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Updated: 27 नवम्बर, 2015 05:01 PM
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क्या हिंसा से हिंसा का खात्मा हो सकता है? शायद नहीं. और शायद तभी महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर की विचारधारा आज भी जीवित है. और शायद इसलिए भी क्योंकि विकसित एवं शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा लाख खून-खराबे और बमबारी के बाद भी आतंकवाद का सफाया होना तो दूर... उसके एक मॉडल तक को हम पूरी तरह से खत्म नहीं कर पाए हैं. आतंकी मॉडल तालिबान हो या आईएसआईएस या फिर बोको-हरम - हमें इनसे लड़ने के पारंपरिक तरीके बदलने होंगे. प्रयास शुरू हो चुका है - इंडोनेशिया से. चौंकिए मत. आईएसआईएस के खिलाफ इंडोनेशिया भी 'जंग' में उतर चुका है.

इस्लामी आतंकवाद से लड़ने के लिए दुनिया में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया ने जंग छेड़ दी है - एक अलग तरह की जंग - बम या बंदूक के बजाय फिल्म के माध्यम से जंग... खून-खराबे, निर्दोषों की मौत, बच्चों को अनाथ बनाने की जगह विचारधारा की जंग. इस जंग का नाम है - रहमत इस्लाम नुसंतारा (Rahmat Islam Nusantara). यह 90 मिनट की एक फिल्म है. इसमें इस्लाम, कुरान, इस्लामिक विचारधारा और इसके ठीक उलट आईएसआईएस की करतूतों को दिखाया गया है.

ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर फिल्म की पहुंच के लिए इसका अरबी और अंग्रेजी वर्जन भी लाया गया है. जिस ऑनलाइन मीडियम को आईएसआईएस अपने फायदे और लड़ाकों की भर्ती के लिए उपयोग करता आया है, फिल्म को इस प्लेटफॉर्म पर भी रिलीज किया जाना है. इस फिल्म में इस्लाम की उत्पत्ति, इसके विकास-क्रम, प्रचार-प्रसार और इंडोनेशिया में इस्लाम का मतलब समझाया गया है. विषय को और अधिक प्रामाणिक बनाने के लिए इंडोनेशियाई इस्लामी विद्वानों का इंटरव्यू भी फिल्म का अहम हिस्सा है. पूरी फिल्म में आईएसआईएस की विचारधारा पर सवाल उठाए गए हैं. इस आतंकी संगठन के द्वारा कुरान और हदीथ (पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा) की गलत व्याख्या पर भी प्रकाश डाला गया है.

नहद्लातुल उलमा (Nahdlatul Ulama) इंडोनेशिया का एक मुस्लिम संगठन है. इसके 5 करोड़ से भी ज्यादा अनुयायी हैं. इस संगठन के धार्मिक नेता मुस्तफा बिसरी के अनुसार मुस्लिमों का बड़ा तबका धार्मिक उन्माद और हिंसा का समर्थन करता है, जबकि उन्हें इस्लाम की सही व्याख्या तक नहीं मालूम है. आईएसआईएस से लड़ाई के बारे में लंदन के किंग्स कॉलेज के शोधार्थी निको प्रूचा का कहना है कि पश्चिम देश सिर्फ लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी कोई रणनीति नहीं है.

'इस्लाम की एकरूपता को दुनिया भर में प्रायोजित करना और इसके अलावा अन्य रूपों को खारिज कर देना और इनके अनुयायियों का कत्लेआम करना आईएसआईएस की सबसे बड़ी भूल है. हम इस तरह की विचारधारा का विरोध करते हैं.' यह कहना है याह्या चोलिल का, जो नहद्लातुल उलमा के महासचिव हैं.

नहद्लातुल उलमा के द्वारा आईएसआईएस के विरोध को जकार्ता में समर्थन मिलना शुरू हो गया है. वहां की स्टेट इस्लामिक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अजूमर्दी अजरा का कहना है कि इस्लाम अपनी उत्पत्ति से लेकर अभी तक जगह और समय विशेष के साथ अनेक रूपों में विद्यमान है. लेकिन मिडिल इस्ट इस्लाम अपने स्थान विशेष से परे इस्लाम को भी अपना अंग नहीं मानता. यह एक तरह का धार्मिक नस्लवाद है. उन्हें लगता है कि केवल वही इस्लाम के सच्चे अनुयायी हैं, बाकी दुनिया के मुस्लिम नकली हैं. रहमत इस्लाम नुसंतारा (Rahmat Islam Nusantara) फिल्म के जरिये इंडोनेशियाई इस्लाम के रूप को दिखाने की कोशिश की गई है. इसके साथ ही यह संदेश भी दिया गया है कि हम मुस्लिम हैं, लेकिन हमारी अपनी स्थानीय पहचान भी है, हम दूसरों की भावनाओं का कद्र भी करते हैं.

ऑनलाइन मीडियम पर आईएसआईएस के प्रोपेगेंडा की बात करें तो केवल ट्विटर पर एक दिन में औसतन 28 लाख मेसेज इस आतंकी संगठन के द्वारा अपने अनुयायियों के लिए डाला जाता है. बम-बंदूक की लड़ाई में दुनिया शायद आईएसआईएस को हरा भी दे, लेकिन विचारधारा की लड़ाई हमें इन्हीं मीडियमों के सहारे जीतनी होगी.

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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