इन 5 देशों में ‘सेक्युलर’ का क्या मतलब है
21वीं सदी में पूरी दुनिया ग्लोबलाइजेशन के सूत्र में पिरोई जा रही है. ऐसे में अगर भारत में सेक्युलरिज्म पर बहस छिड़ि है तो यह जान लेना जरूरी है कि दुनिया के कुछ प्रमुख देशों में सेक्युलर शब्द के क्या मायने हैं.
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संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है और ‘सेक्युलर’ शब्द पर बड़ी बहस छिड़ी हुई है. इस बहस की शुरुआत गृह मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान के बाद हुई जिसमें उन्होंने दावा किया कि 42वें संशोधन से संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द डालने के बाद से देश की राजनीति में इस शब्द का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है. राजनाथ सिंह ने कहा कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने इस शब्द को संविधान के प्रस्तावना में डालने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि भारतीय व्यवस्था में ‘सेक्युलरिज्म’ निहित है. इसके साथ ही राजनाथ सिंह ने यह दावा भी किया कि ‘सेक्युलर’ शब्द का सही अनुवाद पंथनिरपेक्षता होना चाहिए और न कि धर्मनिरपेक्षता, जिसका संविधान में इस्तेमाल किया जा रहा है.
कांग्रेस का आरोप है कि सत्तारूढ़ बीजेपी की तरफ से संविधान दिवस के मौके पर ‘सेक्युलर’ शब्द पर विवाद खड़ा करना महज एक दक्षिणपंथी साजिश है. इसमें वह अपना निजी स्वार्थ साध रही है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राजनाथ के बयान पर सत्तारूढ़ पार्टी को चेतावनी दे डाली कि अगर संविधान में इस शब्द के साथ कोई छेड़छाड़ हुई तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. वहीं वामदलों से सीताराम येचुरी ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार देश के संविधान से ‘सेक्युलरिजम’ और ‘सोशलिज्म’ शब्द को निकालने की तैयारी कर रही है जिससे आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के एजेंडे पर काम किया जा सके.
बहरहाल, संविधान में इस शब्द अथवा किसी अन्य शब्द पर बहस का रास्ता हमेशा खुला रहता है, क्योंकि वस्तुत: यह संविधान ‘वी द पीपुल’ द्वारा ‘फॉर द पीपुल’ ग्रहण किया गया है. लिहाजा इस बहस को ज्यादा विस्तृत और तर्कसंगत बनाने की जरूरत है क्योंकि 1950 में संविधान बन कर तैयार होने के बाद से 1976 के 42वें संशोधन तक (‘सेक्युलरिजम’ शब्द को शामिल किया गया था) से लेकर अब 21वीं सदी में पूरी दुनिया ग्लोबलाइजेशन के सूत्र में पिरोई जा चुकी है. आज किसी भी देश की कोई भी बड़ी-छोटी घटना दुनिया के किसी भी कोने पर असर डाल सकती है. उसपर जब बात धर्म से जुड़ी हो और खतरा आतंकवाद जैसा हो तो यह जानना जरूरी हो जाता है कि दुनिया के अलग-अलग कोने में इस शब्द के क्या मायने हैं.
अमेरिका अमेरिका एक सेक्युलर राष्ट्र है. अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन (फर्स्ट अमेंडमेंट) में यह सिद्धांत साफ तौर पर इंगित है कि उसके नागरिकों को अपने धर्म पर निर्णय करने का पहला और अंतिम अधिकार है. इसके साथ ही किसी नागरिक की धर्म की समझ के बीच अमेरिका की सरकार किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगी. वहीं इसके उलट अमेरिकी संविधान ईश्वर को साक्षी मानकर लागू किया गया है. चर्च, क्रॉस और धार्मिक कहावतों पर सरकार की पूरी आस्था है क्योंकि देश के न्यायालयों, सरकारी भवनों और स्कूली भवनों पर इसका प्रदर्शन देखा जा सकता है. इसके साथ ही देश में धार्मिक प्रार्थना के साथ ही दिन के कामकाज और स्कूल में पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत होती है.
