मोदी सरकार को संघ आगाह कर रहा है या चीन पर सलाह दे रहा है
केंद्र की बीजेपी सरकार को संघ की विचारधारा के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है, लेकिन चीन (China) को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) में काफी फर्क देखने को मिला है - फर्क भी ऐसा जैसे विरोधाभासी हों.
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के भाषण में चीन का जिक्र तो आया ही, संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने भी मुंबई में एक कार्यक्रम में अपनी अलग राय पेश की - लेकिन ध्यान देने वाली बात ये रही कि दोनों आपस में विरोधाभासी लगते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने तो लाल किले की प्राचीर से पाकिस्तान और चीन (China) दोनों को एक साथ ही ताकीद करने की कोशिश की, लेकिन एक स्कूल के कार्यक्रम में मोहन भागवत ने चीन को लेकर लगता है जैसे मोदी सरकार को आगाह करने की कोशिश कर रहे हों - दोनों बयानों एक बुनियादी फर्क ये देखने को मिलता है कि मोदी ने बगैर किसी का नाम लिये ही अपनी बात कही है, जबकि मोहन भागवत ने ऐसा कोई परहेज नहीं दिखाया है.
दोनों बयानों में एक बड़ा फर्क ये भी देखने को मिलता है कि प्रधानमंत्री मोदी जहां उपलब्धियां गिनाते हुए चीन को हरकतों से बाज आने और होश मे रहने की सलाह दे रहे हैं, वहीं मोहन भागवत की बातों से तो ऐसा लगता है जैसे वो चीन के मुकाबले देश की स्थिति को लेकर मोदी के नजरिये से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखते.
प्रधानमंत्री मोदी जहां आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर पेश कर रहे हैं, वहीं मोहन भागवत समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि चीन पर निर्भरता खत्म करने के मामले में अभी मीलों का सफर बाकी है - मोदी और भागवत की बातें सुनने के बाद एकबारगी ये समझना मुश्किल हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीन के मुद्दे पर संघ की तरफ से आगाह करने कोशिश हो रही है या मोदी सरकार को कोई खास सलाहियत देने की कोशिश हो रही है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चेतावनी तो साफ साफ है
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक की याद दिलाकर पाकिस्तान को आगाह तो किया ही, भारत को लेकर दुनिया के देशों की बदली हुई राय के बहाने चीन को भी मैसेज देने की कोशिश की कि वो बिलकुल भी मुगालते में न रहे - हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने चीन या पाकिस्तान किसी का भी नाम नहीं लिया, बल्कि दोनों की प्रवृत्ति की तरफ इशारा कर अपनी बात कह डाली.
प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि भारत आज अपना लड़ाकू विमान, पनडुब्बी और गगनयान तक बना रहा है - और ये स्वदेशी उत्पादन में भारत के सामर्थ्य को उजाकर करता है. मोदी ने कहा, '21वीं सदी में भारत के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने से कोई भी बाधा रोक नहीं सकती... हमारी ताकत हमारी जीवटता है, हमारी ताकत हमारी एकजुटता है... हमारी प्राण शक्ति, राष्ट्र प्रथम सदैव प्रथम की भावना है.'
लेकिन मोहन भागवत का कहना रहा, स्वदेशी होने का मतलब अपनी शर्तों पर कारोबार करना होता है. मोहन भागवत ने कहा, 'स्वतंत्र देश में स्वनिर्भरता जरूरी है... जितना स्वनिर्भर रहेंगे, उतने ही सुरक्षित रहेंगे - आर्थिक सुरक्षा पर बाकी सारी सुरक्षाएं निर्भर हैं.'
विचारधारा एक और विचार अलग - ये कैसे मुमकिन है?
भारत की तरक्की की तफसील से तस्वीर पेश करते हुए प्रधानमंत्री मोदी बोले, 'आज दुनिया भारत को एक नई दृष्टि से देख रही है और इस दृष्टि के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं - एक आतंकवाद और दूसरा विस्तारवाद... भारत दोनों ही चुनौतियों से लड़ रहा है और सधे हुए तरीके से बड़े हिम्मत के साथ जवाब भी दे रहा है.'
