नेपाल: हिंदू राष्ट्र अब कम्युनिस्ट चीन के रंग से सराबोर
चीन के शह पर नेपाल में भारत विरोधी स्वर को मजबूत करने की लगातार कोशिश चल रही हैं. पाकिस्तान की ही तरह नेपाल में भी भारत विरोध को लेकर राजनीति की जा रही है.
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नेपाल में चीन का प्रभाव लगातार बढता जा रहा है. इसका अंदाजा नेपाल जाकर स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है. नेपाल भौगोलिक सामाजिक और संस्कृतिक रूप से भारत के करीब है, लेकिन चर्चे चीन के ज्यादा हो रहे हैं. अभी हाल ही में भारत ने नेपाल को पेट्रोलियम पदर्थों की सप्लाई के लिए एक पाईपलाईन दी. 324 करोड की इस परियोजना से नेपाल को पेट्रोल डीजल केरोसिन तेल कम लागत में मिलने लगे जिससे नेपाल की आम जनता को प्रत्यक्ष रूप से लाभ भी हुआ. लेकिन नेपाल में इस पाईपलाईन के चर्चे कम और उसी दिन चीन के द्वारा एक अस्पातल को दिए गए 25 हजार टेंट की चर्चा ज्यादा हो रही है. आखिर क्यों? पहले नेपाल के लोगों से जो अपन्नत्व भारत को मिलता था वो अब कहीं दिखाई नहीं देता. सबसे बड़ी बात कि नेपाल के लोग भारत के खिलाफ तो आग उगल रहे हैं लेकिन चीन के खिलाफ कोई नहीं बोलता. ऐसा क्यों, इसे समझने की जरूरत है.
नेपाल का भारत के साथ जो अपनत्व था, वो अब चीन के साथ दिखाई देता है
पिछले कई दशकों से भी ज्यादा समय से चीन नेपाल के करीब आना चाह रहा है. लेकिन आज स्थित उसके लिए बेहद अनूकूल है क्योंकि नेपाल में कम्युनिस्ट की सरकार है. चीन की कई परियोजनाएं नेपाल में चल रही हैं. भौगोलिक रूप से दूर होने के बावजूद चीन नेपाल के लिए जितना करता है उससे ज्यादा प्रचार करता है. नेपाल की तमाम जरूरत की वस्तुएं भारत सप्लाई करता है, कई परियोजाएं भी चल रही हैं लेकिन प्रचार में वो काफी पीछे है. हालत ये है कि अब नेपाल में चीनी भाषाएं बोली और सिखाई जाने लगी हैं, जबकि हिन्दी को विदेशी भाषा के तौर पर देखा जाने लगा है. नेपाल के हर शहर में दर्जनों चीनी भाषा सिखाने वाले इंस्टीट्यूट मिल जाएंगे. यहां तक कि नेपाल के कई स्कूलों में मैंडेरिन भाषा (चीनी) सीखना अनिवार्य कर दिया गया है. क्योंकि चीन ने मैंडेरिन पढ़ाने वाले शिक्षकों को खुद सैलेरी देने की पेशकश की है. बीरगंज के रहने वाले अजय प्रजापति कहते हैं कि लोगों को लगता है कि चीनी भाषा सीखने से उन्हें चीन में अच्छा रोजगार मिल सकता है.
