सपा-बसपा गठबंधन के ऐलान में मायावती-अखिलेश यादव की 5 बड़ी बातें
यूपी गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखने के पीछे मायावती ने वजह वोट ट्रांसफर न होना बताया है. मायावती और अखिलेश यादव दोनों की जीत का भरोसा तो है, लेकिन EVM और राम मंदिर का मुद्दा उन्हें अब भी डरा रहा है.
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यूपी में मायावती और अखिलेश यादव ने चुनावी गठबंधन की औपचारिक घोषणा कर दी है. आने वाले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों ही बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.
लखनऊ में मायावती ने खुद को गठबंधन की नेता के तौर पर पेश किया और हर तरीके से संदेश देने की कोशिश की कि ड्राइविंग सीट पर वो ही बैठी हुई हैं. अखिलेश यादव भी पूरी श्रद्धा, सम्मान और एहसान के साथ के इसे कबूल करते नजर आये.
मायावती ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन को क्रांतिकारी करार देते हुए कहा कि इससे मोदी-शाह की गुरु-चेले की जोड़ी की नींद उड़ाने वाली है. यूपी गठबंधन को लेकर जो सवाल लगातार उठ रहा था, मायावती ने सबसे पहले उसी का उत्तर दिया कि कांग्रेस को गठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया.
1. कांग्रेस गठबंधन से बाहर ही नहीं, यूपी में किनारे भी
2017 में जिस जगह से अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ सार्वजनिक रूप से हाथ मिलाया था, लखनऊ की उसी जगह से बीएसपी के साथ गठबंधन पर मुहर लगायी गयी. फर्क सिर्फ इतना रहा कि अखिलेश यादव के साथ इस बार राहुल गांधी की जगह मायावती बैठी थीं. लखनऊ के ताज होटल में शुरुआत भी मायावती ने ही की. यूपी गठबंधन के ऐलान के साथ ही मायावती बीजेपी पर हमलावर रहीं और कांग्रेस को भी उसी जैसा बताया. मायावती ने बताया कि बोफोर्स घोटाले के बाद जो हाल कांग्रेस का हुआ था राफेल के बाद बीजेपी का भी वही हश्र होने वाला है. कांग्रेस ने घोषणा करके आपातकाल लागू किया था, बीजेपी ने अघोषित इमरजेंसी लगा रखी है - और इसके चलते बीजेपी का भी वही हाल होगा जो 1977 में कांग्रेस का हुआ था. मायावती की राय में कांग्रेस के कुशासन के कारण ही समाजवादी पार्टी और बीएसपी जैसे दलों का उदय हुआ और अब ये ही बीजेपी को भी पटखनी देंगे.
मायावती ने बताया कि गठबंधन के तहत बीएसपी और समाजवादी पार्टी दोनों ही 38-38 सीटों पर लड़ेंगे. कांग्रेस से गठबंधन न होने के बावजूद अमेठी और रायबरेली की दो सीटों पर गठबंधन की ओर से कोई उम्मीदवार नहीं होगा. ऐसा इसलिए कि वोट बंट जाने के कारण कहीं बीजेपी इसका फायदा न उठा ले. बाकी बची दो सीटों के बारे में जब पूछा गया तो मायावती ने बाद में जानकारी देने की बात कह कर टाल दिया. ऐसा लगता है, दोनों सीटें अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी के लिए छोड़ी गयी हैं जहां कम से कम 6 सीटों की मांग थी.
सपा-बसपा गठबंधन से कांग्रेस बाहर
कांग्रेस की तमाम खामियां गिनाने के साथ ही मायावती उसे गठबंधन से बाहर रखने की जो वजह बतायी वो है - वोट ट्रांसफर. मायावती ने बताया कि 1996 में कांग्रेस के साथ गठबंधन का अनुभव बेहद खराब रहा. कांग्रेस को तो गठबंधन का पूरा फायदा मिल जाता है, लेकिन बीएसपी को नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि कांग्रेस का वोट ट्रांसफर नहीं होता. इस सिलसिले में मायावती ने 2017 के कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन के कड़वे अनुभव की भी याद दिलायी.