यहां आतंकवाद का नाम लेकर पाकिस्तान की तरफ इशारा कर रहे थे और विस्तारवाद का जिक्र चीन के संदर्भ में था. भारत-चीन तनाव के बीच लद्दाख दौरे में भी चीन का नाम लिये बगैर ही विस्तारवाद का जिक्र किया तो चीन की तरफ से कड़ी आपत्ति जतायी गयी थी.
लाल किले से प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत साहस के साथ आतंकवाद और विस्तारवाद से लड़ रहा है - और भरोसा दिलाया कि सरकार सशस्त्र बलों की क्षमता को मजबूत करने के लिए सभी कदम उठाएगी.
मोहन भागवत किसे आगाह कर रहे हैं
कोरोना संकट के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल जैसे मंत्र दिये थे, लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत की बातों से तो ऐसा लगता है जैसे अब तक वो इस मामले में भारत की उपलब्धियों को नाकाफी मानते हैं. मोदी के भाषण में आत्मनिर्भर शब्द तीन बार सुना गया था.
चीन की तुलना में मोहन भागवत भारत की स्थिति की तरफ ध्यान दिलाते हैं और जाहिर संदेश तो मोदी सरकार को ही होगा, 'सरकार का काम उद्योगों को सहायता और प्रोत्साहन देना है... सरकार को देश के विकास के लिए जो जरूरी है उसका उत्पादन करने के निर्देश देने चाहिये.'
संघ प्रमुख ने एक और भी महत्वपूर्ण बात कही, उत्पादन जन केंद्रित होना चाहिये. ये तो यही बता रहा है कि संघ मानता है कि सरकार का ध्यान उत्पादन के जनकेंद्रित होने पर नहीं है - तो क्या मोहन भागवत को मेक इन इंडिया जैसे मोदी सरकार के कार्यक्रमों की उपलब्धियां संतोषजनक नहीं लगतीं?
उद्योगों को लेकर अभी केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बयान पर विवाद हो रखा है. 12 अगस्त को CII की सालाना बैठक में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय उद्योगपतियों की बिजनेस प्रैक्टिस को राष्ट्रहित के खिलाफ बताया था - गोयल के निशाने पर कोई और नहीं बल्कि टाटा ग्रुप ही रहा.
पीयूष गोयल ने सलाह दी, हम सबको 'मैं, मेरा और मेरी कंपनी के नजरिये से आगे बढ़ कर देखने की जरूरत है. विपक्ष की तरफ से पीयूष गोयल के बयान पर जैसे बोये वैसा काटो जैसी प्रतिक्रिया आयी थी.
मोहन भागवत ने साफ तौर पर कहा कि चीन के बहिष्कार की चाहे कितनी भी बातें क्यों न हो, असल बात तो ये है कि ये मुमकिन ही नहीं है. स्वदेशी को लेकर भी मोहन भागवत ने समझाया कि कतई ये मतलब नहीं है कि नाता तोड़ लो, स्वदेशी तो अपनी शर्तों पर कारोबार करने का आइडिया है.
मोहन भागवत ने सवालिया लहजे में कहा, 'हम चीन के बहिष्कार की बात तो कर सकते हैं लेकिन मोबाइल की ये सारी चीजें कहां से आती हैं? अगर चीन पर निर्भरता बढ़ेगी तो फिर हमें उसके सामने झुकना पड़ेगा.'
मोहन भागवत ध्यान दिलाने की कोशिश करते हैं, 'हम इंटरनेट और तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जो मूल रूप से भारत से नहीं आतीं... हम कितना भी चीन के बारे में चिल्लायें, लेकिन आपके फोन में जो भी चीजें हैं वो चीन से ही आती हैं - जब तक चीन पर निर्भरता रहेगी तब तक उसके सामने झुकना पड़ेगा.'
बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार को विपक्ष अक्सर कठघरे में खड़ा किये रहता है - और संघ प्रमुख ने तो सीधे सीधे इसका संबंध हिंसा से बता डाला है. कहते हैं, स्वदेशी यानी स्वनिर्भरता से रोजगार पैदा होगा - और इससे हिंसा की घटनाएं रुकेंगी.'
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