नेपाल में चीनी भाषा सिखाने वाले इंस्टीट्यूट जगह-जगह मिल जाएंगे
चीन की शह पर नेपाल ने कई ऐसे फैसले लिए जिससे भारत से दूरी बढती जाए. नेपाल की वर्तमान सरकार का उद्देश्य सामाजिक और संस्कृतिक रूप से भारत से अलग होना है. और इसके लिए वो लम्बी योजनाओं पर काम कर रहा है. भारत और नेपाल का कितना प्राचीन रिश्ता है ये बताने की जरूरत नही हैं. भगवान राम का ससुराल जनकपुर भी नेपाल का ही हिस्सा है. कहने का मतलब भारत और नेपाल का बेटी-रोटी का रिश्ता है. सामाजिक स्तर पर दोनों देश इतने जुड़े हुए हैं कि दोनों देशों में शादी ब्याह के रिश्ते निभाए जाते हैं. लेकिन कुछ दिनों बाद यह अतीत की बात हो जाएगी. क्योंकि नेपाल के संविधान में भारत और नेपाल के युवक युवतियों के बीच वैवाहिक रिश्ते न हों उसके कई प्रयास किए गए हैं. नतीजा ये है कि अब लोग वैवाहिक रिश्ता जोड़ने से कतराने लगे हैं. अब भारत की लड़कियों को नेपाल में नागरिकता नहीं मिल पाएगी. इस खबर के बाद शादी ब्याह के रिश्तों में 80 प्रतिशत गिरावट आ गई है. इसको पूरी तरह से समाप्त करने के उद्देश्य से अभी नागरिकता कानून लाया गया है ताकि पूरे सीमांचल क्षेत्र में ये सन्देश चला जाए कि नेपाल में शादी करने पर भारत की बेटियों को कोई अधिकार नहीं मिल सकता है. इस तरह से नेपाल के साथ पारिवारिक संबंध कायम होना बिलकुल ही बंद हो जाएगा. जबकि चीन के युवक युवतियों के लिए ऐसी कोई बंदिश नही है. पर्सा जिले के रहने वाले दिलीप चौधरी का कहना है कि उनका ननिहाल सीतामढी में हैं, लेकिन अब शायद अपने बेटे की शादी वो भारत में नहीं करना चाहेंगे क्योंकि आने वाले समय में दिक्कत हो सकती है.
यही नहीं, नेपाल की सत्तारूढ कम्यूनिस्ट पार्टी ने भारत के साथ खुली सीमाओं को तत्काल बन्द करने की मांग की है. नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी की प्रवक्ता एवं सांसद पम्फा भुसाल ने संसद की एक समिति में नेपाल भारत की खुली सीमा को बन्द करने के लिए जो भी नियम कानून बनाना है उसे तत्काल बनाने की मांग की है.
चीन के विदेश मंत्री वांग यी और नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने हाल ही में काठमांडू, नेपाल में मुलाकात की
जन-जन के बीच स्थापित होने वाले हर प्रकार के संबंध को तोड़ने की साजिश चल रही है. भारत की गाड़ियों को 30 दिन से अधिक लाने की अनुमति पर रोक लगाने वाला कानून हालांकि अभी लागू नहीं किया गया है लेकिन यह भी उसी साजिश का हिस्सा है. भारत नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी को लेकर उसके खिलाफ मुहिम बनाना, आम नेपाली नागरिकों में उनके प्रति आक्रोश भरने का काम किया जा रहा है. इस सबके लिए नेपाल की मीडिया का भी पूरा साथ मिल रहा है. सीमाई इलाकों में नेपाल के लोग हर काम के लिए भारत आते हैं चाहे वो इलाज हो या फिर कोई खरीददारी करनी हो. उन्हें रोज ही एसएसबी से मिलना होता है लेकिन उनके मुताबिक इस तरह की कोई बात नही हैं.
चीन के शह पर नेपाल में भारत विरोधी स्वर को मजबूत करने की लगातार कोशिश चल रही हैं. पाकिस्तान की ही तरह नेपाल में भी भारत विरोध को लेकर राजनीति की जा रही है. नेपाल सरकार के कई विवादास्पद निर्णयों के बाद भी सरकार जानती है कि भारत विरोधी कार्ड खेलकर वो सत्ता में रह सकती है. यही वजह है कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने के मामले पर नेपाल ने कभी भारत का खुलकर समर्थन नहीं किया. चीन ने नहीं किया तो वो कैसे कर सकता है. इससे साफ पता चलता है कि नेपाल की सरकार किसके प्रभाव में हैं.
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