मनोज सिन्हा का सबसे बड़े चैलेंज है जम्मू-कश्मीर पॉलिटिकल वैक्यूम!
जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) के उपराज्यापाल मुर्मू के इस्तीफे के बाद मोदी सरकार (Modi Government) ने तमाम नामों को विराम देते हुए मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) का नाम फाइनल किया है. माना जा रहा है कि सिन्हा के कश्मीर आने के बाद वो गतिरोध ख़त्म होगा जो कश्मीर में सरकार और जनता के बीच है.
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राजनीति का एक पक्ष चाल, चरित्र और चेहरा भी है. इस कसौटी पर जब हम आजके नेताओं को देखते हैं तो कम ही लोग हैं जो फिट बैठते हैं. मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) एक ऐसे ही नेता हैं जिन्हें भाजपा (BJP) ने जम्मू कश्मीर (jammu Kashmir) का उप राज्यपाल बनाकर तमाम कयासों पर विराम लगा दिया है. अभी बीते दिन ही गिरीश चंद्र मूर्मू (GC Murmu) ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) ने स्वीकार कर लिया है. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत कर केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले मनोज सिन्हा का शुमार भाजपा के उन
ध्यान रहे कि जम्मू और कश्मीर से धारा 370 और अनुच्छेद 35A हटे ठीक एक साल हुआ है और इस बीते एक साल में जैसा गतिरोध कश्मीरियों और सरकार में है माना यही जा रहा है कि आईआईटी की पढ़ाई कर चुके मनोज सिन्हा अपनी सूझ बूझ और शालीनता से इस गतिरोध को काफी हद तक कम करने का प्रयास करेंगे.
Manoj Sinha to be the new Lieutenant Governor of Jammu and Kashmir as President Kovind accepts the resignation of Girish Chandra Murmu. pic.twitter.com/QPS5D1jO8h
— ANI (@ANI) August 6, 2020
मनोज सिन्हा के उप राज्यपाल बनने के फैसले ने न सिर्फ आम लोगों बल्कि घाटी के नेताओं को हैरत में डाल दिया है. मामले के मद्देनजर राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके उमर अब्दुल्ला भी सरकार के इस निर्णय से हैरत में हैं. उमर ने ट्वीट किया है कि, बीती रात जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल पद के लिए एक या दो नामों की चर्चा सबसे ज़्यादा थी. उन दोनों नामों से मनोज सिन्हा का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था. इस सरकार पर एक बात के लिए भरोसा ज़रूर किया जा सकता है. भले अंतिम योजना कैसी भी बनी हो लेकिन यह सरकार कुछ न कुछ ऐसा लेकर आती है जो सभी के लिए अप्रत्याशित होता है.”
Last night there were one or two names that people were circulating as a done deal & this name wasn’t among them. You can always trust this government to pull an unexpected name out of the hat contrary to anything the “sources” had planted earlier ???? https://t.co/b2wI25Fu0a
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) August 6, 2020
बताते चले कि गत वर्ष 31 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया था. तब केंद्र सरकार ने जीसी मुर्मू को इस केंद्र शासित राज्य के पहले उप राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया था. उनके पहले सत्यपाल मलिक जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे. जीसी मुर्मू का शुमार तेज तर्रार लोगों में था साथ ही वो गुजरात कैडर के 1985 बैच के आईएएस अफसर रह चुके हैं.
नेताओं में है जो न सिर्फ बहुत सुलझे हुए और शालीन हैं बल्कि जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) का भी नजदीकी माना जाता है.
मुर्मू के बाद बहुत सोच समझकर मोदी सर्कार द्वारा मनोज सिन्हा को जिम्मेदारी दी गयी है
बात मनोज सिन्हा के जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल नियुक्त हुए मनोज सिन्हा की हुई है. साथ ही हमने इस बात का भी जिक्र किया है कि मनोज सिन्हा का शुमार उन चुनिंदा लोगों में है जो प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के करीबी हैं इसलिए जिस वक्त 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए और उन चुनावों में कांग्रेस, सपा, बसपा के किलों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की तो सिन्हा का नाम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित हुआ.
स्वयं उत्तर प्रदेश की भाजपा इकाई में तमाम ऐसे लोग थे जिनका मानना था कि सिन्हा उत्तर प्रदेश की कमान अपने हाथ में लें और प्रधानमंत्री मोदी के विकास के उस सपने को पूरा करें जो उन्होंने देखा था.
