदम पर बर्दाश्त करने की कुव्वत रखता हो - ऐसे दो पीड़ितों का नाम लेना हो तो पहले नंबर पर तो अटल बिहारी वाजपेयी ही माने जाएंगे, दूसरे नंबर पर मनमोहन सिंह. ममता बनर्जी दोनों ही प्रधानमंत्रियों के साथ एक जैसे पेश आ रही थीं.

प्रशांत किशोर की भी जिस तरीके की कार्यशैली है, वो हर कोई मुहैया नहीं करा सकता. अब तक कांग्रेस से ही उनको ऐसी शिकायत रही है - लेकिन ममता बनर्जी और पीके कैसे निभाते हैं ये तो वही जान और समझ सकते हैं.

2. हो सकता है प्रशांत किशोर को कोई नया क्लाइंट मिल गया हो - और वर्कलोड के चलते ममता बनर्जी के साथ काम कर पाने में असुविधा हो रही हो, इसलिए वैसे ही हाथ खड़े कर दिये हों जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह को थैंक-यू बोल दिया था.

3. ये भी संभावना हो सकती है कि प्रशांत किशोर और राहुल गांधी नये सिरे से हाथ मिलाने का विचार कर रहे हों - और दो नावों की सवारी तो मुमकिन भी नहीं होती. तब तो और भी नहीं जो एक ही दिशा में रेस लगा रही हों.

4. ऐसा भी तो हो सकता है कि प्रशांत किशोर की निजी महत्वाकांक्षाओं के रास्ते में पश्चिम बंगाल जैसे काम आड़े आ रहे हों - ऐसे संकेत तो वो पहले ही दे चुके हैं. कई बार दोहरा भी चुके हैं.

5. टीम की बात और है, लेकिन बाकियों की तरह जांच एजेंसियां न तो ममता बनर्जी को परेशान कर सकती हैं और न ही प्रशांत किशोर को - क्योंकि पीके के पास तो सबकी कुंडली है. प्रशांत किशोर एक नमूना भी दिखा चुके हैं जब लालू परिवार अचानक हद से ज्यादा हमलावर हो गया था - मुंह मत खुलवाओ... कुछ ऐसा ही रिएक्शन था पीके का और दूसरी तरफ तत्काल प्रभाव से खामोशी छा गयी.

हां, ऐसा अभिषेक बनर्जी के साथ होने की आशंका जतायी जा सकती है. अभिषेक बनर्जी के कुछ साथी पहले से ही निशाने पर हैं - और उनकी पत्नी के साथ भी पूछताछ हो ही चुकी है.

सच तो वे ही जानते होंगे, क्योंकि 'जाके पैर न फटे बिवाई...' - ऐसा तो नहीं कि अभिषेक बनर्जी किसी तरह का दबाव महसूस करने लगे हैं. कुछ कुछ वैसा ही दबाव जैसा शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय जैसे ममता बनर्जी के साथी झेल भी चुके हैं?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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