मोदी के मॉडिफाइड गुजरात मॉडल की झलक भूपेंद्र पटेल कैबिनेट में देखिये
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बर्थडे (Narendra Modi Birthday) के मौके पर ही नया गुजरात मॉडल (Gujarat Model Modified) सामने आया है. ये मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) के कैबिनेट में साफ तौर पर देखा जा सकता है - क्योंकि ये देश भर के बीजेपी नेताओं के लिए संदेश लिये हुए है.
-
Total Shares
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 71वें बर्थडे (Narendra Modi Birthday) की पूर्व संध्या पर नये गुजरात मॉडल (Gujarat Model Modified) की झलक देखने को मिली है. मान कर चलना होगा कि ये और निखरने वाला है और देश के तमाम हिस्सों में चुनाव दर चुनाव ये तस्वीर साफ होती जाएगी.
भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के बर्थडे पर देश भर में तमाम कार्यक्रम तो आयोजित किये ही हैं, सेवा से समर्पण कैंपेन भी चलाया जा रहा है, जो 17 सितंबर से 20 दिनों तक चलेगा - दरअसल, 7 अक्टूबर बीजेपी और मोदी के लिए बेहद खास दिन है.
ठीक बीस साल पहले नरेंद्र मोदी 7 अक्टूबर को ही गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे और उसी गुजरात मॉडल को पेश करते हुए सात साल पहले देश के प्रधानमंत्री बने. समझने वाली एक खास बात ये भी है कि मोदी के शासन के 20 साल पूरे होने जा रहे हैं जिसमें सात साल प्रधानमंत्री के रूप में है.
2014 के आम चुनाव में मोदी ने अपने साथी बीजेपी नेता अमित शाह के साथ जो गुजरात मॉडल पेश किया था वो सिर्फ उन लोगों के लिए ही था जिनसे वोट लेने थे, लेकिन मोदी-शाह का अभी जो मॉडल सामने आ रहा है वो जनता के लिए तो है ही, विशेष तौर पर संगठन के लिए भी है - और ये बीजेपी के मुख्यमंत्रियों तक ही सीमित नहीं है, राज्यों में बीजेपी सरकार के मंत्रियों के लिए भी है और आने वाले चुनाव फिर से टिकट चाहने वाले विधायकों के लिए भी है.
मोटे तौर पर समझने की कोशिश करें तो मॉडिफाइड गुजरात मॉडल को विजय रूपानी सरकार की वजह से उपजी सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने की बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है. पाटीदार समुदाय सहित कोरोना संकट के दौरान गुजरात के लोगों की नाराजगी से खिसकती जमीन की आशंका से उबरने का एहतियाती उपाय भी मान सकते हैं - और देश भर के बेजीपी नेताओं को सख्त संदेश देने की कवायद तो साफ तौर पर समझ आ ही रही है.
मोदी-शाह को पहले ही समझ आ चुका है कि कांग्रेस राहुल गांधी की पहल से एक बार फिर गुजरात में बीजेपी के खिलाफ कोई बड़ा कारनामा करने की तैयारी कर रही है - और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी काफी अंदर तक घुसपैठ कर चुकी है, लिहाजा पूरे घर को बदल डालने के सिवा ज्यादा उपाय बचे भी नहीं होंगे. जिस तरीके से भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) ने मंत्रिमंडल बनाया है वो तो ऐसे ही इशारे कर रहा है.
ऑल-इन-वन पैकेज बन गये हैं भूपेंद्र पटेल
परिवर्तन संसार का नियम है - बीजेपी के गुजरात मॉडल के लेटेस्ट वर्जन में ये संदेश निहित तो है ही, समझाइश ये भी है कि गुजरते वक्त के साथ संगठन की भी जरूरतें बदलती रहती हैं - और इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि नितिन पटेल की वो महती जरूरत खत्म हो चुकी है. करीब करीब वैसे ही जैसे ज्यादातर कच्चे बिलों पर अनिवार्य रूप से लिखा होता है - 'भूल चूक लेनी देनी.'
पांच साल पहले 2016 में जब अमित शाह सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट लिख रहे थे तो नितिन पटेल राजनीतिक समीकरणों में फिट नहीं हो पाये थे. और अब जरूरतें बदल चुकी हैं और नितिन पटेल एक बार फिर मिसफिट हो गये. चूंकि मोदी-शाह सत्ता विरोधी फैक्टर को खत्म करने के लिए जो उपाय खोजा उसमें नितिन पटेल भी तो एक किरदार रहे ही. भले सारे फैसले विजय रूपानी लेते रहे हों, लेकिन अगर कहीं कोई विरोध नहीं जताया तो सरकार के हर फैसले में स्वाभाविक हिस्सेदार तो बन ही जाते हैं.
सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही अपवाद हैं, नये गुजरात मॉडल में बाकियों की खैर नहीं!
5 साल बाद ही सही, लेकिन सलाहियत तो मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ यूपी के राजभवन पहुंच चुकीं आनंदीबेन पटेल की ही मानी गयी है. ये भी है कि तब नितिन पटेल की प्रस्तावक और पैरोकार भी आनंदीबेन पटेल ही थीं - और अब भूपेंद्र पटेल के नाम की सिफारिश भी आनंदी बेन पटेल ने ही की है. देखा जाये तो पांच साल पहले का वो दिन आनंदीबेन पटेल के लिए भी लालकृष्ण आडवाणी के मार्गदर्शक मंडल में भेजे जाने ही जैसा था. जैसे अमित शाह गांधी नगर में भी आडवाणी के उत्तराधिकारी बने, वैसे ही भूपेंद्र पटेल भी तो घटलोडिया से ही विधानसभा पहुंचे हैं. केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए राज्यों में राज्यपाल बनने वाले भी आडवाणी जैसा ही महसूस करते होंगे. हो सकता है जम्मू-कश्मीर में लेफ्टिनेंट गवर्नर बने मनोज सिन्हा को अलग अनुभव हो रहा हो. खासकर, बेबीरानी मौर्या को उत्तराखंड के राज भवन से बुला कर चुनावी मैदान में उतारे जाने के संकेत मिलने के बाद.
लगता है आनंदीबेन पटेल ने भूपेंद्र पटेल को ऑल इन वन पैकेज के तौर पर ही मोदी के सामने पेश किया होगा. मसलन, विजय रूपानी की जगह भूपेंद्र पटेल, लगे हाथ नितिन पटेल के भी स्थानापन्न होंगे - और नया, लो-प्रोफाइल नेता होने की वजह से लोगों को बहुत अपेक्षा भी नहीं होगी. गुजरात बीजेपी में गुटबाजी के मामले में भी बीमारी का इलाज न सही, राहत तो मिल ही जाएगी.
भूपेंद्र पटेल कैबिनेट में विजय रूपानी सरकार का कोई भी मंत्री जगह नहीं बना पाया है. चूंकि विधानसभा अध्यक्ष को न्यूट्रल माना जाता है, इसलिए विजय रूपानी सरकार के दौरान स्पीकर रहे राजेंद्र त्रिवेदी को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है - गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके जीतू वघानी भी मंत्री बनाये गये हैं. ऐसा ये सोच कर भी किया गया लगता है क्योंकि नयी टीम में गिनती के लोग ही ऐसे हैं जिनके पास राजकाज का पुराना अनुभव हासिल है.
राजेंद्र त्रिवेदी, मोदी के दिल्ली पहुंच जाने के बाद और 2016 से पहले वाली आनंदीबेन सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं. जाहिर है काफी सोच समझ कर ही मंत्रिमंडल में उनको जगह दी गयी है. एक मंत्री राघवजी पटेल गुजरात की मोदी सरकार से पहले मंत्री रह चुके हैं, जबकि कृष्णानाथ राणा को नयी सरकार में ये सोच कर रखा गया लगता है कि वो मोदी शासन के अनुभवों का फायदा भूपेंद्र पटेल को भी दे सकें.
पद तो जाएगा ही, टिकट के भी लाले पड़ सकते हैं!
विजय रूपानी को आनंदीबेन पटेल की जगह मुख्यमंत्री बनाये जाने की असल वजह तो राजनीतिक रही, लेकिन बहाना तो पाटीदार कार्यकर्ता से कांग्रेस नेता बने हार्दिक पटेल ही बने. लेकिन हार्दिक पटेल ने जो गुस्सा पाटीदार समुदाय के मन में भर दिया था, विजय रूपानी को भी उसी की कीमत चुकानी पड़ी है.
हार्दिक पटेल ने बीजेपी के खिलाफ पाटीदार समुदाय में आरक्षण के नाम पर जो आग भड़कायी थी, वो ऊपर से ठंडी जरूर दिखायी पड़ रही थी लेकिन अंदर से सुलगना बंद नहीं हुआ था. बीजेपी नेतृत्व को ये एहसास हो चुका था कि अगर बड़े पैमाने पर कुछ होता हुआ लोगों को देखने को नहीं मिला तो पाटीदार समुदाय तो उसके हाथ से निकलेगा ही, हार्दिक पटेल के जरिये कांग्रेस बड़े पैमाने पर डैमेज भी कर सकती है.
