कर्ज माफी की रेस में कांग्रेस के इशारे पर दौड़ रहे हैं मोदी और बीजेपी सरकारें
गुजरात में उपचुनाव से पहले और असम में पंचायत चुनाव के बाद बीजेपी सरकारों के फैसले आखिर क्या कहते हैं? क्या किसानों की कर्ममाफी को लेकर सत्ताधारी बीजेपी वैसे ही घिरा महसूस कर रही है जैसे एससी-एसटी एक्ट को लेकर?
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जिस दिन कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ले रहे थे, बीजेपी की असम सरकार देर शाम किसानों की कर्जमाफी पर गहन सोच विचार कर रही थी - और कैबिनेट की मुहर लगने के बाद ऐलान भी कर दिया गया. माना जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में किसानों से कांग्रेसी के कर्जमाफी के वादे ने निर्णायक भूमिका निभायी. वादे के मुताबिक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने शपथ लेने के कुछ घंटों के भीतर ही कर्जमाफी का ऐलान कर दिया था.
असम की तरह गुजरात की बीजेपी सरकार ने किसानों की कर्जमाफी तो नहीं, लेकिन बिजली बिल माफ करने की घोषणा जरूर कर दी है. हालांकि, गुजरात सरकार को इस घोषणा के लिए चुनाव आयोग का नोटिस भी मिल चुका है - क्योंकि ये ऐलान राजकोट जिले में होने वाले एक उपचुनाव के लिए वोटिंग से दो दिन पहले ही किया गया है.
सिर्फ एक उपचुनाव के लिए!
गुजरात में राजकोट जिले की जसदण विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 20 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं. चुनाव में कांग्रेस भी पूरी ताकत लगा रही है, लेकिन बीजेपी ने लगता है प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. वरना, वोटिंग के ऐन पहले बिजली बिल माफ करने की घोषणा कर चुनाव आयोग का नोटिस झेलने की जरूरत नहीं थी.
गुजरात में बिजली बिल माफी पर चुनाव आयोग ने थमाया नोटिस
जसदण सीट से बीजेपी ने कुंवरजी बावलिया को उम्मीदवार बनाया है. उनका मुकाबला कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे अवसर नाकिया से है. 2017 के विधानसभा चुनाव में कुंवरजी बावलिया इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. ये उपचुनाव भी कुंवरजी बावलिया के इस्तीफे के चलते ही हो रहा है. कुंवरजी बावलिया विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनना चाहते थे. जब ऐसा नहीं हो पाया तो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गये. बीजेपी ने हाथोंहाथ लिया और विजय रुपानी सरकार में वो मंत्री भी बन गये.
बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए इस चुनाव की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि 2019 से पहले ये आखिरी उपचुनाव है.
क्या बीजेपी दबाव महसूस कर रही है
गुजरात में बीजेपी सरकार के एकमुश्त समाधान योजना के तहत कोई भी सिर्फ ₹500 देकर अपना कृषि, घरेलू और वाणिज्यक बिजली कनेक्शन फिर से चालू करा सकता है.
बिजली बिल के तौर पर बकाया राशि ₹625 करोड़ है. वक्त पर बिल न जमा करने के चलते 6.20 लाख लोगों के बिजली कनेक्शन काट दिये गये थे. गुजरात की बीजेपी सरकार ने ऐसे सभी लोगों को ₹500 में बिजली सुविधा बहाल कराने का मौका दिया है. फायदा उठाने वालों में किसान भी हैं जिनके लिए ये कुछ कुछ कर्जमाफी जैसा ही है.
असम की सर्बानंद सोनवाल सरकार ने कर्जमाफी की जो घोषणा की है वो रकम भी गुजरात सरकार के बिजली बिल से थोड़ा ही कम है. असम सरकार ने ₹600 करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने का फैसला किया है. सरकार की इस घोषणा से राज्य के आठ लाख किसानों को फायदा होगा. असम सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, ‘‘कर्ज राहत योजना के तहत किसानों द्वारा अब तक लिये गये कर्ज में से 25 फीसदी माफ किया जाएगा. इसका अधिकतम फायदा ₹25 हजार तक होगा.''
