राहुल गांधी के सौजन्य से महाविकास आघाड़ी का हाल भी शिवसेना जैसा होने वाला है
देश में कहीं और न सही, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने सावरकर पर बयान देकर महाराष्ट्र की राजनीति में भूकंप तो ला ही दिया है. उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने तो पहले ही दूरी बना ली थी, संजय राउत के बयान में शरद पवार (Sharad Pawar) की भी सहमति मान ही लेनी चाहिये.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) महाराष्ट्र की राजनीति बीजेपी के नये मददगार बन कर उभरे हैं. करीब करीब वैसे ही जैसे एक वक्त एकनाथ शिंदे ने कोहराम मचा दिया था. एकनाथ शिंदे तो अपने प्रयासों से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गये, लेकिन राहुल गांधी कोशिशें लगती हैं कांग्रेस मुक्त महाराष्ट्र बना कर ही दम लेंगी.
विनायक दामोदर सावरकर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणी पहले से ही डावांडोल महाविकास आघाड़ी के सहयोगी दलों को साथ रहने में असहज कर चुकी है. उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने तो पहले ही दूरी बना ली थी, लगता है शरद पवार (Sharad Pawar) की तरफ से भी जल्दी ही हाथ खड़े कर दिये जाएंगे - और फिर सोनिया गांधी को सॉरी सुनना पड़ेगा.
शिवसेना को तोड़ने के लिए तो बीजेपी को बड़े ही पापड़ बेलने पड़े थे, लेकिन महाविकास आघाड़ी को तो राहुल गांधी के एक बयान ने सूली के करीब खड़ा कर दिया है - बस, चढ़ना भर बाकी है. उद्धव ठाकरे के अगुवाई वाले शिवसेना धड़े का स्टैंड तो पहले ही साफ हो गया था, जेल से रिहा होने के बाद धीरे धीरे नॉर्मल हो रहे संजय राउत के बयान के बाद तो ऐसा ही लगता है.
ऐसा लगता है महाराष्ट्र के मामले में भी राहुल गांधी ने पंजाब जैसा ही रवैया अख्तियार कर लिया है, आगे का रास्ता तो मिलता जुलता ही लग रहा है. पंजाब में तो कांग्रेस को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के फैसले गलत साबित हुए थे, लेकिन खलनायक के रूप में नवजोत सिंह सिद्धू के किरदार को सामने ला दिया. खुद तो दर्शानी घोड़ा बन ही गये, कांग्रेस को भी कहीं का नहीं छोड़ा.
खास बात ये है कि महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले पर भी राहुल गांधी पहले की तरह सिद्धू जैसा ही स्नेह उंड़ेलते रहे हैं. बल्कि सिद्धू के मुकाबले थोड़ा ज्यादा ही - और एकबारगी तो ऐसा ही लगता है जैसे नाना पटोले ने ही महाराष्ट्र में सावरकर विवाद का ताना बाना बुन रखा हो.
नाना पटोले महाराष्ट्र कांग्रेस के बाकी नेताओं से हमेशा अलग लाइन लिये देखे गये हैं और राहुल गांधी को उनकी हर चीज पसंद आती है. नाना पटोले पहले बीजेपी के सांसद हुआ करते थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करके हाइलाइट हो गये और यही वो खासियत है कि राहुल गांधी के मन में बस गये.
ऐसा क्यों लग रहा है जैसे नाना पटोले अब राहुल गांधी को समझा बुझा कर महाराष्ट्र में वही सब करा रहे हैं जो बीजेपी के लिए मददगार साबित हो - क्या राहुल गांधी और उनके सलाहकारों की कोर टीम को भी ये बात समझ में आ रही होगी?
सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी का असर
महाराष्ट्र पहुंच कर वीर सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी का क्या असर होगा, ये सभी को तत्काल प्रभाव से मालूम होगा. आगे आगे हो भी वही रहा है, जैसी किसी ने भी अपेक्षा की होगी. शायद राहुल गांधी और उनकी टीम ने भी, लेकिन एक बार जब कोई पॉलिटिकल लाइन ले ली जाती है तो बाद में उस पर बने रहने की कोशिश होती है, जब तक की मामला बेकाबू न हो जाये. हालांकि, कांग्रेस के स्टैंड से अभी तक ऐसा नहीं लगता कि पार्टी ने उसी लाइन पर बने रहने का फैसला लिया है.
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तो पहले ही राहुल गांधी के बयान से दूरी बना ली थी, संजय राउत का बयान आने के बाद तो तस्वीर और भी ज्यादा साफ हो गयी है. इस मुद्दे पर उद्धव ठाकरे का कहना था, ‘हम वीर सावरकर पर राहुल गांधी के बयान का समर्थन नहीं करते... हमारे दिल में वीर सावरकर के लिए आदर और सम्मान है... उनके योगदान को कोई नहीं मिटा सकता.'
