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Updated: 10 नवम्बर, 2020 10:33 PM
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बिहार चुनाव (Bihar Election Result 2020) कई मायनों में बेमिसाल साबित होने जा रहा है. कोरोना संकट के बीच ये चुनाव कोविड प्रोटोकॉल के तहत तो हुआ ही, ऐसी कई बातें देखने को मिल रही हैं जो न तो बिहार विधानसभा चुनावों में पहले कभी देखा होगा और न ही हाल फिलहाल के किसी और चुनाव में.

एडीए और महागठबंधन ही नहीं, बहुत सारी सीटों पर उम्मीदवारों के बीच कड़ी प्रतियोगिता चल रही है - जहां हार जीत का अंतर 5-10 हजार कौन कहे लगता है 100-500 वोटों के फासले से होने वाला है.

ऐसा ही एक दिलचस्प मामला है नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर का. हैरानी की बात तो ये है कि नीतीश कुमार जहां इस लहर में बुरी तरह झुलसे नजर आ रहे हैं, वहीं बीजेपी साफ साफ बच निकली है - क्या ये सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की बदौलत मुमकिन हुआ है?

ये कैसी सत्ता विरोधी लहर

सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने के मामले में बीजेपी अध्यक्ष रहे अमित शाह की महारत का लोहा माना जाता रहा है. बीते कई चुनावों में अमित शाह की रणनीति कामयाब देखी गयी है. गुजरात के कई चुनावों में, दिल्ली के एमसीडी चुनाव में और यहां तक कि 2019 के आम चुनाव में भी अमित शाह ने ऐसी चीजों को बड़े आराम से न्यूट्रलाइज किया है. माना जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को आगे कर ही बीजेपी ने अपने सांसदों के खिलाफ लोगों के गुस्से को किनारे कर पाने में सफलता पाई थी.

बीजेपी को अपने एक अंदरूनी सर्वे में शुरू में ही पता चल गया था कि कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बहुत जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर है - और फिर आगे की रणनीति उसी के हिसाब से बनायी गयी. चिराग पासवान तो पहले से ही बीजेपी के मिशन में लगे हुए थे, बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़ कर मोर्चा संभाल लिया.

नीतीश कुमार के साथ मंच शेयर करते हुए सभी साझा रैलियों में प्रधानमंत्री मोदी की कोशिश यही नजर आयी कि वो खुद आगे दिखें और नीतीश कुमार पीछे. नीतीश कुमार भी अपनी सरकार की बातें बताने के बाद अक्सर मंच प्रधानमंत्री मोदी को ही हैंडओवर कर देते रहे.

narendra modi, nitish kumarसासाराम की साझा रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ये तस्वीर वायरल हुई थी

हर रैली में प्रधानमंत्री मोदी लोगों को समझाते रहे कि बिहार के विकास के लिए नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बने रहने की क्यों जरूरत है. एक रैली में तो प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को यहां तक समझा दिया कि नीतीश कुमार का जो 15 साल का शासन समझा जा रहा है वो तो वास्तव में महज साढ़े तीन साल का ही है.

रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने बड़े ही सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की कि 15 साल में से नीतीश कुमार का 10 साल का कार्यकाल तो यूपीए सरकार की राजनीतिक दुश्मनी की भेंट चढ़ गया. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान के अनुभव सुनाते हुए समझाया कि किस तरीके से नीतीश कुमार से खार खाये लोगों ने उनको 10 साल तक काम नहीं करने दिया.

आखिरी पांच साल के बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि 18 महीने तो नीतीश कुमार महागठबंधन की सरकार में रहे और काम न कर पाने की वजह से ही वो छोड़ कर एनडीए में लौटने को मजबूर हुए. नीतीश कुमार भी मंच से समझाया करते कि लोग तो जानते ही हैं किन परिस्थितियों में उनको महागठबंधन और लालू प्रसाद यादव के साथ चुनाव जीतकर सरकार बनाने के बाद भी अलग होना पड़ा था.

नीतीश कुमार के आखिर के साढ़े तीन साल में ही प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी की भी हिस्सेदारी मानी. हकीकत तो ये है कि महागठबंधन के साथ के 18 महीने छोड़ कर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री जरूर रहे लेकिन वो भी बीजेपी के साथ गठबंधन की ही सरकार रही - और उसमें हमेशा सुशील मोदी बीजेपी कोटे से डिप्टी सीएम बने रहे.

