ममता बनर्जी को जिस बात का डर था पश्चिम बंगाल में वही तो नहीं होने वाला है?
पश्चिम बंगाल चुनाव (West Bengal Election 2021) में बीजेपी की तरह ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) भी कम से कम 200 सीटें चाहती थीं, लेकिन एग्जिट पोल (West Bengal Exit Poll 2021) के इशारे समझें तो डेढ़ सौ के भी लाले पड़ सकते हैं - अब तो फाइनल रिजल्ट का इंतजार है.
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हो सकता है ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के लिए दिल्ली बहुत दूर न लग रही हो, लेकिन एग्जिट पोल (Exit Poll 2021) तो ये भी संकेत दे रहे हैं कि बीजेपी के लिए अब कोलकाता भी ज्यादा दूर नहीं रहने वाला है. पश्चिम विधानसभा चुनाव (West Bengal Election 2021) के नतीजे जो भी आने वाले हों, लेकिन तय मान कर चलना चाहिये कि राष्ट्रीय राजनीति में ममता बनर्जी की पूछ तो बढ़ने ही वाली है. अगर राइटर्स बिल्डिंग पर बीजेपी का भी वैसे ही कब्जा हो गया जैसे 2011 में 'पोरिबोर्तन' के नारे के साथ वाम मोर्चे के सफाये के बाद तृणमूल कांग्रेस को एंट्री मिल गयी थी - अब अगर 'आसोल पोरिबोर्तन' बंगाल के लोगों को पंसद आ चुका है तो दस साल बाद बीजेपी भी वैसे ही डंका बजाने की तैयारी मन ही मन कर ही रही होगी.
ज्यादातर एग्जिट पोल पश्चिम बंगाल को लेकर एक जैसी ही भविष्यवाणी कर रहे हैं, लेकिन अगर सी-वोटर जैसों का तुक्का तीर बन गया तो भी वे नतीजे तो नहीं ही आने वाले हैं जैसी ममता बनर्जी को अपेक्षा थी - लोगों से ममता बनर्जी ने अपील भी कर डाली थी कि इतनी सीटें देना कि सरकार बनाने के साथ वो लंबे समय तक चला भी सकें और किसी भी सूरत में ऑपरेशन लोटस जैसे सियासी हथियारों से ताउम्र (पांच साल) बचे रह सकें.
सिर्फ बंगाल की ही कौन कहे बाहर भी हर तरफ लोग मजे लेकर चर्चा करने लगे हैं कि ममता तो ममता उनकी चुनावी सियासत के सिपहसालार प्रशांत किशोर अब क्या करेंगे - क्योंकि बीजेपी की सीटों का आंकड़ा सैकड़ा तो पार करने वाला लग ही रहा है.
जो डर था उसके आगे जीत नजर नहीं आ रही है
इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक, पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच मुकाबला तो कांटे का है, लेकिन बीजेपी थोड़ा भारी ही पड़ती लगती है.
पश्चिम बंगाल की 292 सीटों में से बीजेपी के 134-160 सीटें जीतने का अनुमान है, जबकि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के हिस्से में 130-156 सीटें पड़ने का ही अंदाजा हो रहा है.
पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 294 सीटों के लिए चुनाव कराये गये थे, लेकिन दो उम्मीदवारों की कोविड 19 से मौत हो जाने के कारण मतदान रद्द करने पड़े. चुनाव आयोग ने अब उन दो सीटों पर वोटिंग के लिए 13 अप्रैल की तारीख का ऐलान किया है, लेकिन उस पर विवाद शुरू हो गया है क्योंकि उस दिन ईद पड़ सकती है. फिलहाल पश्चिम बंगाल में बहुमत का नंबर 147 हो गया है.
जन की बात एग्जिट पोल में तो बीजेपी के खाते में 174 सीटें आने की भविष्यवाणी की गयी है - और ऐसा हुआ तो बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ पहली बार पश्चिम बंगाल में भी सरकार बना सकती है. इस एग्जिड पोल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 112 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है.
रिपब्लिक टीवी-सीएनएक्स एग्जिट पोल के मुताबिक पश्चिम बंगाल में बीजेपी को 128-138 सीटें मिल सकती हैं, जबकि टीएमसी के हिस्से में 128-148 सीटें आने का अनुमान लगाया गया है.