सावरकर की बात पर तो कांग्रेस महाराष्ट्र में अलग थलग पड़ ही जाएगी, शरद पवार और उद्धव ठाकरे का साथ भले बना रहे
उद्धव ठाकरे ने लगे हाथ बीजेपी को भी घेरने की कोशिश की थी, लेकिन संजय राउत के बयान से तो लगता है जैसे महाराष्ट्र के विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी में दरारें चौड़ी होने लगी हैं - और ये सब देख कर बीजेपी नेता खुश तो हो रही रहे होंगे.
संजय राउत ने जो कहा है वो उसके आगे की बात है. उद्धव ठाकरे के बाद संजय राउत का कहना है, 'महाराष्ट्र आकर सावरकर पर इल्जाम लगाना और अपमान करना न तो महाराष्ट्र स्वीकार करेगा और न ही ये शिवसेना को मंजूर होगा... महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता भी इसका समर्थन नहीं करेंगे... असल में तो भारत जोड़ो यात्रा में ऐसे बयान देने का कोई मतलब ही नहीं बनता...'
वैसे संजय राउत ने ये भी कहा है कि इसके चलते महाविकास आघाड़ी में विभाजन भले न हो लेकिन ऐसे बयान से कड़वाहट बढ़ जाती है. संजय राउत ने ये भी याद दिलाया कि राहुल गांधी पहले भी कई बार वीर सावरकर पर बोल चुके हैं... अब उसे दोहराने से क्या?
अपनी पार्टी का पक्ष रखते हुए संजय राउत कहते हैं , वीर सावरकर हमारे लिए हीरो हैं और हमें प्रेरणा देते हैं... हमारे अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भी साफ कहा है कि हमारी सावरकर में आस्था है. तीन साल पहले भी सावरकर पर राहुल गांधी के बयान को लेकर संजय राउत की ऐसी ही प्रतिक्रिया आयी थी, लेकिन लहजा इस बार काफी सख्त है.
दिसंबर, 2019 में राहुल गांधी दिल्ली में हुई कांग्रेस की एक रैली करायी में कहा था, 'मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है... माफी नहीं मांगूंगा... मर जाऊंगा लेकिन माफी नहीं मांगूंगा.'
तब महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी का शासन था और संजय राउत ने काफी बैंलेस रखते हुए बयान दिया था. संजय राउत ने राहुल गांधी को नसीहत तो दी थी, लेकिन तब साथ में ये भी कहा था कि नेहरू-गांधी की तरह सावरकर भी देश के गौरव हैं, उनका अपमान नहीं होना चाहिये.
तभी संजय राउत ने ट्विटर पर लिखा था, 'वीर सावरकर सिर्फ महाराष्ट्र के ही नहीं, देश के देवता हैं... सावरकर नाम में राष्ट्र अभिमान और स्वाभिमान है... नेहरू-गांधी की तरह सावरकर ने भी देश की आजादी के लिए जीवन समर्पित किया... इस देवता का सम्मान करना चाहिये उसमें कोई भी समझौता नहीं होगा.'
एक और ट्वीट में संजय राउत ने लिखा था, 'हम पंडित नेहरू, महात्मा गांधी इन्हें मानते हैं, आप भी वीर सावरकर का अपमान मत करो... जो समझदार होता है उसे ज्यादा बताने की जरूरत नहीं होती. जय हिंद!'
We respect Pandit Nehru and Mahatma gandhi , you dont insult savarkar ,समझने वाले समझ गये है ...जय हिंद!!
— Sanjay Raut (@rautsanjay61) December 14, 2019
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने राहुल गांधी का बचाव करते हुए कहा है वो हिन्दुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर को टारगेट नहीं कर रहे हैं, बल्कि सिर्फ ऐतिहासिक तथ्यों को सामने रखे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के बुल्ढाणा के शेगांव पहुंचने पर जयराम रमेश का कहना था, उद्धव ठाकरे की शिवसेना भले ही सावरकर पर राहुल गांधी के विचारों का समर्थन नहीं करती, लेकिन महाविकास आघाड़ी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
शरद पवार का रुख क्या है: जहां तक संजय राउत के बयान की बात है तो उसे महज उद्धव ठाकरे का पक्ष नहीं समझा जाना चाहिये. मान कर चलना चाहिये कि संजय राउत के बयान में निश्चित तौर पर शरद पवार की सहमति भी शामिल होगी.
जब उद्धव ठाकरे ने अपनी तरफ से खुद अपना पक्ष साफ कर दिया था, तो संजय राउत के बयान का क्या मतलब रह जाता है. फिर भी अगर संजय राउत कुछ कहते हैं और उसमें महाविकास आघाड़ी की बात होती है, तो ये सिर्फ उद्धव ठाकरे का ही पक्ष हो, ऐसा नहीं लगता. निश्चित तौर पर ये सब शरद पवार की सलाह, सिफारिश और सहमति से ही कहा जा रहा होगा.