इस मामले में बीएसपी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को मायावती ने अच्छा बताया. 1993 में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव के बीच हुए गठबंधन का जिक्र करते हुए मायावती ने कहा कि वो लंबा तो नहीं चला लेकिन वोट ट्रांसफर में कोई दिक्कत नहीं हुई.
2. गठबंधन पर हावी मायावती
मायावती के मन में यूपी के गेस्ट हाउस कांड की टीस अब भी बरकरार है. जिस तरह बिहार में लालू प्रसाद यादव ने जहर पीने की बात कही थी, मायावती ने भी बताया कि अब वो गेस्टहाउस की घटना पर देशहित को तरजीह दे रही हैं. मायावती के लहजे से साफ था कि गेस्ट हाउस कांड का मलाल आज भी है. यूपी में बसपा-सपा गठबंधन का एलान करते हुए मायावती और अखिलेश यादव के बीच कॉमन बात ये दिखी कि दोनों ने ही पहले से लिखे हुए बयान पढ़े. मायावती तो हमेशा ऐसा करती आयी हैं - लगता है अखिलेश यादव भी अब फॉलो करने लगे हैं.
अखिलेश ने मायावती को नेता माना
कन्नौज में अखिलेश यादव ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा था कि गठबंधन के हित में वो अपने कदम पीछे खींचने को भी खुशी खुशी तैयार हैं. जूनियर पार्टनर के सवाल पर भी मायावती के बारे में अखिलेश ने कहा था, 'जूनियर या सीनियर पार्टनर का सवाल नहीं है... उनके पास मुझसे अधिक अनुभव है... सीटों की संख्या इस गठबंधन में रुकावट नहीं बनेगी... हमारा मकसद बीजेपी को हराना है.'
अखिलेश ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में भी दोहराया कि गठबंधन के लिए वो दो कदम पीछे हटने को भी तैयार थे - लेकिन मायावती ने उन्हें बराबरी का हक दिया है. ऐसी ही आतुरता अखिलेश यादव ने तब भी दिखायी थी जब 2017 में कांग्रेस से गठबंधन होना था - वो लगातार कहते रहे अगर साइकिल पर हाथ लग जाये तो स्पीड बढ़ जाएगी.
मायावती गठबंधन में किस कदर हावी हैं, ये नजारा तब भी दिखा जब अखिलेश यादव से एक सवाल पूछा गया. जैसे ही अखिलेश बोलने को हुए, मायावती ने उन्हें कुछ हिदायत दी - फिर अखिलेश गोल मोल जवाब देकर चुप हो गये.
3. अखिलेश यादव गठबंधन की पिछली सीट पर
विरोधी राजनीतिक दलों के गठबंधन में सबसे बड़ा चैलेंज कार्यकर्ताओं के सामने होता है. बड़े नेता तो आपस में मिल जाते हैं जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के सामने मुश्किल होती है - समाज के हर मोड़ पर राजनीति के चलते कदम कदम पर जिनके खिलाफ रहे होते हैं उन्हीं के साथ गले मिलना पड़ता है.
समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने इसकी तैयारी पहले से ही कर रखी थी - और दोनों नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस खत्म होने के बाद दोनों दलों के कार्यकर्ता कैमरे के सामने चुनाव में साथ होने की बात कर रहे थे.