लेकिन एबीपी-सीवोटर के एग्जिट पोल के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस बीजेपी पर न सिर्फ बढ़त कायम रखे हुए है, बल्कि बहुमत हासिल कर सरकार भी बनाने जा रही है. सी-वोटर के एग्जिट पोल के आंकड़े देखें तो मालूम होता है कि तृणमूल कांग्रेस को 152-164 सीटें मिल सकती हैं - लेकिन बीजेपी को 109-120 सीटों के साथ संतोष करते हुए बहुमत के नंबर के लिए मन मसोस कर रह जाना पड़ सकता है.
ठीक वैसे ही, सीएनएन न्यूज 18 के एग्जिट पोल में तृणमूल कांग्रेस को 162 सीटों पर जीत हासिल कर स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बना लेने का अनुमान लगाया गया है.
बीजेपी ने ममता बनर्जी के घर में सेंध तो अच्छे से लगा ली है, देखना है घर की रखवाली की जिम्मेदारी निभा रहे प्रशांत किशोर ने कितना बचाव किया है - बस 2 मई को आखिरी नतीजे आने की देर है.
बीजेपी नेता अमित शाह डंके की चोट पर पश्चिम बंगाल में 200 सीटें जीतने का दावा करते रहे हैं - और ठीक वैसे ही तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी भी पश्चिम बंगाल के लोगों से अपील कर रही थीं कि वो ऐसे वोट डालें कि टीएमसी की दो सौ सीटें न आयें. 2016 में ममता बनर्जी ने 211 सीटें जीत कर सत्ता में वापसी की थी.
कूच बेहार के दिनहाटा में तृणमूल कांग्रेस की एक चुनावी रैली में ममता बनर्जी लोगों को खास अंदाज में समझाने की कोशिश कर रही थीं, 'मैं नंदीग्राम में अच्छे मार्जिन से चुनाव जीतूंगी. लेकिन आपको सुनिश्चित करना होगा कि बाकी की 199 सीटें तृणमूल कांग्रेस के हिस्से में आयें ताकि लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके. वरना, बीजेपी अपने लोगों के जरिये पैसे का खेला शुरू कर देगी.'
दरअसल, जिस बात को लेकर ममता बनर्जी डर रही थीं, वैसा ही डर लोगों को दिखा कर ये जताने की कोशिश कर रही थीं कि जिस कदर बीजेपी ने बंगाल में उनकी पार्टी पर चुनाव से पहले ही कहर ढाया है, चुनाव नतीजे आने के बाद भी अगर वो सिलसिला जारी रहा तो क्या मंजर हो सकता है?
ये भी हो सकता है कि ममता बनर्जी को ये भी लगा हो कि अगर बीजेपी की सीटें 100 से ज्यादा आ गयीं तो उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके को चुनावी मुहिम का धंधा तो नहीं छोड़ना पड़ेगा?
ये डर होना भी स्वाभाविक ही है. अगर टीएमसी को 200 सीटें मिल जाएंगी तो बची हुई 94 सीटों का ही विरोधियों में बंटवारा होगा - और बीजेपी 100 सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगी.
वैसे तो ममता बनर्जी की दलील रही कि अगर तृणमूल कांग्रेस को 200 सीटें नहीं मिलीं तो सरकार बना लेने के बाद भी वो सरकारी योजनायें अपने मनमाफिक लागू नहीं कर पाएंगी - हालांकि, 'बीजेपी अपने लोगों के जरिये पैसे का खेला शुरू कर देगी,' बोल कर तो तृणमूल कांग्रेस नेता ने साफ कर ही दिया था कि वो पहले से ही दहशत में हैं. ममता बनर्जी को अपन साथ भी वैसा ही खेल होने का डर सताने लगा है जैसा कर्नाटक में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के साथ हुआ. जैसा मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता कमलनाथ के साथ हुआ - और जैसे खतरे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उद्धव ठाकरे पर पर लगातार मंडरा रहे हैं.
पक्के तौर पर तो ये सब 2 मई को दोपहर बाद तक नजर आने ही लगेगा, लेकिन एग्जिट हमेशा गलत ही हों ऐसी भी किसी की किस्मत तो नहीं ही हो सकती!
ममता बनर्जी ने कोई कसर बाकी तो रखी नहीं
ममता बनर्जी ने मौजूदा विधानसभा चुनावों तैयारी तो काफी पहले से ही शुरू कर दी थी और उनको ये बात भी अच्छी तरह मालूम थी कि बीजेपी नेतृत्व की निगाह में वो पूरी तरह चढ़ चुकी हैं, लेकिन ज्यादा सीरियस वो तब हुईं जब 2019 के आम चुनाव के नतीजे आये और तृणमूल कांग्रेस के हिस्से की 18 सीटें बीजेपी ने एक झटके में झटक लिये.
