कश्मीरी नेताओं के पास धारा 370 और 35A के अलावा कोई और मुद्दा क्यों नहीं?
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और 35A को लेकर चुनावी तकरार तेज हो चली है. अमित शाह के एक बयान पर भड़कीं महबूबा अलगाववादियों की भाषा बोल रही हैं तो उमर अब्दुल्ला अलग PM की - क्या कश्मीरी नेताओं के पास बोलने को कुछ और नहीं है?
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जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को लेकर चुनावी तकरार चरम पर है. जम्मू-कश्मीर को लकेर धारा 370 के साथ साथ अनुच्छेद 35A को लेकर बहस तेज हो चुकी है. इस सिलसिले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बयान के बाद पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती आक्रामक हो चुकी हैं. यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की उम्मीद जगानी शुरू कर दी है.
क्या ये सब सिर्फ इसीलिए हो रहा है क्योंकि जम्मू-कश्मीर के नेताओं के पास वोट मांगने का कोई और आधार नहीं है? आखिर ऐसा क्यों होता है कि फारूक अब्दुल्ला दिल्ली में अलग बात करते हैं, कोलकाता में अलग बयान देते हैं और श्रीनगर पहुंचते ही उनकी भाषा और जबान फिसलने लगते हैं?
जो महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री रहते कहा करती थीं कि कश्मीर समस्या का समाधान अगर कोई कर सकता है तो वो सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं - और आज अनंतनाग से 2020 की डेडलाइन बता रही हैं.
ये 2020 की डेडलाइन चुनाव बाद भी सुनाई देगी क्या?
अनंतनाग लोक सभा सीट पिछले दो साल से खाली पड़ी है. 2014 में महबूबा मुफ्ती ही अनंतनाग सीट से जीती थीं - लेकिन जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. बाद में अनंतनाग और श्रीनगर संसदीय सीट के लिए उपचुनाव की घोषणा की गयी, लेकिन माहौल ठीक न होने के कारण चुनाव आयोग ने उपचुनाव रद्द कर दिया. तब से लेकर अब तक अनंतनाग में चुनाव हो ही नहीं पाये. इस बार भी अनंतनाग देश की अकेली संसदीय सीट है जहां तीन चरणों में चुनाव कराये जा रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने फिर अनंतनाग से नामांकन दाखिल किया है. तीन चरणों में चुनाव कराये जाने के अलावा भी अनंतनाग में कई दिलचस्प वाकये हुए हैं. जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस में चुनावी समझौता हुआ है लेकिन अनंतनाग सहित दो सीटें ऐसी हैं जहां दोनों फ्रेंडली मैच खेल रहे हैं. अनंतनाग में महबूबा के खिलाफ चुनाव मैदान में नेशनल कांफ्रेंस के हसनैन मसूदी, कांग्रेस के गुलाम अहमद मीर और बीजेपी की ओर से सोफी यूसफ उतारे गये हैं.
अनंतनाग से नामांकन दाखिल करने के बाद महबूबा फिर से पूरे फॉर्म में देखी गयीं. महबूबा मुफ्ती ने कहा कि जिन शर्तों के साथ जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ था अगर उन्हें वापस लिया जाता है तो सूबे के लोग अपना नाता तोड़ लेंगे.
महबूबा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, 'जम्मू कश्मीर की ओर से 2020 की समय सीमा होगी... अगर जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समय तय किये गये नियमों और शर्तों को हटाया गया तो हमारे संबंध देश के साथ समाप्त हो जाएंगे.'
सवाल ये है कि महबूबा मुफ्ती ने जो डेडलाइन दी है वो सिर्फ चुनावी है या फिर 23 मई के बाद भी प्रभावी रहेगी? पिछले पांच साल में महबूबा मुफ्ती को किसी एक स्टैंड पर कायम नहीं देखा गया है.
बहुमत मिलने पर बीजेपी धारा 370 और 35A पर अपना एजेंडा लागू करेगी.
महबूबा मुफ्ती अमित शाह के उस बयान पर रिएक्ट कर रही थीं जिसमें बीजेपी अध्यक्ष ने 2020 तक जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और अनुच्छेद 35A को खत्म करने की बात कही थी. अमित शाह ने कहा था कि ये शुरू से बीजेपी के एजेंडे में है और जब पार्टी के पास राज्य सभा में भी बहुमत होगा तो वो अपने एजेंडे को लागू करेगी.
'जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है'
महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली पीडीपी-बीजेपी की साझा सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद अमित शाह जून, 2018 में जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गये थे. मौका था जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस का और मंच से महबूबा मुफ्ती को खूब खरी खोटी सुनायी थी.
जम्मू पहुंचे अमित शाह ने नारा दिया है - 'जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है, जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है, वो सारा का सारा है.'
मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ बीजेपी के गठबंधन को शुरू में ही बेमेल माना गया था - और नतीजा भी वही हुआ. जैसे तैसे गठबंधन सरकार चली लेकिन किसी भी मामले में कोई खास प्रगति नहीं हो सकी, सिवा ये होने के कि सूबे में जनता द्वारा चुनी हुई एक लोकतांत्रिक सरकार थी. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है.
अमित शाह ने आरोप लगाया है कि '70 साल तक नेशलन कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस ने जम्मू और लद्दाख क्षेत्र के साथ सौतेला व्यवहार किया - और इस क्षेत्र का कभी विकास नहीं होने दिया.'
अमित शाह ने इसके साथ ही महबूबा सरकार से समर्थन वापस लेने की भी वजह बतायी है, अमित शाह के मुताबिक महबूबा मुफ्ती चाहती थीं कि जम्मू-कश्मीर से AFSPA हटा लिया जाए जिसके लिए बीजेपी नेतृत्व राजी नहीं हुआ - और सरकार गिर गयी.
AFSPA के फौरी चर्चा में होने की वजह तो कांग्रेस मैनिफेस्टो में उसका जिक्र है. कांग्रेस ने सत्ता में आने पर AFSPA की समीक्षा करने के संकेत दिये हैं. AFSPA के मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल कांग्रेस के साथ हैं - और बीजेपी हमलावर हो चली है. अमित शाह जम्मू से और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल के चुनावी रैली से.
महबूबा मुफ्ती ने कांग्रेस के घोषणा पत्र का सपोर्ट किया है. महबूबा मुफ्ती का कहना है कि कांग्रेस के घोषणापत्र में वहीं बातें हैं जो मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बीजेपी के साथ गठबंधन करते वक्त कही थीं. महबूबा ने कहा कि मुफ्ती साहब भी हमेशा से ही सिविल इलाकों में सेना की मौजूदगी कम करने और AFSPA पर पुनर्विचार की बात कहते थे - अब कांग्रेस भी वही कह रही है.
अभी जनवरी की ही बात है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने अयोध्या मसले पर अपनी राय जाहिर कर सबको चौंका दिया था. वैसे अपनी राय से वो अक्सर लोगों को हैरान करते रहते हैं. फारूक अब्दुल्ला ने भगवान राम को सबका बताते हुए कहा कि अगर उन्हें मौका मिलेगा तो वो मंदिर में ईंट लगाने जरूर जाएंगे. ममता बनर्जी की कोलकाता रैली में फारूक अब्दुल्ला मोदी सरकार के खिलाफ जरूर थे, लेकिन पूरे देश की बात कर रहे थे. मगर, यही फारूक अब्दुल्ला जब श्रीनगर उपचुनाव लड़ रहे थे तो सूबे के अलगाववादियों के समर्थन में बयान दे रहे थे.
श्रीनगर उपचुनाव के दौरान फारूक अब्दुल्ला अलगाववादियों से कहते रहे कि वो आगे बढ़ें और आवाज दें - वो उनके पीछे मजबूत दीवार बन कर खड़े मिलेंगे.
जम्मू-कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को लेकर अभी अभी महबूबा मुफ्ती से ही मिलता जुलता बयान आया था. जब प्रधानमंत्री ने उनके के बयान का जिक्र करते हुए विपक्षी नेताओं से सवाल पूछे तो उमर अब्दुल्ला ने सफाई भी दी है.
It’s not what @JKNC_ wants sir, it’s what the terms of accession guaranteed J&K, it’s what the Constitution of India (the same Constitution you take an oath to uphold) guaranteed J&K. All we ask is what the Constitution gave to J&K. https://t.co/aLHJXacpzO
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) April 1, 2019
आखिर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती धारा 370 और 35A से इतर भी कोई बात क्यों नहीं करते? क्या सूबे के विकास और जरूरी मुद्दों से जुड़ी बातें वोट बटोरने में कमजोर साबित होती हैं? क्या 2020 की डेडलाइन जैसी बातें सिर्फ चुनावों तक ही सुनाई देंगी या आगे भी?
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