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Updated: 15 फरवरी, 2018 04:43 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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2019 में यूपी की जरूरत के हिसाब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या-क्या करने वाले हैं, भूल जाइए. 2019 की जरूरतों के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्या प्लान कर रहे हैं, ये भी फिलहाल ताक पर रख दीजिए. 2019 के हिसाब से मोदी और योगी के लिए पूरा विपक्ष क्या कर रहा है - गौर करने वाली बात बस ये लग रही है. एक बार ध्यान से सोचकर देखिये बड़ा ही दिलचस्प नजारा दिखेगा.

विपक्ष के बिखराव का नमूना देखिये

यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी ने साफ तौर पर कह दिया है कि गोरखपुर और फूलपुर उप चुनाव में समाजवादी पार्टी अपने सिंबल पर चुनाव लड़ेगी. यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन था, लेकिन अखिलेश यादव पहले ही ये बात कह चुके हैं. हालांकि, अखिलेश यादव ने ये बात 2019 के लिए कही थी.

narendra modiबीजेपी के सपोर्ट में खड़ा विपक्ष!

जब मायावती ने राज्य सभा से इस्तीफा दिया था उसके बाद उनके फूलपुर से विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर रही. फिर इस मुद्दे पर तस्वीर साफ करने बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा खुद आये और कहा कि उनकी पार्टी किसी भी दूसरे दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी.

तो वस्तुस्थिति ये है कि समाजवादी पार्टी खुद अपने उम्मीदवार उतारेगी. अव्वल तो मायावती की उप चुनावों में कोई दिलचस्पी होती नहीं क्योंकि उनका मानना है कि सारे हालात सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में होते हैं. बची कांग्रेस तो मजबूरन उसे अकेले ही मैदान में उतरना पड़ेगा.

मायावती की राजनीति भी बीजेपी की मददगार लग रही है

हाल ही में एक रिपोर्ट आयी थी कि मायावती इस बार मायावती आरएलडी नेता अजीत सिंह के साथ संभावनाएं तलाश रही हैं. वैसे आरएलडी की यूपी में क्या स्थिति है बताने की जरूरत नहीं. यूपी चुनाव से पहले उनकी नीतीश कुमार के साथ फ्रंट खड़ा करने पर भी बात चली लेकिन जयंत चौधरी के नाम पर पेंच फंस गया. चुनाव हुए तो आरएलडी ने यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से 284 पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन जीते सिर्फ एक - छपरौली. बागपत जिले की इस सीट पर जाट मतदाताओं का बोलबाला है और चौधरी चरण सिंह के बाद ये अजित सिंह की भी विधानसभा सीट रही है.

कांग्रेस से अलग अगर मायावती भी मैदान में उतरती हैं, भले ही आरएलडी के साथ कोई गठबंधन हो फिर फायदा तो सीधे बीजेपी को ही मिलेगा. बीजेपी को मदद पहुंचाने के मामले में मायावती सिर्फ यूपी तक ही सीमित नहीं हैं, कर्नाटक में भी जो कुछ वो कर रही हैं वो सब बीजेपी के पक्ष में ही जाते हैं.

mayawatiबीजेपी पर इतनी मेहरबानी क्यों?

कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता बचाने के लिए जूझ रही है और बीजेपी उसे हथियाने में जुटी है. इस बीच मायावती ने कर्नाटक में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के साथ जाने का फैसला किया है. 17 फरवरी से बीएसपी और जेडीएस के इस साझा अभियान की शुरुआत भी होने जा रही है. खास बात ये है कि बीएसपी पहली बार चुनाव से पहले ऐसे किसी समझौते को शक्ल देने जा रही है. मायावती ऐसा फैसला क्यों कर रही हैं ये तो वही जानें. यूपी में कोई गठबंधन नहीं और कर्नाटक में चुनाव पूर्व सियासी दोस्ती. संकेत ये भी है कि ऐसे प्रयोग 2019 में भी दोहराये जा सकते हैं. सवाल यही बचता है मायावती आखिर बीजेपी की मदद में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रही हैं?

फिर तो बीजेपी को वॉकओवर ही मिल जाएगा

ऐसा भी नहीं है कि गोरखपुर और फूलपुर को लेकर बीजेपी में सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा है. वहां भी टिकट को लेकर मारामारी मची हुई है. यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्या के समर्थकों ने उनकी पत्नी को चुनाव में टिकट दिये जाने के लिए कैंपेन चला रखा है. बीजेपी की सहयोगी अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल के बारे में खबर है कि वो अपने पति के लिए वहां से टिकट चाहती हैं. कुछ नेता टिकट के लिए केंद्रीय मंत्रियों के पीछे लगे हैं. नतीजा ये हुआ है कि बीजेपी ने उप चुनावों में प्रचार से केंद्रीय मंत्रियों को दूर ही रखने का फैसला कर लिया है.

समाजवादी पार्टी ने आधिकारिक तौर पर किसी को उम्मीदवार तो नहीं बनाया है, लेकिन उसके एक नेता बाल कुमार पटेल खुद को भावी प्रत्याशी बता कर अभी से ही वोट मांगने लगे हैं.

bal kumar patelखुद ही बने उम्मीदवार

बाल कुमार पटेल कुख्यात दस्यु सरगना ददुआ के परिवार से आते हैं और समाजवादी पार्टी के टिकट पर 2009 में मिर्जापुर से सांसद रह चुके हैं. कांग्रेस की ओर से अभी कोई नाम या दावेदारी सामने नहीं आयी है.

यूपी में सियासत की मौजूदा स्थिति देख कर तो यही लगता है कि बीजेपी के विरोधी खुद ही विपक्ष मुक्त सूबा बनाने में तुला हुआ है. अमित शाह का एक सपना है जिसमें पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक वो भारत में बीजेपी का शासन देखना चाहते हैं. विपक्ष यूं ही मेहरबान रहा तो सपने को हकीकत बनते देर न लगेगी.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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