मायावती की ब्राह्मण पॉलिटिक्स में सतीश चंद मिश्रा के लिए भी कुछ है क्या?
मायावती (Mayawati) के ब्राह्मण सम्मेलन (UP Brahmin Politics) ने यूपी के बाकी राजनीतिक दलों में भी वोट बैंक की होड़ लगा दी है, लेकिन सवाल ये है कि सत्ता में आने पर वो सतीश चंद्र मिश्रा (Satish Chandra Mishra) को कुछ एक्स्ट्रा देने के बारे भी सोच रही हैं क्या?
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दलित राजनीति करती आयीं मायावती (Mayawati) का ज्यादा जोर फिलहाल ब्राह्मण पॉलिटिक्स (UP Brahmin Politics) पर नजर आ रहा है. ब्राह्मण वोट बैंक से हद से ज्यादा उम्मीदें लिये बैठीं मायावती ने अकेले दम पर ही यूपी चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है - और बीएसपी के ब्राह्मण फेस सतीश चंद्र मिश्रा को जगह जगह भेज कर ब्राह्मण सम्मेलन करा रही हैं.
वैसे मायावती ने जातीय जनगणना के मुद्दे पर परोक्ष रूप से लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के स्टैंड का सपोर्ट किया है. परोक्ष रूप से इसलिए क्योंकि मायावती ने एक ट्वीट में लिखा है, 'देश में ओबीसी समाज की अलग से जनगणना कराने की मांग बीएसपी शुरू से ही लगातार करती रही है... अभी भी बीएसपी की यही मांग है और इस मामले में केन्द्र की सरकार अगर कोई सकारात्मक कदम उठाती है तो फिर बीएसपी इसका संसद के अंदर और बाहर भी जरूर समर्थन करेगी.'
मायावती ने लालू यादव और नीतीश कुमार का जानबूझ कर नाम नहीं लिया है - और केंद्र की मोदी सरकार का जिक्र कर ये मैसेज देने की कोशिश की है कि वो केंद्र सरकार के साथ है. मायावती मानती होंगी कि ओबीसी का वोट तो उनको मिलने से रहा. 2019 में सपा-बसपा गठबंधन तोड़ते वक्त भी मायावती का ही आरोप रहा कि दलितों के वोट तो समाजवादी पार्टी को मिल गये, लेकिन यादवों के वोट बीएसपी उम्मीदवारों को नहीं मिले. हकीकत तो ये थी कि बीएसपी के 10 उम्मीदवार सांसद बने और समाजवादी पार्टी के सिर्फ पांच.
वैसे यूपी में ब्राह्मण पॉलिटिक्स का माहौल तो बनने ही लगा है - कम से कम 'पंचायत आजतक उत्तर प्रदेश' कार्यक्रम में यूपी के नेताओं की बातों से तो ऐसा ही लगता है. हो सकता है ये सब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कथित रूप से ठाकुरवाद के लगने वाले आरोपों के खिलाफ कोई जवाबी राजनीतिक कोशिश हो - लेकिन मायावती का ब्राह्मण सम्मेलन भी कांग्रेस के उलेमा सम्मेलन जैसा ही लगता है, जिसे उनके ही पुराने साथी नसीमुद्दीन सिद्दीकी प्रियंका गांधी के दिशानिर्देशों के दायरे में अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं. ये दोनों ही सम्मेलन जिला स्तर पर हुए हैं.
बीएसपी की तरह से आज कल फील्ड में महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा (Satish Chandra Mishra) ही नजर आ रहे हैं. वही पंजाब जाकर अकाली दल नेता सुखबीर बादल के साथ मंच से बीएसपी के गठबंधन की घोषणा भी करते हैं और अयोध्या पहुंच कर ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत भी - ब्राह्मणों को कुछ देने के नाम पर मायावती ने सतीश चंद्र मिश्रा के लिए कुछ सोच भी रखा है क्या?
