मोदीराज का एहसान मानिये जो चुनाव प्रचार भी मल्टीनेशनल हो गया है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब लंदन में होते हैं तो कर्नाटक चुनाव में लिंगायत कार्ड खेल लेते हैं - और चीन पहुंच कर पूरे देश से वोट मांग लेते हैं. ये मोदीराज का कमाल नहीं तो और क्या है - आखिर राहुल गांधी ने भी तो अमेरिका से ही गुजरात चुनाव प्रचार की शुरुआत की थी.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष विपक्ष का धर्म पूरी तरह निभा रहे हैं. वैसे जाने माने हास्य कवि संपत सरल कहते हैं कि कोई भी कवि, शायर या लेखक हर सरकार का स्थायी विपक्ष होता है. राहुल गांधी की ही तरह प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं को लेकर संपत सरल की एक बड़ी लोकप्रिय टिप्पणी है, "हम भाग्यशाली हैं कि 68 साल में पहली बार हमें एक बहुराष्ट्रीय प्रधानमंत्री मिले... आधी दुनिया का चक्कर काटकर आ गए..."
प्रधानमंत्री मोदी अपनी विदेश यात्राओं के जरिये अक्सर 'पहली बार' वाले रिकॉर्ड भी कायम करते रहे हैं. मामला इतना ही होता तो बात और होती, लगता तो ऐसा है के मोदी राज में चुनाव प्रचार भी मल्टीनेशनल स्वरूप अख्तियार कर लिया है.
चुनाव है क्या?
मशहूर शायर राहत इंदौरी की तरह ही सोशल मीडिया पर कई लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मन की बात पर रिएक्ट किया है. राहत इंदौरी का एक शेर है, "सरहदों पर तनाव है क्या? जरा पता तो करो चुनाव हैं क्या?"
मन की बात हो तो बहुत अच्छा!
मन की बात के लेटेस्ट एपिसोड में जब प्रधानमंत्री मोदी ने रमजान का जिक्र किया तो पूछा गया - 'कहीं इलेक्शन है क्या?'
Kahin election hai kya??
— Amit Shah (@amitshaah_) April 29, 2018
रमजान का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने मन की बात में कहा, "मोहम्मद साहब कहते थे कि अगर आपके पास कोई चीज या वस्तु ज्यादा मात्रा में है तो इसे जरूरतमंद लोगों के साथ बांटना चाहिए... यही कारण है कि रमजान के दौरान दान की अवधारणा महत्वपूर्ण हो जाती है."
ModijiOn normal days : prophet sahab is great
On election mode: bhaiyo aur behno.. Shamshan chahiye ya kabristanMandir or masjid...
— Saifur Rahman (@saifurrhmn90) April 29, 2018
मन की बात नहीं इलेक्शन कैंपेन है ये ????
— Sardar Manteshwar Singh ???? (@xDmad) April 29, 2018
Dubai me election ladne ki taiyari ?
— azy (@azam3100) April 29, 2018
मल्टीनेशलन इलेक्शन कैंपेन
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी जब लंदन में थे तो भी उनकी नजर कर्नाटक चुनाव पर ही रही - और जब चीन पहुंचे तो शी जिनपिंग से बात में भी बड़ी ही संजीदगी के साथ 2019 चुनाव का जिक्र कर दिया.
अमेरिका में चुनाव प्रचार की नींव रखी...
देखा जाय तो गुजरात चुनाव के लिए प्रचार की नींव राहुल गांधी ने भी अमेरिका में रखी थी. तब टीम राहुल की दिव्या स्पंदना रम्या गुजरात में 'विकास गांडो थायो छे...' कैंपेन चला रही थीं और सैम पित्रोदा राहुल गांधी को अंतर्राष्ट्रीय फोरम में नये नेता के रूप में लांच कर रहे थे. गुजरात चुनाव के दौरान ही राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की प्रक्रिया शुरू हुई और नतीजे आते आते उन्होंने कमान भी संभाल ली. नतीजे भी उम्मीद के डबल आये. फिर कर्नाटक चुनाव का माहौल बनने लगा. तभी राहुल गांधी का बहरीन का कार्यक्रम बन गया.