लिहाजा, अमेरिकी स्थिति को बेहतर समझने के लिए वहां चल रहे राष्ट्रपति चुनावों की प्राइमरी को देखा जा सकता है. फ्लोरिडा राज्य के रिपब्लिकन सिनेटर मार्को रूबियो ने पार्टी से उम्मीदवारी के लिए प्राइमरी के दौरान कहा था कि अमिरका का राष्ट्रीय मोटो है ‘इन गॉड वी ट्रस्ट’. इसी मोटो के चलते अमेरिका इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने में कामयाब होगा. इस बयान के बाद से मार्को रूबियो को आगामी चुनावों में प्रबल रिपब्लिकन उम्मीदवार माना जा रहा है.
फ्रांस सेक्युलरिज्म का सर्वप्रथम इस्तेमाल फ्रांस में शुरू हुआ. फ्रांस के संविधान के पहले अनुच्छेद मंस लिखा गया है कि फ्रांस एक सेक्युलर रिपब्लिक है. हालांकि, अमेरिका से उलट फ्रांस में इस शब्द का मतलब है कि सरकार के कामकाज में धर्म का कोई स्थान नहीं है. लिहाजा, फ्रांस में इस शब्द की प्रतिक्रियावादी परिभाषा देखने को मिलती है. इस परिभाषा का मूल सिद्धांत चर्च और स्टेट के प्रृथक स्वरूप से है और इसीलिए फ्रांस की सरकार किसी भी धर्म को नहीं मानती और न ही किसी धार्मिक मान्यता पर वह अपने कानून में कोई फेरबदल करती है. इसी के चलते फ्रांस में सभी धर्म के लोगों से एक समान आचरण की उम्मीद की जाती है.
लिहाजा, मुस्लिम महिलाओं द्वारा बुर्का और सिख द्वारा पग पहनने पर पाबंदी लगी हुई है. यहां तक कि जब दुनिया के कई देशों में ईस्टर पर घोषित अवकाश रहता है, फ्रांस में इस दौरान स्प्रिंग अवकाश रहता है जिसमें जरूरी नहीं है कि ईस्टर शामिल हो.
इंग्लैंड इंग्लैंड में सेक्युलर की परिभाषा एक सतत प्रक्रिया के तहत लगातार डेवलप हो रही है. चर्च ऑफ इंग्लैंड पूरे देश का स्थापित धर्म है. इंग्लैंड का राजघराना चर्च ऑफ इंग्लैंड की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. इंग्लैंड की संसद में हाउस ऑफ लॉर्ड्स में चर्च के प्रतिनिधि शामिल रहते हैं. इन सबके बावजूद इंग्लिश समाज काफी हद तक सेक्युलर है. संसद में शपथ लेने के लिए सांसदों को राजघराने के प्रति अपनी आस्था जाहिर करनी पड़ती है, हालांकि यह सांसदों के विवेक पर है और वे धार्मिक अथवा गैर-धार्मिक शपथ लेकर भी संसद में बैठ सकते हैं. इसके साथ है इंग्लैंड में दूसरे धर्मों के ऊपर भी किसी तरह की पाबंदी नहीं है. यह इस सेक्युलर महौल का ही नतीजा है कि राजधानी लंदन में चर्च के साथ-साथ बड़ी संख्या में मस्जिद और गुरुद्वारे भी मौजूद हैं.
इसके साथ ही इंग्लैंड की संसद में मौजूद चर्च ऑफ इंग्लैंड के प्रतिनिधि देश में बनने वाले हर कानून में अपना वोट देने का अधिकार रखते हैं. चर्च को धर्म के विस्तार के लिए देशभर में और दुनिया में स्कूल खोलने का अधिकार है और इसके लिए भी इंग्लैंड का राजघराना चर्च की पूरी मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है.
चीन चीन में सेक्युलरिज्म का एकदम नया चेहरा देखने को मिलता है. चीन की सत्तारूढ़ वामपंथी पीपुल्स पार्टी देश को धर्म में विश्वास नहीं रखते हुए बतौर एक अथीस्ट देखती है. इसके साथ ही चीन सरकार की तरफ से किसी भी धर्म को मान्यता नहीं दी जाती. हालांकि चीन के हालात काफी कुछ भारत की तरह हैं जहां कई धर्म और संप्रदाय के लोग मौजूद हैं. सामाजिक और आर्थिक बदलाव के मौजूदा दौर में अब चीन सरकार धीरे-धीरे जनता को अपने धर्म की और जाने की छूट दे रही है. वहीं सेक्युलरिज्म पर चीन की पार्टी का मानना है कि उसका एथीस्ट होना ही सेक्युलरिज्म का सबसे अहम स्वरूप है.
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