राहुल-प्रियंका के लिए सचिन पायलट भी कैप्टन जैसे थे, फर्क सिद्धू का रहा
राजस्थान में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का असर छत्तीसगढ़ से पहले दिखायी पड़ा है - सचिन पायलट (Sachin Pilot) की राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा (Rahul-Priyanka Gandhi) से हफ्ते भर में दो बार मुलाकात हो चुकी है - लेकिन ज्यादा की अपेक्षा जल्दबाजी होगी.
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सचिन पायलट (Sachin Pilot) के भी दिन बदलने वाले हैं - और ये पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) एपिसोड का ही असर लगता है. हालांकि, सब कुछ पंजाब जैसा राजस्थान में भी हो सकता है, हाल फिलहाल तो कतई नहीं लगता.
पंजाब में सिद्धू बनाम कैप्टन अमरिंदर सिंह के झगड़े के समानांतर ही छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी जगह लेने को आतुर टीएस सिंह देव अपने अपने हिसाब से लॉबिंग और सियासी चालें चल रहे थे. आखिर में ये तय हुआ कि राहुल गांधी बस्तर के दौरे पर जाएंगे और फिर देश भर में गुजरात मॉडल के मुकाबले छत्तीसगढ़ मॉडल को प्रमोट करेंगे - लेकिन ऐसा लगता है कांग्रेस नेतृत्व पहले राजस्थान की किचकिच खत्म करना चाहता है.
ऐसा शायद इसलिए भी क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद अशोक गहलोत नसीहत देने लगे थे, जबकि हाल की उनकी हरकतों ने तो पहले से ही कांग्रेस आलाकमान को कैप्टन जितना ही गुस्सा दिला रखा है.
असल में, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 19 सितंबर को कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम एक चिट्ठी लिखी थी. चिट्ठी में गहलोत ने उम्मीद जाहिर की थी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह कोई ऐसा वैसा काम नहीं करेंगे जिससे कांग्रेस को किसी तरह का नुकसान हो. गहलोत ने कैप्टन की ये कहते हुए तारीफ भी की थी कि वो पूरी ताकत के साथ पंजाब की सेवा किये लेकिन पार्टी हित में कई बार आलाकमान को कई तरह के फैसले भी लेने पड़ते हैं. ये भी याद दिलाये कि कैप्टन साहब ने खुद कहा है कि पार्टी ने ही उनको मुख्यमंत्री बनाया.
कहने को तो अशोक गहलोत की तरफ से ये कैप्टन अमरिंदर सिंह को सलाह दी गयी थी, लेकिन, दरअसल, ये गांधी परिवार को मैसेज देने की कोशिश रही कि वो कांग्रेस को लेकर कितनी फिक्र करते हैं. राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने अशोक गहलोत की इस पहल में चाहे कोई दिलचस्पी दिखायी हो या नहीं, कैप्टन ने रिएक्ट जरूर किया और थोड़ सख्त लहजे में ही. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अशोक गहलोत को सलाह दी कि अशोक गहलोत पहले अपने राज्य को संभालने पर ध्यान दें - और पंजाब की चिंता उनके लिए छोड़ दें.
इसी बीच सचिन पायलट के दिल्ली पहुंच कर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की खबर आती है - और वो भी एक हफ्ते के भीतर ही दो-दो बार. निश्चित तौर पर ये सिद्धू के अपने स्टैंड पर अड़े रह कर अंजाम तक पहुंचने का असर है. वैसे सिद्धू की मंजिल तो मुख्यमंत्री की कुर्सी ही होगी, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह को कुर्सी से बेदखल में भी उनको उतना ही मजा आया होगा.
अब तक तो यही देखने को मिला है कि सचिन पायलट भी राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा (Rahul-Priyanka Gandhi) के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे ही लग रहे थे, लेकिन लगता है अशोक गहलोत का नया रूप देखने के बाद धारणा थोड़ी बदली है - फिर भी सचिन पायलट को अभी इंतजार करना पड़ सकता है.