ब्राह्मणों से दलितों का कितना हिस्सा शेयर करेंगी मायावती
सतीश चंद मिश्रा भले ही बीएसपी का ब्राह्मण चेहरा हों, लेकिन यूपी में अब तक वो दलित नेता के तौर पर देखे गये हैं, न कि एक ब्राह्मण राजनीतिज्ञ के तौर पर. यूपी में जाति आधारित राजनीति करने वाली पार्टियों में पदाधिकारी और नेतृत्व भले ही उनकी जाति विशेष के हों, लेकिन सीटों पर तो यही देखने को मिलता है कि आबादी के हिसाब से ज्यादातर उम्मीदवार एक ही जाति से होते हैं - और ये समीकरण हर सीट पर दिखायी देता है. नतीजों में भले ही संख्या न दिखे, लेकिन उम्मीदवारों की लिस्ट में तो ऐसा ही नजारा होता है.
फिर भी सतीश चंद्र मिश्रा के ब्राह्मण सम्मेलन, जिसे तकनीकी वजहों से अलग नाम दिया जाता है, भीड़ तो हो ही रही है. अब मायावती जैसी न सही, लेकिन इतनी भीड़ तो हो ही रही है कि पुलिस को कार्यक्रम के आयोजक और स्थानीय बीएसपी नेता के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ रही है.
सतीश चंद्र मिश्रा को लेकर मायावती की तरफ से की जाने वाली कोई घोषणा ही बीएसपी का ब्राह्मण मैनिफेस्टो होगा
2 अगस्त को कासगंज के पटियाली में हुई जिस प्रबुद्धजन विचार गोष्ठी को लेकर केस दर्ज हुआ है, उसमें 15 हजार से ज्यादा प्रबुद्ध जनों का जमावड़ा बताया जा रहा है - और जब ब्राह्मणों का सम्मेलन हो तो ब्राह्मण ही रहे होंगे.
सतीश चंद्र मिश्रा का दावा है, 'बीएसपी पूरी क्षमता से सरकार बनाएगी... उत्तर प्रदेश को पिछले 10 साल में काफी पीछे धकेल दिया गया... उसे वापस लाने के लिए और कानून व्यवस्था को बनाने के लिए जनता बीएसपी की तरफ देख रही है... 2007 में मायावती जी के आह्वान पर ब्राह्मण समाज हमारे साथ आया था - और फिर इस बार तो कहीं ज्यादा सपोर्ट देखने को मिल रहा है.'
पंचायत आज तक में सतीश चंद्र मिश्रा से एक सवाल था - 'मायावती के बाद बीएसपी की विरासत कौन संभालेगा?'
और क्या मायावती के भतीजे आकाश आनंद बीएसपी में दूसरे नंबर की जगह लेंगे - और कमान संभालेंगे?
सतीश चंद्र मिश्रा ने ये सवाल एक तरीके से टाल दिया या कह सकते हैं कि आकाश आनंद को लेकर संभावनाओं को ही खारिज कर दिया, 'वो रोज बैठक करते हैं और वो हमारी पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर हैं... यहां कोई विरासत तय नहीं हो रही है, बल्कि नौजवान, बड़े बुजुर्ग लोग अपनी पूरी शक्ति के साथ लगे हुए हैं और पार्टी को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.'
बीएसपी की तरफ से पहला लगाया जाने वाला एक स्लोगन काफी चर्चित रहा है - 'तिलक, तराजू और तलवार...'. बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा का दावा है कि ये नारा कभी वो सुने ही नहीं.
शायद इसीलिए जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर बढ़ने की कोशिश करते हुए नया नारा लगा रहे हैं - 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा'.
देखने वाली बात ये होगी कि कहीं ब्राह्मण के शंख बजाने से हाथी भड़क न जाये और गुस्से में इधर उधर भागते किसी और खेमे में न घुस जाये! वैसे सतीश मिश्रा की ही तरह बाकी राजनीतिक पार्टियां भी ब्राह्मणों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में लगी हैं, लेकिन प्रमोद तिवारी के एक सवाल का किसी के पास जवाब नहीं है कि कांग्रेस ने तो यूपी को छह छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिये - कोई और भी ऐसा क्यों नहीं करता?
