'27 सितंबर' को UN में जो भी हो, कश्मीर को कोई फर्क नहीं पड़ता
संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाक PM इमरान खान के भाषण को लेकर जम्मू-कश्मीर में तरह तरह की चर्चाएं चल रही हैं - दोनों नेताओं के भाषणों का अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में जो भी प्रभाव हो घाटी में तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के दौरे पर हैं. जब संसद ने धारा 370 खत्म करने का प्रस्ताव पास किया था तब भी वो घाटी में ही रहे और लोगों से भेंट-मुलाकात करते रहे.
NSA डोभाल का ताजा दौरे का वक्त बेहद महत्वपूर्ण है. ये ऐसा समय है जब संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को का 27 सितंबर को भाषण होना है. खास बात ये है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का भाषण भी 27 सितंबर को ही होना है - और यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर में '27 सितंबर' तमाम चर्चाओं का कीवर्ड बन गया है.
'27 सितंबर' को कौन सी तारीख है?
आज कल सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली बात को ट्रेंडिंग टॉपिक के तौर पर समझा जाता है. तकनीकी तौर पर तो ये ट्रेंडिंग टॉपिक सोशल मीडिया के प्रमुख किरदार हैं, लेकिन इनका व्यावहारिक पक्ष भी है - ये आभासी और वास्तविक दुनिया में बराबर ही धमक बनाये रखते हैं. अफवाह और ट्रोल प्रचार-प्रसार के लिए सिर्फ सोशल मीडिया के मोहताज नहीं होते - और जम्मू और कश्मीर इसका जीता जागता उदाहरण है.
सरकारी मुलाजिमों का ऊपर से नीचे तक दावा है कि घाटी में सब कुछ सामान्य है, होना भी चाहिये. भला इससे अच्छा क्या बात होगी. लेकिन इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क की व्यवस्था अब भी ठीक नहीं होने की खबरें आ रही हैं - ऐसे दौर में जब लोग दिन-रात नेट का इस्तेमाल करते हों, राशन के तौर पर ये सुविधा मुहैया हो तो भला कैसे कहा जा सकता है कि सब ठीक ठाक है. मगर, अफवाहों को इन सबसे फर्क नहीं पड़ता. सोशल मीडिया न सही, 'वर्ड ऑफ माउथ' की सुविधा तो कुदरती है और आदि काल से चली आ ही रही है, इन दिनों घाटी में उसी का बोलबाला है. ऐसा ही एक ट्रेंडिंग टॉपिक है - '27 सितंबर'. दरअसल, 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी PM इमरान खान के भाषण होने वाले हैं.
देखना है इमरान खान कश्मीर की बात करते हैं या हाफिज सईद की?
चर्चा इस बात पर हो रही है कि 27 सितंबर, 2019 को कुछ खास होने वाला है. कुछ खास का दायरा भी बहुत विशाल लगता रहा है - लेकिन किसी भी शख्स के पास कयासों के अलावा कोई भी आधिकारिक या औपचारिक आधार नहीं है. 5 अगस्त को धारा 370 खत्म किये जाने के बाद से घाटी के लोग ऐसी ही किसी तथाकथित उम्मीद में जिये जा रहे हैं - लेकिन हासिल क्या होगा? अभी कुछ खास तो नहीं लगता - फिर भी चर्चाओं की अहमियत से इंकार तो नहीं ही किया जा सकता, भले ही होने के नाम पर नतीजा शून्य ही क्यों न हो?
भाषणों का असर दुनिया भर में भले हो, घाटी में कुछ नहीं होने वाला
कुछ मीडिया रिपोर्ट से कश्मीर घाटी में 27 सितंबर को लेकर चल रही स्थानीय चर्चाओं के बारे में एक ही तरह की बातें मालूम होती हैं. ऐसी चर्चाएं भी या तो तब हो रही हैं जब लोग अंतिम संस्कारों में हिस्सा लेने पहुंचते हैं या फिर नमाज के लिए मस्जिदों में. खबरों के मुताबिक लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी PM इमरान खान के संयुक्त राष्ट्र में भाषणों के बाद हालात में निश्चित तौर पर बदलाव आएंगे.
