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Updated: 06 दिसम्बर, 2019 04:18 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जो प्याज नहीं खाता, उसे प्याज (Onion) की कीमतों से क्या मतलब, भले ही प्याज 10 रुपए किलो बिके या 100 रुपए. बेशक अगर आप एक आदमी हैं तो आप ये कह सकते हैं, लेकिन एक केंद्रीय मंत्री के मुंह से ऐसी बात शोभा नहीं देती. यहां बात हो रही है केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे (Ashwini Choubey) की, जिनसे मीडिया ने प्याज की बढ़ती कीमतों पर उनकी राय मांगी तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि वह प्याज खाते ही नहीं. वही प्याज, जो कई बार सरकारें तक गिरा चुकी है, वह अश्विनी चौबे नहीं खाते. यूं लगा मानो वह निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) का समर्थन करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन वह भूल गए कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तो प्याज खाने के सवाल का सवाल दिया था, जबकि चौबे जी प्याज की कीमतों पर खुद को प्याज न खाने वाला शाकाहारी बताने लगे. वह बोले- 'मैं तो शाकाहारी हूं और शाकाहार में मैंने प्याज कभी चखा ही नहीं तो मुझ जैसे आदमी को क्या पता कि प्याज का क्या (कीमत) चल रहा है.' अगर राह चलता कोई शख्स प्याज के बारे में ऐसी बात बोले तो एक बार के लिए समझ आता है, लेकिन अश्विनी चौबे का सरकारें गिराने वाली प्याज को पहचानने से इनकार कर देना सिर्फ ढोंग ही है. चौबे जी तो ये कहते हुए पल्ला झाड़ के निकल लिए, लेकिन सोशल मीडिया (Social Media) ऐसे लोगों को बिल्कुल नहीं बख्शता है. अब सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया गया है.

सीतारमण को बचाने के चक्कर में खुद फंस गए

अश्विनी चौबे से प्याज का सवाल पूछे जाने की मुख्य वजह हैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण. उन्होंने संसद में कहा था कि वह ऐसे परिवार से आती हैं, जहां पर लहसुन, प्याज नहीं खाया जाता. दरअसल, उन्होंने यह बात एक शख्स के सवाल पर कही. उन्होंने पूछा था कि क्या आप प्याज खाती हैं, जिस पर निर्मला सीतारमण ने जवाब दिया. ध्यान देने वाली बात ये है कि उन्होंने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा कि वह प्याज नहीं खाती, इसलिए प्याज की कीमतों से उन्हें कोई मतलब नहीं या इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं. लेकिन अश्विनी चौबे ने यही कहा कि वह प्याज नहीं खाते हैं, तो प्याज के बारे में वह कुछ बोल सकते हैं, उन्हें कैसे पता हो सकता है कि प्याज की कीमतें क्या चल रही हैं या फिर प्याज का बाजार में क्या हाल है. इनके बयान पर थोड़ी हैरानी इसलिए भी हो रही है क्योंकि यह कोई छोटे-मोटे नेता नहीं हैं, बल्कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री हैं.

तो मंत्री जी कहेंगे मैं क्रिमिनल नहीं हूं तो अपराध पर नहीं बोल सकता...

अश्विनी चौबे महंगे होते प्याज पर अनाप-शनाप बोलकर पल्ला झाड़ते हुए चले गए, लेकिन सोशल मीडिया ने उन्हें धर दबोचा. अब कहा जा रहा है कि अगर कोई पत्रकार चौबे जी से पूछ ले कि देश में अपराध बहुत बढ़ रहे हैं, इस पर आपका क्या कहना है तो वह बोलेंगे मैं क्रिमिनल नहीं हूं, इसलिए अपराध पर कैसे बोल सकता हूं. बात सही भी है. ऐसा तंज तो अश्विनी चौबे पर बनता ही है. देश में पहले से ही आर्थिक मंदी का दौर है, जीडीपी काफी गिर चुकी है और ऐसे में प्याज के दाम 100 रुपए का लेवल भी पार कर रहे हैं. जहां एक ओर देश में ऐसी स्थिति हो गई है, महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है, उसी बीच अश्विनी चौबे कहते हैं वह प्याज नहीं खाते इसलिए प्याज पर बात नहीं कर सकते.

Ashwini Choubeyअश्विनी चौबे ने प्याज पर जैसा बयान दिया है, वह दिखाता है कि वो पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

सोशल मीडिया पर अब अश्विनी चौबे खूब ट्रोल हो रहे हैं. एक यूजर ने लिखा है कि इस तरह तो नीतीश कुमार का घर दारू से बर्बाद नहीं हुआ, तो फिर उन्होंने पूरे बिहार में दारू क्यों बंद कर दी?

एक दूसरे यूजर ने लिखा है- क्या मजाक है, ये स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं. कल को बोलेंगे मेरे को डेंगू नहीं हुआ तो मैं देश में फैल रहे डेंगू पर कैसे बोल सकता हूं.

सोशल मीडिया पर तो ये भी कहा जा रहा है प्याज खाने वाला मांसाहारी हो जाता है क्या? क्या शाकाहारी भी दो तरह के होते हैं?

सरकारें गिरा चुकी है प्याज

जिस प्याज को अश्विनी चौबे इतने हल्के में ले रहे हैं, वह मामूली नहीं है. उन्हें ये पता होना चाहिए कि यही प्याज सरकारें गिरा चुकी है. प्याज की कीमतें बढ़ने से ना सिर्फ गृहणी के किचन का बजट गड़बड़ हो जाता है, बल्कि सियासी गलियारे में भी हलचल पैदा हो जाती है. वैसे भी, प्याज के दाम ने कई बार सियासी तूफान खड़े किए हैं. जब-जब इसके भाव बढ़े हैं, तब-तब किसी न किसी की कुर्सी तो हिली ही है. कई बार तो सरकारें तक गिर गईं. आपातकाल के बुरे दौर के बाद देश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो इंदिरा गांधी ने उस समय प्याज की कीमतों को मुद्दा बनाया. अगला चुनाव इंदिरा गांधी ने प्याज के दम पर ही जीत लिया. 1998 में जब प्याज की कीमतें बढ़ीं तो कांग्रेस की शीला दीक्षित ने इसे अहम मुद्दा बनाकर उठाया. नतीजा ये हुआ कि दिल्ली के चुनाव में सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा हार गई और कांग्रेस की ओर से शीला दीक्षित ने मैदान मार लिया. इनते गुल खिला चुके प्याज को भी अगर एक केंद्रीय मंत्री नहीं जानें, तो काहे का मंत्री.

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