मुलाकातों के ये दिन कैसे आये
पहली बात - भले ही राजस्थान में पंजाब जैसी हलचल दिखायी पड़ रही हो, लेकिन हाल फिलहाल ऐसा कुछ होने वाला हो, ऐसा तो नहीं ही लगता. हां, जो चीजें पेंडिंग हैं उन पर अमल करने की ये कवायद जरूर हो सकती है. चीजों को दुरूस्त करने की कोशिश के तौर पर भी समझ सकते हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा शिमला घूम कर भी लौट चुके हैं. रास्ते में चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर पंजाब में सीएम बनते बनते रह गये और डिप्टी सीएम की पोस्ट ठुकरा चुके सुनील जाखड़ मिले तो साथ में दिल्ली लेते गये - जाहिर है रास्ते में भाई-बहन मिल कर काउंसिलिंग भी ढंग से किये होंगे.
सचिन पायलट को लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के अचानक हृदय परिवर्तन की एक बड़ी वजह पंचायत चुनाव के नतीजे भी हो सकते हैं. ऐसा लगता है कि ये नतीजे ही हैं जिनकी वजह से गांधी परिवार का राजस्थान की तरफ पहले ध्यान गया है - माना ये जा रहा है कि पंचायत चुनाव के दौरान सचिन पायलट की सक्रियता की वजह से गांवों में कांग्रेस मजबूत हुई है.
सचिन पायलट की किस्मत भले न चमके लेकिन ताले तो खुलने वाले ही लगते हैं.
वैसे भी सचिन पायलट तो अब तक सिर्फ यही याद दिलाने की कोशिश करते रहे हैं कि झगड़े के वक्त राहुल गांधी से मीटिंग में जो चीजें तय हुई थीं वो हकीकत का भी रूप लें. उनमें दो प्रमुख बातें थी एक, राहुल गांधी के चुनावों में किये वादे पूरे करना और दूसरी सचिन पायलट के समर्थकों को कैबिनेट में जगह दिया जाना.
कुछ मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से ऐसे कयास भी लगाये गये हैं कि अक्टूबर के शुरू में राजस्थान में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में फेरबदल हो सकता है. कैबिनेट में साथियों को जगह देने के साथ ही राज्य के बोर्ड और निगमों में भी नियुक्तियां की जायें. सचिन पायलट की डिमांड भी वाजिब लगती है, भले उनको न सही, लेकिन कांग्रेस के जो नेता और कार्यकर्ता उनके साथ काम कर रहे हैं उनको उचित हक तो पार्टी को देना ही चाहिये.
हाल ही में राजस्थान के प्रभारी कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने भी गहलोत कैबिनेट में फेरबदल की तरफ इशारा किया था. अजय माकन ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, 'अगर अशोक गहलोत बीमार नहीं पड़े होते, तो हम मंत्रिमंडल का विस्तार कर चुके होते... बोर्ड निगम और जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के लिए रूपरेखा तैयार है.'
सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि सचिन पायलट को फिर से राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंपी जा सकती है, जबकि उनके समर्थक सीधे अशोक गहलोत को हटाकर मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं. अशोक गहलोत से झगड़े के विकराल रूप लेने से पहले तक सचिन पायलट पीसीसी अध्यक्ष होने के साथ साथ राजस्थान के डिप्टी सीएम भी रहे.
सचिन पायलट को हटाये जाने के बाद गोविंद सिंह डोटासरा को राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंपी गयी. गोविंद सिंह डोटासरा कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री हैं और कुछ दिन पहले ही उनके दो रिश्तेदारों के RAS में चयन को लेकर खासा विवाद भी हुआ था.
सचिन पायलट के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मिलने से पहले भी दो महत्वपूर्ण मुलाकातों की खबर भी महत्वपूर्ण लगती है. एक मुलाकात जो राहुल गांधी और राजस्थान सरकार में मंत्री रघु शर्मा के बीच हुई है - और दूसरी, राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी और सचिन पायलट के बीच. देखा जाये तो सीपी जोशी और रघु शर्मा दोनों ही कम से कम सचिन पायलट के पक्ष में तो कभी नजर नहीं ही आये हैं. झगड़े के दिनों में सीपी जोशी भी कोर्ट पहुंच गये थे, और जब कोटा अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर सचिन पायलट ने अपनी ही कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था तो ये स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ही रहे जो अशोक गहलोत की तरफ से सचिन पायलट के हमले को न्यूट्रलाइज करने की कोशिश कर रहे थे.
