बीजेपी से गठजोड़ बेअसर कर दे रहा है नीतीश कुमार की मुस्लिमों पर मेहरबानी
बीजेपी के साथ सत्ता में होने के बावजूद बिहार में अल्पसंख्यकों की कल्याणकारी योजनाओं में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है. देश में कल्याणकारी योजनाओं का मतलब वोट बैंक से होता है, लेकिन बिहार में ये देखने को नहीं मिलता.
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बिहार में एनडीए की सरकार है, लेकिन सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए जारी योजनाओं में कहीं से कोई कटौती नहीं की है. हाल के चुनावों पर नजर डालें तो अल्संख्यक वोटर एनडीए से दूर ही रहे. चाहे वो अररिया का लोकसभा का उपचुनाव हो या फिर जोकिहाट विधानसभा का उपचुनाव. जोकिहाट में तो पिछले चार चुनावों से जनता दल यूनाइटेड जीत रही थी, लेकिन इस बार उसे हार का मुंह देखना पडा. इसके बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वोट की राजनीति से दूर अल्पसंख्यकों की कल्याणकारी योजनाओं में कटौती के बजाए बढोत्तरी ही की है, जो दूसरे राज्यों से उन्हें अलग करता है. बीजेपी के साथ सत्ता में होने के बावजूद बिहार में अल्पसंख्यकों की कल्याणकारी योजनाओं में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है.
बिहार सरकार अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहन के लिए मुख्यमंत्री विद्यार्थी प्रोत्साहन योजनान्तर्गत वर्ष 2017 से ही बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अलावा मदरसा बोर्ड से फोकनिया एवं मौलवी परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण छात्र/छात्राओं को प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय लिया गया है. वैसे 2007-08 से ही प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अल्पसंख्यक छात्र एवं छात्राओं को दस हजार रुपए प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है. वर्ष 2014 से इंटर परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण मुस्लिम छात्राओं को 15,000 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. 2007 में मात्र 2627 विद्यार्थी मुख्यमंत्री विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना का लाभ ले पाते थे, जो आंकड़ा वर्ष 2017 में बढ़कर 38 हजार 518 हो गया है. प्रीमैट्रिक, पोस्टमैट्रिक कम मिन्स छात्रवृति योजना के तहत वर्ष 2017-18 में 1,07,001 प्री-मैट्रिक, 43,612 पोस्ट मैट्रिक और 9,855 मेरिट-कम-मिन्स मिला के कुल 1,59,468 छात्र-छात्राओं को लाभान्वित किया गया. केंद्र सरकार की पोस्ट मैट्रिक योजना के तहत बिहार का कोटा मात्र 35,715 निर्धारित है, जबकि आवेदन करने वाले अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं की संख्या लगभग 1 लाख होती है. इस विषय में राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि केन्द्रीय कोटा से शेष आवेदकों को राज्य निधि कोष से लाभान्वित किया जाएगा.
राज्य सरकार द्वारा अल्पसंख्यक मुस्लिम परित्यक्ता तलाकशुदा महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से वित्तीय सहायता प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए चलने वाली मुस्लिम परित्यक्ता तलाकशुदा सहायता योजनान्तर्गत वर्ष 2017-18 से महिलाओं की सहायता राशि 10 हजार रुपए से बढ़ाकर 25 हजार रुपए कर दिया गया है. वर्ष 2007 से अब तक इस योजना के तहत कुल 14 हजार मुस्लिम परित्यक्ता महिलाएं लाभान्वित हुई हैं.
