हाथ से निकल रहे दलित वोट बैंक को बचाने में जुटी मोदी सरकार
एससी-एसटी एक्ट एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑर्डर पर स्टे देने से इंकार कर दिया है और सुनवाई की नयी तारीख 16 मई मुकर्रर की है - तब तक कर्नाटक चुनाव के नतीजे भी आ चुके होंगे.
-
Total Shares
कर्नाटक में रैलियों का दिन भर रेला लगा रहा. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ जमे हुए थे तो दूसरी तरफ राहुल गांधी ने मोर्चा संभाला हुआ था. मोदी ने बेल्लारी और कलबुर्गी के मंच से कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया तो राहुल गांधी बीदर से ललकारते रहे. दोनों नेताओं की बातों को साथ साथ टेलीविजन स्क्रीन पर टू-विंडो में सुनें तो लोकगायकों के दंगल जितना मजेदार लगेगा.
मोदी और राहुल की नोकझोंक में बाकी बातों के साथ साथ दलितों का मुद्दा भी उठा. साथ ही, मोदी सरकार ने देश की सबसे बड़ी अदालत को समझाने की कोशिश भी की कि कानून बनाना संसद का काम है न कि सुप्रीम कोर्ट का.
कैंडल लाइट पर सवाल
राहुल गांधी कर्नाटक के बीदर में थे. यही वजह रही होगी कि प्रधानमंत्री मोदी ने बीदर की एक घटना के हवाले से राहुल गांधी से सवाल किया - 'तब कैंडल लाइट कहां थी?'.
कैंडल मार्च पर मोदी का सवाल
कठुआ और उन्नाव गैंग रेप को लेकर राहुल गांधी ने आधी रात को इंडिया गेट पर कैंडल मार्च किया था. कैंडल मार्च निकाल कर राहुल गांधी ने महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध पर चुप्पी तोड़ने को कहा था. तब देश के लोग कठुआ और उन्नाव रेप कांड को लेकर बेहद गुस्से में थे.
कैंडल मार्च से पहले राहुल गांधी ने कर्नाटक में चुनावी माहौल के बीच ही दलितों का मामला उछाला था. एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के विरोध के राहुल गांधी के फैसले के बाद ही दलितों ने भारत बंद की कॉल दी थी - और देश भर में बंद के दौरान हुई हिंसा में 11 लोग मारे भी गये. कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने एक ही साथ दोनों मामलों में पलटवार किया. मोदी ने राहुल गांधी और कांग्रेस से बीदर में दलित बच्ची के साथ हुए बलात्कार को लेकर जवाब मांगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "मैं दिल्ली में कैंडल मार्च निकालने वालों से पूछना चाहता हूं... जब बीदर में दलित बेटी के साथ अत्याचार हुआ तो आपकी कैंडल लाइट कहां थी?"
'ये ज्युडिशियल एक्टिविज्म नहीं तो और क्या है?'
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया था जिसको लेकर राजनीतिक विरोध शुरू हो गया. कांग्रेस के मामला उठाने के बाद एनडीए में भी दलित नेता एक्टिव हो गये और पुनर्विचार याचिका से लेकर अध्यादेश लाने तक की मांग करने लगे. फिर सरकार हरकत में आयी - और सुप्रीम कोर्ट से स्टे लगाने की मांग की. स्टे की मांग तो सरकार ने फिर दोहरायी लेकिन कोर्ट एक बार फिर मना कर दिया.
केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट कानून के गैप को भर सकता है मगर पूरे देश के लिए ऐसे दिशानिर्देश नहीं जारी कर सकता जो बिलकुल कानून की तरह हों. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के इस ऑर्डर को ज्युडिशियल एक्टिविज्म बताया है - और कोर्ट से मामले को संवैधानिक बेंच को भेजने की मांग की है.
दलितों के दबाव में मोदी सरकार
दलितों के मामले में आगे बढ़ कर कांग्रेस के लीड ले लेने से मोदी सरकार की मुश्किलें तो बढ़ ही गयी हैं. बीजेपी के विरोधी हर जगह उसकी और उसके सहयोगी दलों की सरकारों को दलित विरोधी साबित करने में जुटे हुए हैं. बिहार विधानसभा के पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने नीतीश सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए जेडीयू से इस्तीफा दे दिया है. यूपी के दलित सांसद तो योगी सरकार के खिलाफ प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख ही चुके हैं और मोदी को दखल देकर मामला शांत कराना पड़ा है.
अब प्रधानमंत्री मोदी की कोशिश यही है कि दलितों को जैसे भी हो समझाया जाये कि बीजेपी उनकी विरोधी नहीं बल्कि सबसे ज्यादा ख्याल रखने वाली है. बीजेपी नेताओं का दलित भोज कार्यकर्म तो तस्वीरों में नजर आ ही रहा है.
वैसे सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 16 मई मुकर्रर की है - और तब तक तो कर्नाटक में वोटिंग ही नहीं चुनाव के नतीजे भी आ चुके होंगे.
इन्हें भी पढ़ें:
क्या कांग्रेस "संविधान बचाओ" अभियान के सहारे दलितों को अपने पाले में वापस ला पाएगी?
आपकी राय