पहले 17 सितंबर और उसके बाद 24 सितंबर को सचिन पायलट की दोबारा मुलाकात हुई है. राहुल गांधी के साथ सचिन पायलट की मुलाकात काफी लंबी चली बतायी जाती है. दोनों मुलाकातों में प्रियंका गांधी की मौजूदगी की बात भी सामने आयी है. वैसे भी लंबे चले झगड़े के बाद बीच बचाव भी तो प्रियंका गांधी ने ही किया था.
बदलाव कितने फायदेमंद होंगे
एक खास सियासी पैटर्न जो गुजरात से लेकर पंजाब तक देखने को मिला है, राजस्थान में भी वैसी ही दस्तक सुनायी पड़ने लगी है. गुजरात में जिस तरीके से बीजेपी नेतृत्व ने सत्ताविरोधी लहर और वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए नेतृत्व परिवर्तन किया, गांधी परिवार ने पंजाब में काफी हद तक कॉपी करते देखा गया. जैसे बीजेपी ने गुजरात में पाटीदार वोट बैंक के हिसाब से मुख्यमंत्री बदला, वैसे ही कांग्रेस ने पंजाब में दलित वोट बैंक को ध्यान में रख कर परिवर्तन दिखाने की कोशिश की.
बीजेपी और कांग्रेस की इस कॉमन कवायद में फर्क ये रहा कि विजय रूपानी चुपचाप कुर्सी छोड़ कर किनारे जाकर बैठ गये, कैप्टन अमरिंदर सिंह रोज गांधी परिवार के खिलाफ अपनी भड़ास जैसे तैसे निकालने की कोशिश कर रहे हैं - और नेस्तनाबूद करने जैसी धमकी भी देते जा रहे हैं, इशारों में ही सही.
इंडिया टुडे ने इस बीच खबर दी है कि राजस्थान में भी बदलाव की संभावना जतायी जा रही है. हालांकि, ये सब इतना जल्दी भी नहीं होने वाला है. वैसे भी दोनों चुनावों में डेढ़ साल से ज्यादा का फासला है. पंजाब में 2022 के शुरू में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जबकि राजस्थान में 2023 के आखिर में.
रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस अशोक गहलोत के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के मकसद से चुनावों से पहले कोई नया चेहरा पेश कर सकती है. मतलब, ये कि अशोक गहलोत की कुर्सी देर सवेर जानी तय है - लेकिन ये भी तो जरूरी नहीं कि नया चेहरा सचिन पायलट ही हों.
सचिन पायलट के प्रति भी गांधी परिवार का नजरिया करीब करीब कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा ही है. आपको याद होगा कैसे एक छोटे से अंतराल के बीच गांधी परिवार के दरबार में एंट्री नहीं मिलने पर सचिन पायलट और कैप्टन अमरिंदर सिंह दोनों को दिल्ली में रुक कर इंतजार के बाद बैरंग लौटना पड़ा था.
असल बात तो ये है कि कांग्रेस नेतृत्व को सचिन पायलट का रवैया कभी पसंद नहीं आया - भले ही सचिन पायलट के 'निकम्मा, नकारा और पीठ में छुरा भोंकने वाला' जैसी बातें भी अशोक गहलोत ने ही गांधी परिवार को बतायी हों. हालांकि, जब भी सचिन पायलट के ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह बीजेपी में जाने की चर्चा हुई वो साफ तौर पर नकारते रहे कि वो कांग्रेस छोड़ कर कहीं भी नहीं जा रहे हैं.
लेकिन बाद के दिनों में अशोक गहलोत ने जिस तरीके से अजय माकन के फोन कॉल रिसीव न कर कांग्रेस आलाकमान को आंख दिखाने की कोशिश की है, एक न एक दिन उनकी भी कुर्सी पर तो आनी ही थी. वैसे भी बेटे के लिए लोक सभा चुनाव में टिकट की जिद राहुल गांधी और कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में जानने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा को पहले से ही चुभती रही है.
ये तो लगने लगा है कि अशोक गहलोत की स्थिति गांधी परिवार के दरबार में पहले के मुकाबले काफी कमजोर हो चुकी है, लेकिन सचिन पायलट दिल में पुरानी जगह बना पाये हों ऐसा भी नहीं लगता - फिर तो ये भी हो सकता है कि किसी तीसरे की किस्मत खुलने वाली हो.
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