अल्पसंख्यक छात्रावास योजनान्तर्गत राज्य के सभी जिलों में अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावास निर्माण की योजना है. अब तक 37 छात्रावास निर्मित हैं और 13 छात्रावासों का निर्माण प्रक्रियाधीन है. छात्रावास में सभी छात्रों की सुविधा के लिए उसके रख-रखाव, फर्नीचर एवं आधुनिकीकरण मद में अलग से राशि दी जाती है. प्रत्येक छात्रावास में सम्पूर्ण सुविधायुक्त पुस्तकालय, अध्ययन कक्ष के साथ-साथ सोलर पावर प्लांट स्थापित करने का निर्णय लिया गया है. अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के छात्रावासों में रहने वाले छात्र-छात्राओं को बेड, अलमारी, टेबल-कुर्सी, पुस्तकालय, खाना बनाने के लिए बर्तन आदि सुविधाएं दी जा रही हैं. यहां रहने वाले छात्र-छात्राओं को मुख्यमंत्री छात्रावास अनुदान योजना के तहत प्रतिमाह एक हजार (1000) रुपए की दर से छात्रावास अनुदान दिया जा रहा है. इन छात्रावासों में रहने वाले विद्यार्थियों को प्रतिमाह छात्र-छात्राओं को प्रतिमाह 15 किलोग्राम की दर से खाद्यान्न (9 किलोग्राम चावल एवं 6 किलोग्राम गेंहू) की आपूर्ति भी की जाती है. इन छात्रावासों के रख रखाव एवं कुशल प्रबंधन के लिए छात्रावास प्रबंधक के 37 पदों का सृजन किए जाने की योजना है.
बिहार राज्य अल्पसंख्यक वित्तीय निगम को सुदृढ़ करने के लिए वर्ष 2017-18 से इसका हिस्सापूंजी 40 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 80 करोड़ रुपए करने का सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है. मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक रोजगार ऋण योजनान्तर्गत वर्ष 2017-18 से अल्पसंख्यक युवक-युवतियों को अधिकाधिक रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 25 करोड़ रुपए के स्थान पर 100 करोड़ रुपए करने की स्वीकृति प्रदान की गई है. वर्ष 2012-13 से लागू इस योजना का उद्देश्य बेरोजगार युवकों को 5 प्रतिशत साधारण ब्याज दर पर अधिकतम 5 लाख रुपए तक का ऋण देकर उन्हें स्वावलंबी बनाना है. अब तक 9,626 अल्पसंख्यक लाभुकों को स्वरोजगार के लिए 104 करोड़ रुपए का वितरण किया गया है. अल्पसंख्यकों के संस्थागत सुधार के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं. बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड का वार्षिक अनुदान 20 लाख रुपए से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपए किया गया. बिहार राज्य शिया वक्फ बोर्ड का अनुदान 7.50 लाख रुपए से बढ़ाकर 80 लाख रुपए किया गया. अंजुमन इस्लामिया हॉल, पटना के पुनर्निर्माण हेतु 35 करोड़ 18 लाख रुपए की स्वीकृति दी गई है.
बिहार राज्य हज समिति का वार्षिक अनुदान 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 60 लाख रुपए किया गया है. राज्य सरकार द्वारा हज यात्रियों की सहायता के लिए खादिमुल हुज्जाज को भेजने के लिए प्रति वर्ष अलग से राशि देने की व्यवस्था है. राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय के महान विभूतियों के नाम जैसे स्वर्गीय मौलाना मजहरुल हक़, स्वर्गीय अब्दुल कय्यूम अंसारी और स्वर्गीय गुलाम सर्वर भवन का निर्माण कार्य कुल 13 करोड़ रुपए की लागत से पूर्ण और लोकार्पित किया गया है.
देश में कल्याणकारी योजनाओं का मतलब वोट बैंक से होता है, लेकिन बिहार में ये देखने को नहीं मिलता. तभी तो हाल ही में जनता दल यूनाइटेड में शामिल हुए बिहार सरकार के पूर्व मंत्री मोनाजिर हसन कहते हैं कि जो लोग अल्पसंख्यकों की वोट बैंक की राजनीति करते हैं उनसे कई गुना ज्यादा नीतीश कुमार अल्संख्यकों के कल्याण के लिए काम किया है. लेकिन ये भी सच्चाई है कि इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नीतीश कुमार को वोट के रूप में नहीं मिलने जा रहा है. हांलाकि, 2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और एनडीए को अल्संख्यकों ने अच्छी तदाद में वोट दिया था, लेकिन जब नीतीश कुमार 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़े तो अल्पसंख्यकों ने बिल्कुल उनका साथ नहीं दिया. 2015 में महागठबंधन के साथ रहने के कारण अल्पसंख्यक का विखराव नहीं हुआ और उसका फायदा नीतीश कुमार की पार्टी को भी हुआ. लेकिन एनडीए के साथ 2017 में दोबारा सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार का साथ अल्पसंख्यकों ने नहीं दिया. इसका प्रमाण हाल ही में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों के रिजल्ट से मिलता है.
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