सबसे ज्यादा ताज्जुब की बात तो यही है कि उसी सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से का शिकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हो रहे हैं लेकिन बीजेपी पर जरा भी आंच नहीं आ रही है. आखिर बीजेपी के मंत्री भी तो सरकार का ही हिस्सा थे, लेकिन लोगों की नाराजगी नीतीश कुमार के प्रति ही ज्यादा देखी जा रही है - और इस बात के सबूत हैं बीजेपी के मुकाबले जेडीयू की बहुत की कम सीटें जीत पाने की संभावना.

बीजेपी ने नीतीश को बचाया भी - और डुबोया भी

मौजूदा विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार अगर कहीं खड़े नजर आ रहे हैं तो उसकी वजह भी बीजेपी ही है - और लड़खड़ाते दिख रहे हैं तो उसके पीछे भी कोई और नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी की ही भूमिका है.

जिस तरीके से नीतीश कुमार का जगह जगह विरोध हो रहा था, कई बार तो ऐसा लगा जैसे वो पूरे आत्मविश्वास के साथ मंच पर खड़े नजर भी तभी आये जब उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहे. नीतीश कुमार के खिलाफ कई इलाकों में लोगों की नाराजगी देखी गयी. लोग 'लालू यादव जिंदाबाद' से लेकर 'नीतीश कुमार मुर्दाबाद' तक के नारे लगाते देखे गये.

थक हार कर चुनाव प्रचार के आखिरी दिन नीतीश कुमार ने खुद ही कह दिया कि ये उनका अंतिम चुनाव है - और बोले कि 'अंत भला तो सब भला'! चिराग पासवान को एनडीए में काउंटर करने के मकसद से ही नीतीश कुमार अपना क्रोध पीकर जीतनराम मांझी को साथ लाये थे. जीतनराम मांझी ने जितना हो सका नीतीश कुमार का बचाव भी किया और चिराग पासवान को जितना कहते बना बुरा भला भी कहा. चुनावों के दौरान ही चिराग पासवान के पिता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया.

कहने को तो बीजेपी के कुछ उम्मीदवारों के खिलाफ भी चिराग पासवान ने लोकजनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार खड़े किये थे, लेकिन बड़े पैमाने पर जेडीयू के खिलाफ ये कदम उठाया था. कई सीटों पर तो बीजेपी के बागियों को ही चिराग पासवान ने जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ टिकट दिया था.

ये सही है कि नीतीश कुमार के साथ मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए के लिए ही वोट मांगते रहे, लेकिन पहले चुनाव के पहले बीजेपी के विज्ञापन से नीतीश कुमार का चेहरा नदारद रहा. बीजेपी के विज्ञापन में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तस्वीर रही. बाद में जरूर एक बार प्रधानमंत्री मोदी के साथ नीतीश कुमार की तस्वीर देखने को मिली थी.

जिन इलाकों में बीजेपी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे वहां वे नीतीश कुमार का नाम लेने से भी परहेज कर रहे थे. उनके पास बताने को सिर्फ केंद्र की मोदी सरकार के काम ही होते रहे. जिन इलाकों में बीजेपी के उम्मीदवार चुनाव ल़ॉ रहे थे, वहां लग ही नहीं रहा था कि विधानसभा का चुनाव है जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर लड़ा जा रहा है.

चिराग पासवान के प्रदर्शन को उनकी सीटों की संख्या के आधार पर आकलन करना बेमानी होगा - बीजेपी की बढ़ी हुई सीटें और नीतीश कुमार की घटी हुई सीटों के लिए काफी हद तक जिम्मेदारी चिराग पासवान ही हैं. दिनारा सीट पर नीतीश कुमार के मंत्री जय कुमार सिंह की हार में बीजेपी से बगावत कर एलजेपी उम्मीदवार बने राजेंद्र सिंह की ही बड़ी भूमिका मानी जा रही है. सासाराम सीट पर जेडीयू के अशोक कुमार आरजेडी उम्मीदवार राजेश कुमार गुप्ता से करीब 10 हजार वोट से हार गये हैं. सासाराम सीट पर एलजेपी उम्मीदवार रामेश्वर चौरसिया को 12 हजार वोट मिले हैं. ज्यादातर सीटों पर ऐसी ही कहानी सुनने को मिल रही है.

और तो और अब तो बीजेपी की तरफ से कुछ नेताओं ने फिर से नीतीश कुमार पर ताने मारने शुरू कर दिये हैं - ऐसे नेताओं की सलाह है कि नीतीश कुमार को जेडीयू की सीटें कम होने के कारण खुद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी बीजेपी के लिए छोड़ देनी चाहिये.

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