मायावती ने खुल कर अपील भी की कि वो बीजेपी के बहकावे में कतई न आयें और गठबंधन की जीत सुनिश्चित करने के लिए एक रहें. इस दौरान मायावती ने खास तौर पर शिवपाल यादव का नाम भी लिया और समझाया कि ऐसे कई नेता और पार्टियां भ्रम फैलाने की कोशिश करेंगी लेकिन कार्यकर्ता सतर्क रहें. बीजेपी को निशाने पर लेते हुए मायावती ने यहां तक कहा कि शिवपाल यादव पर पानी की तरह बहाया गया पैसा भी अब बेकार जाएगा. गठबंधन के औपचारिक ऐलान से पहले ही दोनों दलों की ओर से तैयारी नजर दिखी. पूरा लखनऊ शहर झंडे, बैनर और पोस्टरों से पटा नजर आने लगा था. मौके के हिसाब से खास स्लोगन भी गढ़े गये हैं - 'अब परिवर्तन लाना है, झूठ बोलने वाले को सत्ता से हटाना है' और 'इस बार मांग रहा है देश, अबकी माया और अखिलेश.'
अखिलेश यादव ने भी अपनी ओर से कोई कसर बाकी न रखी. कार्यकर्ताओं से साफ साफ कह दिया कि वे गांठ बांध लें - 'मायावती का सम्मान मेरा सम्मान और अपमान मेरा अपमान.' मायावती से जब गठबंधन की उम्र के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसे लंबा और स्थाई बताया. मायावती ने यहां तक कहा कि ये गठबंधन लोक सभा चुनाव से आगे भी यानी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों तक चलेगा.
4. मायावती प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार !
जैसे कि देश के हर बड़े नेता के दिल के किसी कोने में प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश होती है, मायावती के भी दिल में हैं. इस ख्वाहिश का इजहार वे तीन दशक से भी अधिक के अपने राजनीतिक जीवन में कई बार करती आई हैं. शनिवार को भी जब मायावती और अखिलेश यादव के सामने देश के प्रधानमंत्री पद पर उम्मीदवारी की बात चली, तो नजारा दिलचस्प हो गया. एक पत्रकार ने अखिलेश से सवाल किया कि क्या वे मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में सपोर्ट करेंगे? अखिलेश यादव ने इसका जवाब गोलमोल दिया. अखिलेश बोले, 'आपको तो पता है मैंने किसका सपोर्ट किया है... हम चाहेंगे यूपी से ही फिर पीएम बने.' मायावती के इस जवाब को सुनकर मुस्कुराती रहीं.
वैसे भी प्रधानमंत्री पद के सारे दावेदार तो फिलहाल यूपी से ही हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी. एक टीवी डिबेट में समाजवादी पार्टी के नेता ने अखिलेश यादव की भी दावेदारी जता दी - यूपी से तो हमारे नेता अखिलेश यादव भी आते हैं.
5. पहले सांप्रदायिक, अब बीजेपी जातिवादी भी
बीजेपी के विरोधी शुरू से ही उस पर सांप्रदायिकता के आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन मायावती ने इस बार उसे घोर जातिवादी पार्टी बताया है. सुर में सुर मिलाते हुए अखिलेश यादव ने भी कहा कि बीजेपी ने यूपी को जाति प्रदेश बना दिया है. अखिलेश यादव ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों के इलाज से पहले या थाने में रिपोर्ट लिखे जाने से पूर्व लोगों से उनकी जाति पूछी जा रही है - यहां तक कि बीजेपी अब भगवान को भी जातियों में बांटने लगी है. ऐसा कहना तो योगी आदित्यनाथ के उस बयान की ओर ध्यान दिलाता है जिसमें उन्होंने हनुमान को दलित बताया था - लेकिन क्या ये बीजेपी से सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण वाला बिल लाने को लेकर गुस्सा तो नहीं है?
गठबंधन में पूरा भरोसा जताते हुए मायावती ने कहा कि वो बीजेपी को निश्चित रूप से हराएंगे, बशर्ते - EVM से कोई खिलवाड़ न हो और राम मंदिर के नाम पर बीजेपी लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ न करे. यानी, गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती राम मंदिर निर्माण का ही मुद्दा है.
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