किसानों पर दबाव में सरकार
गुजरात सरकार का फैसला तो उपचुनाव के चलते लगता है लेकिन असम में पंचायत चुनाव के बाद क्यों? असम में पंचायत चुनाव के लिए 5 और 9 दिसंबर को वोट डाले गये थे और नतीजे विधानसभा चुनावों के रिजल्ट के एक दिन बाद 12 दिसंबर को आये. बीजेपी के लिए राहत की बात ये रही कि उसने 50 फीसदी सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि, 2013 में जब जब तरुण गोगोई की सरकार थी, कांग्रेस ने 80 फीसदी सीटें जीती थी.
सवाल ये है कि असम में चुनावों के बाद कर्जमाफी की घोषणा की क्या वजह हो सकती है? क्या इसका पश्चिम बंगाल से कोई लेना देना हो सकता है? असम में NRC लागू करने के बाद बीजेपी अध्यक्ष पश्चिम बंगाल पहुंच कर वो मुद्दा उठाते हैं. फिलहाल बीजेपी अध्यक्ष रथयात्रा की इजाजत न मिलने पर ममता बनर्जी सरकार को लगातार टारगेट कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल 2019 को लेकर अमित शाह की हिट लिस्ट में ऊपर आता भी है.
ये सही है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों के साथ साथ असम की बीजेपी सरकार ने कर्जमाफी की घोषणा की है, लेकिन किसी बीजेपी सरकार ने ऐसा पहली बार नहीं किया है.
2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने कर्जमाफी का वादा किया और योगी आदित्यनाथ की सरकार बनते ही 86 लाख किसानों का करीब ₹30.7 करोड़ कर्ज माफ कर दिया. साथ ही सात लाख किसानों का एनपीए बना था उसे भी माफ कर दिया गया था. महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार तो 35 लाख किसानों का ₹1.5 लाख तक का कर्ज माफ कर दिया. नौ लाख किसानों को लोन के 'वन टाइम सेटलमेंट' भी मौका दिया गया.
एससी-एसटी एक्ट की तरह घिरती बीजेपी
एससी-एसटी एक्ट पर जब सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर आया तब कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव का माहौल था. राहुल गांधी की पहल पर कांग्रेस नेता एक्टिव हो गये और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन सौंपा गया. एनडीए के दलित सांसदों ने भी दबाव बनाया और मोदी सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा. इसको लेकर बीजेपी को सवर्ण समुदाय की नाराजगी भी झेलनी पड़ी और चुनावों में हार में कुछ न कुछ भूमिका इसकी भी रही.
फिलहाल बीजेपी एससी-एसटी एक्ट की तरह ही किसानों के मुद्दे पर उलझी हुई और भारी दबाव में लगती है. हाल ही में आयी कुछ मीडिया रिपोर्ट में किसानों के चार लाख करोड़ के कर्ज माफ किये जाने की संभावना जतायी गयी थी जिससे देश में 26.3 करोड़ किसानों को फायदा मिलता. रायबरेली दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की कर्जमाफी के कंसेप्ट को एक तरीके से रिजेक्ट ही किया. प्रधानमंत्री मोदी का जोर किसानों की आय बढ़ाने की उनकी सरकार की पॉलिसी पर ज्यादा रहा. मोदी ने किसानों की समस्याओं के लिए दूसरी बातों की तरह कांग्रेस सरकार की ही गलती बतायी.
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी किसानों की कर्जमाफी के पक्ष में नहीं रहे हैं. हाल ही में रघुराम राजन ने कहा था कि ऐसे फैसलों से राजस्व पर असर पड़ता है और फायदा गरीबों की जहग सिर्फ साठगांठ वालों को मिलता है.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों के कर्जमाफी का वादा पूरा करने की घोषणा के बाद राहुल गांधी खुल कर चैलेंज करने लगे हैं. राहुल गांधी कह रहे हैं कि जब तक केंद्र सरकार देश भर के किसानों का कर्ज माफ नहीं करती, वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैन से सोने नहीं देंगे.
अगर ऐसा न हुआ तो, राहुल गांधी कहते हैं, 2019 में जब कांग्रेस सत्ता में आयी तो गारंटी के साथ किसानों का कर्ज माफ कर देंगे.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस की ओर से बीजेपी को मिल रही ये सबसे बड़ी चुनौती लग रही है. बीजेपी के पास वैसे तो बहुत सारे चुनावी कार्ड होते हैं, लेकिन राम मंदिर निर्माण पर कानून को छोड़ कर तकरीबन सारे एक एक कर फेल होते जा रहे हैं.
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