क्यों अब पाकिस्तान को युद्ध में नहीं हरा सकता भारत !
पाकिस्तान के खिलाफ भारत सख्त हो चुका है. देखकर लगता है कि अब वो शांति से नहीं बैठने वाला. लेकिन, एक किताब में कुछ अलग ही लिखा है जिसे पढ़कर हर भारतीय का चेहरा गुस्से से लाल हो जाएगा.
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पाकिस्तान की नापाक हरकत के बाद फिर भारत जवाब देने के लिए तैयार है. पाक ने एक मई को जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में सीजफायर का उल्लंघन किया है. इसमें भारत के दो जवान शहीद हो गए हैं. इसके बाद पाक आर्मी ने LoC पार कर भारतीय सैनिकों की हत्या की और फिर उनके सिर काट दिए. अब कहा जा रहा है कि भारत चुप नहीं बैठेगा. वो गन का जवाब गोलों से देने की फिराक में हैं. लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान इतने भर से नहीं मानेगा. उसकी इन हरकतों का स्थाई इलाज करना जरूरी है.
तो क्या भारत-पाकिस्तान युद्ध से ही इलाज संभव है ?
1948 में पाकिस्तान ने जब कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा किया तो उसके बाद से 1965 और 1971 में जंग हो चुकी है. और 1999 में कारगिर का संघर्ष भी लगभग जंग के बराबर ही रहा. लेकिन इन सभी सैन्य संघर्षों में भारत का भौगोलिक स्तर पर कुछ हासिल नहीं हुआ. न तो कश्मीर का कब्जे वाला हिस्सा हम ले पाए और न ही कश्मीर में हस्तक्षेप से उसके दावे का खत्म कर पाए. तो सवाल यह है कि क्या एक निर्णायक जंग की जरूरत और है ? और यदि यह जंग होगी, तो इसका अंजाम क्या होगा ?
अब आसान नहीं है पाकिस्तान से जीतना ?
1965, 1971 और 1999 के युद्ध में पाकिस्तान को भारत ने आसानी से धूल चटा दी थी, लेकिन पिछले 17-18 वर्षों में भारत और पाकिस्तान की सैन्य शक्ति में काफी बदलाव आए हैं. जिन्हें समझना जरूरी है. 'ड्रैगन ऑन आर डोरस्टेप' किताब के लेख प्रवीण शाहने और गजाला वहाब का तर्क है कि भारत पाक को युद्ध में हरा नहीं सकता. यह किताब भारतीय सेना की कमजोरियों को सामने रखती है.
भारत के पास मिलिट्री फोर्स जबकि पाक के पास मिलिट्री पावर
किताब में कहा गया है कि मोदी के शासन के बावजूद भी भारत पाकिस्तान को युद्ध में हरा नहीं सकता. पाकिस्तान के पास मिलिट्री पावर है तो वहीं भारत के पास मिलिट्री फोर्स है. शाहने और वहाब का तर्क है कि सैनिकों की भर्ती से, युद्ध सामग्री और बाकी साजो सामान जुटाकर भारत में एक बड़ी मिलिट्री फोर्स तैयार की है. लेकिन किसी युद्ध को जीतना के लिए इतना ही काफी नहीं है.
युद्ध जीतने के लिए जरूरी है मौजूदा सैन्य शक्ति का सही तरीके से उपयोग, युद्ध की प्रकृति से निपटने की ताकत और किसी खास युद्ध के क्षेत्र में लड़ने का कौशल. और सबसे हम है चुनौतियों के दौरान कड़े फैसले समय पर लेने की ताकत. यह सब मिलकर बनता है मिलिट्री पावर, जो फिलहाल पाकिस्तान के पास भारत के मुकाबले ज्यादा है.
ईंट का जवाब पत्थर से नहीं दे पाता भारत
किताब में लिखा है कि भारत में राजनेता ये फैसला लेते हैं कि कब, कैसे और कहां जंग लड़नी है. लेकिन हकीकत में हथियार और मिलिट्री पावर का इतना आइडिया नहीं है, जितना आर्मी को होता है. ऐसे में सही समय पर सही युद्ध करना मुश्किल हो जाता है. किताब में लिखा है कि भारत में रक्षा बल से सरकार पूरी तरह से अलग रहती है. शांति काल में तो सरकार और सेना के बीच ज्यादा बात ही नहीं होती.
जबकि पाकिस्तान में रक्षा से जुड़े सभी अहम फैसले लेने का रोल सैनिक नेतृत्व के पास सुरक्षित है. कई बार तो वे फैसला लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने के बाद सरकार को सूचित करते हैं. कारगिल का युद्ध तो कहा जाता है कि पाकिस्तान सेना ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के नॉलेज में लाए बिना ही शुरू कर दिया था. इसी वजह से पाकिस्तान को इस युद्ध में शुरुआती कामयाबी भी मिली.
मोदी की विदेश नीति दिखावा
लेखकों ने इस किताब में भारत की विदेश नीतियों पर सवालियां निशान उठाए हैं. किताब में चीन और पाकिस्तान के संबंध में भारत की विदेश नीति को कसूरवार ठहराया है. वहीं एक राजनैतिक प्रधानमंत्री के रूप में विफल होने के लिए मोदी की आलोचना भी की है. किताब में मोदी की विदेश नीति को दिखावा और छलावा करार दिया है.
बिना शर्त बात क्यों नहीं करता भारत
किताब में मोदी सरकार को नसीहत देते हुए कहा गया है कि भारत को सब सभी पक्षों से बिना शर्त बात करने की जरूरत है. चाहे वो कश्मीर के हुर्रियत नेता हों या फिर अन्य अलगाववादी ताकतें. इससे समस्या का समाधान संभव भले न हो, लेकिन वहां तनात सैनिकों की संख्या और उन पर होने वाला खर्च बचाया जा सकता है. शाहने और गजाला वहाब ने कहा कि अगर भारत नक्सलवादियों और पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों से बात कर के वहां से सैनिकों को निकाल सकता है तो यहां क्यों नहीं ?
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