तभी ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को भी लगा कि ऐसे तो चुनाव जीतना काफी मुश्किल होगा - और वो प्रशांत किशोर को तृणमूल कांग्रेस के इलेक्शन कैंपेन के लिए हायर किये. शुरू में तो सब चल गया और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को ममता बनर्जी का बदला और खुशमिजाज सार्वजनिक व्यवहार भी लुभाने लगा था, लेकिन जैसे ही प्रशांत किशोर का दखल बढ़ता गया और सीनियर नेताओं को नजरअंदाज किया जाने लगा - बात धीरे धीरे बिगड़ने लगी.
दबी जबान तो सौगत रॉय जैसे वरिष्ठ नेता ने भी प्रशांत किशोर के दखल देने पर नाराजगी जाहिर की, लेकिन मीडिया में चर्चा शुरू होने के बाद सफाई देने लगे. शुभेंदु अधिकारी जैसे मजबूत जनाधार वाले नेताओं को ये सब काफी परेशान करने लगा - और जैसे ही बीजेपी को मालूम हुआ मुकुल रॉय भी एक्टिव हुए और झपट्टा मारते हुए पार्टी ने ममता बनर्जी के सबसे मजबूत खंभे को हथिया लिया.
ऐसा भी नहीं कि शुभेंदु अधिकारी को मनाने की कोशिशें नहीं हुईं, लेकिन ये तो कहा ही जा सकता है कि उनकी मांगें नहीं मानी गयीं. प्रशांत किशोर तो उनके घर तक चल कर गये और शुभेंदु अधिकारी नहीं मिले तो उनके पिता को मैसेज देकर चले आये - बाद में ममता बनर्जी, प्रशांत किशोर और अभिषेक बनर्जी ने भी शुभेंदु को रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन शायद वो कुछ ऐसा कमिटमेंट कर चुके थे कि उनके लिए खुद की सुनना भी गंवारा न हुआ.
बहरहाल, चुनाव आयोग ने तारीखों की घोषणा भी कर दी - और ममता बनर्जी को सिर्फ पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराया जाना अच्छा नहीं लगा. जैसा लगा उसका अपनी समझ से अच्छे से अच्छे शब्दों में ममता बनर्जी ने उसका बखान भी भरपूर किया. चुनाव आयोग पर बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया.
जब कोरोना संकट बढने लगा तो ममता बनर्जी ने महामारी फैलाने का इल्जाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सिर मढ़ने की कोशिश की - खासकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कोरोना पॉजिटिव की खबर आने के बाद तो वो कुछ ज्यादा ही आक्रामक नजर आयीं - रैलियों में ये कहती फिरीं कि मोदी-शाह ने बाहरियों को बुलाकर बंगाल में कोरोना वायरस फैला दिया.
ममता बनर्जी ने कोरोना के प्रसार को देखते हुए अपने नेताओं को चुनाव आयोग भेज कर आखिरी दौर की वोटिंग एक साथ कराने की भी मांग की, लेकिन आयोग के ठुकरा देने के कारण निराशा ही हाथ लगी.
मोदी-शाह पर कोरोना वायरस फैलाने के आरोप के साथ साथ, ममता बनर्जी ने बीजेपी नेताओं को दंगाबाज और न जाने क्या क्या कहा - लगता है ये निजी हमले भी ममता बनर्जी पर भारी पड़े हैं.
राहुल गांधी और मोदी-शाह सहित बीजेपी के बड़े नेताओं की रैलियां रद्द हो जाने के बाद तो ममता के लिए अकेला मैदान मिल ही गया था - और उस दौरान ममता बनर्जी ने वैक्सीन को भी चुनावी मुद्दा बनाने की भरपूर कोशिश की.
नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का बीजेपी का चैलेंज तो ममता बनर्जी ने स्वीकार कर लिया, लेकिन नामांकन के बाद पैर में चोट लगने की तकलीफ के चलते या जैसे भी वो पॉलिटिकली करेक्ट मैसेज अपने समर्थकों को देने में नाकाम साबित हुईं.
पैर की चोट को साजिश बताना ममता बनर्जी की शुभेंदु अधिकारी को रोक न पाने के बाद दूसरी गलती रही - व्हील चेयर पर घूम घूम कर प्रचार के बावजूद लगता है कि लोगों को दिल जरा भी नहीं पिघल सका - लेकिन ममता बनर्जी या प्रशांत किशोर को कम से कम 2 मई तक तो उम्मीद नहीं ही छोड़नी चाहिये.
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