गौरतलब है कि भाजपा नेता मनोज सिन्हा उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से सांसद रह चुके हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह रेलवे और दूरसंचार के राज्यमंत्री भी रह चुके है. लेकिन 2019 के आम चुनावों में उन्हें मुख़्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. इस हार के बाद मोदी 2.0 कैबिनेट में मनोज सिन्हा ने अपना हिस्सा गंवा दिया था. केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले के बाद एक बड़ा वर्ग वो भी है जो इस बात को स्वीकार रहा है सिन्हा को जम्मू कश्मीर का उपराज्यपाल नियुक्त करके कहीं न कहीं गाजीपुर के लोगों को इस बात का एहसास दिलाया गया है कि एक वोट की कीमत क्या होती है.
मुर्मू के बदले क्यों लाए गए सिन्हा
बात अगर मुर्मू को हटाने की अहम वजह की हो तो मुर्मू उस पॉलिटिकल वैक्यूम को भरने में असमर्थ साबित हुए जो जम्मू कश्मीर में 4G इंटरनेट की बहाली पर उनके रुख और नागरिक प्रशासन में ‘शिथिलता’ के कारण आया. ये बात काबिल ए गौर है कि आईएएस होने के कारण चीजों को लेकर मुर्मू का रवैया एक नौकरशाह जैसा था.
जबकि जैसे हालात कश्मीर में धारा 370 और 35 ए के बाद बने हैं वहां लोगों को एक ऐसा नेता चाहिए जो सीधे स्थानीय लोगों से जुड़ा हो और आम लोगों और उनकी समस्याओं का निस्तारण सीधे संवाद के जरिये हो. बाक़ी मुर्मू कई बार अपने बयानों के चलते अलोचना का सामना कर चुके हैं इसे भी उन्हें हटाने की एक बड़ी वजह की तरह देखा जा सकता है.
चूंकि मनोज सिन्हा भाजपा के एक ऐसे नेता हैं जिनका राजनीतिक कौशल जम्मू और कश्मीर में स्थिति को आसान बनाने में मदद करेगा इसलिए वो शिथिलता भरेगी जो यू टी बनने के बाद घाटी में आ गयी थी.
मुख्य सचिव से एक मत रहेंगे सिन्हा
मुर्मू के कार्यकाल का यदि अवलोकन किया जाए तो पूर्व में ऐसे तमाम मौके आए हैं जब जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम और मुर्मू में टकराव देखने को मिला. अब जबकि सिन्हा आ गए हैं तो ये मुख्य सचिव के साथ इसलिए भी बेहतर ढंग से काम कर पाएंगे क्योंकि दोनों ही गृह मंत्री अमित शाह के विश्वासपात्र हैं.
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन भी थे उम्मीदवार
जिस वक़्त मुर्मू के हटाए जाने की खबर की तस्दीख पार्टी आलाकमान ने कर दी, एक बड़े मुस्लिम चेहरे के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का भी नाम सामने आया. कहा गया कि आर्मी बैक ग्राउंड वाले अता हसनैन कश्मीर के पहले और बाद के दोनों ही हालातों से वाकिफ हैं. इसलिए वो उप राज्यपाल बन सकते हैं.
लेकिन बात वही थी पार्टी चाहती थी कि एक ऐसा नेता सामने आए जो नौकरशाह न हो और जनता एवं जन प्रतिनिधियों से सीधा संवाद स्थापित करे. जब परिस्थितियां ऐसी हों तो कहा यही जा सकता है की मनोज सिन्हा का नाम सामने लाकर पार्टी ने एक अक्लमंदी का फैसला किया.
बहरहाल अब जबकि मनोज सिन्हा कश्मीर पहुंच गए हैं. तो टकराव ख़त्म करने में सिन्हा क्या भूमिका निभाते हैं. जवाब हमें आने वाले वक्त में पता चल जाएंगे. लेकिन जैसी स्थिति कश्मीर की है, वहां एक ऐसा उपराज्यपाल चाहिए जो लोगों ने उनकी बात सुने. उनकी परेशानियों का निस्तारण कर उन्हें वो अच्छे दिन दे जिसका वादा संसद में सत्ताधारी दल और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा किया गया था.
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