क्या मायावती की तरफ से सतीश चंद्र मिश्रा को डिप्टी सीएम बनाने की घोषणा न सही इशारा भी किया जा सकता है क्या? पंजाब में तो घोषणा हो चुकी है कि अकाली दल और बीएसपी गठबंधन के सत्ता में आने पर डिप्टी सीएम दलित समुदाय से ही होगा.
बीजेपी में ब्राह्मण नेता लामबंद होने लगे
यूपी की ब्राह्मण राजनीति पर पंचायत आज तक में बीजेपी को छोड़ कर शामिल सभी दलों के नेता ब्राह्मणों का दलितों की तरह जिक्र करते रहे, लेकिन कांग्रेस के सीनियर नेता प्रमोद तिवारी के सवाल का जवाब बाकी दल ब्राह्मण मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाते?
समाजवादी पार्टी के पवन पांडेय ने कहा कि बीजेपी में ब्राह्मण उत्पीड़न का सबसे जीवंत उदाहरण तो लक्ष्मीकांत वाजपेयी ही हैं. लक्ष्मीकांत वाजपेयी यूपी बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं.
फिर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने गोविंद वल्लभ पंत से लेकर कमलापति त्रिपाठी और नारायण दत्त तिवारी तक कांग्रेस सरकार में छह ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों के नाम भी गिनाये और सवाल उठाया कि कोई भी पार्टी यूपी में ब्राह्मण मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाती? फिर हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि अगर बीजेपी घोषणा कर दे कि लक्ष्मीकांत वाजपेयी यूपी के अगले सीएम होंगे तो हम लोग इनको वॉकओवर दे देंगे - मैदान छोड़ कर हट जाएंगे.
यूपी में ब्राह्मण राजनीति को गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद ज्यादा जोर पकड़ते देखा गया - हालांकि, कोई भी राजनीतिक दल सीधे सीधे विकास दुबे का नाम लेने से परहेज करता है.
समाजवादी पार्टी नेता पवन पांडे ने सवाल किया कि खुशी दुबे का अपराध क्या है कि उसे जेल में डाल दिया गया है? खुशी दुबे, विकास दुबे गैंग के अमर दुबे की पत्नी है और यूपी पुलिस ने उसका भी एनकाउंटर कर दिया था. अमर और खुशी की शादी एनकाउंटर से कुछ ही समय पहले हुई थी.
पवन पांडेय ने ब्राह्मण समाज के बीजेपी से नाराज होने का दावा करते हुए ये भी दावा करते हैं कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ विकास दुबे ही नहीं, बल्कि करीब एक हजार ब्राह्मणों का एनकाउंटर हुआ है.
सबसे दिलचस्प रहा रीता बहुगुणा जोशी का मुद्दा उठाया जाना और बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी का जवाब. पवन पांडे ने सवाल उठाया कि रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने वाले को बीजेपी की सदस्यता दे दी गयी. खुशी दुबे के सवाल पर पवन पांडे की बात काटते हुए लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि विपक्ष के लोग खुशी दुबे के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, लेकिन उनको न्याय नहीं दिलाना चाहते.
लक्ष्मीकांत वाजपेयी की बातें सुन कर रीता बहुगुणा जोशी को खुशी जरूर हुई होगी कि कम से कम एक बीजेपी नेता तो खुल कर उनके सपोर्ट में खड़ा हुआ है. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने साफ तौर पर कहा, 'रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने वाले को अगर पार्टी की सदस्यता दी गयी है तो ये गलत है.'
ये बीजेपी में ब्राह्मण नेताओं के एकजुट होने का संकेत है. अब तक रीता बहुगुणा जोशी अकेले नजर आ रही थीं - और आलाकमान से शिकायत दर्ज कराने की बात कर रही थीं. अलग से लक्ष्मीकांत वाजपेयी एक नाम सही, लेकिन किसी बीजेपी नेता ने खुल कर सार्वजनिक तौर पर बोला तो है.
ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवाद के कथित आरोप यूं ही नहीं लग रहे हैं, बीजेपी में ब्राह्मण नेता अंदर ही अंदर खफा हैं - और लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने ऐसे नेताओं के मन की बात ही कही है.
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