मोदी ने हटाया शाह के नये अवतार से पर्दा - खत्म हुए सांसदों के मौज मस्ती भरे दिन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों से भी साफ हो गया कि जिसे लोग मजाक समझते हैं वो सीरियस मैटर भी हो सकता है, खास कर तब जब किसी मामले से मोदी-शाह की जोड़ी जुड़ी हो.
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जब अमित शाह के राज्य सभा में जाने की खबर आई तो ज्यादातर लोगों का पहला सवाल था - आखिर ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी? जहां पहले से ही अरुण जेटली और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे नेता हैं और फिर बीजेपी बैकग्राउंड का ही नेता सभापति की कुर्सी पर बैठा हो, फिर ऐसी क्या जरूरत पैदा हो गयी? एक मजाकिया टिप्पणी रही - अमित शाह सांसदों की निगरानी के लिए संसद पहुंच रहे हैं. अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों से भी साफ हो गया कि जिसे लोग मजाक समझते हैं वो सीरियस मैटर भी हो सकता है, खास कर तब जब किसी मामले से मोदी-शाह की जोड़ी जुड़ी हो.
20 साल बाद
गुजरात के राज्य सभा चुनाव में अपनी जीत के बाद जब अमित शाह बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में पहुंचे तो प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें लड्डू खिलाया और सांसदों की क्लास लगाई. पहली चेतावनी थी, "अब अध्यक्ष राज्यसभा में आ गए हैं, आपके मौज-मस्ती के दिन बंद हो जाएंगे."
फिर थोड़ा धमकी भरे अंदाज में बोले, "आप लोग अपने आपको क्या समझते हैं, आप कुछ भी नहीं हैं, मैं भी कुछ नहीं हूं जो है बीजेपी एक पार्टी है." और फाइनल वॉर्निंग थी, "ये 3 लाइन का व्हिप क्या है, बार-बार व्हिप क्यों देना पड़ता है. अटेंडेंस के लिए क्यों कहा जाए. जिसको जो करना है करिए, 2019 में मैं देखूंगा."
अब मौज मस्ती बंद समझो!
20 साल से विधायक रहे शाह ने राज्य सभा के लिए चुने जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था. अमित शाह पहली बार 1995 में सरखेज से विधानसभा के लिए चुने गये और 2007 तक लगातार तीन बार वहीं से जीतते रहे. 2012 में शाह की सीट बदल कर नारणपुरा कर दी गयी और अब तक वो उसी इलाके का प्रतिनिधित्व करते रहे. आखिरी टर्म शाह के लिए मिला जुला रहा जिसमें पहले तो उन्हें सोहराबुद्दीन और इशरतजहां केस में जेल तक जाना पड़ा और जमानत मिलने पर भी उनके गुजरात में एंट्री पर पाबंदी लग गयी, लेकिन बाद में बतौर बीजेपी अध्यक्ष उनकी उपलब्धियां बेजोड़ हैं. शाह के अध्यक्षीय कार्यकाल के तीन साल पूरे होने पर भी आधी खुशी आधा गम वाली हालत ही रही.
खैर, अब देखना है कि सांसदों पर नजर रखने के अलावा शाह क्या क्या करते हैं? संसद में वो मोदी को मजबूत करेंगे ये तो मालूम है, लेकिन क्या उनका संसद में पहुंचना सुषमा स्वराज, अरुण जेटली या फिर राजनाथ सिंह के लिए कोई खतरा है? जरूरत तो कैबिनेट में भी है, खासतौर पर रक्षा मंत्रालय में.
मिशन - 150
फिलहाल अमित शाह लंबे राष्ट्रव्यापी दौरे पर हैं. बीच बीच में जब जहां जरूरत होती है पहुंच जाते हैं और जब जाने वाले होते हैं तो पहले से ही वहां इस्तीफों का दौर शुरू हो जाता है. शाह का ये दौरा 2019 को लेकर चल रहा है जिसमें फोकस उन राज्यों पर है जहां बीजेपी की स्थिति अभी कमजोर बनी हुई है. बीजेपी ने देश भर में ऐसी 120 सीटों की फेहरिस्त तैयार की जो पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में हैं.
देश की इन 120 सीटों के साथ साथ शाह चाहते हैं कि बीजेपी इस बार गुजरात विधानसभा की 182 में से 150 सीटें जरूर जीते. शाह का कहना है कि ऐसा होने पर पार्टी गुजरात की तीनों राज्य सभा सीटों पर अपने नेताओं को बड़े आराम से भेज सकेगी. मौजूदा विधानसभा में बीजेपी के 121 विधायक हैं जबकि इससे पहले ये संख्या 115 थी.
अमित शाह अगर इस पोजीशन में नहीं पहुंचे होते कि वो निजी दुश्मनी का बदला ले सकें तो पिछले चार बार की तरह इस बार भी बहुतों को मालूम भी नहीं होता कि अहमद पटेल कब चुनाव लड़े और कब जीते या हार गये. अहमद पटेल की जीत को लेकर शाह उतना नुकसान तो नहीं हुआ है जितना गुस्सा है. इसीलिए अब शाह कांग्रेस को दो-दो हाथ करने के लिए चैलेंज कर रहे हैं.
आओ दो-दो हाथ करें
बीजेपी अध्यक्ष शाह ने कांग्रेस को दिसंबर में संभावित गुजरात विधानसभा चुनाव में दो-दो हाथ कर ताकत आजमाने की चुनौती दी है. वैसे दिसंबर में ही हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव होने की संभावना है, लेकिन बीजेपी वहां अपनी जीत पक्की मान कर चल रही है.
बीजेपी को लगता है कि हिमाचल में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे होने और सत्ता विरोधी लहर के चलते कांग्रेस की जीत की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं होगी. वैसे गुजरात और हिमाचल के बाद 2018 के शुरुआती दौर में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चुनाव की तारीख आ ही जाएगी.
दो-दो हाथ की बात तो अपनी जगह है, लेकिन कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ाने वाली जो खबर आ रही है वो है - रायबरेली और अमेठी पर बीजेपी की नजर. सुना जा रहा है कि गांधी खानदान के गढ़ रहे इन दोनों इलाकों को भी कांग्रेस मुक्त करने की रणनीति पर काम कर रही है.
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