वैसे भी महाविकास आघाड़ी के गठन में राहुल गांधी की कोई भूमिका नहीं रही है. शरद पवार ने सीधे सोनिया गांधी से संपर्क किया था - और जब महाराष्ट्र गठबंधन सरकार की कल्पना और उसके बाद की तैयारियां चल रही थीं, राहुल गांधी ज्यादातर निजी कामों में व्यस्त रहे.
महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस के शामिल होने की मंजूरी भी सोनिया गांधी ने मजबूरी में ही दी थी. अगर वो पीछे हट जातीं तो कांग्रेस के विधायक पार्टी छोड़ कर सत्ताधारी गठबंधन के साथ चले जाते और कांग्रेस उसी वक्त टूट जाती.
महाराष्ट्र में सावरकर विरोध की राजनीति की बात या तो राहुल गांधी सोच सकते हैं या फिर उनके पसंदीदा नेता नाना पटोले. सावरकर के मुद्दे पर नाना पटोले फिलहाल राहुल गांधी के साथ खड़े हैं - और उनके खिलाफ भी केस दर्ज करने की मांग की जा रही है.
क्या ये नाना पटोले की स्टैटेजी है?
सावरकर का नाम लेकर राहुल गांधी अक्सर ही संघ और बीजेपी पर हमला बोलते रहे हैं, लेकिन दिल्ली के बाद सीधे महाराष्ट्र पहुंच कर अचानक ऐसा करना थोड़ा अजीब भी लगता है. ऐसा लगता है जैसे नाना पटोले की भी इसमें खास भूमिका हो. अब तो कांग्रेस ये लाइन तय कर चुकी है और जयराम रमेश भी सफाई के साथ तथ्यों की बात कर रहे हैं, जो राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस में कही थी.
लेकिन सवाल उठता है कि भला नाना पटोले ऐसा क्यों चाहेंगे? निश्चित तौर पर कांग्रेस महाराष्ट्र में कमजोर है, लेकिन नाना पटोले को लगता है कि ये सब पुराने कांग्रेसियों की वजह से हो रहा है. पुराने कांग्रेसियों में पृथ्वीराज चव्हाण और अशोक चव्हाण या फिर बाला साहेब थोराट जैसे नेता हो सकते हैं. कुछ दिन पहले तो अशोक चव्हाण के बीजेपी ज्वाइन करने की जोरों की चर्चा रही. तब अशोक चव्हाण ने ये कह कर सफाई दी थी कि वो तो भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने वाले हैं - और हुए भी.
ये भी ध्यान रहे कि नाना पटोले भारत जोड़ो यात्रा के लिए शरद पवार और उद्धव ठाकरे को न्योता देने भी नहीं गये थे. न्योता लेकर दोनों के पास बाला साहेब थोराट गये थे. बाला साहेब थोराट महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं.
जब महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनी थी तो नाना पटोले विधानसभा के स्पीकर बनाये गये थे, लेकिन फिर इस्तीफा दे दिया और राहुल गांधी ने उनको राज्य में कांग्रेस की कमान सौंप दी. तभी से नाना पटोले ऐसी बातें करते रहे हैं जो गठबंधन को सूट नहीं करतीं - ताजा मामला सारी हदें पार कर गया है, ऐसा लगता है.
एक बार तो नाना पटोले ने यहां तक समझाने लगे थे कि कांग्रेस अपने दम पर महाराष्ट्र में सत्ता हासिल कर सकती है. राहुल गांधी तो नाना पटोले की बातें वैसे ही आंख मूंद कर सुनते हैं जैसे तेलंगाना कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी या पहले नवजोत सिंह सिद्धू की सुना करते थे. जैसे वो और सोनिया गांधी अब भी अशोक गहलोत की बातें सुनते हैं और उनके मनमाफिक ही फैसले लेते हैं, अब अजय माकन को ये सब अच्छा न लगे और इस्तीफा भी दें दें तो क्या फर्क पड़ता है.
ये बात आसानी से हजम हो सकती है कि नाना पटोले ने महाराष्ट्र को लेकर सिद्धू की तरह ही राहुल गांधी को कोई एक्शन प्लान समझाया हो. सिद्धू ने भी तो पंजाब में सत्ता में वापसी और सूबे को नया कलेवर देने वाला प्रजेंटेशन तैयार किया था - और दोनों भाई बहन लट्टू की तरह झूम उठे थे.
सावरकर पर राहुल गांधी के बयान को लेकर नाना पटोले और जयराम रमेश चाहे जैसे भी बचाव करने की कोशिश करें, लेकिन ये मुद्दा मराठी अस्मिता से जुड़ गया है - और मराठी अस्मिता की बात पर लोगों का गुस्सा फूट सकता है, जिसका खामियाजा कांग्रेस से पहले महाविकास आघाड़ी को ही भुगतना पड़ सकता है.
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