यूपी में सीट बंटवारे की राजनीति में भी अखिलेश पर भारी पड़ीं मायावती
यूपी गठबंधन में हुए सीटों के बंटवारे में दो बातें साफ तौर पर नजर आ रही हैं. एक, सीटों के मामले में भी दबदबा मायावती का ही रहा. दो, बीजेपी और कांग्रेस से दो-दो हाथ करने के लिए ज्यादातर मोर्चों पर अखिलेश यादव ही होंगे.
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यूपी गठबंधन में मायावती का दबदबा कायम है. गठबंधन के ऐलान के वक्त भी मायावती को अखिलेश यादव पर हावी महसूस किया गया था, सीटों के बंटवारे में भी वैसा ही एहसास हो रहा है.
उत्तर प्रदेश की 38 सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी और 37 सीटों पर समाजवादी पार्टी. पहले दोनों को बराबर सीटों पर चुनाव लड़ना था लेकिन गठबंधन में शामिल अजीत सिंह की आरएलडी के लिए अखिलेश यादव को अपने हिस्से की एक सीट छोड़नी पड़ी है. बंटवारे में समाजवादी पार्टी के खाते में ज्यादातर शहरी सीटें आईं है जिससे नेताओं में अंदर ही अंदर काफी निराशा है लेकिन कोई खुल कर अपनी बात नहीं कह रहा है. ऐसा लगता है गठबंधन को लेकर मुलायम सिंह यादव ने ऐसे ही कार्यकर्ताओं के मन की बात कही है कि आधे में क्या चुनाव लड़ेंगे.
गठबंधन में चल रही है मायावती की मनमर्जी
शहरी इलाके की सीटें तो बीएसपी ने भी ली है, लेकिन वहीं जहां वो पहले जीत चुकी है. समाजवादी पार्टी को शहरी इलाके की वो सीटें मिली हैं जहां वो कभी जीती ही नहीं. बंटवारे का सीधा फॉर्मूला तो यही है कि पिछले चुनाव में जो पार्टी दूसरे नंबर पर थी उसे वो सीट लेनी चाहिये. फिर भी बीएसपी के खाते में कई ऐसी सीटें भी गयी हैं जहां वो तीसरे नंबर पर रही.
एनसीआर की दो सीटें गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद के जरिये बंटवारे को समझने की कोशिश की जा सकती है. गौतमबुद्ध नगर की सीट बीएसपी के हिस्से में गयी है जबकि गाजियाबाद सीट समाजवादी पार्टी को मिली है. 2014 के लोक सभा चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के नरेंद्र भाटी दूसरे स्थान पर रहे, जबकि बीएसपी के सतीश कुमार तीसरे नंबर पर.
माना जा रहा है कि पैतृक स्थल होने के चलते मायावती ने नोएडा अपने पास रखा है. वैसे 2009 में बीएसपी के सुरेंद्र सिंह नागर इस इलाके से जीते थे.
गाजियाबाद ऐसी सीट है जिस पर पिछले चुनाव में बीएसपी तीसरे और समाजवादी पार्टी चौथे स्थान पर रही. देखा जाये तो 2004 में कांग्रेस की जीत को छोड़ दें तो 1991 से अब तक ये सीट बीजेपी के पास रही है.
नोएडा के अलावा आगरा और मेरठ भी ऐसी सीटें हैं जहां पहले बीएसपी के सांसद रह चुके हैं. रामपुर की सीट पर 2004 और 2009 में जया प्रदा समाजवादी पार्टी की सांसद रही हैं, 2014 में समाजवादी पार्टी यहां दूसरे स्थान पर रही. रामपुर सीट तो समाजवादी पार्टी को मिली है लेकिन तीसरे स्थान पर रहने के बावजूद बीएसपी ने अमरोहा सीट हथिया ली है. नगीना और बिजनौर में भी पिछली बार समाजवादी पार्टी से पिछड़ने के बावजूद बीएसपी ने अपने कोटे में रखा है.
अखिलेश यादव अनुभव का लाभ लेना चाहते थे, मायावती पूरा फायदा उठा रही हैं...
अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी से मायावती के मुकाबले ज्यादा बातचीत अखिलेश यादव से ही हुई है. कैराना उपचुनाव में भी मायावती का सपोर्ट सिर्फ बाहर से था. कैराना में समाजवादी पार्टी की नेता को आरएलडी की टिकट पर चुनाव लड़ाया गया था और उसी के साथ पार्टी की लोक सभा में एंट्री भी हो पायी. इस बार भी आरएलडी कोटे की एक सीट पर ऐसा ही तरीका अपनाया जा सकता है.
आरएलडी को गठबंधन में तीन सीटें - बागपत, मथुरा और मुजफ्फरनगर मिली हैं. देखा जाये तो अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को तीसरी सीट अपने हिस्से से दी है. गठबंधन में कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली के बाद दो ही सीटें छोड़ी गयी थीं.
बंटवारे में 10 साल पुरानी हिस्सेदारी बनी आधार
बताते हैं कि गठबंधन में सीटों को बंटवारे को लेकर 2014 नहीं बल्कि 2009 के चुनावी नतीजों को आधार माना गया है. बीएसपी और समाजवादी पार्टी दोनों ही का मानना है कि 2014 की मोदी लहर के चलते उनके वोट भारी मात्रा में कट गये थे. 2009 में समाजवादी पार्टी ने 23 सीटें जीती थीं और बीएसपी ने 20. उस चुनाव में बीजेपी को 10 और आरएलडी को 5 सीटें मिली थीं.
जहां तक वोट शेयर का सवाल है तो समाजवादी पार्टी की हिस्सेदारी 23.4 फीसदी और बीएसी की 27.5 फीसदी रही.
बीजेपी और कांग्रेस से सपा की सीधी टक्कर
यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 12 सीटें शहरी इलाके की हैं जिनमें से 9 पर समाजवादी पार्टी और 3 सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी. सूबे में सुरक्षित 17 सीटों में से 10 पर बीएसपी के उम्मीदवार मैदान में होंगे जबकि 7 पर समाजवादी पार्टी के.
उपचुनावों में विपक्ष के हिस्से में आयी तीनों सीटों समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ेगी - गोरखपुर, फूलपुर और कैराना. गोरखपुर और फूलपुर फिलहाल समाजवादी पार्टी के पास है जबकि कैराना आरएलडी के पास.
बंटवारे की एक और खास बाद नजर आ रही है. ऐसा लगता है जैसे मायावती ने बीजेपी और कांग्रेस से मोर्चा लेने के लिए अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को आगे कर दिया है.
लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, कानपुर, इलाहाबाद, मुरादाबाद, बरेली और झांसी जैसी सीटों पर समाजवादी पार्टी को बीजेपी से सीधी टक्कर लेनी होगी. हां, मेरठ, आगरा और गौतमबुद्ध नगर जरूर ऐसे लोक सभा क्षेत्र हैं जिन पर बीएसपी को बीजेपी से भिड़ना होगा.
वाराणसी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है वहीं गोरखपुर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इलाका है. लखनऊ सीट कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से जानी जाती रही और फिलहाल वहां से गृह मंत्री राजनाथ सिंह सांसद हैं. कानपुर से बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी सांसद हैं.
बीजेपी की ही तरह समाजवादी पार्टी को कांग्रेस से भी भिड़ना होगा जिसमें जान फूंकने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा मैदान में उतर चुकी हैं. 2014 कांग्रेस जीती तो सिर्फ दो सीटों पर लेकिन छह सीटें ऐसी भी रहीं जहां उसे दूसरी पोजीशन हासिल हुई. लखनऊ, कानपुर, कुशीनगर, गाजियाबाद, सहारनपुर और बाराबंकी ऐसी ही संसदीय सीटें हैं - खास बात ये है कि इन पर इस बार गठबंधन की ओर से समाजवादी पार्टी अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है. वाराणसी और मिर्जापुर में भी कांग्रेस को समाजवादी पार्टी से ज्यादा वोट मिले थे - और इस बार भी गठबंधन की ओर से उसे ही जूझना है.
समाजवादी पार्टी के अंदर माना जा रहा है कि पार्टी को शहरी सीटें लेने से बचना चाहिये था क्योंकि असली वोट बैंक गांवों में है. कुछ नेता गठबंधन के चक्कर में समाजवादी नेतृत्व की चूक मान रहे हैं.
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