चुनाव प्रचार की खुमारी उतरी तो थी नहीं लिहाजा बहरीन में भी वही अंदाज देखने को मिला, 'मैं यहां आपको बताने आया हूं कि आप हमारे लिए क्या महत्व रखते हैं, यह बताने कि घर में बड़ा खतरा है और यह बताने कि आप समाधान का हिस्सा हैं.'
सिर्फ इतना ही नहीं, राहुल गांधी ने तो बहरीन के मंच से केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी की औकात भी बता डाली, 'गुजरात बीजेपी का गढ़ है और वहां बचके निकली है.'
I am here to tell you what you mean to our country, that you’re important, to tell you there is a serious problem at home, to tell you that you’re part of the solution and that I am here to build a bridge between wherever you are in the world and home. pic.twitter.com/Ki2cQsRSZs
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 8, 2018
हिंदू कैलेंडर के हिसाब से वैशाख महीने के तीसरे दिन कर्नाटक के संत बसेश्वर की जयंती होती है. इस मौके पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बेंगलुरू तो प्रधानमंत्री मोदी ने लंदन में श्रद्धांजलि दी. असल में उन दिनों मोदी ब्रिटेन के दौरे पर थे और मौका देखकर उन्होंने कर्नाटक में उस वोट बैंक को साधने की कोशिश की जो संत बसेश्वर की पूजा करते हैं. मोदी उसी मूर्ति पर फूल माला चढ़ाई जिसका 2015 में खुद ही अनावरण किया था. मोदी के इस एक्ट को कर्नाटक चुनाव के हिसाब से लिंगायत कार्ड के तौर पर लिया गया. कांग्रेस ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर वोट बैंक को अपने तरीके से साधने की कोशिश की है.
लंदन से लिंगायत कार्ड...
ब्रिटेन की ही तरह चीन के वुहान दौरे में भी मोदी ने सियासी मतलब की बात कर डाली है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत में आभार जताते हुए मोदी ने एक ऐसी बात कह डाली जिसके कई मतलब निकाले जा सकते हैं.
प्रोटोकॉल तोड़ कर मोदी की अगवानी और शिखर चर्चा के लिए शी जिनपिंग के वुहान पहुंचने को लेकर मोदी ने कहा, "मुझे खुशी है कि इस समिट को आपने काफी महत्व दिया. ये इन्फॉर्मल समिट हमारी रेग्युलर व्यवस्था को विकसित करे. मुझे खुशी होगी कि 2019 में ऐसी ही एक अनौपचारिक समिट करने का हमें मौका मिले."
वैसे तो जून में होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन कांफ्रेंस में भी मोदी के हिस्सा लेने चीन जाने की संभावना है, लेकिन 2019 तो अभी बहुत दूर है. निर्धारित समय के हिसाब से 2019 में ही आम चुनाव होने हैं, मगर ऐसा लगता है कि कुछ विधानसभा चुनावों के साथ इस साल के आखिर में ही आम चुनाव भी कराये जा सकते हैं. फिर तो 2019 में देश नये सिरे से प्रधानमंत्री चुन चुका होगा.
तो क्या समझा जाये - मोदी ने देशवासियों से एक साथ वोट मांग लिया है? क्या मोदी लोगों से ये कहना चाहते हैं कि वोट देकर फिर से प्रधानमंत्री बनाया गया तो चीन के साथ यूं ही अनौपचारिक शिखर वार्ता करते रहेंगे? या फिर मोदी ने चीन को अपने तरीके से आश्वस्त किया है कि फिक्र करने की जरूरत नहीं 2019 में भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहेंगे - और ऐसी अनौपचारिक शिखर वार्ताएं आगे भी होती रहेंगी. शी जिनपिंग तो हमेशा के लिए चीन के राष्ट्रपति बन गये हैं. क्या ये 'मेड इन चाइना' और 'मेक इन इंडिया' की किसी शाश्वत प्रक्रिया का हिस्सा है?
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