60 साल के मोहम्मद याकूब इकनॉमिक टाइम्स से कहते हैं - 'देखते हैं 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में क्या होता है. हमें पता चल जाएगा कि दोनों मुल्कों ने कश्मीर के लिए क्या सोचा है.' रिपोर्ट में एक कंप्यूटर इंजीनियर मोहम्मद फुरकान का भी बयान है, कहते हैं, 'UNGA में प्रधानमंत्री मोदी और इमरान के भाषण का सीधा असर घाटी पर पड़ने वाला है.' दलील के पीछे सोच जो भी हो बात तो बस इतनी ही है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में लिखा है - 'अफवाहों से भरे कश्मीर में एक वर्ग को लगता है कि शायद भारत 27 सितंबर के बाद अनुच्छेद 370 को वापस बहाल कर दे. कुछ को आशंका है कि पाकिस्तान की ओर से हमला होगा. कुछ को लगता है कि 27 सितंबर के बाद चरमपंथी हमले होंगे.'
जाहिर है धारा 370 खत्म किये जाने को लेकर चल रही अफवाह के पीछे पाकिस्तानी प्रोपेगैंडे का ही प्रभाव है. ये इमरान खान ही हैं जो लगातार बोले जा रहे हैं कि जब तक धारा 370 का फैसला वापस नहीं होता वो भारत के साथ बात नहीं करेंगे. भारत ने तो पहले ही साफ कर दिया है अगर बातचीत का कोई सिलसिला शुरू भी हुआ तो टॉपिक PoK होगा, कश्मीर तो हरगिज नहीं.
इमरान खान वैसे भी कोई मौका नहीं चूक रहे हैं जब वो कश्मीर की बात न करें. संयुक्त राष्ट्र को लेकर भी इमरान खान ने ऐसा ही कह रखा है - तो क्या जिन लोगों में धारा 370 को लेकर चर्चाएं हो रही हैं वे अब भी पाकिस्तानी झांसे में हैं. क्या वे भूल जा रहे हैं कि वही इमरान कान रैली में कहते रहे कि घुसपैठ के लिए तैयार रहो, टाइम बता दिया जाएगा - और बाद में पलट गये कि कश्मीर तो भूल कर भी नहीं जाना.
असल में भाषणों से सिर्फ राजनीति और कूटनीति ही होती है. इससे इतर अब भी कुछ नहीं होने वाला. मोदी के अमेरिका रवाना होने से पहले ही कह दिया गया था कि भारत संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का जिक्र नहीं करेगा. ठीक वैसे ही इमरान खान ने साफ कर दिया था कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में सिर्फ कश्मीर का ही जिक्र करेगा.
ह्यूस्टन से लेकर जब भी मौका मिल रहा है प्रधानमंत्री मोदी बगैर पाकिस्तान का नाम लिये भी सारी बातें कह रहे हैं और हर बात में पाकिस्तान साफ तौर पर देखा जा सकता है. ह्यूस्टन में हुए हाउडी मोदी कार्यक्रम में तो मोदी ने साफ साफ बता दिया कि कैसे अमेरिका के 9/11 और भारत के 26/11 हमलों के पीछे एक ही मुल्क जिम्मेदार है जिसका एक ही काम है आंतकवाद की परवरिश.
अब देखिये, पाकिस्तान खुद ही सबूत लेकर संयुक्त राष्ट्र पहुंच गया है - ये अर्जी लेकर कि जिस हाफिज सईद को UN ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर रखा है वो अपनी कमाई हुई रकम का भी इस्तेमाल नहीं कर पार रहा है और काफी मुश्किल में है. हो सकता है पाकिस्तान ये भी समझाने की कोशिश कर रहा हो कि हाफिज सईद ने बड़ी मेहनत से पसीने बहाकर और सरकार को पूरा टैक्स देने के बाद गाढ़े दिनों के लिए बचत की थी. वो बहुत बीमार है और इलाज के लिए भी पैसे नहीं हैं. आखिर ये आतंकवाद को बढ़ावा देना नहीं हुआ तो क्या हुआ?
मुमकिन है इमरान खान भी अपने भाषण में अपने मंत्री के इस लव लेटर का भी जोर शोर से जिक्र करें - लेकिन इन सब का घाटी में क्या फर्क पड़ने वाला है.
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