182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में 44 पाटीदार विधायक हैं और गुजरात में करीब 15 फीसदी पाटीदार वोटर हैं जो अपने इलाके में हर हार जीत का फैसला करते हैं. नरेंद्र मोदी ने भी जब आनंदीबेन पटेल को गद्दी सौंपी होगी, तो उनके दिये भरोसे में एक फैक्टर उनका पाटीदार समुदाय से होना तो होगा ही.
देखने में तो यही आया कि आनंदीबेन पटेल को हटाकर भी अमित शाह तमाम तामझाम और और इंतजाम करके भी 99 सीटों से आगे नहीं ले जा सके - और कांग्रेस को भी 77 सीटें पाने से नहीं रोक सके जो राहुल गांधी की हौसलाअफजाई के लिए काफी था. ये गुजरात के मोटिवेशन का ही असर रहा जो नतीजे आने से पहले ही राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाली और 2018 के आखिर में तीन राज्यों में बीजेपी को बेदखल कर कांग्रेस की सरकार बनवा दी - राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़.
मोदी-शाह का नया गुजरात मॉडल भी बीजेपी नेताओं के लिए ट्रेलर ही है कोई पिक्चर नहीं. पिक्चर अभी बहुत बाकी है. ये तो जुलाई, 2021 में हुई मोदी कैबिनेट फेरबदल जैसा ही एक और लेकिन ज्यादा असरदार ट्रेलर है - और इसके नये नये रूप आने वाले चुनावों से पहले वैसे ही देखने को मिलने वाले हैं जैसे तूफान आने पर कश्ती में बैठे लोगों को महसूस होता है.
देखा जाये तो गुजरात में बीजेपी ने उत्तराखंड की तरह एक छोटे से अंतराल में दो-दो मुख्यमंत्री नहीं बदला है, लेकिन जो कायापलट किया है वो बीजेपी के हर नेता के लिए गंभीर चेतावनी है.
विजय रूपानी भी को भी त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत या बीएस येदियुरप्पा की तरह ही केस स्टडी के तौर पर लिया जा सकता है, लेकिन डॉक्टर हर्षवर्धन, रविशंकर प्रसाद, रमेश पोखरियाल, रविशंकर प्रसाद से ही मिलता जुलता मामला लगता है.
बीजेपी सरकारों में मुख्यमंत्रियों के साथ साथ ये राज्यों के मंत्रियों के लिए भी मोदी-शाह की तरह से साफ साफ संदेश है - कोई ये न समझ ले कि वो जहां है कुंडली मार कर बैठ चुका है, किसी का भी पत्ता कभी भी साफ हो सकता है. बिहार में सुशील कुमार मोदी के साथ भी ऐसा पहले ही हो चुका है.
मोदी-शाह ने गुजरात को नजीर बना कर मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के साथ साथ विधायकों और सांसदों तक को भी पैगाम भेज दिया है. हर कोई उसे अपने अपने से डिकोड कर सकता है, लेकिन तौर तरीके एक जैसे ही होंगे - कोई भी हो, किसी का कितना ही दुलारा क्यों न हो, काम ठीक से नहीं करेगा, तो हटाये जाने में देर नहीं लगने वाली.
बीजेपी नेतृत्व का मैसेज बिलकुल साफ है. कोई मुगालते में न रहे कि योगी आदित्यनाथ को बर्दाश्त कर लिया गया है तो बाकियों के साथ भी वैसा ही व्यवहार मुमकिन है. किसी की कोई भी कुर्सी पक्की नहीं है. बीजेपी जब चाहे, जिसे भी चाहे एक झटके में हटा सकती है - नेतृत्व को आंख दिखाकर या पार्टीलाइन से अलग राह अपना कर किसी को भी मनमानी की छूट नहीं होगी, भले ही उसके ऊपर संघ का ही वरद हस्त क्यों न हो - और ये सब सिर्फ कुर्सी वालों के लिए ही आफत की बात नहीं है, टिकटों के बंटवारे में भी ऐसी ही सियासी सर्जरी देखने को मिल सकती है.
हां, योगी आदित्यनाथ तब तक अपवाद बने रह सकते हैं जब तक उनके अच्छे दिन चल रहे हैं क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पूजा पर वो भी बैठे थे - बाकी मौका हाथ में आने पर जनता जनार्दन जो भी जनादेश दे!
इन्हें भी पढ़ें :
भूपेंद्र पटेल पाटीदारों की अदालत में भाजपा के भूल सुधार का हलफनामा हैं
विजय रूपानी जैसे आये थे, गये भी वैसे ही - पांच साल कुर्सी जरूर बचाये रखे
योगी-मोदी युग में राम मंदिर बन रहा हो तो UP में BJP को 400 सीटें क्यों नहीं?
आपकी राय